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शनिवार, 24 सितंबर 2022

आओ देवता आओ !--कहानी

 


रसोई से आती विभिन्न स्वादिष्ट  व्यंजनों  की मनभावन गंध और माँ  की स्नेह भरी आवाज  ने घर से बाहर जाते  नीरज  के कदमों को सहसा रोक लिया |'' आज तुम्हारे दादा जी 'पहला' श्राद्ध है बेटा ! इसलिए उन्हें  समर्पित  जो विशेष पूजा होगी  वो तुम्हारे ही हाथों से होगी | तुम जानते हो  तुम्हारे हाथों हुई  पूजा से उनकी आत्मा को  कितनी शांति मिलेगी !'

 वैसे तो श्राद्ध पखवाड़े में  शायद ही कोई दिन जाता होगा जिस दिन  परिवार के किसी ना किसी दिवंगत सदस्य  का श्राद्ध  ना होता हो , पर उनमें से किसी को भी नीरज  ने नहीं देखा था |खीर, पूरी, हलवा और ना जाने क्या -क्या दिवंगत आत्माओं के निमित्त बनाए जाते | इसी तरह आज दादा जी के  श्राद्ध  के लिए वही ख़ास चीजें बन रहीं थी जो उन्हें विशेष तौर पर पसंद थी | बनते पकवानों की खुशबू दूर-दूर  तक फ़ैल रही थी |नीरज को पता था सभी चीजें थोड़ी देर में बनकर तैयार हो जाएँगी | तब पंडित जी आकर पूजा  करवाएँगे |

अभी सब कार्यों में थोड़ी-सी देर थी, इसलिए  वह घर से कुछ कदम दूर बैठक में जाकर बैठ गया | बैठक  के प्रांगण में बरसों पुराना नीम का पेड़ खड़ा था | अब की बार भादों में जमकर बारिश हुई थी अतः नीम पर हरियाली की एक अलग ही छटा छाई थी| हरे- हरे  पत्तों से  लदी उसकी टहनियाँ हवा में धीरे-धीरे लहरा रही थीं |

  नीम को निहारते  दादा जी की याद  आई तो  नीरज का मन अनायास भर आया |और वह नीम के नीचे पड़ी  खाट पर बैठ कर यादों  में डूब गया ------  -------- --------- -------- ----------!

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 जब से नीरज ने होश सम्भाला था ,तबसे दादा जी को अपनी हर ख़ुशी  और परेशानी में अपने साथ खड़े पाया था |दादा जी उसके लिए सिर्फ उसके दादा जी भर नहीं  थे . उसके मार्गदर्शक और दोस्त भी थे |उसकी कोई भी समस्या हो वे उसे चुटकियों में हल कर देते थे |अपने निर्मल स्नेह के साथ   मेहनत , लगन और धैर्य का जो पाठ  दादा जी ने उसे पढ़ाया था , उसने उसके जीवन को बहुत सरल बना दिया था | पढाई के अतिरिक्त समय  में वे उसे अपने साथ रखते और अपने जीवन के अनुभवों  और मधुर यादों को उसके उसके साथ साझा करते |तब उसे लगता वह भी उनके साथ बीते समय में पहुँच गया है | पौराणिक  और ऐतहासिक ज्ञानवर्धन करने में उनका कोई सानी ना था |उन्होंने  लोक जीवन के अनदेखे और अनगिन पहलुओं से उसका परिचय करवाया था |दादा  जी उसे प्रति सुबह जल्दी  नींद से जगाते और   खेतों की सैर पर ले जाते | वे   प्रत्येक मौसम की फसल  और प्रकृति  के बारे में उसे ढेरों  बातें बताते जिन्हें सुनकर  वह रोमांचित  हो जाता और प्रत्येक सुबह की बेसब्री से प्रतीक्षा करता |दादा जी  में  उसने सदैव एक अनोखी ऊर्जा  को  पाया था| वे उसे कर्मठता , सादगी और जनसेवा की भावना से भरे एक अनोखे इंसान लगते जो सदैव हर जरूरतमंद की मदद को तैयार मिलते |सभी पर्वों को मनाने के लिए वे सदैव उत्साहित रहते  और ऐसे अवसरों पर वे  सभी बच्चों के साथ स्वयं भी  बच्चे बन जाते |उसे वह दिन याद आया जब उसने दादा जी को पहली बार  कौओं को  जिमाते देखा था |दादा जी थाली में रखी  खीर  भरी पूरियों के छोटे-छोटे  टुकड़े कर उन्हें छत पर  डालते  हुए , आँगन में खड़े हो कर जोर-जोर से चिल्लाते ,' आओ देवता आओ ----- आओ देवता आओ --'तभी वह देख्ता दर्जन भर  कौओं का झुण्ड ना जाने किस दिशा  से आता   और खीर सनी पूड़ियों के टुकड़े खा कर किस दिशा में उड़ जाता  !नन्हा नीरज बड़ी हैरानी से  दादाजी को तकता रह जाता !वह सोचने लगता  --- कितनी अजीब बात है !-- जब हर रोज यही कौए घर की छत पर बैठकर काँव-काँव करते हैं तो माँ,दादी और चाची सब उन्हें कितनी उपेक्षा से उड़ा दिया करती हैं !उनकी कर्कश काँव-काँव सुनकर  उन्हें डर सताता  है कि  कहीं वक्त-बेवक्त   कोई अनचाहा मेहमान  ना  आ जाए  | ---- और आज इन विशेष दिनों में कौए को देवता बताया जा रहा है !वह मन ही मन हँसा और दादा जी से पूछने लगा ---' दादा जी ! क्या कौए देवता होते हैं ? 

