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सोमवार, 23 जुलाई 2018

..विरह का सुलतान - पुण्य स्मरण --शिव कुमार बटालवी -- लेख |


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    पंजाब   का शाब्दिक अर्थ  पांच नदियों की धरती  है |   नदियों के किनारे अनेक सभ्यताएं  पनपतीहैं   और संस्कृतियाँ पोषित होती हैं  | मानव सभ्यता अपने सबसे वैभवशाली रूप में इन तटों पर ही नजर आती है क्योकि ये जल धाराएँ  अनेक तरह  से मानव को  उपकृत  कर मानव जीवन को धन - धान्य से  भरती हैं | |पंजाब को भी खुशहाल बनाने में इन नदियों का बहुत बड़ा हाथ है |इन नदियों से गीत  भी जन्मते हैं कभी ख़ुशी के तो कभी विरह के

 नदियाँ  स्वतः   गीत  नहीं गाती | उनके गीत कवि रचते हैं जिनमे जीवन केअनेक रंग परिलक्षित होते हैं |

   पंजाब की    धरती को  विशेष रूप  से उल्लास   की धरती माना जाता  है |    इसके लोग सदैव से ही  गीत और संगीत  के रसिया रहे है  |काल कोई भी हो और हालात जैसे भी हों यहाँ  गीत -संगीत का जादू हमेशा ही लोगों के सर चढ़कर बोला है | वारिस शाह , फरीद और  बुल्लेशाह जैसे सूफी कवियों से लेकर सिख धर्म के दस गुरुओं की वाणी गीत और शब्द रूप में इस धरा पर गूंजी है  | अपने अध्यात्मिकता के संदेश को  उसी माध्यम से लोगों के बीच  लोकप्रिय बनाया और नये  नैतिक   मूल्यों की स्थापना की |वारिस शाह से लेकर आज के आधुनिक कवियों ने पंजाबी सभ्याचार की   परम्परा को  चिरंतन रखते हुए जनमानस में अपना अहम स्थान बनाया है |इसी  क्रम में आधुनिक पंजाबी   साहित्य में जिस   कवि को पंजाबी साहित्य में  सर्वोच्च स्थान मिला  है , उनका नाम है  --शिवकुमार बटालवी | शिव को  वारिस शाह के बाद ये स्थान दिया गया | वे पंजाब के अकेले  ऐसे कवि रहे , जिनके गीत,  लोक गीतों की तरह लोकप्रिय और अमर हुए  और जिनके गीत गाना हर गायक अपना  सौभाग्य समझता था |      उन्होंने    अपने   समय  में अपार ख्याति तो पाई ही , अपनी मौत के  लगभग पैंतालिस सालों के बाद भी     उनकी        लोकप्रियता   में कोई   कमी नहीं आई , |   उनके काव्य पर       शोध करने वाले छात्रों की संख्या  कभी  कम  नहीं रही  और ना ही  उनके काव्य    में कभी काव्य रसिकों की रूचि कम   हुई | उनकी दर्द भरी रूहानी शायरी ने उन्हें लोगों का महबूब शायर बना दिया |भारतवर्ष के  सबसे ज्यादा विवादस्पद कवियों में भी उनका नाम शुमार किया जाता है | पर इन सबके बावजूद कवि -समाज द्वारा उन्हें  उन्हें पंजाबी  के 'कीट्स 'की उपाधि दी गयी क्योंकि कीट्स की तरह ही उन्होंने अपने काव्य में ' रोमांटिसिज्म'को उत्कर्ष तक पहुंचाया- तो उनकी तरह ही अल्पायु में मौत पायी | पर उनकी कविताओं में  रोमांटिसिज्म  का मूल स्वर  वेदना का है . विरह    का है | वे  आजीवन प्रेम की तलाश भटकते एक ऐसे शायर थे जिन्होंने ना किसी छंद में  में बंध लिखा ना किसी रस्मो -रिवायत को मान लिखा   उन्होंने  कविता के क्षेत्र में व्याप्त मिथकों को दरकिनार कर  ,  जिन नये बिम्बों  और  प्रतीकों का विधान किया उन्हें कोई  कवि   आज तक दुहरा नही पाया है |
उन्होंने' स्वछंद 'लिखा  , स्वछंद ही  गाया और स्वछ्न्द ही जीवन जिया ,जिसके लिए अनेक आलोचनाओं के प्रहार सहते हुए वे प्रसिद्धि के    ऐसे चरम पर बैठ गये जहाँ से  आज तक भी उन्हें कोई उतार नहीं पाया है |उनके लिखे काव्य की कोई  पुनरावृति  नहीं कर पाया  और ये हो भी नहीं सकती क्योकि  शिव ने जीवन में पग -- पग पर दर्द का  गरल निगला और  अमर काव्य  रचा |उनके आरे में अनेक तरह की कहानियां  कही  और सुनी जाती है | सच तो ये  है  कि उनका जीवन एक किवदन्ती  सरीखा हो गया है | क्योकि उनका जन्म अविभाजित   हिदुस्तान में हुआ था सो वे सीमा पार पाकिस्तान में भी समान रूप से लोकप्रिय हुए | शायद वह ऐसा दौर था    जब    दोनों  देशों के नये- ताजे बंटवारे के  बावजूद   , दोनों तरफ सांस्कृतिक सांझी विरासत की  आत्मीयता   बरकरार थी  और राजनैतिक  कलुषता  ने इस आत्मीयता को आच्छादित नहीं किया था |तभी वहां के अत्यंत नामी -गिरामी गायकों जैसे नुसरत फतेह अली खान और इनायत अली  इत्यादि ने उनकी रचनाओं को बहुत ही मधुरता से गाकर अमरत्व प्रदान किया |


