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बुधवार, 3 जून 2020

पर्यावरण मित्र -साईकिल [ विश्व साईकिल दिवस पर विशेष ]

साइकिल चलाने वाली लड़की चित्र ...

 क्या आपको  बचपन की अपनी  शान की  सवारी  याद है ?  वो सवारी जिसकी पीठ पर सवार हो   सपनों को जैसे पंख से लग जाते थे | वो सवारी जो  आपको लिए बिना किसी व्यवधान के किसी भी गली -मुहल्ले  में बेरोक टोक  प्रवेश  पर  जाती थी  | वो  एक साथी ,  जिस के साथ को   आम परिवारों के सभी बच्चे लालायित रहते थे  और  एक अनार सौ बीमार जैसी भयंकर स्थिति  होते देर नहीं लगती थी  । जो कभी निम्नमध्यवर्गीय परिवारों में   शान की प्रतीक   थी | जी हाँ , वह साईकिल  के अलावा कोई दूसरी चीज हो ही नहीं सकती |बचपन की  यादों में  हर किसी को जो  याद सबसे ज्यादा रोमांचित करती है, वह है साईकिल की सवारी |  वे वही साईकिल है,  जिसका  विज्ञापन रेडियो और  टी. वी. पर सबसे ज्यादा   मनभावन  लगता था |और जो  बच्चा साईकिल पर स्कूल आता था  सहपाठियों की  नजर में कहीं   ना कहीं    बहुत भाग्यशाली  माना जाता था |  वे वही साईकिल थी  जो   आँगन की  शोभा   मानी जाती थी  और जिसके आगे आज की महंगी कार की ख़ुशी भी  फीकी  है  |
गति के रोमांच  में  पिछड़ी  साईकिल --   विगत ढाई - तीन  दशकों  में  आम आदमी की औसत  आय में अभूतपूर्व   उछाल आया है , जिसके चलते  आम घरों में  साईकिल का  स्थान तीव्र गति से भागने वाले दुपहिया वाहनों  मोटरसाईकिल , स्कूटर,   मोपेड  स्कूटी इत्यादि ने ले लिया |  गति के रोमांच ने साईकिल  को   पीछे छोड़ दिया और बचपन के रोमांच की सवारी  के रूप में  तेजी से भागने वाले दुपहिया  वाहन अधिक लोकप्रिय हो गये | कालान्तर में  दुपहिया  से आगे छोटी कारेंऔर उसके  बाद बड़ी कारें  आ  गयीं |बढती सम्पन्नता के बीच     अच्छी आदमनी वाले अभिभावकों ने   अपने नौनिहालों को  साईकिल की जगह   स्कूटर, बाइक इत्यादि की चाबी सौंपने में अधिक गर्व की अनुभूति की | 
   जादू फिर भी रहा बरकरार -- भले  साईकिल  गति के बढ़ते  शौक के बीच कहीं खो सी गयी थी  |इसके   बाद भी  साईकिल ने अपनी  गरिमामयी उपस्थिति    हमेशा बनाये  रखी |  इसके दो पहियों  पर दौडती ख़ुशी को   महसूस करने वाले लोग हर दौर में रहे   जिन्होंने इसका महत्व बनाये रखा |  परिवहन  का ये सस्ता,  सरल साधन   बहुत से लोगों  की दिनचर्या का अभिन्न अंग रहा भले ही उनके पास    अन्य साधनों की कमी ना रही हो |   दूध  , सब्जी , डाक  और  अखबार वितरण करने वाले लोगों के लिए ,  दशकों से साईकिल  ही  एक मात्र सवारी रही | सेहत के शौकीनों ने भी कभी इसे अपने से अलग नहीं किया | खेलों की दुनिया में भी स्थानीय स्तर से लेकर ओलम्पिक  तक सबमें  साईकिल को सदैव महत्त्व  मिला है | विश्व में    चीन के बाद  भारत  में सबसे ज्यादा साइकिल  बनाई  और  प्रयोग  की  गयी। 

