भारत के परिचय में सबसे पहले शामिल होने वाले प्रतीकों में गंगा का नाम सर्वोपरि आता है | यूँ तो हर नदी की तरह गंगा भी एक विशाल जलधारा का नाम है पर भारतवासियों के लिए ये एक मात्र नदी बिलकुल नही है बल्कि प्रातः स्मरणीय प्रार्थना है | कौन सा वेद है ,कौन सा पुराण हैं ,जहाँ गंगा नही है | हर धर्मग्रन्थ में गंगा को महत्व मिला है और इसकी महिमा का भरपूर बखान किया गया है |इसे भूलोक की ही नहीं अपितु तीनों लोकों की जलधारा मान कर त्रिपथगामिनी कह पुकारा गया अर्थात भूलोक के साथ -साथ स्वर्ग और पाताल लोक में भी इसका अस्तित्व माना गया |तुलसीदास जी ने भी गंगा को त्रिलोकपावनी सुरसरि कह पुकारा तो आधुनिक कवियों और साहित्यकारों ने भी गंगा को प्रेरणा मान का इस पर अनगिन प्रशस्ति - गान रचे | देवों के साथ दानवों और मानव ने इसे बराबर पूज्य माना |पुरातन धर्म ग्रन्थों की कहें ,तो गंगा को विष्णु जी के नख से उत्पन्न माना गया जो ब्रह्मा जी के कमंडल से होती हुई शिव जी की जटा में समा गई थीँ ,जहाँ से भगीरथ के तप के फलस्वरूप उसे भूलोक पर उतरना पड़ा क्योंकि इसी से भागीरथ के शापित पूर्वजों को मोक्ष मिलना था ,जो ऋषि के शाप के कारण भस्म हो गये थे | उन्हीं की मुक्ति की आकांक्षा संजोये भगीरथ ने गंगा को स्वर्ग से धरा पर उतारने के लिए कठोर तपस्या की | उसी का अनुसरण करते हुए ये
समस्त भारत वर्ष के लिए मोक्षदायिनी बन गई | युगों - युगों से बहती गंगा ने देवभूमि भारत की सभ्यता और संस्कृति को अपने वात्सल्य से पोषित किया है |
विदित रहे गंगा को भारतवर्ष की सबसे बड़ी होने का गौरव प्राप्त है |इसकी कुल लंबाई 2525 किलोमीटर और इसका उद्गम स्थान हिमालय में गंगोत्री नामक ग्लेशियर है | इसी की सहायक नदी यमुना का उद्गम हिमालय का ही यमुनोत्री स्थान है | ये इलाहाबाद में गंगा में समा जाती है | कहा जाता है ,कि इसी स्थान पर अप्रत्यक्ष रूप से तीसरी नदी सरस्वती भी गंगा में आ मिलती है ,जिससे इस स्थान को संगम नाम से भी पुकारा गया है ! गंगा अपनी निरंतर यात्रा में गतिमान रहकर, अनेक स्थानों से गुजरती हुई , अंत में गंगासागर नामक स्थान पर सागर में जा समा जाती है ,जिसकी यात्रा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना गया है | इस यात्रा के बारे में कहा गया है ---' सारे तीर्थ बार -बार , गंगासागर एक बार |''
गंगा भारत की मात्र नदी नहीं हैं | इस के किनारों पर अनगिन सभ्यताएँ और संस्कृतियां पनपी और विकसित हुईं | विशाल जन समूह के लिए ये नदी जीवनदायिनी है| इसके अविरल प्रवाह ने अपने किनारे बसी केवल मानव सभ्यता को ही पोषित नहीं किया, बल्कि अनेक प्रकार की वनस्पतियों , वन्य प्राणियों और जलचरों के जीवन को भी संरक्षण दिया है | हिन्दू धर्म ग्रन्थों में गंगा को माँ और मोक्षदायिनी कह कर पुकारा गया | उसे सोम -तत्व युक्त अमृतधारा माना गया| सबसे बड़ी बात है , कि गंगा को नारीरूपा और माँरूपा मानकर इस का सम्मान किया गया और इसे पूज्य माना गया | हिमालय की पुत्री के रूप में उसे भी उसे नारीरूपा ही माना गया | महाभारत में भीष्मपितामह को गंगा- पुत्र होने का गौरव प्राप्त है | भगीरथ की तपस्या के फलस्वरूप धरती पर अवतरित हुई गंगा को भागीरथी के साथ -साथ विष्णुपदी और ब्रह्मा जी के कमंडल से प्रवाहित भक्ति और शक्ति कह कर पुकारा गया | नदियों में गंगा ने हमेशा प्रथमपूज्या देवी के रूप में सम्मान पाया है | कुम्भ और अर्ध कुम्भ के रूप में इसके किनारे मानव सभ्यता का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आयोजन होता है | गंगा के साथ यमुना को भी सूर्यपुत्री और यम की बहन के रूप में