
विश्व डाक दिवस -- आज विश्व डाक दिवस है | इस दिन के बहाने से चिट्ठियों के उस भूले बिसरे संसार में झाँकने का मन हो आया है ,जो अब गौरवशाली अतीत बन गया है | भारत में राजा रजवाड़ों के समय में संदेशों का आदान - प्रदान विश्वसनीय सन्देशवाहकों के माध्यम से होता था जो पैदल या घोड़ों आदि के माध्यम से अपनी सेवाएं देते थे | लेकिन ब्रिटिश राज में 1864 में इस व्यवस्था को सुव्यवस्थित ढंग से शुरू करने का प्रावधान किया गया और डाक विभाग की स्थापना हुई
a | आजादी से पहले और आजादी के बाद के ढेढ़ सौ से भी ज्यादा सालों में जनमानस से जुड़कर डाक विभाग ने , लोंगों का बहुत ही सम्मान और स्नेह अर्जित किया है, इसका कारण रहा,डाकविभाग ने समय के अनुसार लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन करने से परहेज नहीं किया , जैसे कल के कागजी इतिहास को छोड़कर डाक विभाग भी डिजिटल होने की पूर्णता के पथ पर अग्रसर है | पर पत्रों का वह स्वर्णिम इतिहास भुलाये नहीं भूलता |
पत्र भावनाओं का अहम दस्तावेज -- पत्र सदियों से हर आम और खास के लिए अपने जज्बात जाहिर करने का सर्वोत्तम माध्यम रहे है | किस्से कहानियों में सुना जाता है , कि पुराने समय में इंसानों के साथ -साथ कबूतर भी संदेश इधर -उधर पहुँचाने का काम किया करते थे| पत्र किसी भी विषय पर हो सकते हैं, पर सदैव ज्यादा महत्व निजी पत्रों का ही रहा मैं इन्हें आत्मीयता के सघन उच्छ्वास के नाम से पुकारना चाहूंगी क्योकि निजी पत्र लेखन में पत्र -लेखक ने सदैव ही अपने निंतात मौलिक रूप का परिचय दिया | उसने वो लिखा जो उसने लिखना चाहा , बिना लागलपेट के अपनों के प्रति वो जताया , जो मौखिक रूप में कहना कभी संभव ना होता |साहित्य में भी पत्रलेखन को अहम विधा मानकर उसे सर्वोच्च स्थान दिया गया|
पत्र पर कविता और शायरी खूब हुई | अनेक साहित्यकारों के पत्रों को साहित्य में वो स्थान मिला जो उनकी रचनाओं को भी नहीं मिला होगा | कई साहित्य -साधकों ने इन पत्रों को संजोने और संग्रहित करने का स्तुत्य प्रयास किया और इस अनमोल थाती को आने वाली पीढ़ियों के लिए संभाल कर रखा | हिंदी की कहें तो हिंदी साहित्य में आदरणीय बनारसीदासचतुर्वेदी जी ने उत्तम रचनाकारों के पत्रों को सग्रहित करने के लिए बाक़ायदा '' पत्रलेखन मंडल '' की स्थापना की जिसमे अन्य लोगों केअलावा हिंदी के सशक्त हस्ताक्षर माननीय शिवपूजन सहाय जी भी शामिल थे | उन्होंने विभिन्न साहित्यकारों के पत्रों को संभालकर रखने और छपवाने में अहम् भूमिका अदा की | उर्दू साहित्य के पुरोधा शायर मिर्जा ग़ालिब , जिनका पूरा नाम मिर्जा असदुल्लाह बेग खान था , के पत्र उर्दू साहित्य के अनमोल दस्तावेज माने जाते हैं | उनके बारे में कहा जाता है , कि शायर के रूप में प्रसिद्ध ना भी होते तो उनके पत्र ही उन्हें उर्दू साहित्य में अटल स्थान दिलाने के लिए पर्याप्त थे | इन खतों में उनके लेखन का उत्कृष्ट रूप नजर आता है , जिनमें अनेक अमर आशार इन्ही पत्रों के माध्यम से कहे गये| विशेष लोगों के साथ साथ आम लोगों ने भी सदियों पत्र लिखने ओर पढने के आनन्द को भरपूर जिया |