 जन्म-- शिवकुमार     का जन्म 23 जुलाई  1936  को   गाँव  बड़ा पिंड    लोहटिया   शकरगढ़  तहसील में हुआ  |  अब  ये  जगह  पकिस्तान में है |वहां उनके पिताजी तहसीलदार थे जबकि माता जी  गृहिणी थी |  बंटवारे  के समय उनकी आयु  मात्र ग्यारह साल की थी | इस छोटी सी उम्र वे मन में अनेक जिज्ञासाएं मन में लिए माता - पिता और परिवार के साथ पंजाब के गुरदासपुर के बटाला  कस्बे  में आगये और अपना जीवन  का नया सफर शुरू किया |इसी कस्बे के नाम पर वे शिव कुमार बटालवी  के नाम से प्रसिद्ध हुए | 

पढाई के दौरान वे एक औसत विद्यार्थी रहे और     कई बार पढाई बीच में छोड़ कर अपनी  अस्थिर   स्वभाव  का परिचय दिया | वे अपने अन्तर्मुखी स्वभाव के कारण माता पिता के लिए चिंता का कारण रहे
 वे कला  विषय से बी ए करने लगे तो बाद में इंजिनियरिंग के डिप्लोमा के लिए हिमाचल के बैजनाथ चले गये तो उसके बाद पंजाब के नाभा  से स्नातक की डिग्री  लेने के लिए वहां के सरकारी कालेज में दाखिला ले लिया 
   |   जहाँ   मिलनसार स्वभाव  और कविता के शौक    ने उन्हें अपनी  मित्र- मण्डली   का चहेता बना  दिया | 1960में उनका पहला कविता संग्रह '' पीडां  दा परागा ''प्रकाशित हुआ उससे पहले ही  कवि दरवारों और कवि सम्मेलनों की   शान और जान बन चुके थे |कहते हैं दिग्गज कवि  आयोजको से  शिव  कुमार की प्रस्तुती सबसे बाद में   देने का   आग्रह करते थे क्योकि शिव को सुनने के बाद मंच पर सन्नाटे प्याप्त हो जाते थे | उनकी जोरदार प्रस्तुतियों के बाद लोग  अन्य  कवियों को सुनना पसंद नहीं करते थे |

 व्यक्तित्व ---शिव कुमार पर कविता के विषय में तो माँ सरस्वती की  असीम अनुकम्पा थी ही  उनके व्यक्तित्व में एक जादुई आकर्षण था | अत्यंत दर्शनीय  और  आकर्षक   व्यक्तित्व के स्वामी शिव   को   सूरत  और सीरत   दोनों   के अनूठे     मेल   ने  काव्य रसिकों  के सभी वर्गों में अत्यंत  लोकप्रिय  बना दिया था  पर महिला  वर्ग उनका खास तौर पर दीवाना था | यहाँ तक भी कहा जाता था  कि भले ही सभी  साहित्यकार उनकी प्रतिभा  का  लोहा मानते थे पर उन्हें अपने घर -परिवार से दूर ही रखने का प्रयास करते  थे  ताकि घर की महिलाएं उनके चुम्बकीय व्यक्तित्व से  प्रभावित ना हो सके |पंजाब में ही नहीं पंजाब से बाहर रह रहे पंजाबियों  ने उन्हें सदैव ही सर माथे पर बिठा कर रखा और उनके रचे गीतों और कविताओं को विदेश में भी  लोकप्रिय  बनाया | विदेश में आज भी पंजाबी लोग उनके जन्मदिन 23 जुलाई को   ''बटालवी दिवस' के  रूप  में    मनाते हैं इससे बढ़कर  उनके प्रशंसकों का  प्रेम क्या होगा ? 