  पर्यावरण मित्र   साईकिल --दो शताब्दियों  का  साथ है साईकिल  और मानव का |  इसकी उपयोगिता को  कभी नकारा नहीं गया |   पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए साईकिल     , वाहन का सर्वोत्तम विल्कप है |थोड़ी दूर जाने के लिए अथवा आसपास किसी काम के  लिए  इससे बेहतर कुछ  भी  नहीं |दिन रात धुंआ उगलते वाहनों  की तुलना में साईकिल  प्रकृति   के लिए किसी वरदान से कम नहीं |  जेट युग में इस  सवारी का  महत्व  फिर से  बढ़ने के आसार दिखाई देते हैं   |  पैसों से ख़रीदे गये   तेल की जगह , शारीरिक बल से चलती साईकिल  कम आमदनी   वाले व्यक्ति के बजट में  भी आसानी से समा  जाती है तो प्रकृति को कोई भी नुकसान पहुंचाए बिना  ,  जीवन के कच्चे- पक्के रास्तों पर  अनवरत चलती रहती है |    
 विश्व साईकिल दिवस -- संयुक्त राष्ट्र संघ  ने पर्यावरण के मित्र के रूप में साईकिल की स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिए  ,  एक  दिन साईकिल  के  नाम करते हुए ,आधिकारिक रूप से  3 जून 2018 से    विश्व साईकिल मनाने की अनोखी शुरुआत  की | जिसका मकसद  पर्यावरण  को बचाने के साथ -साथ   लोगों  की बिगडती सेहत को संवारने केअलावा साईकिल को वाहन के  सबसे सस्ते  विकल्प   के रूप में प्रचारित करना भी है | 

सर्वांग  व्यायाम है साईकिल  चलाना-- साईकिल चलाना  एक  सर्वोत्तम   व्यायाम  भी  है | वजन घटाने से लेकर   मानसिक   एकाग्रता में इसका योगदान  अतुलनीय है | साईकिल चलाने से पेट की चर्बी घटती है तो  ह्रदय रोग  का खतरा कम होता है  साथ में  शारीरिक मांसपेशियाँ  मजबूत होती हैं |   रोजाना साईकिल चलाने से  शरीर तो पैरों  , टखनों और जोड़ों को मजबूती मिलती है |  