मोबाइल ने बदला परिदृश्य ------- जब तक आम जीवन में सोशल मीडिया की घुसपैठ नहीं हुई थी - पत्रों ने भावनाओं के अनगिन रंगों से जनमानस को खूब सराबोर किया | तेजी से बदलते समय में भले ही आज हर शहर और गाँव के प्रमुख कोने पर मौन सा खड़ा डाक - विभाग का लाल डिब्बा अप्रासंगिक हो गया हो पर किसी समय में इसका बहुत महत्व था | यदा - कदा इसका ताला खोलते ही डाक कर्मचारी की सांसे फूल जाती होंगी -- इतनी डाक के रूप में अनगिन चिट्ठियाँ सँभालते || डाक विभाग के इस अनथक कर्मी की भूमिका सीमा पर डटे जवान और खेत में जुटे किसान से किसी भी तरह कम नहीं थी | ठिठुरती ठंड हो या चिलचिलाती गर्मी किसे भी मौसम में इसका काम था लोगों तक समय पर संदेश पहुँचाना
विशेष लोगों के निजी पत्र भी रहे उल्लेखनीय -- महात्मा गाँधी जी के और लोगों के साथ अपनी पत्नी कस्तूरबा गाँधी जी को लिखे निजी पत्र बहुत प्रसिद्ध हुए तो जवाहरलाल नेहरू जी के अपनी सुपुत्री इंदिरा गाँधी के नाम लिखे पत्रों के माध्यम से हम उन्हें राजनेता की छवि से बिलकुल अलग एक आम पिता के रूप में जान सकते हैं, कि उनकी अपनी सुपुत्री से क्या अपेक्षाएं थी और वह उन्हें सही मार्ग पर चलने के लिए कैसे प्रेरित करना चाहते थे | इनमे से ज्यादातर पत्र नैनी जेल से लिखे गये | ये पत्र मूलतः अंग्रेजी में थे |ये जानना रोचक रहेगा कि इन पत्रों का हिन्दी में अनुवाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने किया था |स्वामी विवेकानन्द के पत्र भारत वर्ष की सांस्कृतिक धरोहर हैं |
जुडी अनेक यादें --- मुझे याद है मेरी माँ ने पांचवी या छठी कक्षा के दौरान , मुझे मेरी बुआ जी के पत्र के प्रतिउत्तर में पहली बार पत्र लिखने के लिए प्रेरित किया | बुआ जी ने भी उस अनगढ़ पत्र का उत्तर अत्यंत स्नेह से दिया | उसके बाद घर की ओर से पत्राचार तकरीबन मेरे जिम्मे हो गया | घर के अलावा - हमारे गली पडोस में जिन लडकियों की घर में छोटी बहन नहीं थी - उनकी शादी के बाद उनके लिए पत्र लिखने का सौभाग्य भी मुझे ही मिलता रहा | मुझे याद है बचपन में हमारी तीनों बुआ के पत्रों की हम किस तरह राह देखा करते थे करते थे - जिनमे से दो बुआ की अत्यंत सुंदर लिखाई से ही गाँव के डाकिया चाचा हमसे पहले ही बता देते थे कि हमारी कौन सी बुआ का पत्र आया है | मेरे आंठ्वी कक्षा और छोटे भाई के पांचवी कक्षा में उत्तम परिणाम के साथ वजीफा अर्जित करने पर हमारी छोटी बुआ जी ने बम्बई से भाई के लिए हाथ से बुना स्वेटर और मेरे लिए अलार्म घड़ी भेजी थी | उसका मुकाबला अमेजोन और फ्लिप्कार्ट से खरीदी गयी महंगी चींजे कभी नहीं कर कर सकती |याद आता है मेरी दादी के नाम आया उनकी माँ द्वारा लिखा गया पत्र , जिसे वे अपने कीमती सामान की तरह हाथी दांत की नक्काशी वाली अपनी छोटी सी संदूकडी में बड़े जतन से संभालकर रखती थी | उनके दुनिया से जाने के बाद ये अनमोल थाती मेरे पास सुरक्षित है |
