जाड़े की उस कंपकंपाती शाम को अपने गाँव की सड़क
पर टहलते हुए ऐसा लगा मानो सडक की जरिये खेत
सांस ले रहे हों | दूर –दूर तक खेतों में गेहूं व गन्ने की
फसलें लहलहा रहीं थी | मेढ़े भी हरी – भरी घास से भरी
थी और उन पर झुकी थी मधुर बासंती हवा संग लहराती
फसल | गेहूं अभी पकी ना थी और सरसों फूली ना थी |
बसंत पंचमी आने अभी पांच दिन शेष थे |लग रहा था
कि गेहूं की हरी बालियाँ और फूलने को तैयार सरसों
बसंत के आने की आहट दे रहे हों | कल –परसों हुई
बारिश ने पूरी सृष्टि को धो - मांज कर ऐसे निखार
दिया था जैसे माँ धूल में भरे बालक को नहला धुला
कर सुन्दर - सलोना बना देती है | पिछले महीने
गाँवआना हुआ था - तो सड़क के किनारे खड़े यही
पेड़ - पौधे धूल से भरे थे और उन पर मिटटी के
अलावा कुछ दिखाईनहीं पड़ता था |रात में अक्सर
पड़ने वाली ओस ने धूल को पेड़ों पर बूरी तरह जमा
दिया था |पर अब जोरदार बारिश से धुले पेड़ बहुत
ही आकर्षक लग रहे थे -- साथ ही ढलता सूरज भी
शाम की गोद में समाने को आतुर था | पश्चिम दिशा
में नीले - उजले आसमान में उड़ते श्वेत –श्याम
बादलों से छनती सुनहरी धूप हरे –भरे पेड़ों व खेतों
में यत्र –तत्र बिखरकर अद्भुत छटा बिखेर रही थी |
इसी बीच अचानक देखा - लगभग 50-60 भेड़ों का
एक रेवड़ दिनभर चरकर घर वापस लौट रहा था |
सडक के अच्छे –खासे हिस्से को घेरती ये भेड़ें एक
बहुत ही सधे व अनुशासित झुण्ड में बहुत चौकन्नी
चाल से आगे बढ़ रही थी |भेड़ों की अगुवाई 8-9 साल
की एक गौरवर्णी बालिका कर रही थी और भेड़ों के
पीछे थी -एक वृद्ध लेकिन चुस्त –दुरुस्त महिला |
अक्सर भेड़ - बकरियों के रेवड़ को सँभालने के लिए
कम से कम दो व्यक्ति दरकार होते हैं- जो दोनों
तरफ से इन पर काबू रख सकें | मुझे रेवड़ का ये
अनुशासन बहुत आकर्षित कर रहा था | सारे
घटनाक्रम से सम्मोहित मेरी तन्द्रा एक तेज
आवाज से भंग हुई |मैंने देखा --- अचानक ना
जाने कहाँ से-- तीव्र गति से आता एक ट्रक सड़क
के बीचो-बीच आकर खड़ा हो गया था | चालक ने
भेड़ों के रेवड़ को जैसे ही दूर से देखा --बड़ी कुशलता
से ब्रेक लगाकर किसी बड़ी अनहोनी को टाल दिया था
-पर ब्रेक की तेज आवाज ने पूरे माहौल को बहुत ही
डरावना बना दिया था | इसी उपक्रम में भेड़ों की
अगुवाई करती वह नन्ही बालिका इस आवाज से
चौंक उठी और घबरा कर-- वृद्धा की ओर भाग कर
उसके सीने से जा लगी | मैले - कुचैले वस्त्रों से ढकी
उस बालिका का श्वेत चेहरा फक्क पड़ गया | ढलते
सूरज की सुनहरी रोशनी में नहाई उस बालिका की
आँखे मानों कौतुहल से फ़ैल गई थीं |उसकी दादी ने
स्नेह से मुस्कुरा कर एक हाथ से और भी कसकर उसे
सीने से लगा लिया और दूसरे हाथ से सांत्वना की
थपकी देने लगी | अचानक ही वह सूरज की चमकीली
रोशनी से नहा उठी वह शायद कभी स्कूल नहीं गई |
उसे शायद ये भी पता नहीं था कि आज लड़कियां
चाँद पर भी कदम रख चुकी हैं | वह प्रगतिशील
दुनिया की चकाचौंध से कोसों दूर थी | अपनी
दादी की गोद सिमटी वह -हर डर से सुरक्षित थी |
मेरा मन भी कर रहा था कि मैं भी उस कौतूहल
को अपने भीतर सामने हेतु उस अबोध बालिका
को स्नेह से गले लगा लूँ और अपनी एक सांत्वना
भरी थपकी से उसका ये डर दूर करने का प्रयास करूँ !
पर मैं दूर से ही उसे निहारने का आनद ले रही थी | |
उस के चमकीले भूरे बालों में --- बसंत जो अटक गया
था ---जो नीलगगन में भटकते श्वेत –श्याम बादलों से
आँख मिचौनी करते हुए -- सूरज की सुनहरी किरणों से
नहाया और निखरा --पल दो पल के लिए ही निकला था !!!!!!!
