Powered By Blogger

फ़ॉलोअर

रविवार, 27 मई 2018

जिद -- लघु कथा --

Image result for मर्डर के चित्र

फोन में  व्हाट्स अप्प  पर धडा - धड आते  तुम्हारे  अनगिन फोटो देख  मैं  स्तब्ध हूँ ! इन में तुम्हारी रक्तरंजित निर्जीव देह  गोलियों से बिंधी हुई   एक हरे मैदान के बीचो बीच लावारिस  सी पडी है |   छः फुट का सुंदर सुडौल शरीर  मिटटी  बन गया है अब |तुम्हारी  पीली  कमीज   और जींस  खून से भरी     है  | |जख्मों की शिनाख्त के लिए पुलिस ने  कमीज  के बटन  खोल सीने को खुला रख छोड़ा है  जिसमे से सीने पर गोलियों से बने गहरे  निशान साफ - साफ नजर आ रहे हैं  इनमे से बहता खून  तस्वीर  में  दिख रहा है  |   दूसरे वीडियो में , जो शायद तुम्हारी मौत के तुरंत बाद का है ,  औरतों के  क्रन्दन की दहलाती आवाज गूंज रही है जिनमे एक स्वर सबसे ज्यादा मर्मान्तक है  जो पक्का तुम्हारी माँ का ही होगा | क्योकि माँ ही  तुम्हारी मौत से सबसे ज्यादा सदमे में होगी | एक अन्य वीडियो में  तुम्हारा निर्जीव शरीर सफ़ेद कपड़े में लिपटा और खूब मजबूती से बंधा  सडक के बीचोबीच रखा गया है |भारी  संख्या में गाँव-भर   के लोग तुम्हारी  इस अप्रत्याशित  मौत के लिए जिम्मेवार  तुम्हारे हत्यारों  की गिरफ्तारी के लिए गाँव के बाहर राजधानी की ओर जा रहे सडक मार्ग को बाधित कर   नारे बाजी कर रहे हैं |सभी  तुम्हारे साथ हुई इस नाइंसाफी से व्यथित हैं  |  मेरी मन की  विकल आँखे देख रही हैं, गाँव  की गलियों में  जवान मौत से पसरे  सन्नाटे  को और मुझे वो दिन  याद  आ  रहे हैं जब   बरसों पहले मैं गाँव में ही थी , तो किसी युवा की मौत का गाँव भर  में कैसा मातम  छा जाता था और     पूरा गाँव शोक संतप्त  हो जाता था ! हर कोई इसे  अपना ही दुःख  मान  कर  चलता था | गलियों में   चिड़िया  की चूं सरीखी आवाज  भी  सुनाई नही पड़ती थी  |आज भी गाँव में यही  कुछ हो रहा होगा |  मेंरी जुबान  को मानो लकवा मार गया है | कंठ अवरुद्ध और आँखें   सजल हो गयी हैं  |
 यूँ तो मेरा तुम्हारा  गाँव के नाते  से    रिश्ता है    | आखिर मेरे गाँव के एक परिवार का भविष्य थे तुम | तुम तो शायद मुझसे परिचित भी नहीं होंगे -पर मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानती हूँ  ,जिसे तुम्हारी माँ यानि गाँव के रिश्ते   की भाभी ने रो -रो कर मुझे एक बार बताया था | भाभी  को मैंने    उनकी शादी  के समय देखा था जिसके सौन्दर्य और मिलनसारिता  के  चलते  मैं हमेशा के लिए उनके साथ स्नेह के बंधन में बंध गयी थी |किशोर अवस्था   से  जुडा ये रिश्ता समय ना होने पर भी  दो चार घड़ी के लिए मिलने  का अवसर  ढूंढ  ही लेता था | पर मेरी शादी  के बाद  बीच के सालों में सचमुच व्यस्तता इतनी हावी हो गयी ,कि भाभी से मिलना अक्सर नहीं हो  पाता था   |
  गाँव में जाने पर तुम्हारे बारे में  अजीब - अजीब सी बातें सुन मैं हैरान सी रह जाती !  | पहले से  कितना बदल गये थे तुम !!  तुम्हारे बचपन के अनेक लम्हे मेरे आँखों  में गुजर रहे हैं | तुम्हारी माँ  को कितनी ख़ुशी मिली थी तुम्हारे जन्म से -शायद तुम जानते भी नहीं  थे |मायके में वे दो बहने थी -भाई नहीं था |  तुम्हे नहीं पता   , कि उन दिनों  एक लडकी का सगा भाई ना होना उसके लिए किसी अभिशाप से कम ना था  | अब तो समय के साथ ये बात  महत्वहीन  होने लगी है ,पर  तब समाज में ऐसी लड़कियों को अभागी और मनहूस कहकर  प्रताड़ित  किया जाता था |     मायके में  भाई  नहीं और ननिहाल में   मामा नहीं ! कितनी   डरी हुई  थी वो तुम्हारे होने से पहले, कि कहीं उसे भी नानी और माँ की तरह सिर्फ लडकी की माँ होने के ताने ना मिलें | तुम्हारा होना  उसके  और तुम्हारी नानी के लिए बहुत बड़ा सुकून और ख़ुशी लेकर आया | तुम्हारा चेहरा बिलकुल माँ की तरह दिखता था एकदम  गोरा और सुंदर || जब तुम बहुत छोटे थे  तो  तुम्हारी  छोटी  बुआ अक्सर तुम्हे   सीने से चिपकाए आह्लाद में भरी  तुम्हारे  साथ हंसती ठिठोली करती घर के आसपास की गली में घूमती नजर आती तो थोड़ा बड़ा होने पर तुम्हारे पिता को मैंने अनगिन बार  तुम्हे कंधे पर बिठा खेतों में लेजाते देखा | तुम्हारे दादा जी की तो आँख का तारा थे तुम |  पूरे  गाँव में तुम्हारे परिवार   को बेहद  सादगी भरे शांत परिवार  के रूप में जाना जाता था | किसी लड़ाई झगड़े में कभी  उनका नाम ना आया था | तंगहाली में भी खुश और मस्त  रहने वाला श्रमजीवी परिवार  जिसकी आजीविका गाँव के   बाहरी भाग में थोड़ी बहुत  पुश्तैनी जमीन  थी जिस  पर खेती -बाडी करके अपना गुजारा करते थे |  तुम्हारे भोले भाले  दादा जी के दोनों बेटे और बेटियों ने अपने पिता सरीखा  शांत और सरल स्वभाव पाया था  | फिर तुम क्यों उनके जैसे ना हुए ? सच कहूँ तो मुझे   विश्वास ही    नही होता    कि ये बातें  तुम्हारे बारे में  कही जा रही हैं   |बचपन में कितने शांत थे तुम  !गोरा रंग और आँखों में कोरा खरोंचा काजल कितना जंचता था तुम्हारी मोटी - मोटी आँखों में |पर धीरे धीरे ना जाने किस और मुड गये थे तुम्हारे   कदम !!