जीवनऔर प्रेम ---   जीवन -पर्यंत शिव का जीवन अनेक उतार - चढ़ावों से गुजरा |उन्हें जीवन  में कई बार प्रेम हुआ, पर वे उस प्यार को कभी अपने जीवन में अपना ना सके | उसके पीछे नियति तो कभी उनका अस्त - व्यस्त व्यक्तित्व रहा |   कहते हैं सबसे पहले जिन दिनों  वे हिमाचल के बैजनाथ में पढ़ रहे थे -उन्हें   'मीना '  नाम की अत्यंत  सुंदर ,सुशील  लडकी  से प्रेम हो गया | पर बाद में जब वे उसे अपनाने के लिए उसके घर पहुंचे तब तक  बुखार से उसकी मौत हो चुकी थी | उन्होंने  मीना   की याद में कई अमर गीत लिखे |  कॉलेज में पढ़ते हुए उन्हें एक     वरिष्ठ   कवि  की बेटी से प्रेम हो गया जो उनके जीवन में अंतहीन विरह का उपहार लेकर आया | पर उन दिनों वे एक   आम कवि की हैसियत रखते  थे सो वरिष्ठ कवि ने अपनी बेटी के भविष्य को सुरक्षित कर उसकी शादी    विदेश  में रह रहे एक सफल और  अमीर  लडके से कर दी | बाद में उन्होंने     अपनी प्रेमिका की शक्ल से मिलती जुलती लडकी से  शादी भी  की  और उनके दो बच्चे भी हुए  पर   उनके   मन को किसी तरह भी  रूहानी चैन  कभी नहीं  आ  पाया     | उनके पिता उन्हें कामयाब देखना चाहते थे अतः पिता की मर्जी के अनुसार उन्होंने कुछ समय तक पटवारी के रूप में भी काम किया पर बाद में वे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया    चंडीगढ़  में जन सम्पर्क अधिकारी के  भी बने  ,पर उनकी रूचि साहित्य में ही रही |  प्रेम की असफलता की कसक हमेशा उनके साथ रही |प्रेम की असफलता में टूट - बिखर कर शिव ने अनेक अमर प्रेम गीत  रचे  पर इसके साथ उन्होंने शराब को  भी  सदा के लिए गले लगा लिया | हितैषियों    और   परिवार  के समझाने का उनपर कोई असर ना हुआ | बाद में हालत ये हो गई कि लोग उनसे अच्छे गीत -ग़ज़लें सुनने के लिय उन्हें अपनी तरफ से पिलाने का इंतजाम करने लगे |कहते हैं अत्यंत नशे की हालत में वे अपने आप से बेखबर आत्म- मुग्धता में सर्वोत्तम काव्य रचने लगे | कई बार वे बेखबर हो दीवार पर गीत - गजल लिख देते और बाद में उनका भाई उन रचनाओं को कागज पर लिख  लेता |कविता उनके होठों से निर्झर की तरह बहती वे किसी भी विषय पर  रचना रचने में माहिर थे | अनेक ऐसे विषयों पर उन्होंने कवितायेँ लिखी जिन पर  कोई सोच भी नहीं सकता था | उनके  गाये  गीत -लोक गीत बन गये | लोग रचियता को नहीं जानते थे पर गली- गली  उनके गीत  मशहूर हो रहे थे | आज भी रेडियो पर उनके गीतों को सुनने के लिए श्रोताओं की फरमाइश में कोई कमी नहीं आई है और ये सदैव की तरह ही  सुनने  वालों के मनमे बसे हुए हैं | 