पर टहलते हुए ऐसा लगा मानो सडक की जरिये खेत
सांस ले रहे हों | दूर –दूर तक खेतों में गेहूं व गन्ने की
फसलें लहलहा रहीं थी | मेढ़े भी हरी – भरी घास से भरी
थी और उन पर झुकी थी मधुर बासंती हवा संग लहराती
फसल | गेहूं अभी पकी ना थी और सरसों फूली ना थी |
बसंत पंचमी आने अभी पांच दिन शेष थे |लग रहा था
कि गेहूं की हरी बालियाँ और फूलने को तैयार सरसों
बसंत के आने की आहट दे रहे हों | कल –परसों हुई
बारिश ने पूरी सृष्टि को धो - मांज कर ऐसे निखार
दिया था जैसे माँ धूल में भरे बालक को नहला धुला
कर सुन्दर - सलोना बना देती है | पिछले महीने
गाँवआना हुआ था - तो सड़क के किनारे खड़े यही
पेड़ - पौधे धूल से भरे थे और उन पर मिटटी के
अलावा कुछ दिखाईनहीं पड़ता था |रात में अक्सर
पड़ने वाली ओस ने धूल को पेड़ों पर बूरी तरह जमा
दिया था |पर अब जोरदार बारिश से धुले पेड़ बहुत
ही आकर्षक लग रहे थे -- साथ ही ढलता सूरज भी
शाम की गोद में समाने को आतुर था | पश्चिम दिशा
में नीले - उजले आसमान में उड़ते श्वेत –श्याम
बादलों से छनती सुनहरी धूप हरे –भरे पेड़ों व खेतों
में यत्र –तत्र बिखरकर अद्भुत छटा बिखेर रही थी |
इसी बीच अचानक देखा - लगभग 50-60 भेड़ों का
एक रेवड़ दिनभर चरकर घर वापस लौट रहा था |
सडक के अच्छे –खासे हिस्से को घेरती ये भेड़ें एक
बहुत ही सधे व अनुशासित झुण्ड में बहुत चौकन्नी
चाल से आगे बढ़ रही थी |भेड़ों की अगुवाई 8-9 साल
की एक गौरवर्णी बालिका कर रही थी और भेड़ों के
पीछे थी -एक वृद्ध लेकिन चुस्त –दुरुस्त महिला |
अक्सर भेड़ - बकरियों के रेवड़ को सँभालने के लिए
कम से कम दो व्यक्ति दरकार होते हैं- जो दोनों
तरफ से इन पर काबू रख सकें | मुझे रेवड़ का ये
अनुशासन बहुत आकर्षित कर रहा था | सारे
घटनाक्रम से सम्मोहित मेरी तन्द्रा एक तेज
आवाज से भंग हुई |मैंने देखा --- अचानक ना
जाने कहाँ से-- तीव्र गति से आता एक ट्रक सड़क
के बीचो-बीच आकर खड़ा हो गया था | चालक ने
भेड़ों के रेवड़ को जैसे ही दूर से देखा --बड़ी कुशलता
से ब्रेक लगाकर किसी बड़ी अनहोनी को टाल दिया था
-पर ब्रेक की तेज आवाज ने पूरे माहौल को बहुत ही
डरावना बना दिया था | इसी उपक्रम में भेड़ों की
अगुवाई करती वह नन्ही बालिका इस आवाज से
चौंक उठी और घबरा कर-- वृद्धा की ओर भाग कर
उसके सीने से जा लगी | मैले - कुचैले वस्त्रों से ढकी
उस बालिका का श्वेत चेहरा फक्क पड़ गया | ढलते
सूरज की सुनहरी रोशनी में नहाई उस बालिका की
आँखे मानों कौतुहल से फ़ैल गई थीं |उसकी दादी ने
स्नेह से मुस्कुरा कर एक हाथ से और भी कसकर उसे
सीने से लगा लिया और दूसरे हाथ से सांत्वना की
थपकी देने लगी | अचानक ही वह सूरज की चमकीली
रोशनी से नहा उठी वह शायद कभी स्कूल नहीं गई |
उसे शायद ये भी पता नहीं था कि आज लड़कियां
चाँद पर भी कदम रख चुकी हैं | वह प्रगतिशील
दुनिया की चकाचौंध से कोसों दूर थी | अपनी
दादी की गोद सिमटी वह -हर डर से सुरक्षित थी |
मेरा मन भी कर रहा था कि मैं भी उस कौतूहल
को अपने भीतर सामने हेतु उस अबोध बालिका
को स्नेह से गले लगा लूँ और अपनी एक सांत्वना
भरी थपकी से उसका ये डर दूर करने का प्रयास करूँ !
पर मैं दूर से ही उसे निहारने का आनद ले रही थी | |
उस के चमकीले भूरे बालों में --- बसंत जो अटक गया
था ---जो नीलगगन में भटकते श्वेत –श्याम बादलों से
आँख मिचौनी करते हुए -- सूरज की सुनहरी किरणों से
नहाया और निखरा --पल दो पल के लिए ही निकला था !!!!!!!
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआदरनीय लोकेश जी -- सादर आभार |
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना बहन -- सादर आभर |
हटाएंबहुत ही संवेदनशील रचना है
जवाब देंहटाएंप्रिय रिंकी -- सस्नेह आभार |
हटाएंनये ब्लॉग की बधाई आदरणीया रेणु जी. हृदयस्पर्शी संस्मरण. लिखते रहिये. आपके भीतर का रचनाकार साहित्य का सरोवर संजोये हुए है जिसमें से कभी-कभार रसधारा बह निकलती है. साहित्यप्रेमी इसकी अब निरंतरता चाहते हैं.
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविन्द्र जी -- आपके उत्साहवर्धन करते शब्द सदैव मेरे आत्म विस्वास को बढाते हैं |सादर आभार |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंप्रिय अभिलाषा जी -- मीमांसा पर आपका हार्दिक स्वागत है | सस्नेह आभार सखी |
हटाएंबहुत सुंदर संस्मरण ,स्नेह सखी
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी तुम्हारे स्नेह से अभिभूत हूँ |
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरनीय हर्ष जी |
हटाएंबहुत सुन्दर संस्मरण आदरणीया रेणु जी
जवाब देंहटाएंस्नेह
सादर
सस्नेह आभार सखी |
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