जीवन में इन्सान हर रोज़ अनेक प्रकार के संघर्ष , पीड़ा , कुंठा , बेबसी और अभाव आदि से रु - ब- रु होता है | भले ही वह बाहर से कितना भी प्रसन्न और सुखी क्यों ना दिखाई देता हो , एक उदासी किसी ना किसी कारण से उसके भीतर पसरी रहती है | पर साल भर यदा -कदा मनाये जाने वाले उत्सव हमारी उदास और नीरस ज़िन्दगी में रंग भरने का काम बखूबी करते हैं | ये पर्व हमारे बाहर - भीतर दोनों में आनंद और उल्लास भर देते हैं | बैशाखी ऐसा ही रंगीला सांस्कृतिक उत्सव है , जो जब भी आता है समाज की जड़ता को छिन्न- बिन्न करता हुआ इसमें नयी चेतना जगाता है | उत्तर भारत विशेषकर पंजाब , हरियाणा में मनाये जाने वाले इस पर्व से पूरा भारतवर्ष परिचित है | लोक रंगों से सजा ये त्यौहार हर वर्ष अप्रैल महीने की 13 या 14 तारीख को मनाया जाता है| इसी दिन सूर्य भी मेष राशी में प्रवेश करता है और मेष संक्रांति भी इसी दिन मनाई जाती है | सिख धर्म में नये साल का शुभारम्भ भी इसी दिन से होता है | इस उपलक्ष्य में लोग एक दूसरे को बधाइयाँ और शुभकामनायें देते हैं | ये समय रबी फसलों की कटाई की शुरुआत का भी होता है | छह महीने की अथक मेहनत के बाद लहलहाती पकी सुनहरी फसलों को निहार कर किसान का मन आनंद से भर जाता है और उसका मन उमंग में भर गा उठता है |वह अपने मन की इस उमंग को ढोल की थाप पर भंगड़ा डाल और गाकर प्रदर्शित करता है |सच तो ये है कि ये पर्व धरतीपुत्र किसान के श्रम और अदम्य संघर्ष को समर्पित है | अन्न उपजाने को सृष्टि का सर्वोत्तम कर्म माना गया है क्योकि किसान का अन्न उपजाना उसकी आजीविका मात्र नहीं , इसी अन्न से अनगिन भूखे पेट अपनी भूख शांत कर कर्म की और अग्रसर होते हैं | सदियों से किसान -कर्म इतना आसान भी कहाँ रहा है ? आज के किसान के पास तो तकनीकी सुख - साधन मौजूद हैं पर अनंत काल तक किसान ने प्राणी मात्र की उदर - पूर्ति के लिए साधन विहीन रहकर भी हर मौसम की मार झेलकर और अनेक प्रकार के शारीरिक , मानसिक और आर्थिक संकट सह और खूब पसीना बहा कर अन्न उपजाया है | अन्न अमूल्य है |सदियों से अन्नदाता का सृष्टि पर ऋण और उपकार है | यही कृतज्ञता का भाव बैशाखी के उत्सव सजाता है और हर दिशा ढोल की थाप और भावपूर्ण गीतों से सक्रिय हो आनंदोत्सव में डूब जाती है |यही भाव इस पर्व को प्रकृति से जोड़ता है |
पंजाब में अनेक गीत और लोक गीत इस अनूठे उत्सव को समर्पित है जिनमे जीवन की अनेक खुशियों और उनके समानांतर ही जीवन की अनकही पीड़ा को भी भावभीने रंगों में पिरोया गया है | यहाँ के लोगों ने बदलते समय में भी अपनी सांस्कृतिक और लोक विरासत को बखूबी संभाल कर रखा है | वे अपनी ख़ुशी को जताने का एक भी मौक़ा हाथ से नहीं जाने देते |जब लोग अपने सुंदर सजीले वस्त्रों में सज - धज कर चलते हैं तो समाज में नया लोक वैभव दिखाई पड़ता है | अनेक जगहों पर लोक मेलों का भी आयोजन किया जाता है || हालाँकि परिवर्तन के दौर में त्यौहारों में पहले जैसी बात नहीं रही पर अलग रूप में ही सही ये अपनी छटा बिखेरते जरुर हैं |सिख धर्म में यह त्यौहार अध्यात्मिक और धार्मिक महत्व को भी दर्शाता है |मुगलों की गुलामी से त्रस्त लोगों के लिए ये त्यौहार नयी आशाओं का साक्षी बनकर आया जैसाकि शेख फरीद ने भी परतन्त्रता को अभिशाप मानकर लिखा है -----
फरीदा बारि पराये बैसणा---- साईं मुझे ना देहि--
जो तू ऐवे रखसी जिऊ शरीरिहूँ लेहि ---
अर्थात-- हे प्रभु !पराये लोगों में मुझे कभी मत बसाना ,यदि [ किसी कारण से ] तुम ऐसा करोगे तो मेरे प्राण मेरे शरीर से हर लेना अर्थात अलग कर देना | दूसरे शब्दों में गुलामी का जीवन उन्हें किसी भी रूप में स्वीकार्य नही था | इसी कर्म में सिख धर्म के सभी गुरुओं ने सामाजिक उत्थान में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया |और लोगों को चैतन्य से भर उन्हें अपने कल्याण का मार्ग दिखाया |सबसे बड़ी बात गुरु नानकदेव जी ने तो सामाजिक रूप से उपेक्षित लोगों को गले लगाया और खुद को भी उन्ही में से एक जताकर बराबरी का दर्जा दिया |वे अनायास कह उठे ---
