Powered By Blogger

फ़ॉलोअर

रविवार, 12 अगस्त 2018

सावन की सुहानी यादें -- लेख -




सावन के महीने का हम महिलाओं के लिए विशेष महत्व होता है | फागुन के बाद ये  दूसरा महीना है जिसमे हर शादीशुदा  नारी को मायका याद ना आये .ये हो नहीं सकता | मायके से बेटियों का जुड़ाव   सनातन है | मायके के आंगन  की यादें कभी मन से ओझल नहीं होती |  भारत में  प्रायः  हर जगह  सावन के महीने में  मायके  की  ओर से बेटियों को   विशेष महत्व दिया जाता है |माता- पिता चाहे कैसी भी आर्थिक स्थिति से  गुजर रहे हों पर अपनी बेटियों के लिए कुछ ना कुछ उपहार  स्नेह स्वरूप भेजना चाहते हैं | अक्सर हर जगह  मायके में इस महीने में बेटियों  को  मायके बुलवाने का भी रिवाज है |    विवाह के बाद पहला सावन    भी लडकियों के लिए बहुत ही उमंग भरा  होता है जिसमे ससुराल पक्ष की ओर सिन्धारे के  रूप  में स्नेह  का उपहार भेजा जाता है | मुझे भी अपने गाँव का सावन  के   अनेक  रोमांचक पल भुलाये नहीं भूलते | मेरे लिए ये इसलिए भी बहुत खास रहे  .क्योकि मेरी  शादी  के बाद सावन के महीने में  मैं कभी मेरे गाँव  नहीं जा पाई| हालाँकि दो बार रक्षाबन्धन  पर जरुर गयी हूँ पर  इस दिन सावन  का अंतिम दिन होता है अतः मुझे   सावन के झूलों का वो नजारा कभी नजर नहीं आया जो बचपन में हुआ करता था |  सावन के साथ मुझे हमारी बैठक का  नीम  का पेड़ याद आ जाता है जहाँ  हमारे  अबोध से बचपन में बाबाजी यानी  मेरे दादाजी अपने खेतों के सन से  बटी गयी खूब मजबूत  रस्सी   नीम की  मजबूत सी डाल पर सावन के पहले ही दिन   डलवा देते थे जिसपर हम बच्चे -जिनमे आसपास की सभी लडकियाँ  बड़ी ही  उमंग  से झूलने आ जाती थी |  बच्चों विशेषकर  लड़कियों का अमूमन बैठक में कम ही  आना होता था इसलिए सावन के झूल के बहाने दिन भर बैठक में मंडराने का मौक़ा  हमारे लिए बड़ा अनमोल था | सबसे ज्यादा    हर्ष का विषय  था हमारे तेज -तर्रार दादा जी का  इस महीने में बदला व्यवहार | वे बिना किसी  डांट- डपट के सभी लड़कियों को बहुत ही स्नेह से झूलने  और सावन के गीत गाने के लिए   प्रोत्साहित करते  |  वे हमें दो -दो  के रूप में झूले पर झूलना सीखाते और खुद पास में  पडी  खाटपर बैठ  बड़े स्नेह और आनन्द से हुक्का  गुडगुडाते    हुए हम लड़कियों को निहारते | उनका कडक स्वभाव पूरे महीने के लिए अत्यंत मृदुल और स्नेहभरा हो जाता | |बहुत बचपन में  हमें  सावन के गीत नहीं आते थे तो वे हमे दो गीत सिखाते  जो  पूरे तो अब याद नहीं पर उनके कुछ  बोल  आज भी बरबस याद आ जाते हैं --
 काले पानियों में लम्बी  खजूर -- बिजली चमचम करे -
 मेरे दादा का घर बड़ी दूर बिजली चमचम करे !!!!!!!!!
 उस समय इस गीत को सुन- सीख कर  लबालब भरे   काले पानी  और  लंबे  खजूर  के पेड़ का चित्र  मानस पर सदा के लिए  ठहर गया | दूसरा गीत था --
 नीम्ब की निम्बोली पके सावन कद कद आवेगा -
जीवे री मेरी माँ का जाया गाडी भर भर ल्यावेगा !!!!!!!
 जब थोड़े बड़े हुए तो  बैठक  की बजाय घर के बरामदे की छत में पडी हुई बेलनी में बेडी डलवाई जाती और लडकियां पूरे सावन खूब झूला झूलती  |इस बेलनी को  नया मकान बनवाते समय खास तौर पर मेरे पिताजी ने हम बच्चों के झूल डलवाने के लिए छत में  लटकवाया  था  |उन दिनों प्रायः हर घर में झूल डाले जाते |  जिनके यहाँ शादी के बाद किसी  बहू या बेटी का पहला सावन होता,  उनके यहाँ की रौनक अलग ही दिखाई देती | उनके यहाँ से दोपहर में सामूहिक  झूलने का न्योता आता और सभी महिलाएं काम-धाम निपटाकर झूले  पर झूलने को लालायित रहती |मुझे याद है जब मेरे बड़े भाई  की शादी हुई , तो  हमारी  माँ ने  सामूहिक रूप से  झूल पर झूलने के लिए    पडोस  और परिवार की महिलाओं  को सात बार न्योता भिजवाया |खूब झूला झूला जाता और हंसी मजाक होता  | झूलने के बाद नाचने गाने का लम्बा दौर चलता | बड़े ही मार्मिक  और रसीले गीत गाये जाते  | 
 पुरुषों के रूप में  प्रायः  छोटे लडके ही उपस्थित हो सकते थे  बड़े नहीं |जिस दिन तीज होती  सभी  महिलाएं नये कपड़े पहनती | उस समय मेहंदी  रचे हाथों में नयी  चूड़ियाँ बहुत ही रोमांचित करती थी | रसोई में  खूब चटपटे पकवानों  बना बड़े ही उल्लास से तीज मनाई जाती | घेवर , फिरनी , पेडे के रूप में खूब मिठाई खायी खिलाई जाती |