हर नववर्ष और दीपावली पर रंग बिरंगे कार्डों का वो रोमांचक सतरंगी संसार स्मृतियों से कहाँ ओझल हो पाता है ! कितनी उमंग से अपनी बुआओं , ननिहाल और सहेलियों के लिए अच्छे से अच्छा शुभकामना संदेश वाला कार्ड ढूंढने की वो अनथक कवायद इतनी रोमांचक थी कि उसके आगे मोबाइल व्हात्ट्स अप्प और इंटरनेट के ईमेल संदेश बिलकुल फीके हैं -- क्योकि वे कार्ड और शुभकामना संदेश कुछ अपनों के लिये होते थे, जिनमे भावनाएं निर्झर सी बह एक मन से दूसरे मन में अनायास प्रवेश कर जाती थी , जबकि आज हर त्यौहार और नववर्ष के संदेश मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गये हैं | भले इनमे से कुछ बहुत ही आत्मीयता के साथ भेजे जाते हों , पर उनमे वो गर्मजोशी नहीं है | डाकिया को शुभसमाचार लाने पर पुरस्कृत करने की उत्तम परम्परा भी अलोप हो चुकी है|
बदली डाकिये की भूमिका --- बदलते समय में अब कोई पलक पांवड़े बिछाकर डाकिये का इन्तजार नहीं करता | उसकी बदली भूमिका में , उसकी जगह क़ानूनी नोटिस , नौकरी से संबधित पत्र अथवा कोई जरूरी सामान का कोरियर इत्यादि पंहुचाने के लिए सीमित हो गई है | भावनाओं से भरे
पत्रों का भरा डाकिये का थैला अब बीते समय की बात हुई | नीले रंग के अंतर्देशीय पत्र , पीलेरंग के लिफाफे और रंगीन बॉर्डर से सजे एरोग्राम अब कहीं देखने में नजर नहीं आते | कोने से फटा पोस्टकार्ड अब किसी के आकस्मिक निधन का दुखद समाचार लिए डराने नही आता -- अब तो किसी दुखद घटना का समाचार तुर्त- फुर्त फोन से ही मिल जाता है |
इस परम स्नेही डाकिया के गौरवशाली अतीत को स्मरण करते हुए हमारे प्रबुद्ध सहयोगी रचनाकार आदरणीय रविन्द्र सिंह यादव जी ने अत्यंत भावपूर्ण कविता लिखी है जिसकी कुछ पंक्तियाँ साभार लिखना चाहूंगी --
कभी बेरंग खत भी आता था
पाने वाला ख़ुशी से दाम चुकाता था
डाकिया सबसे प्यारा मुलाजिम होता था
राज़, अरमान , राहत . दर्द , रिश्तों की फ़सलें बोता था
डाकिया चिट्ठी तार पार्सल रजिस्ट्री मनीआर्डर लाता था
डाकिया कहीं ख़ुशी कहीं गम के सागर लाता था
आज भी डाकिया आता है
राहत कम आफत ज्यादा लाता है
पोस्टकार्ड नहीं रजिस्ट्री ज्यादा लाता है
खुशियों का पिटारा नहीं
थैले में क़ानूनी नोटिस लाता है |
फिल्मों में मिला अहम स्थान --- फिल्मों में भी डाकिये को हमेशा सर माथे पर बिठाकर उसपर अनगिन गाने रचे गये , तो खत को भी फ़िल्मी गीतों में महत्वपूर्ण स्थान मिला'| पलकों की छाँव में '' के मासूम सरल , निश्छल डाकिये को कौन भुला पायेगा जिसके '' डाकिया डाक लाया '' गाकर अलबेले , मस्ताने डाक बाँटने के अंदाज ने हर सिने प्रेमी के मन में अक्षुण स्थान बनाया , वहीँ '' नाम '' फिल्म के नायक के साथ अनगिन अप्रवासी भारतियों को अपनी मातृभूमि का स्मरण कराता गीत -- चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है '' हिंदी सिनेमा के सदाबहार गीतों में शुमार किया जाता है | सरस्वती चन्द्र के'' फूल तुम्हें