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बुधवार, 23 मई 2018

गंगा रे ! तू बहती रहना -लेख --




भारत के परिचय में सबसे पहले शामिल होने वाले प्रतीकों में गंगा का नाम सर्वोपरि आता है | यूँ तो हर नदी की तरह गंगा भी एक विशाल जलधारा का नाम है पर भारतवासियों के लिए ये एक मात्र नदी बिलकुल नही है बल्कि प्रातः स्मरणीय प्रार्थना है | कौन सा  वेद है ,कौन सा पुराण हैं ,जहाँ गंगा  नही है | हर धर्मग्रन्थ में  गंगा को महत्व  मिला है और इसकी  महिमा का भरपूर बखान किया गया है |इसे  भूलोक  की ही नहीं अपितु तीनों लोकों   की जलधारा मान कर  त्रिपथगामिनी कह पुकारा गया अर्थात भूलोक के साथ -साथ स्वर्ग और पाताल लोक में भी इसका अस्तित्व माना गया |तुलसीदास जी ने भी गंगा को त्रिलोकपावनी सुरसरि कह पुकारा तो आधुनिक कवियों और साहित्यकारों ने भी गंगा को प्रेरणा मान का इस पर  अनगिन प्रशस्ति - गान रचे | देवों  के साथ दानवों और मानव ने इसे बराबर पूज्य माना |पुरातन धर्म ग्रन्थों की कहें ,तो गंगा को विष्णु जी के नख से उत्पन्न माना गया जो ब्रह्मा  जी के कमंडल से होती हुई शिव जी की  जटा में समा गई   थीँ    ,जहाँ से भगीरथ  के तप के फलस्वरूप उसे भूलोक पर उतरना पड़ा  क्योंकि  इसी  से भागीरथ के शापित पूर्वजों    को मोक्ष  मिलना था ,जो  ऋषि के शाप के कारण भस्म हो गये थे |   उन्हीं  की मुक्ति की आकांक्षा  संजोये  भगीरथ ने गंगा  को स्वर्ग से धरा पर  उतारने के लिए  कठोर तपस्या  की | उसी का अनुसरण करते हुए ये 
समस्त भारत वर्ष के लिए मोक्षदायिनी बन गई | युगों - युगों से बहती गंगा  ने  देवभूमि  भारत    की सभ्यता और संस्कृति को अपने वात्सल्य से पोषित किया है | 
विदित रहे गंगा को भारतवर्ष की सबसे बड़ी होने का गौरव प्राप्त है |इसकी कुल लंबाई 2525 किलोमीटर और इसका उद्गम स्थान हिमालय में गंगोत्री नामक ग्लेशियर है |  इसी की सहायक नदी  यमुना का उद्गम हिमालय का ही यमुनोत्री स्थान है    | ये इलाहाबाद में गंगा में समा जाती है | कहा जाता है ,कि इसी स्थान पर अप्रत्यक्ष रूप से तीसरी नदी सरस्वती भी गंगा में आ मिलती है ,जिससे इस स्थान को संगम नाम से  भी पुकारा गया है ! गंगा अपनी निरंतर यात्रा  में गतिमान रहकर, अनेक स्थानों से गुजरती हुई ,  अंत में गंगासागर नामक स्थान पर सागर में जा समा जाती है ,जिसकी यात्रा का हिन्दू  धर्म में बहुत महत्व माना  गया है | इस यात्रा  के  बारे में कहा गया है ---' सारे तीर्थ बार -बार , गंगासागर एक बार |''
गंगा  भारत की मात्र  नदी  नहीं हैं | इस के किनारों पर अनगिन सभ्यताएँ और संस्कृतियां पनपी और विकसित   हुईं  | विशाल जन समूह के लिए ये  नदी जीवनदायिनी है| इसके अविरल प्रवाह ने अपने किनारे बसी केवल मानव सभ्यता को ही पोषित नहीं किया, बल्कि अनेक प्रकार की वनस्पतियों , वन्य प्राणियों और जलचरों  के जीवन को भी संरक्षण दिया है | हिन्दू धर्म ग्रन्थों में गंगा को माँ और मोक्षदायिनी कह कर पुकारा गया | उसे सोम -तत्व युक्त अमृतधारा माना गया| सबसे बड़ी बात है , कि गंगा  को नारीरूपा और माँरूपा मानकर इस का  सम्मान किया गया और इसे पूज्य  माना गया    | हिमालय की पुत्री के रूप में उसे भी उसे नारीरूपा ही माना गया | महाभारत में भीष्मपितामह को गंगा- पुत्र होने का गौरव प्राप्त है | भगीरथ की तपस्या के फलस्वरूप धरती पर अवतरित हुई गंगा को भागीरथी के साथ -साथ विष्णुपदी और ब्रह्मा जी के कमंडल  से  प्रवाहित भक्ति और शक्ति कह कर पुकारा गया | नदियों में गंगा ने हमेशा प्रथमपूज्या देवी के रूप में सम्मान पाया है | कुम्भ और अर्ध कुम्भ के रूप में इसके किनारे मानव सभ्यता का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आयोजन होता है | गंगा के साथ यमुना को भी सूर्यपुत्री और यम की बहन के रूप में नारी- रूपा और देवी रुपा माना गया| इसका पौराणिक महत्व गंगा से कम नहींआंका गया | यहाँ तक कि भारत की एकता को भी गंगा के साथ यमुना के नाम पर गंगा -  ज़मनी  तहज़ीब कहकर बुलाया गया   |   दुःखद  है कि  वेद - पुराणों में सनातन काल से जिस अवधारणा को दर्शाया गया है-- उसे   अनदेखा किया गया|   मानव की अति महत्वकांक्षा के फलस्वरूप इन देहकल्पित नदियों को मात्र निर्जीव नदी समझ कर इसके अस्तित्व को खंडित किया गया | साल दर साल नदियों पर इन अत्याचारों का चलन बढ़ता गया | किनारों  पर औद्योगिक इकाइयों का स्थापन और कालांतर में गंदगी का मुंह इसकी अविरल निर्मल धारा की ओर मोड़ कर रही -सही कसर भी पूरी कर दी गई| जिसके फलस्वरूप आज गंगा अपने अस्तित्व  को खोने के कगार पर खडी है |कितना अच्छा होता -इसे उसी सनातन रूप में  समझकर इसके अस्तित्व को खंडित ना किया गया होता तो गंगा का सोम तत्व आज भी मानव मात्र के लिए अमृत ही रहता - मानव की गलतियों से जो विष  बनने   के समीप है | इसके किनारे  खडी वन संपदा  को नष्ट कर  मानव ने उतराखंड -त्रासदी जैसी भयावह   जल -विभीषिका को निमंत्रण दिया है  जिसमे अनगिन लोगों को अपनी जान गंवानी पडी थी |
  पिछले साल मार्च में मार्च को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने अपने ऐतहासिक निर्णय में गंगा - यमुना नदियों को भारत वर्ष की जीवित इकाई मानते हुए उन्हें लीगल स्टेटस प्रदान किया   और दोनों नदियों को किसी जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार दिया है | भारत के सांस्कृतिक , सामाजिक और धार्मिक जीवन में इस समाचार से अभूतपूर्व उत्साह का संचार हुआ है | सबसे बड़ी बात ये है, कि गंगा को अतिक्रमण मुक्त करने और उत्तराखंड - उत्तरप्रदेश के बीच नदियों का बंटवारा करने की ये जनहित याचिका एक मुस्लिम नागरिक द्वारा दाखिल की गई  थी , जिसने न्यूजीलैंड की एक नदी बांगक्यू का उदाहरण दिया , जिसे वहां की सरकार ने जीवित मानव के सामान अधिकार देकर जीवन दान दिया | इस फैसले के अनुसार गंगा -यमुना की और से मुकद्दमे सभी प्रकार की अदालतों में दाखिल किये जा सकते हैं - इनमे कूड़ा फैकने और अतिक्रमण करने पर मुकद्दमा किया जा सकता है | इसके  अलावा इस रोचक निर्णय में कहा गया कि गंगा - यमुना की गलतियों को नजर अंदाज ना करते हुए उन्हें भी अपने पानी से खेतों के बह जाने पर और आसपास गंदगी फैलाने का दोषी माना जाएगा अर्थात गंगा - यमुना को यदि अधिकारों के योग्य माना गया तो उनके कर्तव्य भी निर्धारित किये गए हैं | 
 यूँ तो गंगा स्नान के लिए हर दिन का अपना महत्व है पर कुछ विशेष अवसरों पर इसकी महिमा बढ़ जाती है | गंगा -दशहरा भी एक ऐसा ही पावन पर्व है जिस दिन  गंगा स्नान  का बहुत महत्व है | साथ में ये भी  कहा  जाता है, कि    इस दिन प्रत्येक नदी में गंगा का वास होता है | गंगा- स्नान के साथ  हमें    गंगा की मलिन होती धार और उसके मिटते अस्तित्व के प्रति चिंतित हो उसे बचाने और इसके  प्रदूषण  को दूर
 करने में अपना यथा संभव सहयोग देना चाहिए नहीं तो गंगा एक विस्मृत धारा  मात्र बन कर रह जायेगी   |कहीं ऐसा ना हो मानव मात्र की गलतियों से त्रिपथगामिनी मात्र एक कल्पना बन कर रह जाये | --

