आँखों की दिक्कत मुझे भी बचपन स

मेरे जन्म के पौने दो साल बाद ही मेरे छोटे भाई का जन्म हो गया था | उसी समय मेरी माँ की परेशानी को देखते हुए मेरी दादी ने मुझे अपने सानिध्य में ले लिया |सही अर्थों में वे एक तरह से मेरी माँ ही बन गई | मैं कुछ बड़ी हुई तो वे मुझे बताती थी कि कैसे मैं जब बहुत छोटी थी तब उनसे चिपटी रहती थी | कई बार तो उन्हें गाँव के लोगों की शव -यात्रा में भी मुझे साथ ले जाना पड़ा |लोग उनपर हँसते थे कि मेरे कारण उन्होंने अपना बुढ़ापा खराब कर लिया , पर मेरे दादी ने ऐसी बातों पर कभी ध्यान नही दिया और बहुत ही स्नेह से मेरा पालन- पोषण किया | उनके स्नेह की अनेक बातें मुझे याद आती हैं | उनमे से एक मैं सबके साथ साझा करना चाहती हूँ |
मुझे आँखें दुखने की समस्या बचपन से है ,क्योंकि मेरी आँखे बहुत संवेदनशील हैं |थोड़ी सी धूल - भरी आंधी आई नहीं कि मेरी आँखों में इन्फेक्शन हो जाता है | मुझे याद है एक बार जब मैं शायद दस साल की हूँगी , मुझे आँखों में भयंकर इन्फेक्शन हुआ | मुझे हर तीसरे दिन डाक्टर को दिखाने ले जाया जाता पर बीमारी ठीक नहीं हुई | कई दवाइयां बदली गई पर कोई आराम नहीं आया | शाम होते ही आँखे रड़कने लग जाती और चिपक जाती | सारा दिन मुंह छिपाए अँधेरे में रहना पड़ता , रोशनी में आते ही आँखे जलने लग जाती |पीड़ा से मैं रो पड़ती तो आँखे और भी ज्यादा दुखती और लाल हो जाती | क्योकि उन दिनों गाँव में आँखों के लिए कोई बेहतर डाक्टर नहीं था सो मुझे शहर के डाक्टर को दिखाने की बात होने लगी पर उससे पहले किसी के कहने पर एक दिन मेरी दादी मुझे गाँव के एक हकीम के पास लेकर गई | उन्होंने दवा कोई न दी पर एक घरेलू इलाज बताया |मेरी दादी मुझे घर छोड़ कर एक -दो घंटे बाद घृतकुमारी के दो बड़े टुकड़े ले कर आई | शाम को मुझे जल्दी खिला-पिला कर , .खुले आँगन में खाट बिछाकर लिटा दिया |फिर मेरे पास बैठकर उन टुकड़ों को बीच मे से चीर कर चार भाग बना लिए |दो टुकड़ों पर हल्दी बुरककर , अपनी पुरानी सूती-धुली धोती को फाड़कर ,उसके कपडे से- मेरे पैरों पर बांध दिए |उसके बाद बाक़ी के बचे दो टुकड़ों पर हल्दी के साथ पिसी फिटकरी डाल कर मेरी आंखों पर बांध दिए |दुखती आँखों पर इस मसाले से और भी ज्यादा पीड़ा होने लगी और मैंने चीखना शुरू कर दिया और आँखों पर बंधी पट्टियाँ नोचनी चाही पर मेरी दादी ने दृढ़ता से मेरे हाथ पकड़ लिए और मुझे डांट दिया --,मारने की धमकी भी दी |आसपास लेटे मेरे भाई -बहन हंसकर मेरी तकलीफ और बढ़ा रहे थे |घंटे दो घंटे बाद मेरी पीड़ा जरा सी कम हुई पर फिर भी मेरी दादी सोई नहीं , मेरे हाथ पकडे रात के दो बजे से ज्यादा तक बैठी रही | मेरा रोना धोना साथ चलता रहा |उसके बाद शायद हकीम जी का बताया तय वक़्त खत्म हो गया सो उन्होंने मेरी आँखों से पट्टी खोल दी , पर उसके बाद मैंने और भी ज्यादा चीखना शुरू कर दिया क्योंकि अब आंखों से कुछ भी दिखना बंद हो गया |बस अँधेरा था , ना चाँद था ना चांदनी | दादी हलकी सी घबरा गई पर कुछ सोचकर मुझे झिड़क कर एक दो थप्पड़ जमाकर जैसे -तैसे सुला दिया |सुबह मैं देर तक सोई रही जब धूप खूब चढ़ आई तब मेरी दादी ने मुझे जगाया , वो रात के मेरे ड्रामे से बड़ी नाराज थी | उन्होंने मेरी बंद आँखे ही हलके गर्म पानी से धोई और जब मैंने आँखे खोली तो मेरी आँखों में ना लालिमा थी न चिपचिपाहट | मोती जैसी उजली आंखे पाकर मेरी दादी नाराजगी भूल गई और मुझे गले से लगा लिया |उसके बाद इतनी भयंकर आंखे शायद कभी नहीं दुखी | बाद में ये टोटका बहुतों ने आजमाया पर किसी को एक रात में इतना चमत्कारी आराम नहीं आया जितना मुझे आया था |शायद किसी ने इतने स्नेह और समर्पण से इतनी मेहनत नहीं की, जितनी मेरी स्वर्गीय दादी ने करी थी |वो मेरी आँखों के दुखने पर मेरी माँ की तरह मेरे साथ रात -रात भर जगती थी|गर्मी में दोपहर में कभी घर से बाहर जाने नहीं देती थी | उनका स्नेह का मेरे ऊपर बहुत बड़ा उपकार है| आज मातृ- दिवस के अवसर पर मेरी दादी के अतुलनीय स्नेह को याद करते हुए उनकी अनमोल पुण्य स्मृतियों को शत - शत नमन करती हूँ
बरसों पहले जब उनका स्वर्गवास हुआ तब उनको समर्पित कुछ पंक्तियाँ लिखी थी --
बोलो माँ ! आज कहाँ तुम हो ,
है अवरुद्ध कंठ ,सजल नयन
बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
कम्पित अंतर्मन -कर रहा प्रश्न -
बोलो माँ आज कहाँ तुम हो ?
