चित्र--- अपनी चिरपरिचित गर्वित मुस्कान के साथ कल्पना चावला --
परिचय भारत की अत्यंत साहसी और कर्मठ बेटियों का जिक्र बिना कल्पना चावला के कभी पूरा नही होता | उन्हें भारतीय मूल की पहली महिला अन्तरिक्ष -यात्री होने का गौरव प्राप्त है| कल्पना चावला भारतीय नारी का वो चेहरा है जिसने अपनी विलक्षणता और निरंतर लगन से अपने कर्तव्यपथ पर अग्रसर रहकर आम लड़की को नयी पहचान दी है | वे आम भारतीय परिवार में उस समय जन्मी जब समाज में नारी की शिक्षा के प्रति अधिक जागरूक नजरिया नहीं था | आम परिवारों में उस समय बेटियों के सपनों का कोई मूल्य नहीं था |सपना भी इतना अद्भुत अर्थात एरोनाटिक इंजिनियर बनने का , जो उस समय सिर्फ पुरुषों के वर्चस्व का क्षेत्र था | लेकिन कल्पना भाग्यशाली रही कि वे खुद तो बहुत ही लगन शील थी ही -उन्हें ईश्वर ने ऐसे माता -पिता भी दिए, जिन्होंने बेटी के सपनों को साकार करने में कोई कसर नहीं छोडी | उन्होंने उसे अपने सपने साकार करने का पर्याप्त अवसर और सहयोग दिया |नारी के शनै - शनै हो रहे उत्थानकाल में वे एक प्रेरणा पुंज की भांति अवतरित हुई और देखते ही देखते अपनी अद्भुत प्रतिभा के चलते -अपने नगर , राज्य , और देश को छोड़कर कर विश्व की समस्त नारी जाति के लिए एक आदर्श महिला बन गयी |उन्होंने अपनी अथक मेहनत से अपने सपनों की सबसे ऊँची उड़ान भरी | | कल्पना अपनी जुझारू प्रवृति के लिए तो प्रसिद्ध है , साथ में अपनी सरलता और सादगी केलिए भी जानी जाती है |वे एक गम्भीर श्रोता और संकोची स्वभाव की मितभाषी लडकी थी | उन्हें वैभवशाली जीवन से मोह नहीं था | 'सादा जीवन उच्च विचार 'की परम्परा का निर्वहन करते हुए उनकी दृष्टि हमेशा अपने लक्ष्य पर रही |उन्हें ना भौतिकता से मोह था , ना किसी बनावटी जीवनशैली से |उनकी प्रतिभा के साथ - साथ उनकी सादगी भी प्रेरक है | उन्होंने एक साधारण बालिका से ले कर अन्तरिक्ष यात्री का शानदार जीवन जिया और अपने जीवन को हर स्वप्नदर्शी बालिका के लिए प्रेरणा का प्रतीक बनाया |
चित्र -- पति और परिवार के साथ कल्पना
चित्र -- पति और परिवार के साथ कल्पना
जीवन परिचय - हरियाणा राज्य के छोटे से शहर करनाल में 17 मार्च 1961 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में कल्पना का जन्म हुआ | माता - पिता की चार संतानों में वे सबसे छोटी थी | उनके पिता श्री बनारसी दास चावला और माँ का नाम संजयोती था | कल्पना को बचपन में मोंटी नाम से पुकारा जाता था ,पर जब उन्हें स्कूल में दाखिला ले दिलवाने के लिए ले जाया गया तो स्कूल की अध्यापिका ने उन्हें उनके प्यार के नाम से अलग तीन सार्थक नाम सुझाये, जिनमे से उन्होंने 'कल्पना' नाम को चुना , इस तरह से --नन्ही मोंटू ' को अपना ही चुना 'कल्पना ' नाम मिला जो उनके लिए अत्यंत शुभ और सार्थक रहा |अपनी उम्र के दूसरे बच्चो से काफी भिन्न कल्पना को सितारों की दुनिया से विशेष अनुराग था | अपने बचपन में वे अक्सर छत पर बैठ विशाल आसमान को निहारा करती और उनकी ही कल्पना में गुम रहती | शायद उनका सितारों की दुनिया से ये लगाव ही -उनके भविष्य के जीवन के लिए कहीं ना कहीं भूमिका तैयार कर रहा था , साथ में एक दैवीय संकेत भी था कि उन्हें अंततः किसी दिन इसी विराट अन्तरिक्ष का हिस्सा हो जाना था कल्पना चावला को शुरू से ही जे आर डी टाटा के जीवन ने बहुत ने बहुत प्रभावित किया और वे उनके बहुत बड़े प्रेरणा स्त्रोत रहे | शायद इस लिए भी कि वे एक सफल उद्योगपति तो थे ही , साथ में एक सुदक्ष पायलट भी थे और अपने अदम्यसाहस और जुझारूपन के लिए जाने जाते थे | सौभाग्य से करनाल एक छोटा शहर होते हुए भी उन गिने चुने शहरों में से एक है जिसमे उन दिनों भी एविएशन क्लब था | कल्पना का मन उस क्लब के छोटे -छोटे विमानों में यात्रा करने को मचलता था | उनके पिताजी एक दिन उन्हें उनके भाई के साथ छोटे से विमान से हवाई यात्रा करवाई |ये उनकी हवाई यात्रा का पहला अनुभव था | शायद इसी रोमांचक अनुभव ने कल्पना को इस क्षेत्र में आने के लिए निरंतर प्रेरित किया होगा|
