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मंगलवार, 26 मार्च 2019

फूल ! तुम खिलते रहना !


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  जीवन में बसंत ---  
  चारों ओर बसंत   का  शोर है  |  हो   भी क्यों ना !जीवन में  बसंत का   आना  असीम खुशियों का परिचायक है | प्रश्न उठता है  बसंत  क्या है ? क्या है इसकी परिभाषा ?यूँ तो बसंत को हर  किसी  ने अपनी परिभाषा दी है पर सरल शब्दों में कहें तो फूलों की खिलना ही सृष्टि में बसंत का परिचायक है ,  ये   मन की वेदना को चीरकर निकली एक    आशा उम्मीद  का   प्रतीक है | बुझे  मन  के पतझड़   में एक ख़ुशी की कामना  ही बसंत है | बसंत आया तो सृष्टि मानों सोते-सोते आँखें मलती  जग  पडती  है| कितना कुछ अनोखा सा घटित होता प्रतीत होता  है | | ठण्ड में सिमटे  दिनों का     आकार बढ़ता है तो सुहानी सी भोर   के साथ गर्माहट  भरी  धूप मन को एक नयी चेतना   से भर    असीम आनन्द  की  अनुभूति  करवाती है |  आकाश की  नील आभा और  गहराती प्रतीत होती है तो पक्षियों के दल  पूरी क्षमता से  मानों आकाश से होड़ लगाते   दिखते  हैं |  बासंती बेला में  नील गगन में रंग बिरंगी पतंगों का उड़ना  उत्साह  के चरम का द्योतक है |ठूंठ  प्रकृति  में नवयौवन  की आहट जड़ता में चैतन्य लाती है |जो वृक्ष - पौधे , लताएँ  पतझड़ में  पत्रविहीन हो निर्जीव   ,उदासीन और   उजड़े से  नजर आते हैं वही  बसंत के  आते ही   स्वर्ण , ताम्र  और  रजत वर्णी  नव कोपलों से सुसज्जित हो   बसंती बयार के संग        झूम झूम कर इतराने लगते हैं  | यही  है बसंत   जिसे  सृष्टि के   छः ऋतुओं  का    शिरोमणि कहा गया है |हवा  भी  बहुत सुहानी और  मादक   हुई जाती है मानों  जीवन से पीड़ा विदा हो गयी और अनंत आनन्द  दस्तक   दे रहे हों  | नवागत ऋतु की पदचाप भर से जीवन की निष्क्रियता  -  सक्रियता     में बदलने को आतुर हो  उठती है  |  मयूरों का नर्तन ,   भवरों   का गुंजन  और कोयल  की कूक   मानो इसके स्वागत का  मधुर  गान है  | आम के पेड़ों पर उमड़ी  मंजरी  और नीम के सफेद फूलों  से महकती गलियां तो कहीं गेंदे के फूलों की कतारें   देखते ही बनती है    बसंत  में चार  चाँद  लगाने के लिए  होली  , फाग , रसिया जैसे लोकरंग इसमें समाहित हो जाते हैं तो  इसका लालित्य बढ़ाने के लिए फगुवा  के आह्लादित स्वर चारो दिशाओं में  गूंजने लगते हैं |ये लोकजीवन का वो रंग है जो  हर मन की कलुषता को धोकर  समाज में      आपसी सौहार्द  की भावना को  बढ़ाने में अपना अभूतपूर्व योगदान देता है 

फूलों  की बहार के क्या कहने -- 
इन सबके बीच में जो पूरी क्षमता   से अपने अस्तित्व का आभास कराते हैं --वो है फूल  !|इनके   माध्यम  से ही तो जीवन गा उठता है | फूल ही तो हैं  जो   खिलकर , झूमकर --अलसाई सृष्टि में   एक जागरण का गान रचते हैं |ये मानव मन की अधूरी कामनाओं की पूर्णता का प्रतीक बन  खड़े हो जाते हैं |  ये ना होते तो  मधुमास  की परिभाषा ही अधूरी रहती | इनके बूते ही तो बसंत को  ऋतुराज  कहकर सृष्टि ने सर माथे पर बिठाया है |   सच है फूलों का खिलना ही तो सृष्टि  का बसंत है| फूल जीवन से इसी तरह जुड़े हैं, जैसे देह से प्राण  | फूल सब अनकहा कहने में सक्षम है | प्रेम ,समर्पण ,   विश्वास  सब भावनाएं   फूलों  के माध्यम से   बड़ी सरलता से व्यक्त हो जाती हैं|  ये  सकारात्मक  ऊर्जा से भर   मन  को  नई उमंग से भर  देते हैं| फूलों से मन्त्र मुग्ध  दिशाएं  और सुगंध से सराबोर वसुंधरा   नये रंगों में सजकर  बासंती  परिधान  धारण कर इतराती सी नजर आती है |   

