पिछले साल शब्द नगरी से जुड़ना भी मेरे लिए एक यादगार लम्हा बन कर रह गया |
जनवरी 2017 में शब्द नगरी पर लेखन शुरू करने से पहले मैंने नहीं सोचा था कि मेरा टिप्पणी लिखने के लिए बनाया गया अकाउंट लेखन के काम भी आयेगा | अकाउंट बनाकर मैंने सबसे पहले किसी रचना पर टिप्पणी करने से पहले ही एक छोटा सा लेख शब्द नगरी पर पोस्ट कर दिया | उस समय 12 वीं कक्षा में पढ़ रही मेरी बेटी ने इस काम में मेरी उत्साहित हो मदद की क्योकि उस समय मुझे इंटरनेट पर पढने के अलावा कुछ नही आता था | पहले ही लेख पर तीन चार लोगों के उत्साहवर्धन करने वाली टिप्पणियों ने मुझे असीम ख़ुशी से भर दिया |और ये लेखन यात्रा चल निकली | कभी समय काटने के लिए वर्षों पहले लिखी कविताओं के नाम पर रचनाएँ भी पोस्ट की ,उन्हें भी पाठकों ने पढकर उत्साह बढ़ाया | पर तब तक मैंने ब्लॉग बनाने के बारे में बिलकुल नहीं सोचा था | क्योंकि कई साल पहले मैंने इंटरनेट पर पढ़कर एक आधा अधूरा ब्लॉग बनाया था पर मुझे पोस्ट लिखकर उसे शेयर करना ही नहीं आया , अतः वह ब्लॉग कभी भी औपचारिक रूप में अस्तित्व में नही आ पाया |उसके बाद मुझे कभी विश्वास नही हुआ कि मेरा ब्लॉग बन सकता है और उसे लोग पढ़ भी सकते हैं | मई महीने में एक अत्यंत स्नेही,गुरुतुल्य सहयोगी रचनाकार ने मुझे अभूतपूर्व प्रोत्साहन देते हुए , अपना ब्लॉग बनाने का सुझाव दिया | पर ब्लॉग का पुराना अनुभव मुझे बहुत हतोत्साहित कर रहा था | फिर भी उनकी अभूतपूर्व प्रेरणा से , गर्मी की छुट्टियों में अपने मायके जाकर अपने छोटे भाई से , जो कि एक सुदक्ष सॉफ्टवेर इंजीनियर है , से ब्लॉग बनाने का आग्रह किया और मेरे लौटने से मात्र कुछ घंटे पहले ही उसने क्षितिज नाम से मेरा ब्लॉग बना दिया | अंततः ब्लॉग जिसपर ज्यादा विकल्प नही थे अस्तित्व में आ गया |पर महीने से ज्यादा होने के बाद भी मैंने उस पर कोई रचना नहीं डाली क्योकि मुझे नही लगता था मंजे हुए रचनाकारों के बीच कोई मुझे भी पढेगा | इसी बीच आदरणीय रंगराज अयंगर जी ने मुझे अपने ब्लॉग पर आमंत्रित किया | वहां आकर मैंने देखा जो लोग शब्द नगरी पर सक्रिय थे, उनमें से कई लोग ब्लॉग जगत के सशक्त हस्ताक्षर हैं | उन्ही के ब्लॉग पर से जाकर कई सक्रिय रचनाकारों के ब्लॉग का अवलोकन किया और मेरे भीतर भी अपना ब्लॉग शुरू करने की इच्छा हुई |किसी तरह से साहस बटोर कर मैंने 8 जुलाई की रात को गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में , गुरुदेव को कोटि नमन करते हुए 'श्री गुरुवैय नमः' नाम से लेख लिखा | मुझे हरगिज यकीन नहीं था , कि कोई मेरा ब्लॉग पढ़ेगा ,पर अगली सुबह जब मैंने ब्लॉग देखा तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा | प्रिय श्वेता सिन्हा ने अपने कर कमलों द्वारा स्नेहासिक्त शब्द लिख मेरे ब्लॉग का उद्घाटन कर दिया था और मेरी सुखद लेखन यात्रा का संकेत दे दिया | उसी पोस्ट पर ब्लॉग जगत और मेरे शब्दनगरी के परिचित सहयोगियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर मेरा उत्साह बढ़ाया | यहाँ तक कि आदरणीय बहन यशोदा जी भी उस दिन मेरे ब्लॉग पर आई और कुछ शब्द लिखे |उसी दिन प्रिय ध्रुव सिंह एकलव्य ने इसी पोस्ट को अगले दिन के पञ्च लिंकों के में लेने का आहलादित करने वाला समाचार दिया | उस शुभ दिन के बाद मेरे सहयोगी रचनाकारों और स्नेही पाठक वृन्द ने मेरे उत्साहवर्धन में कोई कमी नहीं छोडी और पग- पग पर मुझे