हरियाणा में सावन में    लोकदेवता जौहर वीर गोगा पीर जी के गीत गाये जाते हैं और यह महीना उनकी पूजा का भी महीना है | सावन के गीतों में उनकी लोक गाथाएं गाई जाती हैं |
आज स्वप्न  जैसी  वो हरियाले सावन की यादें  मन को कभी उदास तो कभी उल्लास से भर देती हैं |
 कई बार बैठे बिठाये कुछ  भूले  गीतों  जैसे -
 सात जणी का झुलना मेरी माँ -
या फिर
आया तीजां का त्योहार
आज मेरा बीरा आवैगा--
  के अस्फुट बोल अनायास याद आ जाते हैं और मन को  कहीं ना कहीं उस  भूली -बिसरी हरियाली से जोड़ देते हैं |-
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------पाठकों के लिए विशेष  --- 

अनुराग  भरा एक सुंदर हरियाणवी गीत --मेरा अनुरोध जरुर सुने --
भावार्थ उनके लिए जिन्हें हरियाणवी नहीं आती --
  अलिये  गलियों   में मनरा [मनिहार ]फिरता है -
री ननदी  मनरे को ले  आओ  ना बुलाय -
 चूडा तो हाथी दांत का 
री ननदी  चूड़े  ने ले ली मेरी जान -
  चूडा  हाथी दांत का!!! 
हरी चूड़ी तो ननदी ना पहरू-
 हरे मेरे राजा जी के खेत बलम जी के खेत -
  चूडा तो हाथी दांत का 
री ननदी  चूड़े ने ले ली मेरी जान -
  चूडा  हाथी दांत का!!! 
 धौली [सफेद ] चूड़ी तो ननदी ना पहरू-
 धौले मेरे राजा जी के दांत बलम जी के  दांत -
  चूडा तो हाथी दांत का 
री ननदी चुडे ने ले ली मेरी जान -
  चूडा  तो हाथी   दांत का!!! 
 काली चूड़ी तो ननदी ना पहरू-
अरी ननदी काले   मेरे राजा जी के  केश बलम जी के  केश  -
   चूडा तो हाथी दांत का 
री ननदी चूड़े  ने ले ली मेरी जान -
  चूडा  हाथी दांत का!!! 
पीली तो चूड़ी री ननदी मैं पहरूं-
री ननदी पीली मेरे राजा जी की पाग [पगड़ी ]बलम जी की पाग 
  चूडा तो हाथी दांत का 
री ननदी  चूड़े  ने ले ली मेरी जान -
  चूडा  हाथी दांत का!!!!!!!!!!!!!!!!!!!



