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बुधवार, 3 जून 2020

पर्यावरण मित्र -साईकिल [ विश्व साईकिल दिवस पर विशेष ]

साइकिल चलाने वाली लड़की चित्र ...

 क्या आपको  बचपन की अपनी  शान की  सवारी  याद है ?  वो सवारी जिसकी पीठ पर सवार हो   सपनों को जैसे पंख से लग जाते थे | वो सवारी जो  आपको लिए बिना किसी व्यवधान के किसी भी गली -मुहल्ले  में बेरोक टोक  प्रवेश  पर  जाती थी  | वो  एक साथी ,  जिस के साथ को   आम परिवारों के सभी बच्चे लालायित रहते थे  और  एक अनार सौ बीमार जैसी भयंकर स्थिति  होते देर नहीं लगती थी  । जो कभी निम्नमध्यवर्गीय परिवारों में   शान की प्रतीक   थी | जी हाँ , वह साईकिल  के अलावा कोई दूसरी चीज हो ही नहीं सकती |बचपन की  यादों में  हर किसी को जो  याद सबसे ज्यादा रोमांचित करती है, वह है साईकिल की सवारी |  वे वही साईकिल है,  जिसका  विज्ञापन रेडियो और  टी. वी. पर सबसे ज्यादा   मनभावन  लगता था |और जो  बच्चा साईकिल पर स्कूल आता था  सहपाठियों की  नजर में कहीं   ना कहीं    बहुत भाग्यशाली  माना जाता था |  वे वही साईकिल थी  जो   आँगन की  शोभा   मानी जाती थी  और जिसके आगे आज की महंगी कार की ख़ुशी भी  फीकी  है  |
गति के रोमांच  में  पिछड़ी  साईकिल --   विगत ढाई - तीन  दशकों  में  आम आदमी की औसत  आय में अभूतपूर्व   उछाल आया है , जिसके चलते  आम घरों में  साईकिल का  स्थान तीव्र गति से भागने वाले दुपहिया वाहनों  मोटरसाईकिल , स्कूटर,   मोपेड  स्कूटी इत्यादि ने ले लिया |  गति के रोमांच ने साईकिल  को   पीछे छोड़ दिया और बचपन के रोमांच की सवारी  के रूप में  तेजी से भागने वाले दुपहिया  वाहन अधिक लोकप्रिय हो गये | कालान्तर में  दुपहिया  से आगे छोटी कारेंऔर उसके  बाद बड़ी कारें  आ  गयीं |बढती सम्पन्नता के बीच     अच्छी आदमनी वाले अभिभावकों ने   अपने नौनिहालों को  साईकिल की जगह   स्कूटर, बाइक इत्यादि की चाबी सौंपने में अधिक गर्व की अनुभूति की | 
   जादू फिर भी रहा बरकरार -- भले  साईकिल  गति के बढ़ते  शौक के बीच कहीं खो सी गयी थी  |इसके   बाद भी  साईकिल ने अपनी  गरिमामयी उपस्थिति    हमेशा बनाये  रखी |  इसके दो पहियों  पर दौडती ख़ुशी को   महसूस करने वाले लोग हर दौर में रहे   जिन्होंने इसका महत्व बनाये रखा |  परिवहन  का ये सस्ता,  सरल साधन   बहुत से लोगों  की दिनचर्या का अभिन्न अंग रहा भले ही उनके पास    अन्य साधनों की कमी ना रही हो |   दूध  , सब्जी , डाक  और  अखबार वितरण करने वाले लोगों के लिए ,  दशकों से साईकिल  ही  एक मात्र सवारी रही | सेहत के शौकीनों ने भी कभी इसे अपने से अलग नहीं किया | खेलों की दुनिया में भी स्थानीय स्तर से लेकर ओलम्पिक  तक सबमें  साईकिल को सदैव महत्त्व  मिला है | विश्व में    चीन के बाद  भारत  में सबसे ज्यादा साइकिल  बनाई  और  प्रयोग  की  गयी। 