जिसमें समाती थी धार
मेरे दृग जल की,
खो गई वो छाँव
तेरे आँचल की ;
जीवन रिक्त स्नेहिल स्पर्श बिन
बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
हुआ आँगन वीरान माँ तुम बिन -
घर बना मकान माँ तुम बिन ,
रमा बैठा धूनी यादों की -
मन श्मशान बना माँ तुम बिन -
किया चिर शयन -चली मूँद नयन -
बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
तेरा अनुपम उपहार ये तन -
साधिकार दिया बेहतर जीवन --
तेरी करुणा का मैं मूर्त रूप -
तेरे स्नेहाशीष संचित धन ;
ले प्राणों में थकन निभा जग का चलन-
बोलो माँ ! आज कहाँ तुम हो !!!!!!
चित्र --- गूगल से साभार ------
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पाठको के लिए विशेष ---माँ को समर्पित शायद फ़िल्मी दुनिया का सबसे मधुर और भावपूर्ण गीत ---- मेरा आग्रह है जरुर सुने
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|आँखों की दिक्कत मुझे भी बचपन से मिटा
मेरे जन्म के पौने दो साल बाद ही मेरे छोटे भाई का जन्म हो गया था | उसी समय मेरी माँ की परेशानी को देखते हुए मेरी दादी ने मुझे अपने सानिध्य में ले लिया |सही अर्थों में वे एक तरह से मेरी माँ ही बन गई | मैं कुछ बड़ी हुई तो वे मुझे बताती थी कि कैसे मैं जब बहुत छोटी थी तब उनसे चिपटी रहती थी | कई बार तो उन्हें गाँव के लोगों की शव -यात्रा में भी मुझे साथ ले जाना पड़ा |लोग उनपर हँसते थे कि मेरे कारण उन्होंने अपना बुढ़ापा खराब कर लिया , पर मेरे दादी ने ऐसी बातों पर कभी ध्यान नही दिया और बहुत ही स्नेह से मेरा पालन- पोषण किया | उनके स्नेह की अनेक बातें मुझे याद आती हैं | उनमे से एक मैं सबके साथ साझा करना चाहती हूँ |
मुझे आँखें दुखने की समस्या बचपन से है ,क्योंकि मेरी आँखे बहुत संवेदनशील हैं |थोड़ी सी धूल - भरी आंधी आई नहीं कि मेरी आँखों में इन्फेक्शन हो जाता है | मुझे याद है एक बार जब मैं शायद दस साल की हूँगी , मुझे आँखों में भयंकर इन्फेक्शन हुआ | मुझे हर तीसरे दिन डाक्टर को दिखाने ले जाया जाता पर बीमारी ठीक नहीं हुई | कई दवाइयां बदली गई पर कोई आराम नहीं आया | शाम होते ही आँखे रड़कने लग जाती और चिपक जाती | सारा दिन मुंह छिपाए अँधेरे में रहना पड़ता , रोशनी में आते ही आँखे जलने लग जाती |पीड़ा से मैं रो पड़ती तो आँखे और भी ज्यादा दुखती और लाल हो जाती | क्योकि उन दिनों गाँव में आँखों के लिए कोई बेहतर डाक्टर नहीं था सो मुझे शहर के डाक्टर को दिखाने की बात होने लगी पर उससे पहले किसी के कहने पर एक दिन मेरी दादी मुझे गाँव के एक हकीम के पास लेकर गई | उन्होंने दवा कोई न दी पर एक घरेलू इलाज बताया |मेरी दादी मुझे घर छोड़ कर एक -दो घंटे बाद घृतकुमारी के दो बड़े टुकड़े ले कर आई | शाम को मुझे जल्दी खिला-पिला कर , .