 तुम्हारे पिता ने तो  तंगहाली  में भी  तुम्हारे उज्जवल भविष्य के लिए तुम्हे अच्छे  महंगे स्कूल में दाखिल करवाया  था | वहां शरारती बच्चो से तुम्हारी दोस्ती ने तुम्हे  ना जाने कैसे जुर्म की दुनिया से जोड़ दिया था |किशोर अवस्था आते आते तुम्हारा नाम कई  उपद्रवों  से जुड़ गया | कभी किसी लावारिस  मकान का कब्जा  दिलवाने में तो कभी किसी अन्य गुटबाजी में तुम्हारा नाम आता ही रहता था |  अनेक  बार तुम्हारा   पिता  पुलिस को तुम्हारी बेगुनाही का सूबूत देता बिलखता फिरता-- ऐसा सुना था मैंने  | गाँव भर में  तुम्हारे  चाल-चलन  के बिगड़ने की अफवाहे फैलती रहती थी पर तुम्हारी माँ हमेशा कहती  की तुम निर्दोष हो  | उसे हमेशा लगता रहा ,कि तुम सरल हो इस लिए अपना भला  बूरा समझ नहीं पाते | वह कहती -तुम्हे   तुम्हारे   शरारती दोस्तों के साथ खड़े होने   की सजा मिलती  है | वह तुम्हे खूब समझाती पर तुमने कभी  ध्यान  नहीं दिया   जब  शहर के  बाजार  में हुई गोलाबारी के सिलसिले में तुम्हे पुलिस ने धर दबोचा था तो वह गाँव भरके सामने सुबकती  सफाई देती रही ,कि तुम तो बंदूक चलना भी नहीं जानते  उसे  छूने से भी डरते हो -- गोली कैसे चला सकते हो ?   वह बस तुम्हे समझाती ही रही | कितना समझाया था उसने  तुम्हे  -चार साल पहले भी , जब उस दिन तुम अपने पिता  का दोपहर का खाना खेतों में पहुँचाने   के लिए तैयार खड़े थे कि किसी ने फोन पर तुम्हे फ़ौरन अपने पास पंहुचने के लिए कहा  और तुम खाने का सारा सामान छोड़कर अपनी साईकिल उठा गाँव के   दूसरे  सिरे  पर पंहुच गये थे जहाँ  दो  गुटों में लड़ाई की स्थिति इतनी बिगड़ गयी  कि उनमे से  एक लड़का बूरी  तरह चोटिल हो गया था और उसे पास के शहर  के बड़े अस्पताल ले जाना पड़ा था जहाँ पहुंचने से पहले उसने दम तोड़ दिया था | यूँ तो प्रत्यक्षदर्शी  कह रहे थे कि तुम तो लड़ाई खत्म  होने के बाद वहां पहुंचे थे पर विरोधी गुट ने सबको सबक   सिखाने ने मकसद से तुम्हारा भी नाम   आरोपियों  में लिखवा दिया था | तुमने उस दिन भी अपनी माँ की बात को  अनदेखा  किया और चले गये | तुम्हारा   पिता उस दिन बदहवास भूखा - प्यासा तुम्हारे पीछे पुलिस स्टेशन के चक्कर  लगाता   रहा  और  तुम्हे  निर्दोष  साबित करने का असफल प्रयास करता रहा ,पर तुम्हे सजा मिलने से ना रोक पाया |  चार  महीने पहले ही तुम चार साल की सजा काटकर जेल से बाहर आये थे |आकर   तुमने माता - पिता से वादा किया था कि तुम अब सचमुच सुधर जाओगे |तुम्हारे  पिता  ने तुम्हे अपने साथ खेती -बाडी करने के लिए राजी भी कर लिया था  | सुना है दोनों ने गुप चुप तुम्हारे लिए एक लडकी भी पसंद कर ली थी  ताकि जल्दी तुम्हारी शादी हो जाए | उन्हें पूरा विश्वास था अपनी  गृहस्थी में तुम जरुर सुधर जाओगे | तुम  फिर से किसी  महत्वकांक्षा के चलते कोई जुर्म ना कर बैठो इस  डर से   किसी तरह पैसे जुटाकर एक पुरानी कार भी तुम्हारे लिए खरीद कर दी थी | आसपास के लोग भी  विश्वास  नहीं कर पाते थे कि तुम्हारा जुर्म की दुनिया से कोई वास्ता है |तभी तो आज पूरा गाँव तुम्हारे पिता के साथ हो लिया है |उन्हें लग रहा है कि तुम देर - सवेर  सुधर ही जाते ,आखिर तुम्हे यूँ  मारने की जरूरत क्या थी ?  तुमने जुर्म की दुनिया को छोड़ दिया पर जुर्म की दुनिया ने तुम्हे नहीं छोड़ा| आज भी  तुम घर पर अपनी माँ से  कहकर गये थे  ,कि तुम दोपहर के समय आ जाओगे तुम्हारे लिए  पूरी और आलू की सब्जी बनाकर रखे |  तुम्हे आज शहर के न्यायालय में पिछले दिनों हुए एक कत्ल के   केस  में गवाही के लिए जाना था | तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए बहुत  डरी हुई थी | वह तुम्हे अकेले जाने देने के लिए राजी नहीं थी | उसने तुम्हे बहुत  समझाया कि एक -दो बड़े समझदार लोगों के साथ जाए पर तुम जिद्दी जो ठहरे !गाडी लेकर अकेले ही गवाही देने चल पड़े थे | घर से कुछ कदम की दूरी पर ही --घात   लगाकर बैठे  तुम्हारे  विरोधी गुट के लोग--गाडी रोक  तडातड  गोलियों से तुम्हे छलनी कर भाग निकले थे |तुमने वहीँ दम तोड़ दिया था || थोड़ी देर में ही जंगल की आग की तरह तुम्हारी  मौत की खबर पूरे गाँव में फ़ैल गयी थी | बदहवास पिता और बिलखती माँ  तुम्हारी ओर भागे |
 किसी समय तुम्हारे पिता तुम्हे समझाकर फ़ौज में भर्ती करवाना चाहते थे  | सोचो  !यदि आज तुम एक फौजी बनकर देश के लिए प्राण देते तो शहीद कहलाते | तुमसे पूछती  हूँ -- वो कौन सी व्यवस्था थी जिसे सुधारने के लिए तुमने जुर्म की दुनिया चुनी और  अपनी अनमोल जान गंवाई ? क्या मिला तुम्हे ?   तुम्हे  पता  भी नहीं  -- तुम्हारे घर - परिवार  की कितनी लड़कियां गाँव में कॉलेज होते हुए भी तुम्हारे कारण कॉलेज में ना पढ़ पाई और अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर उन्हें घर पर ही बैठना पड़ा था| माता - पिता को डर था कहीं  तुम्हारे विरोधी तुम्हारा बदला तुम्हारी मासूम बहनों से ना ले ले | तुम्हारे भाई और माता  -पिता  को अक्सर  तुम्हारे  कारण   समाज में  कितना शर्मिंदा होना पड़ा था |जरा सी बात में   उन्हें  तुम्हारे गैंगस्टर होने का ताना मिल जाता था, फिर भी उन्होंने तुम्हे अपने परिवार और सम्पति से बेदखल नहीं  लिया,  हालाँकि बहुत से लोगों ने अनगिन बार उन्हें ऐसा सुझाव  दिया था |दूसरी    तरफ  ज्यादातर लोग उनसे  हमदर्दी ही  रखते थे और उन्हें समझाते थे कि समय के अनुसार तुम खुद ही अपना भला -बूरा समझ जाओगे |    हर बार तुमने अपनी माँ की बात को अनदेखा किया  | तुम नहीं जानते अब वो कभी भी पूरी आलू की सब्जी के साथ ना खा सकेगी  | हमेशा  तुम्हारी याद  में  तडपती  जीवन गुजार देगी | भले ही दो बच्चे और थे उसके  पर  तुम ही  उसके मन के ज्यादा करीब थे |कितना चाहती थी तुम्हे और हर बार समझाती  थी |पर तुमने कभी उसकी बात सुनी ना मानी | क्यों थे इतने जिद्दी तुम ? सुनो !   काश !   तुम ये जिद छोड़ देते  और  कम से कम आज तो उसकी बात मान ही लेते !!!सोचते , पछताते मेरी आँखें  निर्झर  बन बरस उठी हैं |
-------------------------------------------------------------------------------