|उन्होंने पढाई के लिए कोई समझौता नहीं किया |स्कूल के बाद उन्होंने 1982 में चण्डीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से '' एरोनाटिकल इंजीनियरिंग '' की डिग्री प्राप्त की |डिग्री धारण कर घरवालों के विरोध के बावजूद उन्होंने अमेरिका जाकर टेक्सास विश्विद्यालय से एयरोस्पेस इंजिनीयरिंग में 1984 में स्नातकोत्तर की डिग्री ली |इसके बाद भी कोलराडो विश्वविद्यालय से एयरोस्पेस इंजिनीयरिंग में पी एचडी हासिल की | उन्होंने हवाई जहाज , ग्लाइडर, और व्यावसायिकविमानचालक के लिए लाइसेंस भी प्राप्त किये जो उन दिनों एक लडकी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थे | इस प्रकार वे निरंतर सफलता की सीढी चढ़ते हुए कल्पना उपलब्धियों के नित नये आकाश छू रही थी |
चित्र --- कल्पना चावला एक मनमोहक मुद्रा में
शिक्षा --बचपन से अत्यंत मेधावी छात्रा रही कल्पना ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा करनाल के ही '' टैगोर बाल निकेतन स्कूल '' से पूरी की, जो आज भी अपने गौरवशाली इतिहास पर गर्वित कल्पना चावला के स्कूल के नाम से जाना जाता है
|उन्होंने पढाई के लिए कोई समझौता नहीं किया |स्कूल के बाद उन्होंने 1982 में चण्डीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से '' एरोनाटिकल इंजीनियरिंग '' की डिग्री प्राप्त की |डिग्री धारण कर घरवालों के विरोध के बावजूद उन्होंने अमेरिका जाकर टेक्सास विश्विद्यालय से एयरोस्पेस इंजिनीयरिंग में 1984 में स्नातकोत्तर की डिग्री ली |इसके बाद भी कोलराडो विश्वविद्यालय से एयरोस्पेस इंजिनीयरिंग में पी एचडी हासिल की | उन्होंने हवाई जहाज , ग्लाइडर, और व्यावसायिकविमानचालक के लिए लाइसेंस भी प्राप्त किये जो उन दिनों एक लडकी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थे | इस प्रकार वे निरंतर सफलता की सीढी चढ़ते हुए कल्पना उपलब्धियों के नित नये आकाश छू रही थी |
चित्र -- अंतिम यात्रा के सहयात्री
कार्य उपलब्धियां -- कल्पना ने पढाई के बाद 1988 में नासा के लिए काम करना शुरू कर दिया वे वहां एम्स अनुसन्धान केंद्र के लिए ''ओवेर्सेट मेथड्स इंक'' के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करने लगी | 1996 में उन्हें अन्तरिक्ष यात्री कोर में शामिल कर लिया गया और वे अंततः वे एक अन्तरिक्ष यात्री के रूप में चुनी गयी | यहीं से कड़े प्रशिक्षण के बाद उन्होंने 19 नवम्बर 1997 को छह सदस्यीय दल के साथ अन्तरिक्ष शटल कोलंबिया की फ्लाइट संख्या '' एसटीएस-87 '' से अपनी पहली अन्तरिक्ष उड़ान भरी |इस यात्रा के दौरान कल्पना ने अपने साथी अन्तरिक्ष विज्ञानियों के साथ अन्तरिक्ष में 372 घंटे बिताये और अन्तरिक्ष से पृथ्वी के 252चक्कर लगाये |इस दौरान उन्होंने अतरिक्ष की 1.04 मील की यात्रा की |ये दल 5 दिसम्बर 1997 को अपने इस मिशन से वापिस आया | इस महत्वाकांक्षी उड़ान के बाद उन्होंने नासा अन्तरिक्ष यात्री केंद्र में विभिन्न तकनीकी पदों पर कार्य किया जिसके लिए उन्हें बहुत ही सराहना मिली और उनके साथियों ने उन्हें विशेष पुरस्कार देकर सम्मानित किया |