भेजा है ख़त में तो नीरज द्वारा लिखा गया अमर गीत '' लिखे जो खत तुझे - वो तेरी याद में '' और संगम फिल्म का '' ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ करके तुम नाराज ना होना '' प्रेमासिक्त मन की मधुर मनुहार है | इसके अलावा-- शक्ति फिल्म का '' हमने सनम को खत लिखा '' अपनी तरह का एकमात्र गीत है | इसी तरह तुम्हारी कसम फिल्म का -- ''हम दोनों मिलके कागज पे दिल के - चिट्ठी लिखेंगे जवाब आयेगा '' जैसे गीत सिने जगत की अनमोल थाती कहे जा सकते हैं , जो पत्रों के गौरवशाली अतीत की गाथा बनकर सदियों हर दिशा में गूंजते रहेंगे और इस 'ख़त ' नाम के भावनाओं से भरे दस्तावेज के अचानक समय के परिवर्तन की लहर के बीच विलुप्त हो जाने के कसकते अहसास को याद दिलाते रहेंगे |
एक चिट्ठी मेरी डायरी से -- 22 साल पहले मेरी शादी के बाद पहली बार जब मेरी बड़ी बहन की चिट्ठी आई तो मायके की यादों से कसकते भावुक मन से मैंने उसे प्रतिउत्तर में एक कविता लिख दी जो मैंने संकोचवश भेजी तो नहीं पर मेरी डायरी में पड़ी रही जिसे आज यहाँ लिखने का मन हो आया है ---
फिर आज तुम्हारी पाती से
कई बिछुड़े पल याद आये ; जो जाके के लौट ना पाएंगे - वो परसों और कल याद आये |
भूल चले थे गीत कई , सहसा फिर से याद आये , मुस्काए अधर यूँ बरबस - मेघ सजल पलकों पर छाए , जो पल - पल मन महकाते हैं - खुशियों के कोलाहल याद आये !!
स्नेहिल स्पर्श वो माँ का मन को छू जाता है ,हूँ दूर भले पर दूर नहीं -ये चुपके से कह जाता है; जो स्नेहाश्रु छलकाते थे - वो नैना निर्मल याद आये !!
कागज के सीने से लिपटा - ये स्नेह तुम्हारा अनुपम है - इस ममता का ना मोल कोई- बाकी जग सारा निर्मम है ;इस प्यार को याद करूँ तो बस - माँ का आँचल याद आये !!!!!!
अंत में यही कहना चाहूंगी कि शायद इस सूचना और तकनीकी क्रांति के इस युग में भी भावनाओं की सुगंध में भीगे पत्र शायद कोई किसी के नाम लिखता हो और कोई एक तो शायद भाग्यशाली ऐसा जरुर होगा जिसके नाम कोई प्रेम भरी पाती आई होगी |
======================================================================
धन्यवाद शब्दनगरी --- | |
रेणु जी बधाई हो!,
आपका लेख - (भूली बिसरी पाती स्नेह भरी --[ विश्व डाक दिवस ]) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
धन्यवाद, शब्दनगरी संगठन
====================================================================
|
'' खत लिखदे सांवरिया के नाम बाबू -- कोरे कागज पे लिखदे सलाम बाबू -
वो जान जायेंगे पहचान जायेंगे-- कैसे होती है सुबह से शाम बाबू !!!!!!!!!!!!! ''
मेरा आग्रह जरुर सुने |
विश्व डाक दिवस पर एक बेहतरीन एवम् सारगर्भित आलेख जो विस्तार से डाक और डाकिया की भूमिका को ख़ूबसूरती से परिभाषित करता है. डाक व्यवस्था से जुड़े सार्थक पहलुओं पर ज्ञानवर्धक तथ्य जुटाये गये हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी 22 वर्ष पूर्व रची गयी मार्मिक रचना बहुत अच्छी लगी आदरणीया रेणु जी.