नारी- रूपा और देवी रुपा माना गया| इसका पौराणिक महत्व गंगा से कम नहींआंका गया | यहाँ तक कि भारत की एकता को भी गंगा के साथ यमुना के नाम पर गंगा - ज़मनी तहज़ीब कहकर बुलाया गया | दुःखद है कि वेद - पुराणों में सनातन काल से जिस अवधारणा को दर्शाया गया है-- उसे अनदेखा किया गया| मानव की अति महत्वकांक्षा के फलस्वरूप इन देहकल्पित नदियों को मात्र निर्जीव नदी समझ कर इसके अस्तित्व को खंडित किया गया | साल दर साल नदियों पर इन अत्याचारों का चलन बढ़ता गया | किनारों पर औद्योगिक इकाइयों का स्थापन और कालांतर में गंदगी का मुंह इसकी अविरल निर्मल धारा की ओर मोड़ कर रही -सही कसर भी पूरी कर दी गई| जिसके फलस्वरूप आज गंगा अपने अस्तित्व को खोने के कगार पर खडी है |कितना अच्छा होता -इसे उसी सनातन रूप में समझकर इसके अस्तित्व को खंडित ना किया गया होता तो गंगा का सोम तत्व आज भी मानव मात्र के लिए अमृत ही रहता - मानव की गलतियों से जो विष बनने के समीप है | इसके किनारे खडी वन संपदा को नष्ट कर मानव ने उतराखंड -त्रासदी जैसी भयावह जल -विभीषिका को निमंत्रण दिया है जिसमे अनगिन लोगों को अपनी जान गंवानी पडी थी |
पिछले साल मार्च में मार्च को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने अपने ऐतहासिक निर्णय में गंगा - यमुना नदियों को भारत वर्ष की जीवित इकाई मानते हुए उन्हें लीगल स्टेटस प्रदान किया और दोनों नदियों को किसी जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार दिया है | भारत के सांस्कृतिक , सामाजिक और धार्मिक जीवन में इस समाचार से अभूतपूर्व उत्साह का संचार हुआ है | सबसे बड़ी बात ये है, कि गंगा को अतिक्रमण मुक्त करने और उत्तराखंड - उत्तरप्रदेश के बीच नदियों का बंटवारा करने की ये जनहित याचिका एक मुस्लिम नागरिक द्वारा दाखिल की गई थी , जिसने न्यूजीलैंड की एक नदी बांगक्यू का उदाहरण दिया , जिसे वहां की सरकार ने जीवित मानव के सामान अधिकार देकर जीवन दान दिया | इस फैसले के अनुसार गंगा -यमुना की और से मुकद्दमे सभी प्रकार की अदालतों में दाखिल किये जा सकते हैं - इनमे कूड़ा फैकने और अतिक्रमण करने पर मुकद्दमा किया जा सकता है | इसके अलावा इस रोचक निर्णय में कहा गया कि गंगा - यमुना की गलतियों को नजर अंदाज ना करते हुए उन्हें भी अपने पानी से खेतों के बह जाने पर और आसपास गंदगी फैलाने का दोषी माना जाएगा अर्थात गंगा - यमुना को यदि अधिकारों के योग्य माना गया तो उनके कर्तव्य भी निर्धारित किये गए हैं |
यूँ तो गंगा स्नान के लिए हर दिन का अपना महत्व है पर कुछ विशेष अवसरों पर इसकी महिमा बढ़ जाती है | गंगा -दशहरा भी एक ऐसा ही पावन पर्व है जिस दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है | साथ में ये भी कहा जाता है, कि इस दिन प्रत्येक नदी में गंगा का वास होता है | गंगा- स्नान के साथ हमें गंगा की मलिन होती धार और उसके मिटते अस्तित्व के प्रति चिंतित हो उसे बचाने और इसके प्रदूषण को दूर
करने में अपना यथा संभव सहयोग देना चाहिए नहीं तो गंगा एक विस्मृत धारा मात्र बन कर रह जायेगी |कहीं ऐसा ना हो मानव मात्र की गलतियों से त्रिपथगामिनी मात्र एक कल्पना बन कर रह जाये | --
विशेष--- एक प्रार्थना हर उस नदी के लिए जो अपने क्षेत्र की गंगा है___
नदिया ! तू रहना जल से भरी -
सृष्टि को रखना हरी भरी |
देना मछली को घर नदिया ,
सभी साहित्य प्रेमियों को अधिक मास के विशेष गंगा -दशहरा के पावन अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
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झूमे हरियाले तरुवर तेरे तट -
तेरी ममता की रहे छाँव गहरी!!