रोचक है साईकिल का इतिहास ----- हर  आविष्कार   मनुष्य की  अन्वेषी और जिज्ञासु  प्रवृति का नतीजा है \ कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है |   यही बात साईकिल  के आविष्कार  पर भी लागू होती है  इसके बारे में बहुत  प्रामाणिक तथ्य शायद आज भी मौजूद नहीं  और किसी एक व्यक्ति को  इसके  आविष्कार का श्रेय देना भी उचित नहीं | पर  हमें ये जरुर मान लेना चाहिए  कि आविष्कार  के   कई चरणों  से गुजरकर  आज की सर्वगुणसंपन्न साईकिल अस्तित्व में आई | 1418 में  हुए पहिये   का आविष्कार  साईकिल की खोज की नींव बना |    ये जानना भी रोचक रहेगा कि  जर्मनी  के एक नागरिक  जिओ  वानी फुंटाना ने चार पहियों वाली साईकिल का आविष्कार किया था  जो समय   के साथ भूली बिसरी  याद बनकर  गया | इसे बाद 
1818में  कार्ल वॉन ड्राइस नामक व्यक्ति ने  एक साइकिल   बनाई, जिसे धक्का मारकर चलाया जाता था  |इसके बाद  मैकमिलन  नाम के व्यक्ति ने   लकड़ी   के   फ्रेम  के साथ इसमें लोहे के  पैडल   के साथ स्टेयरिंग  भी लगाया था  | पर ये साईकिल बहुत वजनी थी |  समय के साथ बदलती  साईकिल   का फ्रेम  बाद में    फ्रेम  मेटल का हो गया  जिसमें रबड़ के टायर  लगाये गये  | ये पहले से बेहतर हो गयी थी | पर इसके पहिये   असमान अर्थात छोटे बड़े  थे,जो चलाने में  ज्यादा सुरक्षित नहीं थी | 1880  जे के  स्टारले ने  रोबर्ट  नामक साईकिल का आविष्कार  किया  जिसके  बाद  से इसके आकार  और डिजाईन  में  निरंतर बदलाव  होते- होते , ये एक सुरक्षित और सुंदर रूप में अस्तित्व में आई | और बहुत जल्दी लोकप्रिय हो हर मन का सपना बन गयी | इसी के स्वरूप में  तकनीकी सुधारों के साथ मोटर साईकिल और मोपेड , स्कूटर  आदि बनाये जाने लगे जो  ईंधन      से चलते थे और अपनी गति  के रोमांच से साईकिल को पीछे कर लोकप्रियता में आगे निकल गये | पर  ये जानना रोचक रहेगा  किराईट बन्धुओं ने विमान के आविष्कार के लिए साईकिल बनाकर और बेचकर धन जुटाया था और उसके  बाद  की  विमान बनाने की समस्त भागदौड़ साईकिल द्वारा ही   की थी ,  जिसके बाद ही वे ऐसा आविष्कार कर पाए  जिसने मानव  गति को पंख देकर , सभ्यता  के इतिहास को बदलकर रख दिया | आज साईकिल अनेक सुधारों और सुविधाओं के साथ अलग अलग  आकारों और   लुभावने स्वरूपों में  हमारे समक्ष है |  बच्चों से लेकर बड़ों और महिलाओं के लिए ख़ास  तरह की सुविधाओं  के साथ विशेष  मॉडल उपलब्ध हैं | 
  फिल्मकारों की रही चहेती -- साईकिल का जादू फ़िल्मी  दुनिया के सर पर भी खूब  चढ़कर  बोला |   देवानद से लेकर आमिर खान  और  रणधीर कपूर,  तो नूतन से लेकर   आलिया भट्ट तक , सबने रजत पट पर साईकिल खूब चलायी | नायक का नायिका से इजहारे मुहब्बत हो या  नायिका  की कालेज जाते समय सहेलियों के साथ मौज मस्ती ,  सब  दृश्यों में    साईकिल   ने अपनी मनभावन    छटा बिखेरी | पुरानी फिल्मों में फूलों की टोकरी  वाली  साईकिल  चलाते  नायक -नायिका की चुहलबाज़ी किसका मन  ना मोह लेगी ?  इसके साथ कार में बैठी  रूठी नायिका को साईकिल पर मनाते नायक   या फिर एक साईकिल पर  रोमांस का सफ़र तय करते नायिका -नायक  सबके मन  को हमेशा  भाते रहे  | 
  याद आने लगा   महत्व-- आज कोरोना संकट के बीच पर्यावरण   की शुद्धता के  बीच  लोगों को साईकिल  खूब याद आई |  कोरोना संकट से विचलित  साधन हीन श्रमिक वर्ग  पैदल के साथ बहुधा साईकिल पर सवार हो  सैकड़ों मीलों का  सफ़र   साईकिल से  तय करते देखे गये तो अपनों की फ़िक्र में  भागते   लोग अपनों के लिए साईकिल  के जरिये  अपनों तक पंहुचते देखे गये | सेहत    को बेहतर बनाने के लिए लोकबंदी में कमरों के बीच  लोगों ने साईकिल चलाकर अपनी सेहत खूब संवारी  | इसी तरह आने वाले समय में भी साईकिल के   स्वर्ण युग  की वापसी हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी | 

 आज साईकिल दिवस के अवसर पर हमें  साईकिल को एक संकटमोचन  के रूप में याद करना होगा | अपने साथ-  साथ  हमारे बच्चों को भी  साईकिल चलाने के लिए प्रेरित करना होगा ताकि  आलस्य में डूब रही  भावी पीढी अपना स्वास्थ्य,  संवार कर देश की प्रगति  और पर्यावरण  सुधारने में अपना अहम् योगदान दे सके | 

अंत में फ़िल्मी पर्दे से साईकिल   पर  फिल्माया  गया  एक  मधुर  रोमांचत गीत -




चित्र  और तथ्यात्मक  जानकारी -- गूगल से साभार |


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