मेरी रचना"डाकिया" की पंक्तियों का इस लेख में उल्लेख करने के लिये सादर आभार.
बधाई एवम् शुभकामनाएं. लिखते रहिये.
आदरणीय रवीन्द्र जी -- आपकी रचना से मेरे मन में इस लेख के लिए प्रेरक भाव आये और मैं ये लेख लिख पाई | आपको लेख पसंद आया मेरा प्रयास सार्थक हुआ | उत्साहवर्धन करते शब्दों के लिए सादर आभार|
हटाएंडाक दिवस पर सम्पूर्ण जानकारियों को समेटा आपका आलेख और यह पत्र साथ ही रवीन्द्र जी की रचना पढ़,बहुत सी जानकारियाँ मिली रेणु दी। आपके आलेख की यह विशेषता है कि आप उसे सम्पूर्णता देती हैं।
जवाब देंहटाएंपत्र का इंतजार और तार के आने से धड़कन का बढ़ना बचपन की अनेक स्मृतियाँ ताजी हो आई हैं..
प्रिय शशि भाई -- ये आप जैसे स्नेही पाठकों का स्नेह है जो मेरे साधारणसे लेखन को असाधारण बना देता है | आपके स्नेह भरे शब्दों के लिए सस्नेह आभार |
हटाएंवाह!!प्रिय रेनू जी ,बहुत खूबसूरती के साथ आपने डाक दिवस के बारे में विस्तृत जानकारी दी है ..आपकी लेखनी की यही विशेषता है
जवाब देंहटाएंआदरणीय विश्व मोहन जी की सुंदर रचना ,और आपकी 22साल पहले लिखी कविता दोनों लाजवाब !!
बहुत बेहतरीन आलेख! सुन्दर सी कविता 'डाकिया' मेरी नहीं रविन्द्र जी की है. और उपसंहार कविता का तो कहना ही क्या!!!
हटाएंप्रिय शुभा बहन -- आपके स्नेह भरे शब्दों के लिए ह्रदय तलसे आभार ! आपको लेख पसंद आया मेरा प्रयास सफल हुआ |
हटाएंआदरणीय विश्वमोहन जी -- आपके अनमोल शब्दों के लिए सादर आभार |
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 11 अक्टूबर 2018 को प्रकाशनार्थ 1182 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आदरनीय रविन्द्र जी - आपके सहयोग से रचना गम्भीर पाठकों तक पहुंची |सादर आभार आपका |
हटाएंरेणु दी,
जवाब देंहटाएंडाक दिवस पर इतना सुंदर आलेख पढ़कर मन में भावों का ज्वार उमड़ पड़ा। कितनी सूक्ष्मता से आपने साहित्यिक तथ्य जुटाये हैं वह सच में काबिले तारीफ़ हैं।
पत्र से जुड़ी बहुत सारी स्मृतियां चंघल
हो उठी। मेरे पास भी अनेअ सुंदर ग्रीटिंग कार्ड और पत्र आज भी सुरक्षित है....कभी कभी उन पर चकेरे यादों को छूकर स्मृतियों को गीला कर लेती हूँ।
आदरणीय रवींद्र जी की सारगर्भित कविता बहुत अच्छी लगी,
पत्र के प्रतिउत्तर में आपके द्वारा रची गयी कविता भावुक कर गयी।
दी,इस अनमोल लेख के लिए बहुत सारी बधाईयाँ स्वीकारेंं मेरी। माँ सरस्वती के आशीष की कृपा
यूँँ ही बरसती रहे यही शुभकामना है।
सादर।
प्रिय श्वेता -- आपकी सारगर्भित टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है | आपने रूचि से लेख पढ़ा और अपना महत्वपूर्ण अनुभव साँझा किया , मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि आपने स्नेह की थातियों को संभाल कर रख रखा है | इन्हें संभालना हर किसी को नहीं आता |