 रचना संसार  और सम्मान --- शिव कुमार  के रचना संसार में उनके  मन की विभिन्न  दशाएं तो मुखरित होती ही हैं साथ में उनके  दृष्टिकोण का भी पता चलता है |उन्होंने यूँ तो हर विषय पर लिखा पर  प्रेम उनकी कविताओं का प्रमुख विषय रहा उसमें भी प्रेम की असफलता  और विरह  प्रमुखता से मुखर हुई उनकी प्रमुख प्रकाशित रचना संग्रह के नाम इस तरह हैं --
 पीडांदा परागा  अर्थात दर्द का दुपट्टा ,  मुझे विदा करो , आरती , लाजवंती   आटे की चिड़िया , लूणा,  ममें और मैं , शोक , अलविदा  और बाद में अमृता प्रीतम  द्वारा  चयनित उनकी प्रमुख रचनाओं का संग्रह '' विरह का सुलतान ' है | कहते हैं उनके रचना संसार  में बहते दर्द के अविरल  भावों से  भावुक हो अमृता प्रीतम ने ही उन्हें विरह का सुलतान कहकर पुकारा था  जिस से उनका तात्पर्य था कि वे    दर्द  को बहादुरी से जीने  वाले  बादशाह  सरीखे थे |   इन रचनाओं में उन्हें लोक कथा पूरण भगत के स्त्री - चरित्र  ''लूणा'' पर--- जो कि  एक काव्य  नाटक था ---1967 का पंजाबी   के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला  
 उस समय मात्र 27 साल की उम्र   में , वे इसे पाने वाले सबसे कम उम्र के कवि थे | कहते हैं एक पुरुष  होकर उन्होंने 'लूणा '' की अंतर्वेदना का बेजोड़ शब्दांकन किया था | इसमें  हिमाचल के चम्बा शहर और रावी  नदी खूबसूरती का बहुत ही  अच्छा वर्णन  है 

उनकी अन्य रचनाओं में जीवन  के विभिन्न रंगों   के कुछ उदाहरण --

 अपनी रचना  - गमां  दी रात अर्थात गमों की रात में वे लिखते हैं -

ये  ग़मों की  रात लम्बी है या मेरे गीत लम्बे हैं -
 ना ये मनहूस रात खत्म होती ना मेरे गीत खत्म होते 
ये जख्म हैं इश्क  
के यारो -इनकी क्या दवा होवे  -
ये हाथ लगाये भी दुखते हैं  मलहम लगाये भी दुःख  जाते !!!!!

 एक  दूसरी रचना पंछी हो जाऊं में उन्होंने लिखा -

जी चाहे पंछी हो जाऊं -
उड़ता जाऊं - गाता जाऊं 
अनछुए शिखरों  को  छू पाऊँ 
इस दुनिया की राह भूलकर -
फिर कभी वापस ना आऊँ 
 बे दर - बेघर होकर-
 सारीउम्र पीऊँ रस गम का 
इसी नशे में जीवन जीकर -
जी चाहे पंछी हो जाऊं !!!!!
  उनकी अत्यंत प्रसिद्ध  प्रतीकात्मक मार्मिक रचना शिकरा यार में उनका दर्द यूँ छलका - 


 माये नी माये  मैं एक शिकरा  [ उड़ने वाला पक्षी]  यार बनाया
उसके सर पे कलगी
उसके पैरों में झांझर 
वो  तो  चुग्गा चुगता आया 
इक उसके रूप की  धूप  तीखी
 दूजा  उसकी महक ने लुभाया        --
तीजा उसका रंग गुलाबी 
वो किसी गोरी माँ का जाया |
 इश्क  का एक पंलग निवारी
 हमने चांदनी में बिछाया 
तन की चादर हो गयी मैली 
उसने पैर ना पलंग पाया -
दुखते  हैं मेरे नैनों के कोए
  सैलाब  आँसूओं का आया 
सारी रात सोचों में गई
उसने ये क्या जुल्म कमाया ?
सुबह सवेरे  ले उबटन -
हमने मल -मल उसे नहलाया -
देहि से निकले चिंगारें
हाथ गया हमारा कुम्हलाया 
चूरी  कुटुं  तो वो खाता  नहीं -
हमने दिल का मांस खिलाया |
एक उडारी ऐसी मारी 
वो  मुड वतन ना आया !!!!!!!!!!!!!!
 अपने खोये प्यार की याद में उनका अमर गीत - 

एक लडकी जिसका नाम मुहब्बत है -

गुम है , गुम है ,गुम है !!
-एक बेहद मकबूल गजल देखिये ---
मुझे तेरा शबाब ले बैठा -
रंग गोरा गुलाब ले बैठा 
कितनी पी ली  ,  कितनी बाकी है - 
 मुझे  ये ही हिसाब ले बैठा ,
अच्छा होता सवाल ना करता -
मुझे तेरा जवाब ले बैठा ,
फुर्सत जब भी मिली है कामों से 
तेरे मुख की किताब ले बैठा .
मुझे जब भी आप हो याद आये -
 दिन दिहाड़े शराब ले बैठा !!!!!!!!