धन्यवाद   शब्दनगरी----------

रेणु जी बधाई हो!,

आपका लेख - (जिद -- लघुकथा -- ) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |

----------------------------------------------------------------------------

बुधवार, 23 मई 2018

गंगा रे ! तू बहती रहना -लेख --




भारत के परिचय में सबसे पहले शामिल होने वाले प्रतीकों में गंगा का नाम सर्वोपरि आता है | यूँ तो हर नदी की तरह गंगा भी एक विशाल जलधारा का नाम है पर भारतवासियों के लिए ये एक मात्र नदी बिलकुल नही है बल्कि प्रातः स्मरणीय प्रार्थना है | कौन सा  वेद है ,कौन सा पुराण हैं ,जहाँ गंगा  नही है | हर धर्मग्रन्थ में  गंगा को महत्व  मिला है और इसकी  महिमा का भरपूर बखान किया गया है |इसे  भूलोक  की ही नहीं अपितु तीनों लोकों   की जलधारा मान कर  त्रिपथगामिनी कह पुकारा गया अर्थात भूलोक के साथ -साथ स्वर्ग और पाताल लोक में भी इसका अस्तित्व माना गया |तुलसीदास जी ने भी गंगा को त्रिलोकपावनी सुरसरि कह पुकारा तो आधुनिक कवियों और साहित्यकारों ने भी गंगा को प्रेरणा मान का इस पर  अनगिन प्रशस्ति - गान रचे | देवों  के साथ दानवों और मानव ने इसे बराबर पूज्य माना |पुरातन धर्म ग्रन्थों की कहें ,तो गंगा को विष्णु जी के नख से उत्पन्न माना गया जो ब्रह्मा  जी के कमंडल से होती हुई शिव जी की  जटा में समा गई   थीँ    ,जहाँ से भगीरथ  के तप के फलस्वरूप उसे भूलोक पर उतरना पड़ा  क्योंकि  इसी  से भागीरथ के शापित पूर्वजों    को मोक्ष  मिलना था ,जो  ऋषि के शाप के कारण भस्म हो गये थे |   उन्हीं  की मुक्ति की आकांक्षा  संजोये  भगीरथ ने गंगा  को स्वर्ग से धरा पर  उतारने के लिए  कठोर तपस्या  की | उसी का अनुसरण करते हुए ये 
समस्त भारत वर्ष के लिए मोक्षदायिनी बन गई | युगों - युगों से बहती गंगा  ने  देवभूमि  भारत    की सभ्यता और संस्कृति को अपने वात्सल्य से पोषित किया है | 
विदित रहे गंगा को भारतवर्ष की सबसे बड़ी होने का गौरव प्राप्त है |इसकी कुल लंबाई 2525 किलोमीटर और इसका उद्गम स्थान हिमालय में गंगोत्री नामक ग्लेशियर है |  इसी की सहायक नदी  यमुना का उद्गम हिमालय का ही यमुनोत्री स्थान है    | ये इलाहाबाद में गंगा में समा जाती है | कहा जाता है ,कि इसी स्थान पर अप्रत्यक्ष रूप से तीसरी नदी सरस्वती भी गंगा में आ मिलती है ,जिससे इस स्थान को संगम नाम से  भी पुकारा गया है ! गंगा अपनी निरंतर यात्रा  में गतिमान रहकर, अनेक स्थानों से गुजरती हुई ,  अंत में गंगासागर नामक स्थान पर सागर में जा समा जाती है ,जिसकी यात्रा का हिन्दू  धर्म में बहुत महत्व माना  गया है | इस यात्रा  के  बारे में कहा गया है ---' सारे तीर्थ बार -बार , गंगासागर एक बार |''
गंगा  भारत की मात्र  नदी  नहीं हैं | इस के किनारों पर अनगिन सभ्यताएँ और संस्कृतियां पनपी और विकसित   हुईं  | विशाल जन समूह के लिए ये  नदी जीवनदायिनी है| इसके अविरल प्रवाह ने अपने किनारे बसी केवल मानव सभ्यता को ही पोषित नहीं किया, बल्कि अनेक प्रकार की वनस्पतियों , वन्य प्राणियों और जलचरों  के जीवन को भी संरक्षण दिया है | हिन्दू धर्म ग्रन्थों में गंगा को माँ और मोक्षदायिनी कह कर पुकारा गया | उसे सोम -तत्व युक्त अमृतधारा माना गया| सबसे बड़ी बात है , कि गंगा  को नारीरूपा और माँरूपा मानकर इस का  सम्मान किया गया और इसे पूज्य  माना गया    | हिमालय की पुत्री के रूप में उसे भी उसे नारीरूपा ही माना गया | महाभारत में भीष्मपितामह को गंगा- पुत्र होने का गौरव प्राप्त है | भगीरथ की तपस्या के फलस्वरूप धरती पर अवतरित हुई गंगा को भागीरथी के साथ -साथ विष्णुपदी