देना मछली को घर नदिया ,
प्यासे ना रहे नभचर नदिया ;
अन्नपूर्णा बन - खेतों को -
अन्न - धन से देना भर नदिया !
!
हों प्रवाह सदा अमर तेरे -
बहना अविराम - न होना क्लांत ,
कल्याणकारी ,सृजनहारी तुम
रहना शांत -ना होना आक्रांत ,!!
पुण्य तट तू सरस , सलिल ,
जन कल्याणी अमृतधार -निर्मल ;
संस्कृतियों की पोषक तुम -
तू ही सोमरस -पावन गंगाजल !!
सभी साहित्य प्रेमियों को अधिक मास के विशेष गंगा -दशहरा के पावन अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
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धन्यवाद शब्द नगरी -- |
रेणु जी बधाई हो!,
आपका लेख - (गंगा रे तू बहती रहना -लेख --) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
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नदी की अक्षुण्णता की कमना लिए बेहद ही सुंदर कृति। लेख व कविता दोनों ही जैसे कलकल बहती सरिता।
जवाब देंहटाएंआदरणीय पुरुषोत्तम जी -- आपके शब्द मेरे लिए अनमोल रहे हैं | आपकी आभारी रहूंगी | सादर --
हटाएंवाह्हह.... अप्रतिम, बेहद सुंदर और सराहनीय पतित पावनी गंगा की महिमा।
जवाब देंहटाएंदी आपकी लेखनी से मुखरित कोमल भाव की पवित्र जलधारा ने हृदय पुलकित कर दिया।
बहुत सुंदर लेख और कविता भी बहुत ही सुंदर है👌👌👌
प्रिय श्वेता -- आपका उत्साहवर्धन अनमोल है | सस्नेह आभार |
हटाएंबहुत सुंदर, सार्थक लेख ....माँ गंगे की पवित्रता स्वच्छता बनाए रखने का सुंदर प्रयास ही तो है यह । बहुत ही सराहनीय और लाजवाब लिखा है आपने... पुरातन काल से लेकर आज तक .....साथ ही सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंवाह!!!
प्रिय सुधा बहन -- आपकी वाह मेरे भीतर अपार हर्ष और उत्साह का संचार करती है | आपके स्नेहासिक्त शब्दों के लिए आभारी हूँ | सस्नेह
हटाएंपुण्य तट तू सरस , सलिल ,
जवाब देंहटाएंजन कल्याणी अमृतधार -निर्मल ;
संस्कृतियों की पोषक तुम -
तू ही सोमरस -पावन गंगाजल !..... माँ गंगा के लिए आपके हृदय से निकले भाव मन को छू गए ... सार्थक लेख
आदरणीय वन्दना जी--- कविता और लेख पसंद करने के लिए सादर आभार आपका |
हटाएंगंगा मैया के संदर्भ में विस्तार के साथ धार्मिक, ऐताहासिक और भौगोलिक पक्ष आपने प्रस्तुत किया है। साथ ही कविता अति सुंदर है। प्रणाम
जवाब देंहटाएंआदरणीय शशि जी -- मैंने तो छोटा सा प्रयास किया है पर आप लोगों के स्नेह ने इसे सफल कर दिया | आपकी आभारी रंहुंगी | सादर --
हटाएंनदिया ! तू रहना जल से भरी -
जवाब देंहटाएंसृष्टि को रखना हरी भरी |
झूमे हरियाले तरुवर तेरे तट -
तेरी ममता की रहे छाँव गहरी!!
वाव्व...बहुत ही सुन्दर रचना,रेणु।
प्रिय ज्योति जी -- आपको रचना पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हुआ | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/05/71.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआद्र्मीय राकेश जी -- आपके सहयोग की आभारी रहूंगी | सादर --
हटाएंहर -हर गंगे जय माँ गंगे ,गंगा की महिमा अतुलनीय है
जवाब देंहटाएंसही लिखा है रेणु जी भारतीय इतिहास का कोई भी धर्म ग्रंथ हो ,उसमें वर्णित है गंगा सिर्फ़ नदी नहीं ,गंगा माँ है ,पूजनीय है , श्रद्धा है ,गंगा स्वयं माता है ,जीवनधारा है ।
सस्नेह आभार ऋतू बहन |
हटाएंसच है पुरातन से ही गंगा कहीं न कहीं जीवन से जुड़ी रही है ...