प्रोत्साहन देकर मेरी रचनाओं का मान बढाया और मुझे मेरे ब्लॉग की कमियों से भी परिचित करवाकर उसे बेहतर बनाने में मदद की | पहले मेरा तकनीकी पक्ष बहुत कमजोर था, पर धीरे - धीरे मैंने कई चीजें सीखी और गद्य केलिए बसंत पंचमी पर नया ब्लॉग ''मीमांसा '' बिना किसी की मदद के खुद बनाया , जिसे भी पाठकों का भरपूर स्नेह और सहयोग मिला | आज दोनों ब्लॉग पर कुल मिलकर ८०प्रकाशित रचनाएँ हैं जिनमे से एक को भी पाठकों ने अनदेखा नही किया | और पांच लिंकों के अलावा आदरणीय राकेश कुमार राही जी की मित्र मण्डली , प्रिय ध्रुव के लोकतंत्र संवाद और आदरणीय सर मयंक जी के चर्चा मंच की सदा आभारी रहूंगी , जिन्होंने अपने मंच से जोड़कर रचनाओं को अनगिन पाठकों तक पहुँचाया |
कभी घर की चारदीवारी में सिमटी एक साहित्य प्रेमी गृहिणी के लिए इससे बढ़कर सुखद कुछ भी नही हो सकता कि एक ब्लॉग के माध्यम से कितने ही स्नेहिल लोगों से परिवार तुल्य स्नेहासिक्त आभासी रिश्ते बने और घर बैठे ही एक पहचान बनी | यूँ तो जीवन एक बहुत ही सुखद पडाव पर था | घर में माता - पिता के सानिध्य में विवाह के बाद बीस साल से ज्यादा बड़े ही सुखद बीते | दोनों बच्चों ने अपनी शिक्षा की राह चुनकर उड़ान भरी , तो मन में अकेलेपन से एक उदासी व्याप्त हो गई-- और लगने लगा कि कुछ है जो नहीं था | शायद अपनी रचनात्मकता को साकार करने की इच्छा शेष थी | ब्लॉग ने आभास करवाया कि बहुत बड़ी कमी थी जिससे अनजान थी| शब्दनगरी से ही साहित्य प्रेमियों और साहित्य साधकों का सानिध्य पाया और उस स्नेह को जिया तो जैसे जीवन में एक नई आशा का उदय हुआ | कभी सोचती थी की ब्लॉग पर लिखूंगी क्या ? पर अब ऐसा नहीं है | ना जाने कौन सी प्रेरणा अपने आप नए विषय पर लिखवा देती ।है | बहुत से दिव्य अनुभवों से गुजरकर आज अभिभूत हूँ और उस स्नेह के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नही जो मुझे पाठकों ने दिया | मंच पर मौजूद अनेक राज्यों के रचनाकारों के माध्यम से उनकी संस्कृति , लोक त्योहारों , लोक कलाओं और संगीत से परिचय हुआ | मुझे अक्सर ये लगता है कि ब्लॉग्गिंग का ये मंच एक विद्यालय है जिसमे उम्र , जाति धर्म से ऊपर उठकर सभी लोग एक - दूसरे से रोज कुछ ना कुछ सीख रहे हैं और भारत की विभिन्न संस्कृतियों को एक -दूसरे के पास लाने का सराहनीय और वन्दनीय प्रयास कर रहे हैं |
परिवार में कभी किसी ने मेरा ब्लॉग देखने अथवा पढने की कोशिश नहीं की , पर मुझे तकनीकी सहयोग पूरा दिया है | मेरे कंप्यूटर के अलावा बिटिया ने मोबाइल में भी मुझे हिन्दी लिखने का ज्ञान दिया | इसके अलावा मेरी रूचि को सम्मान देते हुए पतिदेव ने कभी मुझे हतोत्साहित नहीं किया |
आज मेरे ब्लॉग के एक साल पूरा होने के अवसर पर , उन सभी उदार, सहृदय पाठकों और सहयोगियों को मेरा हार्दिक आभार , जिन्होंने मुझ अपरिचित को अपनाकर अतुलनीय स्नेह दिया और मेरी रचनात्मकता को नये आयाम और कल्पना शक्ति को नया आकाश दिया | साथ में मेरा आत्मविश्वास बढाकर मुझे एक पहचान दी |आज किसी अनाम शायर की ये पंक्तियाँ मुझे स्मरण हो आई है जिनके माध्यम से कहना चाहती हूँ | ---
जब तक बिका ना था कोई पूछता ना था -
तुमने मुझे खरीद कर अनमोल कर दिया !!!!!
सभी को सादर , सस्नेह आभार और नमन
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गूगल प्लस से साभार अनमोल टिप्पणी
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