खुले आँगन में खाट बिछाकर लिटा दिया |फिर मेरे पास बैठकर उन टुकड़ों को बीच मे से चीर कर चार भाग बना लिए |दो टुकड़ों पर हल्दी बुरककर , अपनी पुरानी सूती-धुली धोती को फाड़कर ,उसके कपडे से- मेरे पैरों पर बांध दिए |उसके बाद बाक़ी के बचे दो टुकड़ों पर हल्दी के साथ पिसी फिटकरी डाल कर मेरी आंखों पर बांध दिए |दुखती आँखों पर इस मसाले से और भी ज्यादा पीड़ा होने लगी और मैंने चीखना शुरू कर दिया और आँखों पर बंधी पट्टियाँ नोचनी चाही पर मेरी दादी ने दृढ़ता से मेरे हाथ पकड़ लिए और मुझे डांट दिया --,मारने की धमकी भी दी |आसपास लेटे मेरे भाई -बहन हंसकर मेरी तकलीफ और बढ़ा रहे थे |घंटे दो घंटे बाद मेरी पीड़ा जरा सी कम हुई पर फिर भी मेरी दादी सोई नहीं , मेरे हाथ पकडे रात के दो बजे से ज्यादा तक बैठी रही | मेरा रोना धोना साथ चलता रहा |उसके बाद शायद हकीम जी का बताया तय वक़्त खत्म हो गया सो उन्होंने मेरी आँखों से पट्टी खोल दी , पर उसके बाद मैंने और भी ज्यादा चीखना शुरू कर दिया क्योंकि अब आंखों से कुछ भी दिखना बंद हो गया |बस अँधेरा था , ना चाँद था ना चांदनी | दादी हलकी सी घबरा गई पर कुछ सोचकर मुझे झिड़क कर एक दो थप्पड़ जमाकर जैसे -तैसे सुला दिया |सुबह मैं देर तक सोई रही जब धूप खूब चढ़ आई तब मेरी दादी ने मुझे जगाया , वो रात के मेरे ड्रामे से बड़ी नाराज थी | उन्होंने मेरी बंद आँखे ही हलके गर्म पानी से धोई और जब मैंने आँखे खोली तो मेरी आँखों में ना लालिमा थी न चिपचिपाहट | मोती जैसी उजली आंखे पाकर मेरी दादी नाराजगी भूल गई और मुझे गले से लगा लिया |उसके बाद इतनी भयंकर आंखे शायद कभी नहीं दुखी | बाद में ये टोटका बहुतों ने आजमाया पर किसी को एक रात में इतना चमत्कारी आराम नहीं आया जितना मुझे आया था |शायद किसी ने इतने स्नेह और समर्पण से इतनी मेहनत नहीं की, जितनी मेरी स्वर्गीय दादी ने करी थी |वो मेरी आँखों के दुखने पर मेरी माँ की तरह मेरे साथ रात -रात भर जगती थी|गर्मी में दोपहर में कभी घर से बाहर जाने नहीं देती थी | उनका स्नेह का मेरे ऊपर बहुत बड़ा उपकार है| आज मातृ- दिवस के अवसर पर मेरी दादी के अतुलनीय स्नेह को याद करते हुए उनकी अनमोल पुण्य स्मृतियों को शत - शत नमन करती हूँ
बरसों पहले जब उनका स्वर्गवास हुआ तब उनको समर्पित कुछ पंक्तियाँ लिखी थी --
बोलो माँ ! आज कहाँ तुम हो ,
है अवरुद्ध कंठ ,सजल नयन
बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
कम्पित अंतर्मन -कर रहा प्रश्न -
बोलो माँ आज कहाँ तुम हो ?
जिसमें समाती थी धार
मेरे दृग जल की,
खो गई वो छाँव
तेरे आँचल की ;
जीवन रिक्त स्नेहिल स्पर्श बिन
बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
हुआ आँगन वीरान माँ तुम बिन -
घर बना मकान माँ तुम बिन ,
रमा बैठा धूनी यादों की -
मन श्मशान बना माँ तुम बिन -
किया चिर शयन -चली मूँद नयन -
बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
तेरा अनुपम उपहार ये तन -
साधिकार दिया बेहतर जीवन --
तेरी करुणा का मैं मूर्त रूप -
तेरे स्नेहाशीष संचित धन ;
ले प्राणों में थकन निभा जग का चलन-
बोलो माँ ! आज कहाँ तुम हो !!!!!!
चित्र --- गूगल से साभार ------
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पाठको के लिए विशेष ---माँ को समर्पित शायद फ़िल्मी दुनिया का सबसे मधुर और भावपूर्ण गीत ---- मेरा आग्रह है जरुर सुने
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|आँखों की दिक्कत मुझे भी बचपन से मिटा