'' नीचां अन्दर नीच जात -- निचिहूँ अति नीचूं ''
इस तरह से समाज में एकता का आह्वान करते हुए दलित को बहुत ऊँचा स्थान दिया और अपने आपको उन्ही के बराबर जताकर उनका आत्मविश्वास बढाया | अनेक मत्वपूर्ण घटनाओं का गवाह बैशाखी पर्व बना |इसी दिन गुरु गोविन्द सिंह जी ने चिरंतन काल तक जीवन की कामना रखने वाले जड़ -बुद्धि लोगों को ललकारा था कि यदि वे जीना चाहते हैं तो उन्हें मरने की कला सीखनी होगी | उन्होंने अपनी कर्मठता और आत्मविश्वास से अकेले ही मानसिक दासता के बंधन तोड़ने के लिए लोगों को जीवन मुक्त होने का आग्रह करते हुए आह्वान किया था क्योकि मुग़ल शासकों के अत्याचारों से पीड़ित लोगों के लिए मुक्ति का एकमात्र यही साधन है | उन्होंने सन 1669 में इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना के साथ पांच प्यारों को मानवता के लिए सर्वोच्च बलिदान देने के लिए प्रेरित किया था और स्वयं की भुजाओं और मन की शक्ति पहचानने को कहा--- वे सूंघ की भांति दहाड़ उठे ----------
ये तो है घर प्रेम का -- खाला का घर नाहि--
शीश उतारे भूईं धरे -तब बैठे इह माहि ||
गुरु जी की इस पुकार पर दयाराम नाम के नवयुवक ने अपने आपको सबसे पहले गुरु जी को समर्पित किया इसके बाद चार और युवक आये ,जिन्हें गुरु जी ने पांच प्यारों की संज्ञा दी | इन पांचों के आत्मोत्सर्ग की भावना से हजारों लोगों को बलिदान की प्रेरणा मिली और वे गुरु जी के साथ मानवता के लयं की इस यात्रा में शामिल हो गये | इस प्रकार बैशाखी पर गुरु गोविन्द सिंह जी ने उत्साही लोगों को एकत्र कर उनमे नई चेतना का संचार किया | आज भी उन्ही दिनों की गौरवशाली यादों को जीते हुए गुरुद्वारों में विशेष भजन कीर्तन और लंगर का आयोजन किया जाता है जिसमे लोग जाती और धर्म का भेद भाव भुलाकर बड़ी हे श्रद्धा से शामिल होते हैं | भारत की आजादी के इतिहास में भी ये दिन एक अहम घटना का गवाह बना | इसी दिन जलियांवाले बाग़ में एकत्र लोगों पर अंग्रेजी जनरल डायर में गोली चलाने का आदेश दिया जिसमे अनेक निर्दोष निहत्थे लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी | पर उनका ये बलिदान व्यर्थ नहीं गया | इसी निर्मम घटना ने भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खात्मे की नींव रखी और उन्हें यहाँ से बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा |
सच तो ये है कि बैशाखी आम पर्व नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का प्रमुख त्यौहार है जिसने पंजाब को ही नहीं बल्कि उत्तर भारत को समस्त विश्व में अलग पहचान दिलाई है |
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पाठकों के लिए विशेष ----- पंजाब की सांस्कृतिक और ऐतहासिक विरासत को समर्पित एक सुंदर पंजाबी गीत |
गीत का भावार्थ ---
रंगले पंजाब की महिमा सुनाता हूँ -
जहाँ रब जैसी माएं होती हैं ,
धरती पांच दरियाओं की रानी -
जिसका शर्बत जैसा पानी -अमृत जैसा पानी |
लगते अखाड़े छिन्दा मेले -
लगते तियां [तीज ] त्रिजण ,तवेले |
बहते थुहे [पानी के ]दौडती गाड़ियाँ [बैल ]
कितने सुंदर गभरू [युवा ]मैदान में आते -
सावन आये रंग ले आये - जट कभी आई बैशाखी गाये -
चरखे की तार ने पींगे पाई-मेले चली ननद भरजाई [भाभी ]
पंजाबी माँ के पुत्र पंजाबी -जग से अलग शान नवाबी ;
ये शान को दाग नहीं लगाते- यारी लगाके अटूट निभाते -
उधम , भगत सिंह जैसे शुरे ]वीर ] जाने वार के हो गये सामने -
पापी को ऐसा सबक सिखाये -के गोरे राह लन्दन की भगाए -
सीख लो नाचना , खेलना ,गाना -- यहाँ बार बार नहीं आना -
जग चीमे चार दिन का खेला यारा बिछड़ जाये वो मेला -