कल्पना चावला भाग्यशाली रही कि उन्हें दूसरी बार फिर से अन्तरिक्ष यात्रा के महत्वकांक्षी मिशन के लिए चुना गया , जिसके जरिये पृथ्वी और अन्तरिक्ष विज्ञान , उन्नत विकास व अन्तरिक्ष यात्री स्वास्थ्य व सुरक्षा का अध्ययन होना था |
इस उड़ान में कर्मचारी दल में उनके साथ कमांडर रिक डी . हुसबंद, पायलट विलियम स . मैकूल , कमांडर माइकल पी एंडरसन , इलान रामो , डेविड म . ब्राउन और लौरेल बी . क्लार्क नाम के सहयात्री भी थे | 16जनवरी 2003 को कोलम्बिया शटल के जरिये ही मिशन '' एस टी एस 107'' का आरम्भ हुआ | इस यात्रा में कल्पना के जिम्मे अहम जिम्मेवारी थी | लघु गुरुत्व पर इन यात्रियों ने 80 प्रयोग किये जिसकी जानकारी ये नासा को भेजते रहे | पर इस यात्रा के साथ ही कोलम्बिया विमान और इन यात्रियों की यह आखिरी यात्रा साबित हुई | 1 फरवरी 2003 को पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते समय ये अन्तरिक्ष यान दुर्घटना ग्रस्त हो गया और उसमे सवार इन सभी सातों होनहार वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की मौत हो गयी | उस समय इस शटल की धरती से दूरी मात्र 63 किलोमीटर थी | कहते हैं कल्पना चावला का कथन था , '' कि मैं अन्तरिक्ष के लिए ही बनी हूँ मेरा प्रत्येक पल अन्तरिक्ष के लिए है और इसमें ही विलीन हो जाऊंगी'' | उनका ये कथन उनकी उनकी दुःखद मौत के बात एक कटु सत्य में बदल गया | कल्पना चावला के साथ ये अन्तरिक्ष यात्री मानवता के लिए अहम अनुसन्धान का योगदान देकर अनंत में विलीन हो गये |
पुरस्कार और सम्मान --- कल्पना चावला को मरणोपरांत अमेरिका में अनेक पुरस्कार से सम्मानित किया गया जिनमे
इस उड़ान में कर्मचारी दल में उनके साथ कमांडर रिक डी . हुसबंद, पायलट विलियम स . मैकूल , कमांडर माइकल पी एंडरसन , इलान रामो , डेविड म . ब्राउन और लौरेल बी . क्लार्क नाम के सहयात्री भी थे | 16जनवरी 2003 को कोलम्बिया शटल के जरिये ही मिशन '' एस टी एस 107'' का आरम्भ हुआ | इस यात्रा में कल्पना के जिम्मे अहम जिम्मेवारी थी | लघु गुरुत्व पर इन यात्रियों ने 80 प्रयोग किये जिसकी जानकारी ये नासा को भेजते रहे | पर इस यात्रा के साथ ही कोलम्बिया विमान और इन यात्रियों की यह आखिरी यात्रा साबित हुई | 1 फरवरी 2003 को पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते समय ये अन्तरिक्ष यान दुर्घटना ग्रस्त हो गया और उसमे सवार इन सभी सातों होनहार वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की मौत हो गयी | उस समय इस शटल की धरती से दूरी मात्र 63 किलोमीटर थी | कहते हैं कल्पना चावला का कथन था , '' कि मैं अन्तरिक्ष के लिए ही बनी हूँ मेरा प्रत्येक पल अन्तरिक्ष के लिए है और इसमें ही विलीन हो जाऊंगी'' | उनका ये कथन उनकी उनकी दुःखद मौत के बात एक कटु सत्य में बदल गया | कल्पना चावला के साथ ये अन्तरिक्ष यात्री मानवता के लिए अहम अनुसन्धान का योगदान देकर अनंत में विलीन हो गये |
पुरस्कार और सम्मान --- कल्पना चावला को मरणोपरांत अमेरिका में अनेक पुरस्कार से सम्मानित किया गया जिनमे