  पर्यावरण मित्र   साईकिल --दो शताब्दियों  का  साथ है साईकिल  और मानव का |  इसकी उपयोगिता को  कभी नकारा नहीं गया |   पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए साईकिल     , वाहन का सर्वोत्तम विल्कप है |थोड़ी दूर जाने के लिए अथवा आसपास किसी काम के  लिए  इससे बेहतर कुछ  भी  नहीं |दिन रात धुंआ उगलते वाहनों  की तुलना में साईकिल  प्रकृति   के लिए किसी वरदान से कम नहीं |  जेट युग में इस  सवारी का  महत्व  फिर से  बढ़ने के आसार दिखाई देते हैं   |  पैसों से ख़रीदे गये   तेल की जगह , शारीरिक बल से चलती साईकिल  कम आमदनी   वाले व्यक्ति के बजट में  भी आसानी से समा  जाती है तो प्रकृति को कोई भी नुकसान पहुंचाए बिना  ,  जीवन के कच्चे- पक्के रास्तों पर  अनवरत चलती रहती है |    
 विश्व साईकिल दिवस -- संयुक्त राष्ट्र संघ  ने पर्यावरण के मित्र के रूप में साईकिल की स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिए  ,  एक  दिन साईकिल  के  नाम करते हुए ,आधिकारिक रूप से  3 जून 2018 से    विश्व साईकिल मनाने की अनोखी शुरुआत  की | जिसका मकसद  पर्यावरण  को बचाने के साथ -साथ   लोगों  की बिगडती सेहत को संवारने केअलावा साईकिल को वाहन के  सबसे सस्ते  विकल्प   के रूप में प्रचारित करना भी है | 

सर्वांग  व्यायाम है साईकिल  चलाना-- साईकिल चलाना  एक  सर्वोत्तम   व्यायाम  भी  है | वजन घटाने से लेकर   मानसिक   एकाग्रता में इसका योगदान  अतुलनीय है | साईकिल चलाने से पेट की चर्बी घटती है तो  ह्रदय रोग  का खतरा कम होता है  साथ में  शारीरिक मांसपेशियाँ  मजबूत होती हैं |   रोजाना साईकिल चलाने से  शरीर तो पैरों  , टखनों और जोड़ों को मजबूती मिलती है |  