रंगला पंजाब मेरा रंगला पंजाब ,बसता रहे मेरा पंजाब , नाचता रहे मेरा पंजाब !!!!!!वन आये रंग
बड़ा प्यारा लेख और उससे ज्यादा प्यारा गाना रेनू जी |वैशाखी के त्यौहार की आपको बहुत बधाई जी |
जवाब देंहटाएंसादर आभार - आदरणीय ममता जी |
हटाएंबैसाखी का त्यौहार याने नई खुशियों का त्यौहार ... न सिर्फ पंजाब बल्कि भारत के अनेक प्रदेशों में अनेकों नामों से मनाया जाता है ... पर पंजाबियों के लिए ये त्यौहार खुशुयों भरा है ... बधाई आपको भी बैसाखी की ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिगम्बर की -- मेरी काव्य रचनाओं को पढ़ सार्थक करते रहे है आप | इस मंच पर आपकी उपस्थिति और भी ज्यादा आह्लादित करती है | आपकी भावपूर्ण राय के लिए आभारी हूँ | सादर --
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/04/65_16.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी -- आपने लेख का मर्म जान बहुत बड़ी पाठक संख्या से लेख को जोड़ा | आपकी सदा आभारी रहूंगी |
हटाएंसुंदर... बड़ा प्यारा लेख
जवाब देंहटाएंप्रिय नीतू -- आपका हार्दिक स्वागत है मेरे नए ब्लॉग पर |लेख पढने के लिए आभारी हूँ आपकी | सस्नेह -
हटाएंसुन्दर लेख और खूबसूरती के चार चाँद लगाता गीत , बहुत खूब..., सस्नेह .
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना जी लेख पढने से ज्यादा मुझे ख़ुशी है कि आपने गीत सुना | आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर | भविष्य में स्नेह बनाये रखिये |
हटाएंवाह्हह....बहुत ही सुंदर मनभावनी लेख। लोकसंस्कृति का परिचय करती,माटी की सोंधी गंध शब्दों में लबालब स्नेह लेख की विशिष्टता है।
जवाब देंहटाएंबधाई आपको दी इतने सुंदर सृजन के लिए।
प्रिय श्वेता == बहुत आह्लादित हूँ आपको मेरे नये ब्लॉग पर पाकर | आपको लेख पसंद आया मुझे ख़ुशी हुई | सस्नेह आभार |
हटाएंबेहतरीन रेणु दी 👌👌👌
जवाब देंहटाएंसादर
सस्नेह आभार प्रिय अनीता |
हटाएंबहुत ही सुन्दर ज्ञान वर्धक लेख....।लोकसंस्कृति को उजागर करते हुए बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व एवं पंजाब में विशेष बैसाखी पर्व की धूम
जवाब देंहटाएंका परिचय बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है आपने....।लाजवाब सजन के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं सखी !...
प्रिय सुधा बहन -- आपके स्नेह की ऋणी हूँ | आभार नहीं मेरा प्यार और शुभकामनायें आपके लिए \
हटाएंशानदार रेनु बहन अप्रतिम प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंप्रिय कुसुम बहन आपको लेख पंसद आया मेरा लेखन सफल हुआ आभार और हर्दिक शुभकामनायें आपके लिए |
हटाएंकालजयी तत्वों से लबरेज एक पठनीय और संग्रहणीय लेख। आभार और बधाई!!!
जवाब देंहटाएंआपके अनमोल शब्दों के लिए सादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी 🙏🙏
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-4-2020 ) को " इस बरस बैसाखी सूनी " (चर्चा अंक 3671) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार सखी इस पुराने लेख को पाठकों के समक्ष दुबारा लाने के लिए|
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और अभिनन्दन ओंकार जी |
हटाएंआदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' १५ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_15.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
हार्दिक आभार प्रिय ध्रुव |
हटाएंवाह्ह्ह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लेख आदरणीय दीदी जी। बैशाखी का महत्व बतलाती,सांस्कृतिक छटा बिखेरती,लोक रंग से सुसज्जित आपके इस लेख ने मन मोह लिया। सादर प्रणाम 🙏
बहुत बहुत आभार और प्यार प्रिय आँचल |
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