और ब्रह्मा जी के कमंडल  से  प्रवाहित भक्ति और शक्ति कह कर पुकारा गया | नदियों में गंगा ने हमेशा प्रथमपूज्या देवी के रूप में सम्मान पाया है | कुम्भ और अर्ध कुम्भ के रूप में इसके किनारे मानव सभ्यता का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आयोजन होता है | गंगा के साथ यमुना को भी सूर्यपुत्री और यम की बहन के रूप में नारी- रूपा और देवी रुपा माना गया| इसका पौराणिक महत्व गंगा से कम नहींआंका गया | यहाँ तक कि भारत की एकता को भी गंगा के साथ यमुना के नाम पर गंगा -  ज़मनी  तहज़ीब कहकर बुलाया गया   |   दुःखद  है कि  वेद - पुराणों में सनातन काल से जिस अवधारणा को दर्शाया गया है-- उसे   अनदेखा किया गया|   मानव की अति महत्वकांक्षा के फलस्वरूप इन देहकल्पित नदियों को मात्र निर्जीव नदी समझ कर इसके अस्तित्व को खंडित किया गया | साल दर साल नदियों पर इन अत्याचारों का चलन बढ़ता गया | किनारों  पर औद्योगिक इकाइयों का स्थापन और कालांतर में गंदगी का मुंह इसकी अविरल निर्मल धारा की ओर मोड़ कर रही -सही कसर भी पूरी कर दी गई| जिसके फलस्वरूप आज गंगा अपने अस्तित्व  को खोने के कगार पर खडी है |कितना अच्छा होता -इसे उसी सनातन रूप में  समझकर इसके अस्तित्व को खंडित ना किया गया होता तो गंगा का सोम तत्व आज भी मानव मात्र के लिए अमृत ही रहता - मानव की गलतियों से जो विष  बनने   के समीप है | इसके किनारे  खडी वन संपदा  को नष्ट कर  मानव ने उतराखंड -त्रासदी जैसी भयावह   जल -विभीषिका को निमंत्रण दिया है  जिसमे अनगिन लोगों को अपनी जान गंवानी पडी थी |
  पिछले साल मार्च में मार्च को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने अपने ऐतहासिक निर्णय में गंगा - यमुना नदियों को भारत वर्ष की जीवित इकाई मानते हुए उन्हें लीगल स्टेटस प्रदान किया   और दोनों नदियों को किसी जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार दिया है | भारत के सांस्कृतिक , सामाजिक और धार्मिक जीवन में इस समाचार से अभूतपूर्व उत्साह का संचार हुआ है | सबसे बड़ी बात ये है, कि गंगा को अतिक्रमण मुक्त करने और उत्तराखंड - उत्तरप्रदेश के बीच नदियों का बंटवारा करने की ये जनहित याचिका एक मुस्लिम नागरिक द्वारा दाखिल की गई  थी , जिसने न्यूजीलैंड की एक नदी बांगक्यू का उदाहरण दिया , जिसे वहां की सरकार ने जीवित मानव के सामान अधिकार देकर जीवन दान दिया | इस फैसले के अनुसार गंगा -यमुना की और से मुकद्दमे सभी प्रकार की अदालतों में दाखिल किये जा सकते हैं - इनमे कूड़ा फैकने और अतिक्रमण करने पर मुकद्दमा किया जा सकता है | इसके  अलावा इस रोचक निर्णय में कहा गया कि गंगा - यमुना की गलतियों को नजर अंदाज ना करते हुए उन्हें भी अपने पानी से खेतों के बह जाने पर और आसपास गंदगी फैलाने का दोषी माना जाएगा अर्थात गंगा - यमुना को यदि अधिकारों के योग्य माना गया तो उनके कर्तव्य भी निर्धारित किये गए हैं | 
 यूँ तो गंगा स्नान के लिए हर दिन का अपना महत्व है पर कुछ विशेष अवसरों पर इसकी महिमा बढ़ जाती है | गंगा -दशहरा भी एक ऐसा ही पावन पर्व है जिस दिन  गंगा स्नान  का बहुत महत्व है | साथ में ये भी  कहा  जाता है, कि    इस दिन प्रत्येक नदी में गंगा का वास होता है | गंगा- स्नान के साथ  हमें    गंगा की मलिन होती धार और उसके मिटते अस्तित्व के प्रति चिंतित हो उसे बचाने और इसके  प्रदूषण  को दूर
 करने में अपना यथा संभव सहयोग देना चाहिए नहीं तो गंगा एक विस्मृत धारा  मात्र बन कर रह जायेगी   |कहीं ऐसा ना हो मानव मात्र की गलतियों से त्रिपथगामिनी मात्र एक कल्पना बन कर रह जाये | --