हटाएंआपकी अनमोल शुभकामनाओं के लिए कोई आभार नहीं बस मेरा प्यार और नवरात्रों की असीम शुभकामनायें | |
आज भी डाकिया आता है
जवाब देंहटाएंराहत कम आफत ज्यादा लाता है
पोस्टकार्ड नहीं रजिस्ट्री ज्यादा लाता है
खुशियों का पिटारा नहीं
थैले में क़ानूनी नोटिस लाता है |
बहुत सुंदर लेख लिखा आपने रेणु जी सच पत्र लिखने का और उनके आने के इंतजार का अपना मजा था डाकिया दिखाई देते ही उससे आवाज लगा कर चिट्ठी के बारे में पूछना फिर चिट्ठी पढ़ने की खीचतान कौन पहले पढ़ेगा बहुत बहुत आभार इस सुंदर लेख के लिए
प्रिय अनुराधा बहन -- मेरे लेख के विषय को आपके अनमोल शब्द असीम विस्तार दे रहे हैं | सच है पहले डाकिये की आहट फिर पत्र का आना किसी उत्सव से कम नहीं होता था | और पत्र के लिए खींचातानी के अनेक स्मृति चित्र उभरते हैं और मन को उदास कर देते हैं | ह्रदय से आभार आपका जो आपने लेख में इतनी रूचि से पढ़ा और अपना अनमोल समय देकर सारगर्भित टिप्पणी लिखी |
हटाएंभूली - बिसरी यादें
जवाब देंहटाएंआभार...
अब कम से कम अपने आपको ही एक पत्र लिखा करेंगे
सादर
जी आदरणीय उशोदा दीदी -- हार्दिक स्वागत है आपका ब्लॉग पर और आपके अनमोल शब्दों के लिए आपकी आभारी रहूंगी | सच है पत्र अपने ही नाम लिखा जाए पर उसमें न्याय कैसे कर पाएंगे ? आखिर समय के साथ मन की भावनाएं भीतो बदल चुकी है |
हटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति रेणू जी
जवाब देंहटाएंफिर आज तुम्हारी पाती से -
कई बिछुड़े पल याद आये ;
जो जाके के लौट ना पाएंगे -
वो परसों और कल याद आये |
रचना ने मन मोह लिया
बेहतरीन रचना सखी 👌
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंप्रिय अनिता बहन-- हार्दिक स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | आपके अनमोल शब्द किसी आभार से परे हैं | बस मेरा हार्दिक स्नेह आपके लिए |
हटाएंशानदार रेणु जीआपकी रचना के माध्यम से पत्रों का ये सफ़र पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंबहुत जानकारी पूरक लेख को अपने बहुत रोचक अंदाज़ मै रखा.ये सहजता ये सरलता बनी रहे.ग़ालिब के पत्रों का भी जिक्र किया बहुत काम ही लोग शायद ये जानते होगे की वो ख़त कितनी बड़ी विराशत छोड़ गए हैं। हम सबको ये ज्ञान बाटने के लिए धन्यवाद
प्रिय जफर -- आपके बहुमूल्य शब्दों के लिए आभारी रहूंगी | आपको लेख पसंद आया मुझे बहुत ख़ुशी हुई | और मेरे दादा जी उर्दू साहित्य के अनन्य प्रेमी थे और वे अक्सर उर्दू की किताबे पढ़ते नजर आते थे जब हम पूछते थे तो कई बार अच्छा मूड होने पर इस तरह की अनमोल बातें बता दिया करते थे | मिर्जा ग़ालिब की विरासत का पूरा ज्ञान तो नहीं हाँ बस थोड़ा बहुत पढ़ा है कि खतों के जरिये उन्होंने अमर शायरी लिखी और ये पत्र उनकी हाजिरजवाबी का बेहतरीन नमूना थे | आपको मेरा स्नेह भरा आभार |