रोचक है साईकिल का इतिहास ----- हर  आविष्कार   मनुष्य की  अन्वेषी और जिज्ञासु  प्रवृति का नतीजा है \ कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है |   यही बात साईकिल  के आविष्कार  पर भी लागू होती है  इसके बारे में बहुत  प्रामाणिक तथ्य शायद आज भी मौजूद नहीं  और किसी एक व्यक्ति को  इसके  आविष्कार का श्रेय देना भी उचित नहीं | पर  हमें ये जरुर मान लेना चाहिए  कि आविष्कार  के   कई चरणों  से गुजरकर  आज की सर्वगुणसंपन्न साईकिल अस्तित्व में आई | 1418 में  हुए पहिये   का आविष्कार  साईकिल की खोज की नींव बना |    ये जानना भी रोचक रहेगा कि  जर्मनी  के एक नागरिक  जिओ  वानी फुंटाना ने चार पहियों वाली साईकिल का आविष्कार किया था  जो समय   के साथ भूली बिसरी  याद बनकर  गया | इसे बाद 
1818में  कार्ल वॉन ड्राइस नामक व्यक्ति ने  एक साइकिल   बनाई, जिसे धक्का मारकर चलाया जाता था  |इसके बाद  मैकमिलन  नाम के व्यक्ति ने   लकड़ी   के   फ्रेम  के साथ इसमें लोहे के  पैडल   के साथ स्टेयरिंग  भी लगाया था  | पर ये साईकिल बहुत वजनी थी |  समय के साथ बदलती  साईकिल   का फ्रेम  बाद में    फ्रेम  मेटल का हो गया  जिसमें रबड़ के टायर  लगाये गये  | ये पहले से बेहतर हो गयी थी | पर इसके पहिये   असमान अर्थात छोटे बड़े  थे,जो चलाने में  ज्यादा सुरक्षित नहीं थी | 1880  जे के  स्टारले ने  रोबर्ट  नामक साईकिल का आविष्कार  किया  जिसके  बाद  से इसके आकार  और डिजाईन  में  निरंतर बदलाव  होते- होते , ये एक सुरक्षित और सुंदर रूप में अस्तित्व में आई | और बहुत जल्दी लोकप्रिय हो हर मन का सपना बन गयी | इसी के स्वरूप में  तकनीकी सुधारों के साथ मोटर साईकिल और मोपेड , स्कूटर  आदि बनाये जाने लगे जो  ईंधन      से चलते थे और अपनी गति  के रोमांच से साईकिल को पीछे कर लोकप्रियता में आगे निकल गये | पर  ये जानना रोचक रहेगा  किराईट बन्धुओं ने विमान के आविष्कार के लिए साईकिल बनाकर और बेचकर धन जुटाया था और उसके  बाद  की  विमान बनाने की समस्त भागदौड़ साईकिल द्वारा ही   की थी ,  जिसके बाद ही वे ऐसा आविष्कार कर पाए  जिसने मानव  गति को पंख देकर , सभ्यता  के इतिहास को बदलकर रख दिया | आज साईकिल अनेक सुधारों और सुविधाओं के साथ अलग अलग  आकारों और   लुभावने स्वरूपों में  हमारे समक्ष है |  बच्चों से लेकर बड़ों और महिलाओं के लिए ख़ास  तरह की सुविधाओं  के साथ विशेष  मॉडल उपलब्ध हैं | 
  फिल्मकारों की रही चहेती -- साईकिल का जादू फ़िल्मी  दुनिया के सर पर भी खूब  चढ़कर  बोला |   देवानद से लेकर आमिर खान  और  रणधीर कपूर,  तो नूतन से लेकर   आलिया भट्ट तक , सबने रजत पट पर साईकिल खूब चलायी | नायक का नायिका से इजहारे मुहब्बत हो या  नायिका  की कालेज जाते समय सहेलियों के साथ मौज मस्ती ,  सब  दृश्यों में    साईकिल   ने अपनी मनभावन    छटा बिखेरी | पुरानी फिल्मों में फूलों की टोकरी  वाली  साईकिल  चलाते  नायक -नायिका की चुहलबाज़ी किसका मन  ना मोह लेगी ?  इसके साथ कार में बैठी  रूठी नायिका को साईकिल पर मनाते नायक   या फिर एक साईकिल पर  रोमांस का सफ़र तय करते नायिका -नायक  सबके मन  को हमेशा  भाते रहे  | 
  याद आने लगा   महत्व-- आज कोरोना संकट के बीच पर्यावरण   की शुद्धता के  बीच  लोगों को साईकिल  खूब याद आई |  कोरोना संकट से विचलित  साधन हीन श्रमिक वर्ग  पैदल के साथ बहुधा साईकिल पर सवार हो  सैकड़ों मीलों का  सफ़र   साईकिल से  तय करते देखे गये तो अपनों की फ़िक्र में  भागते   लोग अपनों के लिए साईकिल  के जरिये  अपनों तक पंहुचते देखे गये | सेहत    को बेहतर बनाने के लिए लोकबंदी में कमरों के बीच  लोगों ने साईकिल चलाकर अपनी सेहत खूब संवारी  | इसी तरह आने वाले समय में भी साईकिल के   स्वर्ण युग  की वापसी हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी | 

 आज साईकिल दिवस के अवसर पर हमें  साईकिल को एक संकटमोचन  के रूप में याद करना होगा | अपने साथ-  साथ  हमारे बच्चों को भी  साईकिल चलाने के लिए प्रेरित करना होगा ताकि  आलस्य में डूब रही  भावी पीढी अपना स्वास्थ्य,  संवार कर देश की प्रगति  और पर्यावरण  सुधारने में अपना अहम् योगदान दे सके | 

अंत में फ़िल्मी पर्दे से साईकिल   पर  फिल्माया  गया  एक  मधुर  रोमांचत गीत -




चित्र  और तथ्यात्मक  जानकारी -- गूगल से साभार |


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41 टिप्‍पणियां:

  1. साइकिल पर बहुत ही सुंदर, समसामयिक और संपूर्ण लेख है रेणु दी।
    हाँ ,एक बात और हम साइकिल के महत्व को तो स्वीकार रहे हैं,किन्तु किसी भी प्रमुख राजनेता, जनप्रतिनिधि, उद्योगपति, पर्यावरणविद, जन सेवक अथवा लेखक ने आज के दिन यह प्रयास नहीं किया कि साइकिल की सवारी को हीनभावना से मुक्ति दिलवाने के लिए कोई बड़ा कार्यक्रम हो । ऐसे लोग स्वयं भी साइकिल चलाते और युवावर्ग को भी इसके लिए प्रोत्साहित करते। कथनी और करनी का यही भेद समाज के लिए अत्यंत घातक है। यदि बड़े लोग साइकिल को पुनः महत्व देने लगें, तो युवाओं में इसके प्रति आकर्षण बढ़ेगा, सड़क दुर्घटनाओं में कितने ही घरों के चिराग़ बुझने से बच जाएगा। परंतु इसके लिए साइकिल का सम्मान और उसे चलाने वाले का स्वाभिमान वापस लाना होगा।

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    1. शशि भैया, आपकी त्वरित सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ। आपने सही कहा प्रशासन यदि चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है। पर हमें हर बात के लिए कथित प्रमुख लोगों के मुँह की तरफ नहीं ताकना चाहिए। कई लोग इस दिशा में बहुत का कर रहे हैं। खुद हमारे शहर के पुलिस अधीक्षक माननीय पंकज नैन जी अपने कार्यकाल के दौरान इसलिए हमेशा चर्चा में रहे कि वे रोज़ साइकिल से ऑफिस आते थे । इसके अलावा उन्होंने साईकलींग के प्रोत्साहन के किये दिल्ली से हमारे शहर तक की यात्रा साइकिल से तय की। हमारे यहाँ 10 रुपये मासिक पर सांझी साईकिल नाम से सरकारी योजना शुरू हुई थी जिसे लोगों की उदासीनता ने बंद करवा दिया । सुंदर चर्चा के लिए आपका पुनः आभार🙏🙏

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    2. भाई पथिक जी, कुछ लोग मन से चाहते भी होंगे कि साइकिल का प्रयोग करें और इसकी महत्ता व उपयोगिता को प्रचारित भी करें, किन्तु आपाधापी के इस युग में समय की बाध्यता निश्चित ही आड़े आ जाती होगी। साइकिल का प्रयोग किसी भी प्रकार से हीन भावना को जन्म देने का कारण नहीं हो सकता। यदि किसी की इस सम्बन्ध में छोटी सोच है तो यह बात उसकी कुत्सित मनोवृत्ति की परिचायक ही होगी।

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    3. आपने सत्य लिखा आदरणीय सर |

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 04 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जून २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. साइकिल पर सविस्तर और सुंदर जानकारी दी है आपने, रेणु दी।

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  5. वाह!सखी रेनू जी ,साइकिल पर बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपनें । गति के रोमांच में पिछड गई थी साइकिल पर आजकल फिर इसके दिन आ गए है ,स्वास्थ्य के प्रति जागरूक युवा वर्ग अपना रहा है इसे ..।

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    1. आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रिया के लिए , हार्दिक आभार है आपका शुभा जी |

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  6. बहुत शिक्षाप्रद और रोचक आलेख. कथाकार सुदर्शन की व्यंग्य रचना 'साइकिल की सवारी' याद या गयी. साईकिल हमारी मानव-सभ्यता की प्रगति की कथा का वाचक भी रहा है. हमें याद है कि बिहार में सरकार ने बालिकाओं को स्कूल में जाने के लिए आकर्षित करने की एक योजना चलाई जिसमें उन्हें नि:शुल्क शिक्षा के साथ-साथ पुस्तक, गणवेश और एक साईकिल भी प्रदान की गयी. स्कूल के समय में विद्यालय की पोशाक पहने साइकिल सवार छात्राओं का विशाल हुजूम न केवल मन को आकर्षित और आह्लादित कर देता था, बल्कि उसमें समाज के भविष्य की आहट भी सुनाई देती थी. तब से छात्राओं को लिए यह साइकिल न केवल काफी आगे बढ़ गयी है, बल्कि हमारी बिटिया ज्योति ने तो कोरोना-कल की लोकबंदी में अपने रुग्ण पिता को साईकिल पर बिठाकर गुरुग्राम (हरियाणा) से मधुबनी(बिहार) तक के राजपथ की लम्बाई भी नाप ली. बहुत आभार.