इसके अलावा भारत ने भी अपनी बेटी को नहीं भुलाया है और उनके सम्मान को अक्षुण रखने के लिए अनेक योजनायें जारी की | केंद्र के साथ - साथ हर राज्य सरकार उनके नाम पर पुरस्कार और अन्य महत्वपूर्ण प्रोत्साहन योजनायें चलाई हैं | इनमे से कुछ इस तरह हैं | पंजाब विश्वविद्यालय में लडकियों के एक छात्रावास का नाम कल्पना चावला के नाम पर है साथ में उनके नाम पर होनहार छात्र - छात्राओं के लिए कईनकद पुरस्कार शुरू किये है |कर्नाटक सरकार ने युवा महिला वैज्ञानिक के लिए कई नकद पुरस्कार स्थापित किया गया है | कुरुक्षेत्र ज्योतिसर में स्थापित तारा मंडल का नाम कल्पना चावला के नाम पर रखा गया है ,तो इसरो के मौसम विज्ञान सम्बन्धी उपग्रहों का नाम भी कल्पना के नाम पर रखा गया है |माध्यमिक बोर्ड ने भी होनहार छात्रों के लिए उनकी स्मृति - स्वरूप छात्रवृति की शुरुआत की गई| इन योग्नाओं से लाभ लेने वाले छात्र अवश्य ही उनके जीवन से प्रेरणा ले कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित होंगे |
पलायनवादी होने का आरोप लगा -- कल्पना को प्रतिभावान पलायनवादी भी कहा गया और उनपर आरोप लगता रहा कि वे भारत की नहीं अपितु अमेरिकी नागरिक की हैसियत से अन्तरिक्ष यात्री बनी |पर भारत में आजतक मात्र एक पुरुष राकेश शर्मा को ही अन्तरिक्ष में जाने का सौभाग्य मिला है |यहाँ रहकर शायद ही वे वो मुकाम हासिल कर पाती जो उन्होंने अमेरिका में जाकर प्राप्त किया | अमेरिका जैसे सुविधा संपन्न देश सदैव से ही प्रतिभाओं को हाथोहाथ लेते रहे हैं चाहे वे किसी भी देश से क्यों ना हों | और वैसे भी भारत में भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद की नीतियाँ किसी से छिपी नहीं है | ऐसे में एक महत्वकांक्षी लडकी का बेहतर भविष्य के लिए विदेश जाना कोई अनुचित नहीं दिखायी पड़ता |
पलायनवादी होने का आरोप लगा -- कल्पना को प्रतिभावान पलायनवादी भी कहा गया और उनपर आरोप लगता रहा कि वे भारत की नहीं अपितु अमेरिकी नागरिक की हैसियत से अन्तरिक्ष यात्री बनी |पर भारत में आजतक मात्र एक पुरुष राकेश शर्मा को ही अन्तरिक्ष में जाने का सौभाग्य मिला है |यहाँ रहकर शायद ही वे वो मुकाम हासिल कर पाती जो उन्होंने अमेरिका में जाकर प्राप्त किया | अमेरिका जैसे सुविधा संपन्न देश सदैव से ही प्रतिभाओं को हाथोहाथ लेते रहे हैं चाहे वे किसी भी देश से क्यों ना हों | और वैसे भी भारत में भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद की नीतियाँ किसी से छिपी नहीं है | ऐसे में एक महत्वकांक्षी लडकी का बेहतर भविष्य के लिए विदेश जाना कोई अनुचित नहीं दिखायी पड़ता |
निजी जीवन और भारत यात्रा --- कल्पना चावला को एम-टेक पढाई के दौरान फ़्रांस के नागरिक जों पियरे हैरिसन से प्रेम हो गया जिससे बाद में उन्होंने शादी कर ली |जों अमेरिका में ही प्रशिक्षक थे |वे कल्पना की सादगी भरे संस्कारों से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने समस्त भारतीय संस्कारों के साथ शाकाहार भी हमेशा के लिए अपना लिया | 1991 में दोनों को अमेरिकी नागरिकता मिल गयी | |वे अंतिम बार 1991 -1992 की नव वर्ष की छुट्टियों में भारत अपने पति और परिवार के साथ आई थी |उनकी मौत के बाद करनाल व अन्य जगहों पर , उनकी स्मृति में आयोजित किये गये श्रद्धान्जलि समारोहों में उनके पिता, पति और अन्य परिवारजन विशेष रूप से शामिल हुए थे |
चित्र ००० करनाल में कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज और अस्पताल