विशेष--- एक प्रार्थना हर उस नदी के लिए जो अपने क्षेत्र   की गंगा   है___
                  नदिया ! तू   रहना  जल से भरी -
                  सृष्टि  को रखना हरी भरी | 
                  झूमे हरियाले तरुवर   तेरे तट  - 
                  तेरी ममता की रहे  छाँव  गहरी!!
                  
                   देना मछली को  घर नदिया ,
                   प्यासे  ना रहे नभचर  नदिया  ;
                   अन्नपूर्णा बन - खेतों को -
                   अन्न - धन से देना भर नदिया !
                                 !


                  हों प्रवाह सदा अमर तेरे -
                 बहना अविराम - न होना क्लांत ,
                 कल्याणकारी  ,सृजनहारी तुम 
                 रहना शांत -ना होना आक्रांत ,!!
    
               पुण्य तट   तू सरस , सलिल ,
              जन कल्याणी अमृतधार -निर्मल ;
              संस्कृतियों  की पोषक तुम -
              तू ही सोमरस -पावन  गंगाजल !! 

सभी साहित्य प्रेमियों को अधिक मास  के विशेष गंगा -दशहरा  के पावन अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
--------------------------------------------------------------------------------


धन्यवाद शब्द नगरी --

रेणु जी बधाई हो!,

आपका लेख - (गंगा रे तू बहती रहना -लेख --) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 