हटाएंवाह.. रेणुका जी, बहुत ही सुंदर और विस्तृत जानकारी से पूर्ण रचना।कई यादों की गलियों से गुजरती हुई अमिट छाप छोड़ गई। कविता अतिउत्तम।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया।
प्रिय पम्मी बहन -- आपको कविता पसंद आई और लेख ने सोई यादों को जगाया तो मेरा लेख सार्थक हुआ बहन | आपको हार्दिक आभार और प्यार |
हटाएंरेणू बहन सबसे पहले ढेर सी बधाईयां और शुभकामनाएं इस शानदार लेख के लिये विश्व डाक दिवस पर आपने इतनी ज्ञानवर्धक और आकर्षक सामग्री उपलब्ध करवाई है और साथ ही आपके संस्मरण जो निहायत ही मनमोहक हैं और कहीं पुराने दिनों की तरफ खिचें लिये जा रहें हैं, सच चिठ्ठी और डाकिए से जो यादें जुड़ी है वो एक पुरा संस्मरण लिखने को पर्याप्त से भी अधिक है। और आपकी व रविंद्र सिंह जी की बैजोड़ कविता इस लेख को और भी उचांई पर स्थापित करती है, लिखने को बहुत कुछ है पर बस यहीं विराम एक ठेठ मारवाड़ी गीत की कुछ पंक्तियाँ...
जवाब देंहटाएंडाकिया रे मने कागद लिख दे
लिख परवानो म्हारे साजन ने
लिख परवानो म्हारे साजन ने
नाम न जानूं गांव न जानूं
सूरत न जानूं थांके साजन की सूरत न जानूं थांके साजन की
नाम बतासां गांव बतासां सूरत सलौनी म्हारे साजन की
सूरत सलौनी म्हारे साजन की ।
प्रिय कुसुम बहन - आपके उत्साहभरे शब्दों ने मुझे अभिभूत कर दिया | कितने आह्लादित मन से आपने इतने सुंदर शब्द लिखे जो हर आभार से परे हैं | मारवाड़ी गीत में मन को बाग़ बाग़ कर दिया | आपने सच कहा कि पत्रों और डाकिया बाबू से जुड़े अनगिन अनुभव हैं जो इस छोटे से लेख में कहाँ समाते ? पर मेरा छूता सा प्रयास सब सुधि पाठकों ने सार्थक कर दिया जिस पर आप ।की टिप्पणी सोने पर सुहागा-------
हटाएंनाम न जानूं गांव न जानूं
सूरत न जानूं थांके साजन की सूरत न जानूं थांके साजन की
नाम बतासां गांव बतासां सूरत सलौनी म्हारे साजन की
सूरत सलौनी म्हारे साजन की | -वाह और सिर्फ वाह !!!!! अब आभार क्या लिखूं ? बस मेरा असीम स्नेह आपके लिए !!
डाक दिवस पर भूली बिसरी पाती की यादें ताजा कर दी आपने रेणु जी....कमाल का आलेख लिखा है आपने...पत्रो के महत्व के साथ आज के मोबाइल युग में भावनाओं का वो मोल कहाँ जो पत्रों मे हुआ करता था...साथ ही रविन्द्र जी की बहुत ही भावपूर्ण रचना ...जबाबी खत में आपकी कविता मन को गदगद कर गई। साथ ही सिने जगत में पत्रों पर लिखे गीतो से अवगत कराते हुए सुन्दर बीडीओ भी....