कल्पना और करनाल ------ यूँ तो करनाल की अपनी ऐतहासिक और पौराणिक पहचान है |इसे महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की नगरी के नाम से जाना है और आधुनिक सन्दर्भ में कहें तो एशिया का सबसे बड़ा डेरी अनुसंधान जिसे NDRI के नाम से जाना है , भी यहीं स्थित है ,पर कल्पना चावला ने इस शहर को वैश्विक स्तर पर अलग ही पहचान दिलवाई है | अब इसे संसार भर में बस कल्पना चावला के जन्म स्थान के रूप में ही ज्यादा जाना जाता है |उनके पिताजी की करनाल में कपड़े की दूकान थी | बाद में उनका परिवार यूँ तो करनाल छोड़कर दिल्ली बस गया था , पर कल्पना ने भारत के साथ- साथ अपनी जन्म भूमि करनाल को कभी नहीं बिसराया | विद्यार्थियों के वैज्ञानिक उत्थान के लिए शुरू की गयी नासा यात्रा में पूरे हरियाणा से दस विद्यार्थी प्रतिवर्ष नासा जाते हैं ,जिनमे से दो छात्र कल्पना चावला के स्कूल ' टैगोर बाल निकेतन 'से होते हैं | जो बच्चे कल्पना के जीवन काल में नासा गये उन्हें वे विशेष तौर पर अपने घर आमंत्रित कर करती और अपने हाथों से खाना बनाकर खिलाती | आज भी उनके स्कूल में उनकी स्मृतियों को नमन करते हुए उनकी पुण्यतिथि और जन्म - दिन पर कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं | बच्चे उनके स्कूल में पढ़ खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं | टैगोर बाल निकेतन की प्रिंसिपल माननीया पुष्पा रहेजा इस बात पर गर्व अनुभव करती थी, कि उनके स्कूल की एक ही छात्रा ने उनके साधारण स्कूल को असाधारण बना दिया | उनके सहपाठी उन्हें बहुत ही भावपूर्ण ढंग से याद करते हैं |हरियाणा सरकार ने भी अपनी प्रतिभाशाली और लाडली बेटी के सम्मान में करनाल के सरकारी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज का नाम बदलकर - क्प्ल्पना चावला अस्पताल करदिया है जो कि चण्डीगढ़ के स्नातकोत्तर संस्थान अर्थात PGI के समकक्ष माना गया है | इस भव्य अस्पताल में मरीजों के उपचार के लिए हर आधुनिक सुविधा मुफ्त में मौजूद है और भविष्य के चिकित्सक भी यहाँ प्रशिक्षित होने शुरू हो गये हैं |
चित्र -- अबोध बचपन में कल्पना
मौत भी रही विवादों में -- कल्पना चावला की मौत भी विवादों से दूर नहीं रही | कोलम्बिया यान की दुर्घटना के बाद नासा के'' मिशन कोलम्बिया 'के प्रोग्राम मैनेजर वें हेल की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कल्पना और उनके सहयात्रियों की मौत उसी दिन तय हो गयी थी जिस दिन उन्होंने अन्तरिक्ष के लिए संयुक्त उड़ान भरी थी | नासा को पता चल गया था कि यान में मात्र 15दिन के लिए ही ऑक्सीजन है | पर अपनी मौत से बेखबर ये अभागे वैज्ञानिक अपने अनुसन्धान की पल पल रिपोर्ट नासा को भेजते रहे | नासा ने अपनी विवशता जताई , कि उन्हें सचाई बताकर भी कोई लाभ होने वाला नहीं था | उन्होंने स्वीकारा ये एक तरह से सातों अन्तरिक्ष यात्रियों की मौत की साजिश थी | नासा ने इस विवाद पर कभी कोई सफाई नहीं दी है पर इस विवाद से अनेक प्रश्न उठ खड़े होते हैं |
चित्र -- एक प्रेरक मुस्कान
एक प्रेरक जीवन -- तमाम विवादों के बावजूद कल्पना चावला का जीवन समस्त भारतीय नारियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है | सितारों की दुनिया में उनकी संकल्प -गाथा अमर और अटल है | उनका दृढ निश्चय और निरंतर कर्म - पथ पर अग्रसर हो , सफलता प्राप्त करने की कहानी अपने आपमें समाज और नारी जगत में एक नयी आशा का संचार करती है | निराशा में उनका जीवन हमेशा एक प्रेरणा पुंज बनकर जगमगाता रहेगा |
समस्त चित्र-- गूगल से साभार
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धन्यवाद शब्द नगरी -------
रेणु जी बधाई हो!,
आपका लेख - (अन्तरिक्ष परी - कल्पना चावला ) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
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