शनिवार, 12 मई 2018

मेरी दादी -- मेरी माँ -------------सस्मरण -

आँखों  की  दिक्कत मुझे  भी  बचपन  स

Image result for दादी का चित्र

मेरे जन्म के पौने दो साल बाद  ही मेरे छोटे भाई का जन्म  हो गया था | उसी समय मेरी माँ की परेशानी  को देखते हुए  मेरी  दादी  ने मुझे  अपने सानिध्य में ले लिया |सही अर्थों में वे एक तरह से  मेरी  माँ ही बन गई | मैं कुछ बड़ी हुई तो वे मुझे बताती थी कि कैसे मैं जब बहुत छोटी थी तब उनसे  चिपटी  रहती थी |  कई बार तो उन्हें गाँव के लोगों की शव -यात्रा  में भी मुझे साथ ले जाना पड़ा |लोग उनपर   हँसते थे कि मेरे कारण उन्होंने अपना बुढ़ापा खराब कर  लिया , पर मेरे दादी ने ऐसी  बातों पर कभी ध्यान नही दिया  और  बहुत  ही स्नेह से   मेरा  पालन- पोषण किया | उनके स्नेह की अनेक बातें मुझे याद आती हैं  | उनमे से एक मैं सबके साथ साझा करना चाहती हूँ |
मुझे  आँखें दुखने की समस्या बचपन से है ,क्योंकि मेरी  आँखे  बहुत  संवेदनशील हैं |थोड़ी  सी  धूल -  भरी  आंधी  आई नहीं  कि  मेरी  आँखों   में इन्फेक्शन   हो  जाता  है  |      मुझे याद है एक बार जब मैं  शायद  दस   साल  की  हूँगी ,  मुझे     आँखों   में भयंकर  इन्फेक्शन  हुआ  | मुझे हर तीसरे दिन    डाक्टर   को   दिखाने  ले जाया जाता   पर बीमारी  ठीक  नहीं  हुई | कई  दवाइयां  बदली   गई  पर कोई आराम नहीं आया |   शाम   होते ही  आँखे  रड़कने  लग   जाती  और  चिपक  जाती | सारा  दिन  मुंह   छिपाए   अँधेरे  में  रहना  पड़ता ,  रोशनी   में   आते  ही  आँखे  जलने  लग  जाती |पीड़ा  से  मैं  रो  पड़ती  तो  आँखे  और  भी  ज्यादा   दुखती  और  लाल  हो  जाती | क्योकि उन दिनों गाँव में आँखों के लिए कोई बेहतर डाक्टर  नहीं था  सो मुझे शहर के डाक्टर को दिखाने की बात होने लगी  पर उससे पहले किसी  के  कहने  पर  एक  दिन  मेरी  दादी  मुझे गाँव  के  एक हकीम  के  पास  लेकर  गई | उन्होंने  दवा  कोई  न  दी  पर  एक घरेलू  इलाज  बताया  |मेरी  दादी  मुझे  घर  छोड़  कर  एक -दो  घंटे  बाद  घृतकुमारी के  दो  बड़े  टुकड़े ले कर   आई | शाम  को  मुझे   जल्दी   खिला-पिला  कर , .खुले  आँगन  में   खाट बिछाकर  लिटा  दिया |फिर  मेरे  पास बैठकर उन  टुकड़ों   को  बीच  मे से   चीर   कर चार  भाग   बना   लिए |दो  टुकड़ों  पर हल्दी  बुरककर , अपनी  पुरानी  सूती-धुली   धोती  को  फाड़कर  ,उसके कपडे  से-  मेरे  पैरों  पर  बांध   दिए |उसके  बाद बाक़ी के  बचे  दो  टुकड़ों  पर हल्दी  के  साथ  पिसी   फिटकरी  डाल  कर  मेरी  आंखों  पर  बांध  दिए |दुखती  आँखों  पर  इस  मसाले  से और  भी ज्यादा  पीड़ा  होने  लगी  और  मैंने चीखना शुरू कर दिया और  आँखों  पर  बंधी  पट्टियाँ  नोचनी  चाही पर  मेरी  दादी  ने  दृढ़ता  से मेरे हाथ पकड़  लिए  और  मुझे  डांट  दिया  --,मारने    की  धमकी  भी  दी |आसपास  लेटे  मेरे  भाई -बहन  हंसकर  मेरी  तकलीफ  और  बढ़ा  रहे  थे |घंटे  दो  घंटे  बाद  मेरी  पीड़ा  जरा सी  कम हुई  पर  फिर  भी  मेरी  दादी  सोई  नहीं , मेरे  हाथ  पकडे रात  के  दो बजे  से  ज्यादा  तक  बैठी  रही | मेरा  रोना  धोना  साथ  चलता  रहा |उसके  बाद शायद हकीम  जी  का  बताया  तय  वक़्त  खत्म  हो  गया सो  उन्होंने  मेरी  आँखों से  पट्टी  खोल  दी  ,  पर  उसके  बाद  मैंने  और  भी ज्यादा  चीखना  शुरू कर  दिया  क्योंकि अब  आंखों  से  कुछ  भी दिखना  बंद  हो गया |बस    अँधेरा था  ,  ना चाँद  था  ना  चांदनी | दादी  हलकी  सी  घबरा  गई  पर  कुछ   सोचकर  मुझे  झिड़क  कर एक दो थप्पड़ जमाकर  जैसे  -तैसे सुला  दिया |सुबह  मैं  देर  तक  सोई रही  जब   धूप   खूब  चढ़   आई  तब  मेरी  दादी  ने  मुझे  जगाया , वो रात  के  मेरे   ड्रामे  से  बड़ी  नाराज  थी  | उन्होंने  मेरी  बंद  आँखे  ही  हलके  गर्म  पानी  से धोई  और  जब  मैंने  आँखे  खोली   तो  मेरी  आँखों  में  ना  लालिमा  थी  न  चिपचिपाहट | मोती जैसी  उजली  आंखे  पाकर  मेरी  दादी  नाराजगी  भूल  गई  और  मुझे  गले  से  लगा  लिया |उसके  बाद  इतनी  भयंकर  आंखे शायद  कभी  नहीं  दुखी | बाद में ये  टोटका   बहुतों  ने   आजमाया   पर  किसी  को  एक  रात  में  इतना  चमत्कारी  आराम  नहीं  आया जितना  मुझे  आया  था |शायद  किसी  ने  इतने  स्नेह  और समर्पण  से   इतनी   मेहनत  नहीं  की, जितनी  मेरी  स्वर्गीय  दादी  ने  करी थी |वो  मेरी  आँखों के  दुखने  पर  मेरी  माँ  की  तरह  मेरे  साथ  रात -रात  भर  जगती थी|गर्मी  में   दोपहर  में  कभी  घर  से  बाहर  जाने  नहीं  देती  थी  |  उनका स्नेह    का मेरे ऊपर  बहुत  बड़ा  उपकार  है| आज मातृ- दिवस के अवसर पर मेरी दादी के अतुलनीय स्नेह को याद करते हुए उनकी अनमोल पुण्य स्मृतियों को शत - शत नमन करती हूँ 

बरसों पहले जब उनका स्वर्गवास  हुआ तब उनको समर्पित कुछ पंक्तियाँ लिखी थी --
बोलो माँ ! आज कहाँ तुम हो ,
 है अवरुद्ध कंठ ,सजल नयन 
बोलो ! माँ आज  कहाँ  तुम हो ?
कम्पित अंतर्मन -कर रहा प्रश्न -
बोलो माँ आज कहाँ तुम हो ? 
जिसमें  समाती  थी  धार 
मेरे दृग जल की, 
 खो गई वो  छाँव  
तेरे  आँचल की ; 
जीवन  रिक्त  स्नेहिल स्पर्श   बिन
बोलो ! माँ आज  कहाँ  तुम हो ?
हुआ आँगन वीरान माँ तुम बिन -
घर बना  मकान  माँ तुम बिन ,
रमा   बैठा  धूनी    यादों की  -
 मन श्मशान बना माँ तुम बिन -
किया   चिर शयन  -चली मूँद नयन -
बोलो ! माँ आज  कहाँ  तुम हो ?
तेरा  अनुपम उपहार ये तन -
साधिकार दिया बेहतर जीवन --  
 तेरी करुणा का मैं मूर्त रूप - 
तेरे स्नेहाशीष   संचित धन ;
ले प्राणों में थकन निभा  जग का चलन-
  बोलो माँ ! आज कहाँ तुम हो !!!!!!
चित्र --- गूगल से साभार ------
==========================
 पाठको  के लिए विशेष ---माँ को समर्पित शायद फ़िल्मी दुनिया का सबसे मधुर और भावपूर्ण गीत ---- मेरा आग्रह है जरुर सुने