कहाँ नहीं हैं फूल ?---    जहाँ  तक नज़र जाती हैं फूल  दिखायी पड़ते हैं   |  इस पूरी सृष्टि में  कहाँ  नहीं हैं फूल ?  पहाड़ों -पर्वतों की घाटियों में , जंगल में  , उपवन में , रास्तों पे , क्यारियों में ., खेतों में , जल में थल में -- कौन सी ऐसी जगह  है जहाँ फूलों ने अपना वर्चस्व स्थापित ना  किया  हो |  कौन सा ऐसा मौसम है जब किसी तरह के फूल ना खिलते हों | भले   बसंत और पावस   ऋतु  में इनका यौवनकाल होता है |पर फागुन में नीम  के सफ़ेद  फूलों की मादक गंध से  महकती  गलियों  का अपना ही आनन्द है  तो बसंत में गेंदे के  पौधे  पर लगे  फूल तो महकते ही हैं,  साथ में उसके पत्ते भी हवा को  सुवासित कर इसकी मादकता को बढ़ाने मे अपना अतुलनीय योगदान देते हैं |   शीतकाल   में गुलाब , पारिजात , चमेली ,  रात रानी   , डेहलिया  गुलदाउदी इत्यादि सब फूलों की अपनी गंध है और अपनी ही प्रकृति   जो अपनी  नैसर्गिकता से   जीवन में  ख़ुशी का संचार करते हैं | सर्द ऋतू में सरसों के  बासंतीफूलों  का अपना महत्व है   |       होली के रंगों  से अबीर बनाने  के लिए  ही  मानों    टेसू  को ईश्वर ने उसी मौसम का राजा बनाया है ,तो  गर्मी  बढ़ने  के साथ  - सब फूलों के मुरझाने  के बाद हर नजर में  गुलमोहर   ही छाया रहता है | इस  तरह   हर मौसम के अपने फूल हैं अपनी गंध है  और अपना ही मिज़ाज़ है |फूलों के रंग  ,  आकार  कीकहें तो  जितने फूल  उतने ही कलात्मकता से भरपूर  |    सृष्टा  की ये अनुपम   रचनाएँ  सदैव ही विस्मय से   भरती  हैं और कई अनुत्तरित प्रश्नों को जन्म देती हैं |    सब वनस्पति जड़   सी थी   -पर  जैसे  ही ऋतुराज आया -- नए  कलेवर में  सज संदेश देने लगी   | लगा मानो
 जीवन से पीड़ा विदा हो गयी और अनंत आनन्द  दस्तक   दे रहे हों  | नवागत ऋतु  की   पदचाप भर से जीवन  में  नया उल्लास और कामनाओं का उजास छा जाता है | 
फूलों की अपनी दुनिया है --  कहा जाता है  कि  दुनिया में  फूलों के ढाई लाख से भी अधिक पौधों की प्रजातियाँ पायी जाती हैं | फूलोंकी अपनी दुनिया है जो  कौतूहल से भरी है और बहुत अनूठी कही जा सकती है |जैसे कमल  का  फूल  सूर्योदय के समय खिलता है तो सूर्यास्त के साथ मुरझा जाता है | ये फूल  अपने  सौन्दर्य के  साथ    लिए कलात्मकता के बारे में  भी जाना  जाता है |  सूरजमुखी   के  फूल  का मुंह प्रातः काल सूरज की और होता है तो शाम को पश्चिम की  ओर हो जाता है | इस तरह से ये फूल  अपने  नामको सार्थक करता है | छुई- मुई नामक पौधे की   पत्तियां हाथ से   छूते  ही  सिमट  जाती हैं | चन्द्र पुष्प  नाम  का फूल केवल रात में ही खिलता है और दिन में  बंद हो जाता है |गुलाब की पन्द्रह  सौ से ज्यादा प्रजातियाँ   उगाई जाती हैं और ये पुष्प शायद विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय फूलों  में से एक है जिसे प्रेम प्रतीक माना गया है  | गुलाब के नाम पर गुलाब दिवस यानी रोज़  डे  भी मनाया जाता है |    ट्यूलिप  नामक फूल को भी प्रेम , विश्वास और अमरता के फूल के रूप में जाना जाता है | इसके बारे में एक रोचक जानकारी भी है कि  1960 के दशक  में  ये सोने से भी ज्यादा कीमती  माने जाने लगे थे | इसके अलावा ये भी जानना  चाहिए कि एक चम्मच शहद बनाने के लिए एक मधुमक्खी लगभग दो हजार फूलों से  पराग और रस  लेती है |
फूलों के बारे में एक  और रोचक तथ्य  सामने आया है  कि रंगीन फूलों से ज्यादा सुगंध सफेद फूलों में होती है |
कोमलतम भावों  के प्रतीक --
फूलों से कोमल दुनिया में क्या ? इसी लिए इन्हें कोमलतम भावों का प्रतीक  माना गया है | इन्हें  प्रेम की तरह ही  पावन  और ह्रदय  के सबसे समीप मना गया |गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर लिखते हैं '' फूल की पंखुरियों को तोड़ कर  तुम उसका   सौन्दर्य  ग्रहण नहीं कर सकते |''अर्थात फूल की सार्थकता उसके खिलने में है  नाकि उसे तोड़कर संग्रहित कर लिए जाने में | बुद्ध  भी  प्रेम को फूल की संज्ञा  देकर  कहते हैं जिस तरह से  फूल खिलता है तभी सुगंध देता है  इसी तरह से प्रेम भी   जब तक उन्मुक्त रहता है   तब तक  फलता -फूलता है | उसे  समेटने में वह मुरझा जाता है |मूर्धन्य   कवि जयशंकर प्रसाद लिखते हैं '' फूल प्रकृति  की उदारता का दान है  | इन्हें सूंघने से ह्रदय पवित्र होता है , मेधा शक्ति बढती है और मस्तिष्क  प्रफुल्लित होता है |''सच है सुगंध का  विराट वैभव समेटे  पुष्प मानव मन की हर मौन  कोमलतम अभिव्यक्ति का मुखर  रूप हैं |  