अपने एकअत्यंत लोक प्रिय गीत में वे लिखते हैं ---
 माये ना माये  मेरी  प्रीत  के नैनों में -विरह की रडक  पड़ती है 
सारी - सारी रात मोये  मित्रों के लिए रोते हैं  माँ हमें  नींद नहीं आती है
 सुगंध में  भिगो भिगो कर बांधूंफाहे चांदनी के -
तो भी हमारी पीड नहीं जाती 
गर्म- गर्म सांसों  करूं जो  टकोर  माँ 
पर वो भी हमे खानें को पड़ती है !!!!!!
उन की  बहुत ही लोकप्रिय  रचना '' पीडां  दा परागा '' का भावार्थ कुछ यूँ है ---
ओ भट्ठीवाली तू पीड का परागा  भून दे 
मैं तुझे दूंगा  आसूंओं  का भाडा !!!!!!

 इसके अलावा उनके लिखे अनेक हल्के फुल्के लोक गीत भी  हैं जिन्हें  शादी ब्याह में  गाया जाता है | उनके गीतों को जगजीत सिंह , महेंद्र कपूर   , सुरेन्द्र कौर  , प्रकाश कौर  ,, आसा  सिंह  मस्ताना जैसे प्रसिद्ध गायकों  ने अपनी सुरीली आवाज देकर उनकी मधुरता  को बढाया और जन - जन तक पहुंचाया |

निधन -- उनकी कविताओं  में कई बार जीवन के प्रति अनासक्ति का भाव  मिलता है |  ''  वे अपनी रचनाओं  में बार बार यौवन में मरने की इच्छा जाहिर करते हैं क्योकि उन्हें विश्वास था कि युवावस्था में मरने वाले को भगवान  फूल या तारा बनाता है और वह लोगों की स्मृतियों में हमेशा युवा ही रहता है | शायद इसी लिए    उन्होंने    
 अपने   एक गीत   में लिखा ''किहमने तो जोबन   रुत में मर जाना  है   ''और उनकी यही इच्छा शायद ईश्वर  को भी मंजूर हो गयी | नशे की भयंकर लत  से उन्हें लीवर          सिरोसिस नामक रोग हो गया  जिससे उनकी हालत इतनी खराब हो गई कि वे मतिभ्रम  का शिकार हो अपने अन्तरंग साथियों को भी  पहचान नहीं पाते थे | इसी असाध्य रोग से जूझते उन्होंने अपने ससुर के घर में 6  मई 1973   को अंतिम साँस ली | इसके साथ ही बहुत छोटी उम्र में मरने का उनकी चाह फलीभूत हुई  तो पंजाबी साहित्य का एक  चमकता सूरज  अस्त हो गया | पर अपनी मर्मस्पर्शी  रचनाओं के  माध्यम से  वे हमेशा अपने चाहने वालों  के मनों में बसते हैं  | 
आज उनके जन्म दिवस के अवसर पर उनकी पुण्य स्मृति को शत-शत नमन !!!!!!!
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पाठकों के लिए विशेष -- शिव कुमार बटालवी का अत्यंत प्रसिद्ध वीडियो जिसमे उनके सुदर्शन व्यक्तित्व के दर्शन तो होते ही हैं साथ में उनकी    ओज से भरी वाणी में उनका  प्रसिद्ध  गीत --
''क्या पूछते हो हाल फकीरों का ?हम नदियों से बिछड़े नीरों का ?