---------------------------------------------------------------


|आँखों  की  दिक्कत मुझे  भी  बचपन  से मिटा    

रविवार, 6 मई 2018

साहित्य के गुरुदेव -- रवीन्द्रनाथटैगोर --- लेख --

  
भारतीय  साहित्य जगत में  पूजनीय  रविन्द्रनाथ टैगोर   ऐसी शख्सियत रहे जिन्होंने  अपनी असीम प्रतिभा   से  बहुत बड़े काल खंड को अपनी मौलिक  विचारधारा  और साहित्य कर्म से  ,सांस्कृतिक चेतना  के  मध्यम  पड़ रहे स्वर को  प्रखर  किया | उनका जन्म  साहित्य और संस्कृति   के उत्थान के शुभ संकेत लेकर आया |   जैसा कि कहा जाता है  साहित्य समाज का दर्पण  होता है रविन्द्रनाथ टैगोर के बारे में ये बात अक्षरशः सत्य है | उनके साहित्य में क्या नहीं है ?  हृदयस्पर्शी कवितायेँ ,  सुरों में बंधे गीत , मानवता    को समर्पित  आख्यान , प्रेम के अद्भुत रूप रचती गाथाएं और समाज और राष्ट्र की   अनमोल थाती अक्षुण  मानवीय  भावनाओं से ओत प्रोत दिव्य और अलौकिक गान ! उनके  बारे  में कुछ भी कहने में कोई लेखनी सक्षम नहीं | उन्होंने अपनी लेखनी से मानवता और  धरती को अपनी दिव्य  आभा से भाव -विभोर कर   दिया  | उनकी प्रत्येक रचना में कोई ना कोई सन्देश छिपा है | उन्होंने    ना जाने कितने मनों की अनकही कहानियों को शब्दों में पिरो रचनाओं में ढाला | शायद अत्यंत बचपन में अपनी माँ   और युवावस्था में अपनी अन्तरंग मित्र  और  हम उम्र भाभी को खोना उनके लिए अत्यंत मर्मान्तक रहा जिसने उन्हें पर -पीड़ा से जोड़ दिया | कालान्तर में अपने दो बच्चो और पत्नी   की मौत को भी  असमय सहना उनकी नियति रही |
वे ऐसे  विरल  व्यक्तित्व थे जिन के  अवतरण  की  मानवता  राह  तकती है | प्राय  समीक्षक कहते हैं कि लेखन से समाज या राष्ट्रों में कोई बहुत बड़ा  परिवर्तन नहीं आता  इनके बदलने के पीछे बहुत तरह के तर्क  हो सकते हैं अकेला साहित्य नहीं !! पर  टैगोर का लेखन  के बारे में ये बात अपवाद है  | उनका लेखन मात्र    लेखन  नहीं था  सामाजिक   और सांकृतिक चेतना का शंखनाद था | उनके विचारों ने आमजनों के साथ प्रबुद्धजनों के ऊपर  भी बहुत प्रभाव डाला |  उनका जन्म  कोलकाता  में 7 मई 1861 में  एक अत्यंत  प्रसिद्ध और सम्पन परिवार में हुआ उनके पिताजी आदरणीय  देवेन्द्रनाथ टैगोर ब्रहम समाज के नेता थे |कई भाई बहनों में  रवीन्द्रनाथ  सबसे छोटे और बहुमुखीप्रतिभा संपन  थे  | उनकी प्रतिभा को देख उनके पिताजी उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे पर वे इस उद्देश्य से इंग्लॅण्ड जाकर भी  बिना  बैरिस्टर बने लौटआये क्योकि उन्हें केवल साहित्य में रूचि थी जिसके लक्षण उनमे बचपन से लेखन के माध्यम से दिखाई  देने लग गये थे | बहुत  छोटी उम्र से ही वे कविताये और कहानी लिखने लगे थे| वे अनन्य प्रकृति प्रेमी और अन्तर्मुखी  थे |शिक्षा के विषय में उनके विचार बहुत ही स्पष्ट थे | वे औपचरिक शिक्षा    के खिलाफ थे  | उनका मानना था कि शिक्षा जिज्ञासा का विषय है साधन का नहीं अतः प्रत्येक विद्यार्थी को प्राकृतिक  माहौल में अपनी  रूचि के अनुसार पढाई करनी चाहिए |  उनकी ये बात आज   अत्यंत  प्रासंगिक है और आगे भी प्रसंगिक रहेगी | | रविन्द्र नाथ को उनकी बहुमुखी प्रतिभा और शिक्षा , साहित्य संस्कृति  इत्यादि  के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए   सम्मान- स्वरूप ' गुरुदेव '  कहकर पुकारा गया | इसके अलावा उन्हें रवीन्द्रनाथ ठाकुर  भी कहा जाता  था |उन्होंने अपने अप्रितम लेखन  के माध्यम से  भारतीय संस्कृति  के उत्कृष्टतम रूप से   विश्व  का परिचय करवाया |एक कहानीकार , गीतकार , नाटककार , निबंधकार   ,  चित्रकार और संगीतकार आदि के रूप  में अपने मौलिक सृजन से   सभी को विस्मय से भर दिया | उनके सृजन में दिव्यता और  सरलता  दोनों है | वे अपने विचारों को  स्पष्टता से कह पाने में समर्थ  थे |  महात्मा गाँधी के राष्टवादी  विचारों के  प्रतिउत्तर  में उन्होंने मानवतावादी  विचारों  को अधिक महत्व दिया | फिर भी वे दोनों ही एक दूसरे  का बहुत सम्मान करते थे | कहा जाता है कि गुरुदेव ने ही गाँधी जी को -- महात्मा --  शब्द से विभूषित किया  था  | वे    प्रखर समाज  हितैषी  थे  | अपना  सबसे बड़ा योगदान उन्होंने शान्तिनिकेतन  के रूप में  राष्ट्र  को दिया जहाँ पढ़ना आज भी गौरव का विषय समझा जाता है |जिसके लिए धन उगाहने के लिए उन्हें जगह - जगह नाटकों का मंचन करना पड़ा |   | वे एक मात्र  ऐसे  कवि है  जिनकी दो - दो रचनाओं को दो देशो का राष्ट्र गान बनने का गौरव मिला जिनमे से एक '' जन -गन - मन ''  भारत के लिए तो दूसरा 'ओमार सोनार बांग्ला'''  बँगला देश  का राष्ट्र गान बनी | वे एशिया  के   साहित्य के पहले नोबल  पुरूस्कार  विजेता बने जो उन्हें उनकी  कृति '' गीतांजलि '' पर मिला | भारत में तो ये अब तक का एक मात्र नोबल पुरस्कार है और अनंत गौरव का विषय है | अंग्रेजी सरकार ने उन्हें 1915 में प्रतिष्ठित 'नाईटहुड ''पुरस्कार  भी प्रदान किया था  जिसे उन्होंने जलियांवाला हत्याकांड के विरोध में वापिस कर दिया  और  बड़े ही चेतावनी भरे शब्दों में उन्होंने  ब्रिटिश  सरकार से भारत की आजादी   की मांग की |उन्होंने आजादी की क्रांति को समर्पित कई रचनाओं से आजादी की लौ को और प्रखर करने में अपना अहम योगदान किया | उन्होंने यूरोप के उपनिवेशवाद की आलोचना की और भारत की आजादी की विचारधारा का प्रबल समर्थन किया | हलाकि वे सक्रिय  राजनीति से दूर रहे पर फिर भी अपने सृजन के माध्यम से उन्होंने आजादी  में अपना अतुलनीय योगदान दिया | अफ़सोस ये रहा कि वे अपने जीवन काल में स्वतंत्र भारत का सूर्य उदित होता ना देख पाए | 
 वे जीवन के अनंत यायावर और प्रयोगवादी व्यक्ति थे |जीवन के अंतिम दिनों में उनका भावुक  मन  चित्रकारी से जा जुडा जिसके माध्यम से उन्होंने जीवन के अनेक मर्मान्तक चित्र रचे | गीतों की कहें तो उनके लगभग 2230 राग - रागिनियों में बंधे गीत आज भी  बांग्ला  संस्कृति  का अभिन्न अंग हैं जिन्हें '' रविन्द्र संगीत ''  के नाम से जाना जाता है | अपने जीवनकाल में उन्होंने  अनेक साहित्यिक कृतियों का सृजन किया जिन्होंने अपार  प्रतिष्ठा और लोकप्रियता पाई |इनमे गीतांजली . चोखेर बाली , गोरा , मानसी  इत्यादि  प्रमुख हैं 