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    1. आदरणीय विश्वमोहन  जी , आपकी  संवेदनात्मक     टिप्पणी के साथ लेख का  विमर्श  सार्थकता  के साथ  आगे  बढ़ा है |  बिहार की तरह ही ,  हरियाणा  राज्य  की ऐसी योजनाओं     के बारे में,    मैंने  भी   समाचार पत्र में  पढ़ा है |  ऐसी योजनाओं ने निश्चित रूप से एक वर्ग  की बालिकाओं को बहुत फायदा पहुंचाया है और उनके आत्मविश्वास  को  बढ़ाया  है | देश की बेटी  ज्योति कुमारी ने पराक्रम  का  जो इतिहास रचा ,   उसके आगे समस्त राष्ट्र भावुक हो   नतमस्तक  हो गया |कोरोना काल की बड़ी घटनाओं का जब भी जिक्र होगा -इस  साहसी बिटिया का जिक्र ना हो ऐसा कभी नहीं होगा |    सर्वसमर्थ  लोग भी ऐसा साहस ना कर पाते , जो इस   किशोरी ने  साईकिल के दम पर दिखाया |बीमार  पिता   के प्रति  चिंता और उनका जीवन बचाने की तीव्र आंकाक्षा ने , उसे   जो हिम्मत दी   वह  हर  इंसान  के लिए प्रेरक है और साईकिल तो जिंदाबाद रहेगी ही ,  जिसने  प्रिय  ज्योति  के हौंसले को लम्बी उड़ान दी |   कोरोना संकट में    बहुत बड़ी संख्या  में श्रमिक वर्ग  साईकिल   के जरिये   अपनी जन्म भूमि  की ओर चला | ये यात्रायें जनमानस के लिए बहुत भावपूर्ण  और झझकोरने वाली रही  और लोगों ने साईकिल  के अतुलनीय योगदान को भी देखा ||मेरी रचना पर आपके अनमोल शब्दों के लिए सदैव आभारी हूँ | सादर -

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  7. बहुत ही शिक्षाप्रद एवं ज्ञानवर्धक लेख लिखा है सखी साइकिल दिवस पर....सचमुच साइकिल पर्यावरण संरक्षण के साथ स्वास्थ्य रक्षक भी है इसमें कोई संदेह नहीं ।योग में भी लेटे लेटे साइकिलिंग करने से योगाभ्यासी अच्छे परिणाम पा रहे हैं...फिर प्रत्यक्ष साइकिलिंग से स्वास्थ्य लाभ तो होना ही है
    सही कहा आपने कि इससे मोटापा कम होता है और दिल की बिमारी से बचा जा सकता है....।आज जब पर्यावरण खतरे में है तब साइकिल की सवारी का प्रोत्साहन वाकई पर्यावरण में सुधार ला सकता है....।
    साइकिल का आविष्कार इसकी पूर्ण महत्ता एवं अनेक लाभोंं से परिचित कराते हुए फिल्मजगत के आकर्षक गाने के और चर्चा के साथ लाजवाब लेख हेतु बहुत बहुत बधाई सखी!

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    1. प्रिय सुधा बहन , आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरी रचना का मर्म निकालकर लाती है |स्वास्थ्य के लिए साईकिल से बढ़कर कुछ नहीं- ये सब डॉक्टर भी कहते हैं और योग प्राणायाम से जुड़े दिग्गज भी | कितना अच्छा हो आमजन इस सस्ती , सुंदर टिकाऊ सवारी के साथ जीवनयापन करें , जिसमें उनका अपना भी भला और पर्यावरण का भी हित हो | आपको लेख पसंद आया तो संतोष हुआ |सस्नेह आभार और शुभकामनाएं|