हम आँसू की जून में  आयों  का हम दिलजले दिलगीरों का 
हमें लाखों का तन मिल गया -पर एक भी मन ना मिला -
क्या लिखा किसी ने मुकद्दर था -- हाथों की चंद लकीरों का !!!!!!!    | उनकी  उनकी मासूमियत से भरी  बातों और उनमे  व्याप्त  सरलता के तो क्या कहने !!!!!  उनकी मौत से कुछ ही समय पहले लिया गया ये इंटरव्यू  हिंदी में है और इसे बीबीसी द्वारा लिया गया था जो कि आंचलिक भाषा के  एक  कवि के लिए उन  दिनों अत्यंत गौरव का विषय था | मेरा विशेष आग्रह जरुर सुनें और देखें  | सादर -- 




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 धन्यवाद शब्द नगरी ----


रेणु जी बधाई हो!,

आपका लेख - (विरह का सुलतान -- पुण्य स्मरण शिव कुमार बटालवी ) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 
विरह का सुलतान -- पुण्य स्मरण शिव कुमार बटालवी
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अनमोल टिप्पणी -- गूगल प्लस से साभार 


बहुत बढ़िया लेख

सुन्दर आलेख

उपयोगी आलेख।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-08-2018) को "परिवारों का टूटता मनोबल" (चर्चा अंक-3050) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