-------------------------------------------------------------------=============================
धन्यवाद शब्द नगरी ----

रेणु जी बधाई हो!,

आपका लेख - ( सावन की सुहानी यादें -- लेख -) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 
धन्यवाद, शब्दनगरी संगठन
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

26 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, बहुत अच्छे संस्मरणात्मक आलेख की बधाई स्वीकार करें।
    पढ़कर एक खाका सा खिंच गया मन में। बचपन को पुनर्जीवित कर दिया। रस्में तो यहां भी यहीं है बस थोड़ी विविधता से मनाई जाती हैं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय अभिलाषा जी -- आपको लेख पसंद आया | मुझे बहुत प्रसन्नता हुई | कल रात यूँ ही मन में आया तो लिख दिया | आपने सच कहा उत्तर हो या दक्षिण बेटियों के लिए रस्मे वही है और बेटियों का मायके प्रति अनुराग भी वही है |आपके ब्लॉग पर आने से अपार हर्ष हुआ | सस्नेह आभार और मेरा प्यार आपके लिए |

      हटाएं
  2. यही खासियत रही है अपने समाज और अपनी संस्कृति की ... हर बात को प्राकृति के साथ जोड़ के उसका आनद रोज के जीवन में डाला है ... ये सच है की परिवर्तन के इस युग ने इन सब बातों को हमारे जीवन से बाहर कर दिया है पर इनकी यादें आज भी मन को गुदगुदाती हैं ... शायद ये महत्त्व, ये आनद हमारी पीढ़ी तक ही सिमित है क्योंकि आने वाली पीढ़ी शायद ही इस आनद और लोक आनद को समझ और भोग सके ... सुन्दर आलेख ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय दिगम्बर जी -- आपने सच कहा - हम लोग बहुत भाग्यशाली हैं कि हमने संस्कारों और संस्कृतियों के उत्कर्ष के उस सुनहरी दौर को देखा और उसकी यादों को संजोया है | सचमुच वे यादें गुदगुदाती हैं और मन को विवश कर देती हैं कि उन्हें किसी से साँझा किया जाये | आने वाली पीढ़ी में इस प्रकार की कोई उत्सुकता या लगाव नजर नहीं आता | विषय को विस्तार देते आपके अनमोल शब्दों के लिए सादर आभार - जो आपने रचना का मन बढ़ाया |

      हटाएं
  3. वाह्ह्ह....दी...बेहद सुंदर संस्मरणात्मक लेख..।
    भाव इतने सारे भरे हैं कि मन बचपन की गलियों में डोलने लगा अनायास ही।

    हम तो दी अभी भी कहीं झूला देखते है न तो लाज-झिझक सब भूल कर जरुर थोड़ा सा झूल आते हैं।☺☺

    लोक संस्कृति से जुड़ाव की खुशबू इन्हीं सब यादों से महकती है न।
    आभार दी....मेरे बचपन का सावन याद करवाने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता -- आपके आह्लाद भरे अनमोल शब्दों से अपार प्रसन्नता हुई | मेरा लेख सुंदर था या नहीं - नहीं जानती पर आप सबका स्नेह बहुत अनमोल है मेरे लिए |और झुला झूलने को लालायित इस बचपन को अपने भीतर हमेशा ही बचाए रखना | यही भीतर का बचपन हमे सरल और निर्मल इन्सान बनाता है | इन स्नेहासिक्त शब्दों के लिए मेरा प्यार बस |

      हटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-08-2018) को "त्यौहारों में छिपे सन्देश" (चर्चा अंक-3063) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हरियाली तीज की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय सर -- आपके सहयोग के लिए सादर आभार और नमन |

      हटाएं
  5. मनोरंजक. सावन वैसे सभी के लिए कुछ न कुछ लाता है. और मज़ा भी आता है. ज्यादा तीज त्योहारों का मतलब समृद्ध संस्कृत समाज.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय हर्ष जी -- रचना पढ़ अपने विचारों से अवगत करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद |

      हटाएं
  6. सावन सुरंगो आवियो जी कोई
    आई आई सावणिया री तीज राज
    लहरियो ल्यादो राज....
    बहुत सुंदर महीना है श्रावण !!!
    आपके दिए हुए लोकगीत से मुझे भी बहुत से लोकगीत याद आ गए। बहुत ही सुंदर आलेख लिखा है आपने प्रिय रेणु, बधाई। तीज आ गई, अब तो त्योहारों का सिलसिला चलता ही रहेगा... कहते हैं ना, "तीज त्योहारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर !"