जवाब देंहटाएंवाह!!!बहुत मजेदार भावप्रवण आलेख के लिए बहुत बहुत बधाई आपको...सस्नेह शुभकामनाएं।
प्रिय सुधा बहन -- आपके स्नेह भरे शब्द मेरे ब्लॉग की शोभा बढाते हैं | पत्र ऐसा विषय रहा है जिस से हम लोगों की पीढ़ी का अन्तरंग जुड़ाव रहा है | आज मोबाइल ने दूरियां घटा दी पर मन के फासले और ज्यादा हो गये | चिट्ठी स्नेह प्रेषित करने का सशक्त माध्यम थी पर समय के परिवर्तन के बीच उसका अस्तित्व समाप्त सा हो गया लगता है | अब अगर कोई पत्र लिखना चाहे भी वो गहराई नही आ सकती जो पहले आती थी |यद्यपि पाती की महिमा अनंत है , पर इस पर आपको मेरा ये छोटा सा प्रयास पसंद आया मेरा लेख सार्थक मान लिया मैंने , जिसमे आप जैसे अत्यंत सुधि पाठकों की बहुत बड़ी भूमिका है | आपकी आत्मीयता भरी , सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आभार और मेरा प्यार
हटाएंडाक दिवस पर आपका बहुत जाकारियुक्त लेख पढ़कर बहुत आनंद आया... बधाई
जवाब देंहटाएंआदरणीय वन्दना जी-- आपके स्नेह भरे सहयोग के लिए हार्दिक आभार |
हटाएंडाकिया द्वारा पत्र प्राप्त करने के सुख से आज-कल के बच्चे वंचित हैं. किसी के द्वारा किसी को लिखा पत्र एक-दूसरे में आत्मीयता का भाव पैदा करते थे. क्योंकि पत्र लिखना एक सृजनात्मक कार्य था. जिसको आप पत्र लिखते थे वो वे आपके स्मृति पटल पर छाए रहते थे जिसके कारण आपस में प्रेम सदैव बना रहता था. अब तो हालात ऐसे हो गए है कि कट-पेस्ट की इस दौर में प्यार व्यक्त करने के लिए अपने शब्द तक नहीं होते. खैर ! आपका लेख जानकारी देने के साथ-साथ पत्र न लिखने से समाज में आ रहे बदलाव के प्रति चिंतन का भाव उत्पन्न करने में सक्षम है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी -- आपने लेख को पढ़कर चिंतन परक टिप्पणी के माध्यम से उसके विषय को विस्तार दिया है जिसके लिए हार्दिक शुक्रिया और आभार |मैं आपकी बात में एक बात और जोड़ना चाहूंगी , यदि हम आज पत्र लेखन का प्रयास करें तो उससे न्याय नहीं कर पाएंगे क्योकि हमारी भावनाएं भी कहीं ना कहीं व्याघ्रता और बनावटीपन से आच्छादित हो चुकी हैं , वो कोमल भावनाएं अब शायद कहीं नही रही | सादर --
हटाएंज्ञानवर्धक एवं समसामयिक , प्रणाम दी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लेख..
जवाब देंहटाएंडाक दिवस पर भूली विसरी यादो को ताजा करती तुम्हारी ये रचना लाजबाब हैं सखी और ज्ञानवर्धक भी ,और साथ ही एक मधुर गीत ने तो शमा ही बाँध दिया ,बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी , तुमने लेख पढ़ा और गीत भी सुना, मेरा लेखन सार्थक कर दिया सखी। तुम्हारा निर्मल प्रेम अनमोल है। मेरा प्यार तुम्हारे लिए।☺☺
हटाएंलेख को वापस उसी तन्मयता से पढ़ा रेणु बहन, आत्म मुग्ध करते होते हैं आपके लेख स्तरीय और सत्य से जुड़े, हर तथ्य को सुंदरता से आप प्रकाश डाल कर उसे और खास बना देती है ।डाक दिवस पर शानदार भेंट।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम, अभिनव।
प्रिय कुसुम बहन मेरी रचना पर
जवाब देंहटाएंस्नेहासिकत अभिव्यक्ति ने चार चाँद लगा दिये है। आपका मेरे पुराने लेख को दुबारा पढ़कर प्रतिक्रिया देना अभिभूत कर गया। आपका स्नेह अनमोल है। मेरा प्यार आपके लिए 🙏🙏