रविवार, 8 जुलाई 2018

ब्लॉगिंग का एक साल ---------आभार लेख

बस,एक छोटा सा 'आभार' कम कर देगा जीवन ... निरंतर प्रवाहमान होते अपने अनेक पड़ावों से गुजरता - जीवन में अनेक खट्टी - समय निरंतर प्रवहमान होते हुए अपने अनेक पड़ावों से गुजरता हुआ - जीवन में अनेक खट्टी मीठी यादों का साक्षी बनता है,  जिनमे से कई पल  अविस्मरणीय   बन जाते हैं|
पिछले साल शब्द नगरी से जुड़ना भी मेरे लिए एक यादगार लम्हा बन कर रह गया  |
जनवरी 2017 में   शब्द नगरी  पर  लेखन शुरू करने से पहले मैंने  नहीं सोचा था कि मेरा टिप्पणी लिखने के लिए बनाया गया अकाउंट  लेखन के काम भी आयेगा | अकाउंट बनाकर  मैंने सबसे पहले किसी रचना पर  टिप्पणी करने से पहले ही एक छोटा सा लेख शब्द नगरी पर पोस्ट कर दिया | उस समय 12 वीं कक्षा  में पढ़ रही मेरी बेटी ने इस काम में मेरी उत्साहित हो मदद की क्योकि उस समय  मुझे इंटरनेट पर पढने के अलावा कुछ  नही आता था |    पहले ही लेख पर तीन चार लोगों के उत्साहवर्धन करने वाली  टिप्पणियों ने मुझे असीम ख़ुशी से भर दिया |और ये लेखन यात्रा चल निकली |    कभी समय काटने के लिए     वर्षों पहले लिखी कविताओं के नाम पर रचनाएँ भी पोस्ट की ,उन्हें भी  पाठकों  ने  पढकर उत्साह बढ़ाया | पर  तब  तक  मैंने ब्लॉग बनाने के बारे में     बिलकुल नहीं सोचा था |  क्योंकि   कई साल पहले मैंने इंटरनेट पर पढ़कर एक  आधा अधूरा ब्लॉग बनाया था पर  मुझे पोस्ट लिखकर उसे शेयर करना ही नहीं आया , अतः वह ब्लॉग  कभी  भी औपचारिक रूप में अस्तित्व में नही आ पाया |उसके बाद मुझे कभी  विश्वास नही हुआ कि मेरा ब्लॉग बन सकता है और  उसे लोग पढ़ भी सकते  हैं | मई महीने में  एक  अत्यंत स्नेही,गुरुतुल्य  सहयोगी रचनाकार   ने  मुझे   अभूतपूर्व    प्रोत्साहन    देते हुए   , अपना ब्लॉग बनाने का सुझाव दिया | पर  ब्लॉग का पुराना  अनुभव मुझे बहुत हतोत्साहित कर रहा था | फिर भी  उनकी अभूतपूर्व  प्रेरणा से ,         गर्मी की छुट्टियों  में अपने मायके जाकर  अपने छोटे भाई  से , जो कि एक सुदक्ष  सॉफ्टवेर   इंजीनियर  है , से  ब्लॉग बनाने का आग्रह किया और मेरे लौटने से मात्र कुछ घंटे पहले ही उसने क्षितिज  नाम से मेरा  ब्लॉग बना दिया  | अंततः     ब्लॉग जिसपर ज्यादा विकल्प नही थे अस्तित्व में आ गया |पर  महीने से ज्यादा  होने के बाद  भी मैंने उस पर कोई रचना नहीं डाली क्योकि मुझे नही लगता था   मंजे हुए रचनाकारों के बीच कोई मुझे भी पढेगा | इसी  बीच  आदरणीय  रंगराज अयंगर   जी  ने मुझे अपने ब्लॉग पर आमंत्रित किया | वहां आकर मैंने देखा जो लोग शब्द नगरी पर सक्रिय थे, उनमें  से कई  लोग ब्लॉग जगत के सशक्त हस्ताक्षर हैं | उन्ही के ब्लॉग पर से जाकर   कई सक्रिय रचनाकारों   के  ब्लॉग का अवलोकन किया  और मेरे भीतर भी  अपना ब्लॉग  शुरू करने की इच्छा हुई |किसी तरह से साहस  बटोर कर मैंने  8 जुलाई की रात को गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में ,   गुरुदेव को कोटि नमन  करते हुए 'श्री गुरुवैय  नमः'  नाम से लेख लिखा |    मुझे हरगिज यकीन नहीं था  , कि  कोई मेरा ब्लॉग पढ़ेगा  ,पर अगली  सुबह  जब मैंने ब्लॉग देखा तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा |  प्रिय  श्वेता सिन्हा ने अपने कर कमलों द्वारा स्नेहासिक्त शब्द लिख मेरे ब्लॉग का उद्घाटन कर दिया था  और मेरी  सुखद  लेखन  यात्रा का संकेत दे दिया   | उसी पोस्ट पर ब्लॉग जगत और मेरे शब्दनगरी के परिचित सहयोगियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर  मेरा उत्साह बढ़ाया  |  यहाँ तक कि  आदरणीय बहन यशोदा जी भी उस दिन  मेरे ब्लॉग पर आई और कुछ शब्द लिखे |उसी दिन प्रिय ध्रुव सिंह एकलव्य  ने इसी पोस्ट को अगले दिन के पञ्च लिंकों  के  में लेने का आहलादित करने वाला समाचार दिया | उस शुभ दिन के बाद मेरे सहयोगी रचनाकारों  और स्नेही पाठक वृन्द  ने मेरे उत्साहवर्धन में कोई कमी नहीं छोडी  और पग- पग पर  मुझे प्रोत्साहन देकर मेरी रचनाओं का मान बढाया और मुझे मेरे ब्लॉग की कमियों से भी परिचित करवाकर उसे बेहतर बनाने में मदद की | पहले मेरा  तकनीकी  पक्ष बहुत कमजोर था, पर धीरे - धीरे मैंने कई चीजें सीखी और   गद्य केलिए   बसंत  पंचमी पर नया ब्लॉग   ''मीमांसा '' बिना किसी की मदद के खुद बनाया , जिसे भी पाठकों का भरपूर स्नेह और सहयोग मिला | आज  दोनों  ब्लॉग पर    कुल मिलकर    ८०प्रकाशित रचनाएँ हैं   जिनमे से एक को भी पाठकों ने अनदेखा नही किया | और पांच लिंकों के अलावा आदरणीय  राकेश कुमार  राही जी की मित्र मण्डली , प्रिय ध्रुव  के लोकतंत्र संवाद और  आदरणीय सर  मयंक  जी के चर्चा मंच  की सदा आभारी रहूंगी , जिन्होंने अपने मंच से जोड़कर रचनाओं को अनगिन   पाठकों  तक  पहुँचाया   | 
कभी घर की चारदीवारी में सिमटी एक   साहित्य प्रेमी गृहिणी  के लिए इससे बढ़कर सुखद  कुछ भी नही हो सकता कि एक ब्लॉग के माध्यम से कितने  ही स्नेहिल लोगों से परिवार तुल्य स्नेहासिक्त आभासी रिश्ते बने  और घर बैठे ही  एक पहचान बनी | यूँ तो जीवन एक बहुत ही सुखद  पडाव पर था |  घर में माता - पिता के  सानिध्य में विवाह के बाद बीस साल से ज्यादा  बड़े ही सुखद बीते   |  दोनों बच्चों  ने    अपनी शिक्षा की राह चुनकर उड़ान भरी ,  तो मन में  अकेलेपन  से एक उदासी व्याप्त हो गई-- और लगने लगा   कि कुछ है जो  नहीं था | शायद अपनी रचनात्मकता को साकार करने  की  इच्छा शेष थी | ब्लॉग  ने आभास करवाया कि बहुत बड़ी कमी थी  जिससे  अनजान   थी| शब्दनगरी  से ही  साहित्य प्रेमियों और साहित्य साधकों का  सानिध्य पाया  और उस स्नेह को जिया तो जैसे जीवन में एक नई आशा का उदय हुआ | कभी सोचती थी की ब्लॉग पर लिखूंगी क्या ? पर अब ऐसा नहीं है  | ना जाने कौन सी प्रेरणा अपने आप नए  विषय पर    लिखवा देती ।है | बहुत से दिव्य अनुभवों से गुजरकर आज अभिभूत हूँ  और उस स्नेह के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नही जो मुझे  पाठकों ने दिया | मंच पर मौजूद  अनेक राज्यों  के रचनाकारों के माध्यम से उनकी संस्कृति , लोक त्योहारों  , लोक कलाओं और संगीत  से परिचय हुआ | मुझे अक्सर ये लगता है कि ब्लॉग्गिंग का ये मंच  एक विद्यालय है जिसमे  उम्र  , जाति धर्म  से ऊपर  उठकर  सभी लोग एक - दूसरे से रोज कुछ ना कुछ सीख रहे हैं और भारत की विभिन्न  संस्कृतियों को एक  -दूसरे के पास लाने का सराहनीय और वन्दनीय  प्रयास  कर रहे हैं |
परिवार में कभी किसी ने मेरा ब्लॉग देखने अथवा पढने की कोशिश नहीं की , पर मुझे  तकनीकी सहयोग पूरा दिया है | मेरे कंप्यूटर  के अलावा बिटिया ने मोबाइल में भी मुझे हिन्दी  लिखने का ज्ञान दिया | इसके अलावा मेरी रूचि को सम्मान देते हुए पतिदेव ने   कभी  मुझे हतोत्साहित   नहीं   किया |