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मीना बहन - मुझे अपने लेख से भी ज्यादा ख़ुशी तब होती है जब कोई ये बात लिखता है कि उसने मेरे शेयर किये गीत को सुना है |आपने गीत सुना मुझे अपार ख़ुशी हुई | मैं भी अपने शेयर किये गीत को खुद ही सुनकर आनंदित होती रहती हूँ | ये गीत हमारे सांस्कृतिक जीवन की अनमोल थाती हैं | ये हमे हमारी विरासत से जोड़े रखते हैं | सावन में कभी गाँव नहीं जा पाती तो मुझे ज्यादा याद नहीं रहे परऐसे फ़िल्मी गीत जरुर उन्हें याद करवा देते हैं |आपको हार्दिक शुभकामनायें आज तीज के शुभावसर पर | बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आने से बहुत ख़ुशी हुई | आपको सस्नेह आभार और मेरा प्यार |

      हटाएं
  7. बहुत सुंदर आलेख लिखा आपने रेणु जी मां के घर में मनाया सावन आंखों में घूम गया पुरानी यादें ताजा हो गईं बहुत ही बेहतरीन 👌👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय अनुराधा जी -- सच कहा आपने सावन और फागुन में अनायास मायके और माँ की यादें बहुत भावुक कर देती हैं | आपने लेख पढ़ा उसके लिए सस्नेह आभार आपका |

      हटाएं
  8. आपने बचपन याद दिला दिया रेनू जी , मेरे पिताजी ने हम बहनों के कहने पर छत पर विशेर झूला लगवाया था | खूब झूलते थे | अब कहाँ वो सावन ... फिर भी परम्पराओं को मानते हुए हम अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं |आपने बहुत सुंदर लेख लिखा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय वन्दना जी -- ये यादें हमारे मन के बहुत करीब रहती हैं | मन का गाँव इन यादों से ही हरियाला रहता है | आपने सच कहा - स्नेह के वो हिंडोले और बचपन का सावन अब कहाँ ? आपके अनमोल शब्दों के लिए आपकी आभारी रहूंगी| सस्नेह --

      हटाएं
  9. ye daulat bhi le lo,...ye shohrat bhi le lo,...bhale cheen lo mujhse meri jawani,...magar mujhko lauta do bachpan ka sawan,...vo kagaj ki kashti vo barish ka pani,....//..sawan ka sajeev chitra aakhon ke samane uker ke rakh diya aapne aadarniya Renu ji sath he kai vismirt si yaden tarotaza kar di,...vastvikta ke dharatal par sansmarno ke shreshth tane-bane me apne kathya ko kaise prastut kiya jata hai yah lekh uska ek utkrisht udharan hain,...is lekh ko padhkar aatm-bodh/gyan hua ki abhi mujhe aapse bahut kuch seekhna hai aadarniya Renu ji,...sa-sneh pranam.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मनोज - सबसे पहले तो हार्दिक स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | आपने मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा मान बढाया - आपका ये स्नेह अनमोल है मेरे लिए | शब्द नगरी से जब भी कोई मेरे ब्लॉग पर आता है मुझे अपार प्रसन्नता होता है | आपने लेख पढ़ा और उसकी इतनी सुंदर व्याख्या की ये मेरे लिए गर्व की बात है | और कहाँ लिखती हूँ आप लोगों का स्नेह है जो मुझसे लिखवाता है | आप जैसे स्नेहियों की कृतज्ञ रहूंगी |और आप खुद एक श्रेष्ठ रचनाकार हैं | सच कहूं तो आप जैसी संवेदनशीलता मेरी रचनाओं में कभी नहीं आ पायेगी | आपकी लेखन विस्मय से भर देता है | और आपको लेख के बहाने बचपन का सावन याद आया , तो लेख सार्थक हुआ | हम लोग भाग्यशाली हैं कि हमे वो जादुई लम्हे जीने को मिले जो आने वाली पीढ़ियों को कभी मयस्सर नहीं होगे | ब्लॉग पर अपना स्नेह बनाये रखना मेरे भाई | सस्नेह --