 उत्तम औषधि भी हैं फूल -- फूल केवल सुंगध  ही नहीं देते  बल्कि ये औषधीय गुणों से भरपूर भी होते हैं | इनमें मौजूद पोषक तत्व कई मानसिक और दैहिक रोगों को दूर करने में सक्षम होते हैं | आयुर्वेद में तो सूरजमुखी से लेकर नीम . गुलाब ,पारिजात , सदाबहार , गेंदा , चमेली , गुडहल . इत्यादि  को प्रमुखता से  उपयोगी  माना गया  | फूलों के बारे में स्वीकार किया गया है कि इनमें शरीर के लिए फ़ाईबर, कैल्शियम , विटामिन ,  प्रोटीन इत्यादि भरपूर मात्र में होते हैं  , जो शरीर को कोई भी  हानि पहुंचाए बिना    बीमारियों  से दूर रखने में सहायक सिद्ध होते हैं | इत्र के रूप में  फूलों के रस के प्रयोग की   परम्परा  बहुत पुरानी है तो आधुनिक युग में अरोमा थैरेपी    के रूप में फूलों का प्रयोग  बहुत  चलन में है | ये  थेरेपी  तन मन  को नयी ऊर्जा से भरने में बहुत कारगर सिद्ध हुई है | मनोवैज्ञानिक  तो  बड़े विश्वास से   ये कहते हैं कि प्रकृति के समीप रहने से बढ़कर तन मन  की  बीमारियों का कोई  उपचार नहीं है | उसमें भी फूलों के नजदीक रहना और उन्हें सहलाना  बहुत ही चमत्कारी  सिद्ध हो सकता है  कह सकते हैं  फूलों में   शुभ स्वास्थ्य  का निवास है 


पग- पग पर उपयोगी --  इसके अलावा जीवन में हर कदम पर फूल  उपयोगी हैं |  गंध ,रंग  के अलावा हर अवसर पर इनका महत्व  है  |मंदिर  में देवताओं की पूजा अर्चना हो या  शादी  ब्याह  में  दूल्हे के सेहरे की सजावट और पंडाल  का सौंदर्यीकरण  सभी जगह फूलों   की जरूरत पडती ही | यहाँ तक कि जन्म के उत्सव  से लेकर अर्थी तक  की जीवन यात्रा में   फूलों  का साथ बना रहता है | पौराणिक काल से ही ,   बालों  की वेणी हो या  अन्य पुष्प  आभूषण    - फूलों को नारियों ने  बड़े ही   चाव   से अपने  तन  पर सजाया है | आजकल भी    शादी  ब्याह में    लडकियों द्वारा विभिन्न अवसरों पर  फूलों के गहने  पहनने का चलन बढ़ता जा रहा है | इसके अलावा --किसी को  दोस्ती का आमन्त्रण देना हो  ,  इज़हारेमुहब्बत करना हो   ,  किसी को शुक्रिया कहना हो या फिर  किसी से क्षमा याचना करनी हो फूल  से बेहतर कोई  उपहार  नहीं | सामाजिक व्यवहार को  बढ़ाने में   फूलों का   अहम् योगदान हो सकता है | जड़ सोच को बदलने में इनकी भूमिका  महत्वपूर्ण होती  है | खास मौकों पर खास लोगों को फूलों का   तोहफा  देकर हम अपनी  अनकही भावनाएं उन तक  पंहुचा  कर उनके और निकट    आ सकते हैं |   फूलों से किसे प्यार नहीं और कौन इनका तलबगार नहीं !