आज मेरे ब्लॉग के एक साल पूरा होने के अवसर पर  ,  उन सभी उदार,  सहृदय पाठकों और सहयोगियों  को मेरा हार्दिक आभार ,  जिन्होंने मुझ अपरिचित को अपनाकर    अतुलनीय स्नेह दिया और मेरी रचनात्मकता को नये आयाम और कल्पना शक्ति को नया आकाश दिया    | साथ में  मेरा आत्मविश्वास बढाकर मुझे  एक पहचान दी |आज किसी अनाम शायर की ये पंक्तियाँ मुझे स्मरण हो आई है जिनके माध्यम से कहना चाहती  हूँ |  ---
जब तक बिका ना था कोई पूछता ना था -
तुमने मुझे खरीद कर अनमोल  कर  दिया !!!!!
 सभी को सादर , सस्नेह आभार  और नमन
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गूगल प्लस से साभार अनमोल टिप्पणी 
  • 28w
  • Kusum Kothari's profile photo
    रेनू बहन तिथि के हिसाब से आपने ब्लॉग जगत पर आज एक साल पुरा किया उसके लिये आपको बहुत बहुत बधाई।
    आज आप ब्लॉग जगत के जाने माने किरदार है, आप को सदा उतरोतर बढोतरी की शुभकामनाएं पेश करती हूं सदैव उच्चता को बढते रहें।
    REPLY
    28w
  • amansingh charan's profile photo
    beautiful written for Guru ..
    REPLY
    28w
  • Renu's profile photo
    Renu+1
    प्रिय बहन कुसुम -- आपके सराहना भरे शब्दों के लिए बहुत बहुत आभार | अपने सच कहा आज एक साल पहले इसी लेख से ब्लॉग जगत से जुडी थी | एक सहयोगी रचनाकार ने मुझे ब्लॉग जगत की राह दिखाई थी जिसके उनकी सदा ऋणी रहूंगी और पाठकों और आप जैसी सहृदय सहयोगी बहनों ने मुझे जाना पहचाना बना दिया | आपकी शुभकामनायें अनमोल हैं | और पिछले साल गुरु पूर्णिमा 9 जुलाई को थी अतः इस 8 जुलाई को मैंने मीमांसा ब्लॉग पर आभार लेख लिखा था पर किसी से ज्यादा पढ़ा नहीं | पर मेरा आभार है मेरे सभी पढने वालों के लिए | आपको आभार नहीं बस मेरा प्यार
    28w
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ब्लॉगिंग का एक साल ---------आभार लेख

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