  प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही  बन्धनों  में बंधा जीवनयापन करता है अपने लेखन के माध्यम से उन्होंने व्यक्ति  को निर्भय रहने का आह्वान किया | उन्होंने अपनी रचनाओं और गीतों में ऐसे संसार की कल्पना की जहाँ कोई  डर, संदेह ना व्यापता हो  | मन भय की परिधियों से परे  निर्भय होकर जिए |'एकला चलो रे' का मन्त्र देते हुए  अपनी विश्व विख्यात रचना ----where  the  mind  is without fear--में वे कहते हैं 

जहाँ  मन निर्भय हो, हो शीश उच्च अटल,
स्वतंत्र ज्ञान जहाँ हो,
जहाँ सकरी घरेलू दीवारों से छोटे-छोटे टुकड़ों में ,
बटती दुनिया न हो,
जहाँ शब्द सत्य की गहराई से बोले जाते हों,
जहाँ अथक प्रयासों से पूर्ण निपुणता हासिल हो,
जहाँ मृत आदत के मृत मरुस्थल में,
तर्कों की स्पष्ट धारा ने  अपना मार्ग न खोया हो,
जहाँ निरंतर विकसित होते कर्म एवं भाव,
हमारे ही आधीन हों,
हे ईश्वर! ऐसी आज़ादी के स्वर्ग में मेरे राष्ट्र का उदय हो।

[अनुवाद -- गूगल से साभार ]

अपने जीवन के अंतिम चार वर्षों में   अत्यंत शारीरिक कष्टों से जूझते हुए अंत में  7अगस्त  1941 को कोलकाता में ही  इस  महान युगपुरुष का  देहावसान हो गया जिसके साथ ही साहित्य के एक स्वर्णिम युग का भी अवसान हुआ || पर उनका अमर साहित्य  उनके अटल व्यक्तित्व का परिचायक है और सदा रहेगा |  
चित्र ०० गूगल से साभार --------------------------------------------------------

  • गूगल से साभार अनमोल टिप्पणी -- 
  • कुसुम कोठारी जी
  • रेणू बहन आज गुरुदेव के स्मृति दिवस पर आपने बहुत सुंदर ढंग से उनकी गौरव गाथा को प्रसारित किया धारा प्रवाहता लिये जीवन वृतांत जानकारी बढ़ाता आपके इस लेख के लिये हृदय से साधुवाद।

    गुरुदेव की रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं. भारत का 'जन गण मन' और बांग्लादेश का 'आमार सोनार बांग्ला' ये दोनो उन्हीं की रचनाएं हैं. वहीं श्रीलंका का राष्ट्रगीत 'श्रीलंका मथा' भी टैगोर की कविताओं की प्रेरणा से बना है. इसे लिखने वाले आनंद समरकून शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर के पास रहे थे और उन्होंने कहा था कि वे टैगोर स्कूल ऑफ पोएट्री से बेहद प्रभावित थे। 
     --------------------------------------------------------------------------------------------------------------
    27w
  •  

ब्लॉगिंग का एक साल ---------आभार लेख

 निरंतर  प्रवाहमान होते अपने अनेक पड़ावों से गुजरता - जीवन में अनेक खट्टी -   समय निरंतर प्रवहमान होते हुए अपने अनेक पड़ावों से गुजरता हुआ - ...