      हटाएं
  10. तीज पर सुंदर संस्मरण लेख
    तीज के भावगत आनंद से सराबोर करती
    सरस काव्य रचना ।
    बहुत प्यारी प्रस्तुति रेणु बहन आ
    अनुपम लेखनी का उपहार हमें मिला ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय कुसुम बहन , आपके स्नेह भरे शब्द उत्साह से भर देते हैं | मेरे ओरसे आपको तीज की हार्दिक शुभकामनाएं |

      हटाएं
  11. इस ललित लेख ने एक साथ ढेर उपहार दिए। बचपन में पहुंच दिया। छप-छप पानी से भरे खेतों में धनरोपनी करती कृषक बालाओं के मधुर सहगान। खेतों में लहराती हरियाली की चुनर। आम के बगीचे में हिंडोले लगते झूले। धरती पर छाती सावन की काली घटाएं। और बचपन में अपनी कलाई की राखी से दूसरों की राखी की तुलना करती आंखें। अंत में मनिहार के सामने ननद की मीठी मनुहार। वाह! अनुपम भाव सौंदर्य!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय विश्वमोहन जी , आपके भावपूर्ण शब्दों के उपहार ने मेरे साधारण सी रचना को विशेष बना दिया है , जिसके लिए कोई आभार पर्याप्त नहीं , बस मेरी हार्दिक शुभकामनायें आपके लिए |

      हटाएं
  12. सावन की यादों पर बहुत ही सुन्दर संस्मरणात्मक लेख....लेख पढकर बचपन वो सावन गाँव और वो मस्ती सब याद आ गये...आज मैं सोच रही हूँ कि पहले वक्त कुछ ज्यादा होता रहा होगा क्या? आज देखो सुबह से क्या काम करते हैं हम लोग कोई खास नहीं फिर भी थके थके से घर के अन्दर अपने में ही समय कट रहा है पहले घर बाहर खेत खलिहान सब करके गाँव के अन्य लोगों से तारतम्य...और सबके साथ मिलकर तीज त्यौहार मनाते थे क्या समय था और वो अपनापन अब कहाँ...
    बहुत सुंदर लोकगीत के साथ लाजवाब लेख...सावन और तीज की शुभकामनाएं आपको।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा बहन , रचना पर आपका विमर्श हमेशा ही विशेष रहता है | आपने सच कहा पहले भी यही समय था जिसका बहुत बढ़िया सदुपयोग किया जाता था | जीवन शैली की सादगी और अनुशासन से जीवन बहुत सरल सहज था , जबकि आज खाने से लेकर , पहनने तक अनगिन आडम्बर जीवन में अनायास व्याप्त हो गए हैं , जिनसे समय का दुरूपयोग और अनुशासनहीनता हमारी रोजमर्रा में शुमार हो गए हैं | आजकल गांवों में भी माहौल बदला बदला सा है |आपके शब्दों ने विषय में चिंतन के प्रवाह को और भी गति दी है | आपने गीत सूना , आपको पसंद आया ये मेरे लिए सौभाग्य है | सस्नेह आभार सखी | आपको भी मेरी हार्दिक शुभकामनायें हरियाली तीज पर |

      हटाएं
  13. रेणु दी, मेरा ज्यादातर बचपन दहिगांव जो कि एक खेड़ा हैं वहां पर बिता। वहां पर ह्मारा घर खेत में ही था। अत: सावन में पूरे एक महिना पीपल के पेड पर झुला डला रहता था। तीज के दिन तो पूरे समाज में बाकायदा बुलावा लगता था...समाज की महिलायें झुला झुलने आती थी... नाश्ता-पानी होता था...आपने उन सुनहरे पलों की याद दिला दी। बहुत सुंदर संस्मरण...

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रिय ज्योति बहन --कितना सुखद है ना , उस प्यारे से बचपन के गाँव में लौटना ! भले यादों में ही सही ! हम लोग बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें वो सही में हरियाली भरा , झूलों वाला बचपन जीने को मिला | आपकी भावपूर्ण संस्मरणात्मक प्रतिक्रिया | के लिए हार्दिक आभार |

    जवाब देंहटाएं

yes

ब्लॉगिंग का एक साल ---------आभार लेख

 निरंतर  प्रवाहमान होते अपने अनेक पड़ावों से गुजरता - जीवन में अनेक खट्टी -   समय निरंतर प्रवहमान होते हुए अपने अनेक पड़ावों से गुजरता हुआ - ...