हाँ रे !' दादा जी उसे प्यार से समझाते |'' इन दिनों में   हमारे पूर्वज  इसी रूप में उनके प्रति हमारी श्रद्धा देखने आते हैं |

उसका बाल मन यहीं संतुष्ट ना होता | वह फिर प्रश्न करता -' श्राद्ध क्या होता है दादा जी ? ''

श्रद्धा से अपने पूर्वजों  का स्मरण और उनके निमित्त किया गया कर्म ही श्राद्ध है |'

'पर श्राद्ध क्यों दादा जी ? '' उसकी जिज्ञासा शांत होने का नाम नहीं ले रही थी |

 प्रश्न के बदले दादा जी ने उसी से एक प्रश्न किया --'क्या मेरे दुनिया में से जाने के बाद तुम मुझे याद ना करोगे ? नन्हा नीरज दादा जी के इस प्रश्न को सुनकर बड़ी  गहरी सोच में डूब जाता  , तो दादा जी कहते  -'करोगे ना ?इसी तरह मेरे दादा-दादी , परदादा-परदादी वगैरह ने भी चाहा होगा कि मैं उन्हें कभी ना भूलूँ !इस तरह मैं भी अपने पूर्वजों को श्राद्ध- पखवाड़े  में बड़ी श्रद्धा से याद करते हुए यथाशक्ति उनके निमित्त  श्रद्धा -कर्म  करता हूँ |

वह हैरानी से कहता , 'सच दादा जी!' 

और दादा जी हाँ कहते हुए श्राद्ध की समस्त प्रक्रिया में उसे अपने साथ बिठाते  |उनकी देखादेखी वह  सभी कार्यों में  बड़ी प्रसन्नता और उत्साह से उनका हाथ बँटाता|पर उसने कभी सोचा ना था कि उसके दादा जी  उससे  कभी दूर भी जा सकते हैं |मात्र कुछ दिनों के बुखार ने उन्हें नीरज से हमेशा के लिए दूर कर दिया था |जीवन में किसी महत्वपूर्ण स्थान का अचानक रिक्त हो जाना क्या होता है ये नीरज ने तब जाना जब दादा जी नहीं रहे |  बैठक का  हरेक कोना उससे दादा जी याद दिलाता |हर विषय की किताबों से भरी लकड़ी की अलमारी,कुर्सी,  दादा जी का चश्मा ,पैन और घड़ी नीरज को विकल कर देते |आज उदासी से भरा वह उनकी वही चीजें निहार रहा था | उसे एक बात सबसे ज्यादा दुःख दे रही थी कि  दादा जी ने उसकी मैट्रिक की परीक्षा के लिए साहित्य  और सामाजिक अध्ययन  की जो तैयारी उसे करवाई  थी, उसका  सुखद परिणाम  वे अपने जीते जी देख ना पाए |नीरज मैट्रिक की परीक्षा में मैरिट लिस्ट में स्त्थान पाकर भी उत्साहित ना हुआ | वह यही  बात सोचता रहा कि दादा जी होते तो  खुश  होकर उसे ढेरों आशीर्वाद और शाबासियाँ देकर गले से लगा लेते, तो बधाईयाँ देने वालों को खूब मिठाइयाँ खिलाते |नीरज का मन मानों  बुझ - सा गया था हालाँकि  घर भर के लोग उसकी इस आशातीत सफलता पर बहुत खुश थे, पर नीरज को इस बात का पछ्तावा होता कि  दादा जी  ने अप्रत्याशित रूप से उसका साथ  छोड़ दिया है | वे उसके साथ होते तो भविष्य के लिए उसका खूब मार्गदर्शन करते क्योंकि  वे स्वयं सरकारी स्कूल से सेवानिवृत  अध्यापक थे | बच्चों के बीच उन्होंने सालों बिताए थे और  बालमनोविज्ञान  से   भली- भाँति  वाक़िफ थे |सभी बच्चों के मन की बात वे बिना बताये समझ जाते थे |

