
हिमालय पर्वत सदियों से भारत का रक्षक और पोषक रहा है |इसकी प्राकृतिक सम्पदा ,चाहे वह वन संपदा हो या खनिज संपदा - ने जनजीवन को धन - धान्य से भरपूर किया है , तो इसके हिमनद सदानीरा नदियों के एकमात्र जल स्त्रोत हैं | इसके प्रांगण में वेद्र- पुराण रचे गये | ऋषि- मुनियों ने इसे अपनी तपस्थली बना अपना जीवन सफल किया तो गृहस्थ लोगों ने इसके दर्शन मात्र में अपने आपको धन्य समझा |क्या नहीं है हिमालय के पास भारत वर्ष के लिए |शिवशंकर का चिर निवास कैलाश भी यही है तो माँ जगदम्बा ने भी अपने लिए सबसे सुरक्षित जगह हिमालय को ही मान विभिन्न रूपों में इसी पर वास किया | हिन्दू धर्म के साथ साथ -जैन बौद्ध इत्यादि धर्म भी हिमालय की ही गोद में फले -फूले| इसने साइबेरियाई बर्फीले तूफानों और विदेशी आक्रमणों से भारत को सुरक्षित रख एक सजग प्रहरी की भूमिका अदा की | हिमालय मानव मात्र के लिए आध्यत्मिक और साहसिक यात्राओं का कौतूहलपूर्ण गन्तव्य रहा है | पुरानों में वर्णित स्वर्ग का कल्पित पथ भी इसी से होकर जाता है ऐसा माना जाता है | मोक्ष का प्रतीक मानी जानी वाली चार धाम की यात्रा इसका प्रमुख आकर्षण है |हिमालय तो अपने आप में ही सम्पूर्ण स्वर्ग है | हिम आच्छादित ऊँचे शिखरों से सजे हिमालय में अनेक तरह की वनस्पति और अनगिन जीव - जन्तु पाए जाते है | विश्व की सर्वोच्च शिखर ' माउन्टएवरेस्ट ' भी इसी का एक शिखर है , तो भारत की सबसे बड़ी नदियों का उद्गम स्थल भी यही है |इन नदियों ने प्राचीन काल से ही अनगिन सभ्यताओं और संस्कृतियों को पोषित किया है साथ में अनगिन जलचर , थलचर और नभचर भी पोषित हुए हैं |पर मानव की प्रगतिवादी सोच ने अपनी सुविधा -सम्पनता के लिए पर्यावरण के सबसे बड़े प्राकृतिक प्रतीक हिमालय को भी नहीं बक्शा और इसके प्राकृतिक संसाधनों का अँधा धुंध प्रयोग किया | इसकी जल धाराओं को मोड़कर और इसके अटल अस्तित्व को विस्फोटकों से खंडित कर बड़े - बड़े बांध बनाये गये जिससे पर्यावरण को विशेषकर वन संपदा को बहुत नुकसान पहुंचा है |नदियों के तट पर बहुमंजिला इमारतें और अत्यधिक बढ़ता औद्योगिकीकरण नदियों और इन के अमृत तुल्य जल के लिए अभिशाप बन गया| पहले छोटी- मोटी भूस्खलन और बाढ़ की खबरें तो आती रहती थी पर जून 2013 में प्राकृतिक आपदा ने सारे प्रबन्धन को धराशायी कर दिया और अकल्पनीय जान माल का नुकसान हुआ | इस नुकसान के सही आंकड़े ना तो उपलब्ध हैं और ना हो सकते हैं | स्थानीय लोगों के अलावा पूरे भारत वर्ष से चार धाम की यात्रा पर आये तीर्थ यात्री इस आपदा का शिकार बने | केदारनाथ के प्राचीन मन्दिर को भी बहुत नुक्सान पहुंचा | यूँ तो इस त्रासदी का कारण लगातार होने वाली मॉनसून की बारिश थी पर भूस्खलन ने वर्षा के कारण लबालब भरी गंगा नदी को अवरुद्ध कर दिया जिससे बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गयी गंगा के तट इस बेकाबू जल प्रवाह में बह गये और अपने साथ जो कुछ भी मिला उसे भी बहा ले गये | सदियों से शांत , जड़ प्रकृति का ऐसा रौद्र रूप कभी देखने में नही आया जैसा उस साल आया ||ऐसी तबाही के लिए वैज्ञानिक और पर्यावरणविद भले ही सालों से चेता रहे थे पर फिर भी ये तबाही उस अनुमान से कहीं अधिक और भयावह थी | |इस आपदा को पांचसाल हो गये पर इसकी तबाही के निशान आज भी केदार नाथ और बद्रीनाथ के साथ अनेक गाँवों और गंगा तटीय शहरों में मौजूद होंगे | भुक्त भोगी जीते जी तबाही के उन भयावह दृश्यों को कभी ना भुला पाएंगे | ऐसी दुखद घटनाओं की पुनरावृति ना हो इसके लिए ठोस कदम उठाये जाने जरूरी हैं जिनमे वन पोषण को बढ़ावा देना सबसे जरूरी है | क्योकि हिमालय हमारे लिए वरदान है, उसका संरक्षण होना जरूरी है || ये त्रासदी हिमालय की चेतावनी देती दहाड़ है |हमे हिमालय के इस आक्रांत स्वर को अनदेखा नही करना चाहिए ,ताकि फिर कभी मानव सभ्यता के इतिहास में उतराखंड त्रासदी जैसी कोई प्राकृतिक आपदा दर्ज ना हो |
विशेष ----------- एक रचना जो इसी त्रासदी पर लिखी गयी थी --------
उतराखंड त्रासदी --
ये रुदन है हिमालय का
जो हर बंध तोड़ बह रहा है
मिट जाऊंगा तब मानोगे -
आक्रांत हो कह रहा है !
''कर दिया नंगा मुझे -
नोच ली हरी चादर मेरी ,
जंगल सखा भी मिट चले -
जिनसे थी ग़ुरबत मेरी , ''
चीत्कारता पर्वतराज -
खोल दर्द की गिरह रहा है !
शिव की जटाओं से उतरी थी जो
शीतल - अविरल गंगा कभी ,
सब से निर्मल- पावन थी - -
हिमराज की ये बेटी कभी ;
हो मैली उद्विगन है -
व्यथित पिता सब सह रहा है !!
सदियों से सुदृढ़ रहा -
रक्षक है भारतवर्ष का ,
हिम शिखरों से सजा --
है भागी जन के उत्कर्ष का ;
ये गौरव इतिहास होने को है -
शेष बचा विरह रहा है ! !
जड़ नहीं चेतन है ये -
निशक्त नहीं - नि शब्द है ,
उपेक्षा से आहत - विकल -
गिरिराज स्तब्ध है ;
बवंडरों से जूझता पल - पल -
टुकड़ों में ढह रहा है !
मिट जाऊँगा तब मानोगे -
आक्रान्त हो कह रहा है !!!!!!!!!!!
चित्र --- गूगल से साभार -------
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धन्यवाद शब्द नगरी --
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धन्यवाद शब्द नगरी --
रेणु जी बधाई हो!,
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