जवाब देंहटाएंये हमारी संस्कृति का अंग है ... जीवन अमृत है ...
सुंदर आलेख ...
आदरणीय दिगम्बर की सादर आभार आपका |
हटाएंबहुत सुंदर.... सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंप्रिय संजय जी --लेख आपको पसंद आया मेरा लेखन सार्थक हुआ | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंनदियाँ बची रहेंगी तो हम बचे रहेंगे
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक लेख
हर हर गंगे
आदरणीय लोकेश जी बिल्कुल अनमोल बात लिखी आपने ।सादर आभार ।
हटाएंहों प्रवाह सदा अमर तेरे -
जवाब देंहटाएंबहना अविराम - न होना क्लांत ,
कल्याणकारी ,सृजनहारी तुम
रहना शांत -ना होना आक्रांत ,!!..... वाह! जीवन का तो यहीं दर्शन!!!!
सादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी।
हटाएंअसाधारण लेख।
जवाब देंहटाएंऔर उसके साथ इतनी सुंदर पावन कविता रेणु बहन आपकी लेखनी को नमन।
बहुत ही सारगर्भित हर मुद्दे को समेटे हुए रोचकता बनाऐ रखने में सक्षम अप्रतिम लेखन।
सदा लेखनी यूं ही मुखरित रहे ।
सस्नेह।
सस्नेह आभार प्रिय कुसुम बहन। आपके शब्द हमेशा लेखन की ऊर्जा बनते हैं। हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार आपके लिए। 🙏🙏🙏
हटाएं
जवाब देंहटाएंहों प्रवाह सदा अमर तेरे -
बहना अविराम - न होना क्लांत ,
कल्याणकारी ,सृजनहारी तुम
रहना शांत -ना होना आक्रांत ,!!
जीवन का फलसफा बताती पंक्तियां
बहुत सुन्दर आलेख.
गंगा दशहरा की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंप्रिय सुधा जी, सस्नेह आभार और आपको भीगंगादशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं। 🙏🙏
हटाएंहों प्रवाह सदा अमर तेरे -
जवाब देंहटाएंबहना अविराम - न होना क्लांत ,
कल्याणकारी ,सृजनहारी तुम
रहना शांत -ना होना आक्रांत ,!!...
बहुत सुन्दर लेख और बेहतरीन कविता प्रिय रेणु दी जी
सादर
सस्नेह आभार प्रिय अनीता। 😊😊🙏🙏
हटाएंपुण्य तट तू सरस , सलिल ,
जवाब देंहटाएंजन कल्याणी अमृतधार -निर्मल ;
संस्कृतियों की पोषक तुम -
तू ही सोमरस -पावन गंगाजल
बहुत सुंदर रचना सखी ,गंगा की पवित्रता और महत्व को समझाता बेहतरीन लेख
हार्दिक आभार सखी | तुम्हारी स्नेहिल प्रतिक्रिया बहुत स्नेहिल है |
हटाएंरेणु दी, गंगा की महिमा को आपने बहुत ही खूबी से व्यक्त किया हैं। गंगा तो पावन हैं, हम इंसान ही अज्ञानता वश उसे मलिन कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति जी हार्दिक आभार आपका लेख पर इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए 🙏🙏🌹🌹
हटाएंवाह!प्रिय सखी रेनू जी ,गंगा की महिमा का बखूबी चित्रण किया है आपने ,सुंदर कविता के साथ ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय शुभा बहन 🙏🙏🌹🌹
हटाएंजितनी पुनीत,पावन माँ गंगा की धारा उतनी ही निश्छल,निर्मल आपकी कलम की धार।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब लिखा आपने आदरणीया दीदी जी। अद्भुत,सुंदर। कोटिशः नमन आपको और आपकी कलम को। माँ गंगा मेरा प्रणाम 🙏
हार्दिक आभार और प्यार प्रिय आँचल इन स्नेहासिक्त शब्दों के लिए |
हटाएंबहुत खूबसूरत आलेख
जवाब देंहटाएंहर हर गंगे
गंगा की धारा की तरह अविरल बहती लेखनी ने गंगा के मर्म को छूते हुए उसकी जीवंतता, प्रवाहता और शीतलता को बड़े ही सुंदर ढंग से लिखा है, गंगा दशहरा पर इस उत्कृष्ट आलेख तक पहुंचाने के लिए हार्दिक शुक्रिया। गंगा दशहरा की बधाई🌹🌹
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