समभाव के प्रतीक हैं फूल -- फूलों  के जीवन से प्रेरक कुछ भी नहीं | ज्यादातर फूल अल्पजीवी   होते  हैं  पर  अल्प से जीवन में ही   वे समभाव से महकते  ,  मानवता के लिए एक अनुपम संदेश छोड़ जाते हैं | खुद निष्काम रह ,  दूसरों के लिए    अपना सर्वस्व  लुटाना कोई फूलों से सीखे |  हर मौसम की    क्रूर मार  झेलते     ,  इन्सान की स्वार्थी प्रवृति को दरकिनार करते हुए और  कीड़े मकोड़ों के साथ तितली ,भंवरे इत्यादि का   अनचाहा  जबरदस्ती  प्रेम सहन करते हुए   हमेशा खिलखिलाने का मधुर स्वभाव   फूलों  के  अलावा किसी   और का नहीं हो सकता |  वे किसी  सम्राट के महल में उसी  भाव  से खिलते हैं जिस भाव से किसी पर्ण -कुटीर में |कंटीली झाड़ी   की सेज पर भी इन्हें मुस्कुराने से कोई नहीं रोक सकता | | किसी अमीर-गरीब,  ऊंच- नीच  का भेद इनके लिए नहीं है  |इनकी सुगंध  सबके लिए बराबर  है 

 फूल  गेंदवा ना  मारो -  | बात फूलों  की हो और सिने जगत इससे अछूता रहे ,  ऐसा कभी नहीं हो सकता | आम जीवन की तरह फिल्मों में  भी फूलों को विशेष महत्व मिला है |  रजत पट पर दर्शकों को लुभाने के लिए नायक नायिका के प्रेम दृश्य  को   स्वाभाविकता देने के लिए  फूलों से भरी वादियों  में फिल्माया गया तो नायिका   के सौन्दर्य का बखान करने के लिए फूलों से उसकी तुलना गयी |कितने ही  अमर गीत फूलों की महिमा पर रचे गये और  सिनेमा जगत में  छा गये | जिन्हें आम जन ने       सुनाऔर वे हमेशा के लिए उसके मन की अभिव्यक्ति का प्रतीक बन कर  रह गये | ये फूलों की सुगंध की तरह ही     जीवन में महकते है  और      मन को अप्रितम आनन्द से भर जाते हैं |  प्रेम पुजारी में नीरज लिखते हैं -- ;;  फूलों के रंग से दिल की  कलम से तुझको  से लिखी रोज  पाती '' तो  सरस्वती चन्द्र में इन्दीवर  ने-- '' फूल तुम्हे भेजा है ख़त में ''  लिखकर ---  प्रेमियों के ख़त में फूल  भेजने  के  ढके लिपटे रहस्य को आम  कर दिया  |   दूज  के चाँद का  '' फूल गेंदवा ना  मारो लगत करेजवा में चोट  ;  में विरह की अनकही कसक   सिमट  अमर हो गयी है | जितनी फ़िल्में उतने  गीत और उतने ही भावनाओं के रंग | कोई कहाँ तक कहे और कहाँ तक   ना कहे |  
 साहित्य के चहेते  रहे   हैं फूल -- साहित्य में  फूलों पर अनगिन गीत लिखे गये कवितायेँ  रची गयी तो ललित निबन्धों  की भी कमी ना रही | यूँ तो आदिकाल से 
 आधुनिक काल तक  फूल साहित्य  में अक्षुण रहे पर छायावादी , प्रकृतिवादी , प्रेम वादी    और रहस्यवादी कवियों ने तो फूलों की महिमा पर   खूब और अद्भुत लिखा  |फूलों पर कुछ  मनमोहक ,अमर पंक्तियाँ---