बचपन में नीरज दादा जी को  खूब  सताता | रंगीन फोटो  बार-बार देखने की जिद में वह किताबों की अलमारी खोलकर सब किताबें इधर-उधर बिखेर  देता | उनका चश्मा लेकर भाग जाता तो कभी उनकी पीठ पर  चढ़कर हठ करता  कि वह उसे घर तक तत्काल छोड़कर आयें |दादा जी उसकी बालसुलभ शरारतों पर उसे   डाँटते ना फटकारते | हाँ , उसे हँसकर ये  अवश्य कहते ,''कि तुम्हारी शरारतों का बदला मैं तुमसे इसी घर में दुबारा जन्म लेकर लूंगा और तुम्हें खूब सताऊँगा|'

''लेकिन कैसे दादा जी ? वह उत्सुकतावश पूछ बैठता |

 वे तब थोड़ा गंभीर होकर कहते ,' मैं हमेशा  तुम्हारे पास  थोड़े ना रह पाऊँगा | एक ना एक दिन  मुझे भगवान् जी के पास जाना ही पडेगा |उसके बाद मैं किसी और रूप में तुम्हारे पास आ जाऊँगा !'' वे उसका  सर सहलाते हुए कहते | 

'नहीं दादा जी ''-- नीरज सब शरारते भूलकर उनसे  लिपट जाता और कहता --' मैं आपको भगवान् जी के पास कभी ना जाने दूँगा| आप हमेशा रहेंगे मेरे साथ |'

नीरज तब लगभग रो  पड़ता तो दादा जी उसे गले से लगा कर खूब समझाते हुए नीम का पेड़ दिखाते और कहते --'देखो! ये नीम का पेड़ है ना !बारिश में जब इसकी निबौरियाँ झरती हैं तो ढेरों नन्हें पेड़ उगते हैं |ये पेड़ अपने ना होने के बाद भी इन नन्हें पेड़ों   में हमेशा  जीवित रहता है |वैसे ही इंसान भी संसार के जाने के बाद भी   अपने बच्चों और नाती- पोतों में हमेशा  रहता है |नीरज की आँखें नम हो आईं|

 तभी  उसकी तन्द्रा भंग हुई | उसने देखा मँझले चाचा जी  उसे  बुला रहे थे |पूजा की तैयारी पूरी हो चुकी थी थी |पंडित जी भी पधार चुके थे |  पहली बार नीरज ने अपने  पूरे  परिवार को बड़े ध्यान से देखा तो   अपने पिताजी आज उसे दादा जी की तरह नज़र आ रहे थे -- उन्हीं की तरह बिलकुल गंभीर और दायित्व से भरे हुए !मँझले चाचा की    मूँछें दादा जी तरह ही नुकीली थी , तो छोटे चाचा  मोटी-मोटी आँखों  और  हँसते हुए चेहरे के साथ दूसरे दादा जी ही लग रहे थे | जड़वत-सा खड़ा  वह सोच रहा था कि अब तक वह ये सब क्यों जान ना पाया था |सचमुच , नीम के नन्हे पौधों की तरह दादा जी घर के हर सदस्य में नज़र आ रहे थे |

इसी बीच पंडित जी ने पूजा की और खीर व पूरियों से भरी थाली कौओं को जिमाने के लिए नीरज के हाथ में दे दी |नीरज ने पूरियों के छोटे- छोटे टुकड़े किये और आँगन में खड़े होकर  कौओं के लिए छत पर  डाल दिया | साथ में जोर-जोर से आवाज़ लगाई ,' आओ देवता आओ !आओ देवता आओ !' कौओं के झुण्ड छत पर उतरने लगे थे |नीरज को अपने भीतर दादा जी मुस्कुराते हुए नज़र आ रहे थे | अनायास   आँखों से गर्म आँसूं छलक कर  उसके  गालों  पर लुढ़कने लगे थे | 


ब्लॉगिंग का एक साल ---------आभार लेख

 निरंतर  प्रवाहमान होते अपने अनेक पड़ावों से गुजरता - जीवन में अनेक खट्टी -   समय निरंतर प्रवहमान होते हुए अपने अनेक पड़ावों से गुजरता हुआ - ...