विशेष--- एक प्रार्थना हर उस नदी के लिए जो अपने क्षेत्र   की गंगा   है___
                  नदिया ! तू   रहना  जल से भरी -
                  सृष्टि  को रखना हरी भरी | 
                  झूमे हरियाले तरुवर   तेरे तट  - 
                  तेरी ममता की रहे  छाँव  गहरी!!
                  
                   देना मछली को  घर नदिया ,
                   प्यासे  ना रहे नभचर  नदिया  ;
                   अन्नपूर्णा बन - खेतों को -
                   अन्न - धन से देना भर नदिया !
                                 !


                  हों प्रवाह सदा अमर तेरे -
                 बहना अविराम - न होना क्लांत ,
                 कल्याणकारी  ,सृजनहारी तुम 
                 रहना शांत -ना होना आक्रांत ,!!
    
               पुण्य तट   तू सरस , सलिल ,
              जन कल्याणी अमृतधार -निर्मल ;
              संस्कृतियों  की पोषक तुम -
              तू ही सोमरस -पावन  गंगाजल !! 

सभी साहित्य प्रेमियों को अधिक मास  के विशेष गंगा -दशहरा  के पावन अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
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धन्यवाद शब्द नगरी --

रेणु जी बधाई हो!,

आपका लेख - (गंगा रे तू बहती रहना -लेख --) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 

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