 पतझड़ था सूखे से झाड  खड़े थे क्यारी में -

किसलय दल कुसुम बिछाकर आये तुम इस क्यारी में !!
  [ जयशंकर प्रसाद ]
 धूप में ये अनुष्टुप सा  कौन खड़ा है ?
 यह वनस्पति पुरुष 
क्या केवल फूल ही है ?
[ नरेश मेहता ] 

गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का करोबार चले

  [ फैज़ अहमद फैज़ ]
फूल हंसो - गंध हंसो , प्यार हंसों तुम 
 हंसिया की धार - बार बार हंसों तुम !
[ कैलाश  गौतम ] 
 फूल पौधों की सुगन्धित प्रार्थना है
 अथवा 
धरती को कहीं से भी छुओ 
एक ऋचा की प्रतीति होती है !!
[श्री नरेश मेहता ] 

अजब मौसम है, मेरे हर कद़म पे फूल रखता है
मुहब्बत में मुहब्बत का फरिश्ता साथ चलता है

  [  बशीर बद्र ]
 दो गुलाब के फूल छू गए जब से होठ अपावन मेरे
ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है।

 [  कवि  नीरज ]
इसके अलावा महादेवी वर्मा की --''मुरझाया फूल '' ,माखन लाल चतुर्वेदी जी की ''  पुष्प  की अभिलाषा ''  और आमिर खुसरो की -- ''सकल बन फूल रही सरसों ''जैसी  रचनाएँ और  आदरनीय  हजारीप्रसाद द्विवेदी.  जी का ''अशोक के फूल' पर निबन्ध जैसी कृतियाँ  साहित्य जगत की अनमोल थाती हैं | 
इस तरह फूलों के बिना जीवन की कल्पना करना  बहुत ही निरर्थक है | सांस्कृतिक , सामाजिक  जिअवं में इनका योगदान अतुलनीय है साथ में ये अपनी उपस्थिति से  मन को एक अप्रितम आह्लाद  से भर  एक विराट सुकून की अनुभूति कराते हैं |
और अब अंत  में मेरे ब्लॉग से फूलों को समर्पित एक रचना बसंत गान  मेरी भी --
हंसो फूलो -- खिलो फूलो -
डाल-डाल पर झूलो फूलो !
उतरा फागुन मास धरा पर -
हर रंग रंग झूमो फूलो !!
गलियों में सुगंध फैलाओ,
भवरों पर मकरंद लुटाओ ;
भेजो  आमन्त्रण तितली को -
''कि बूंद - बूंद रस पी लो'' फूलो ! !
हंसों   के नीम -आम बौराएँ -
खिलो  के कोकिल तान  चढ़ाए ,
 महको - महके रात  संग तुम्हारे -
 घुल पवन में अम्बर  छूलो -फूलो !!
 बासंती अनुराग जगाओ -
 सोये प्रीत के राग जगाओं ;
हंसो !हँसे नैना गोरी के -
 साजन  संग इन्हें पिरो लो फूलो  !!
धरा परिधान सजाये बहुरंगी,
  नभ  इन्द्रधनुष सा हो    सतरंगी ; 
तुमसे सब रंग  सजे सृष्टि के -
ये इक बात ना भूलो ! फूलो !!
 हँसो  !हँसे आँगन की क्यारी ,
खिलो  !खिले  भोर मतवाली ;
 महको !  समय  बहुत कम तेरा -
कुछ पल में  जीवन  जी लो फूलो !!!!!!!

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पाठकों के लिए  विशेष -मेरा हार्दिक आग्रह जरुर सुने --------  मख़दूम मोइनुद्दीनकी  फूलों सी महकती  सदाबहार  गज़ल जो मन को  बहुत सुकून देती है ------------- 
 फिर छिड़ी रात बात फूलों की ,
रात है या बारात फूलों की !!
फूल के  हार - फूल के गजरे, 
 शाम  फूलों  की ,रात फूलों की !!
आपका साथ -साथ फूलों का ,
आपकी बात बात फूलों की !!
फूल खिलते रहेंगे  दुनिया में ,
रोज़ निकलेगी बात फूलों की !!
नजरें मिलती हैं  जाममिलते है 
मिल रही है हयात फूलों की ,
ये महकती हुई गज़ल मकदूम 
जैसे सेहरा में  रात फूलों की !!
फिर छिड़ी रात बात फूलों की ,
रात है या बारात फूलों की !!!!!!!!!!    
    https://youtu.be/gg6669Dq92Q?list=RDgg6669Dq92Q&t=7
स्वलिखित -- रेणु
चित्र -- गूगल से साभार |

ब्लॉगिंग का एक साल ---------आभार लेख

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