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  8. साइकिल पर विस्तृत जानकारी और उपयोगिता पर सिलसिलेवार लेख बहुत रोचक और उपयोगी है रेणु बहन ।
    सच आज भी मन मचल उठता है पुराने दिन याद करके जब हम भी इस लोहे के घोड़े पर उड़ा करते थे।
    बच्चों को साइकिल की कितनी ललक होती है हर बच्चे में ,पर अब साइकिल सवारी बस निम्न वर्ग का वाहन रह गयी है भारत में ,वो भी जैसे ही साधन मिलता है साइकिल छोड़ स्कुटी,स्कुटर पर नजर आते हैं ।
    हमारे यहां जहां साइकिल को हेय दृष्टि से देखा जाता है वहां युरोप में साइकिल सवारों को बड़ी इज्जत से देखते हैं क्योंकि वे पर्यावरण के अनुकूल है , वहां साइकिल के लिए अलग पर बने होतें हैं और उस क्षेत्र में उनके फेवर में सब सड़क कानून भी बनते हैं ,ऊंची से ऊंची पोस्ट पर काम करने वाले अच्छा मौसम होते ही साइकिल पर सवार हो आफिस जाते हैं 15से 20 किलोमीटर साइकिल चलाकर ।
    शाम को वीक एंड पर बहुत शौक से साइकिल लेकर निकलते हैं और सन्तुष्ट होते हैं कि वे पर्यावरण के हितैषी हैं ।

    *बहुत सुंदर लेख आपका मन मोह गया ।*
    साधुवाद।

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    1. प्रिय कुसुम बहन , आपने बहुत ही सुंदर , सार्थक प्रतिक्रिया देकर विषय को आगे बढाया है | जो मेरे लेख का हिस्सा ना बन सके , वो तथ्य आपने इसमें जोड़ दिए | सच है ज्यादा आबादी वाला देश होने के कारण हमारे देश को साईकिल चलाने में अव्वल रहना चाहिए था , पर हम आने बच्चो को स्कूटर , मोटर साईकिल दे देंगे पर साईकिल चलाने देना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं | पर्यावरण की रक्षा के लिए हमें जरुर ये कामकरना होगा | प्रसंगवश बताना चाहूंगी , मैंने भी बचपन में साईकिल खूब चलाई है | वो रोमांच अविस्मरनीय है | इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आपका सस्नेह आभार |

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  9. एक प्यारे गीत के साथ साइकिल पर इतना विस्तृत व सुन्दर आलेख किसी ग्रन्थ से कम नहीं लग रहा।... बहुत सुन्दर रेणु जी, हार्दिक बधाई।

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    1. आपको लेख पसंद आया , मेरा लिखना सार्थक हुआ | आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार |

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  10. साइकिल अविष्कार से जुड़ी जानकारियों के साथ साइकिल के महत्व बताते हुए बहुत ही बेहतरीन और शिक्षाप्रद लेख लिखा सखी। 👌

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    1. बहुत -बहुत आभार अनुराधा जी |आपका स्नेह अनमोल है |

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  11. बहुत ही रोचक ज्ञानवर्धक और समसामयिक लेख सखी

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  12. सायकिल पर इतनी विस्तृत व अर्थपूर्ण पोस्ट, साधुवाद

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    1. आपका ब्लॉग पर स्वागत है विमल जी। सदर आभार आपकी ब्लॉग पर उपस्थिति का 🙏🙏

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  13. आपका यह लेख तथ्यों एवं सूचनाओं से तो भरपूर है ही, साइकिल को पुनः अपनाने तथा दैनिक गतिविधि का अंग बनाने के लिए प्रेरित भी करता है । मैं आपकी इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ कि साइकिल चलाना एक सर्वांग व्यायाम है ।

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    1. आपका सादर आभार जितेन्द्र जी | आपने अपना कीमती समय देकर रचना को सार्थकता प्रदान की जिससे बहुत सतोष की अनुभूति हुई |

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  14. साइकिल तो मैंने भी खूब चलाई है ।क्या ज़माना था वो भी । बचपन में पहुँचा दिया ।
    बहुत बढ़िया और विस्तृत जानकारी दी है । सार्थक लेख।

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    1. प्रिय दीदी , बहुत- बहुत आभार है आपका | मीमांसा पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है |

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  15. Wonderful... इससे सुन्दर लेख साइकिल पर नहीं हो सकता था। साइकिल-भ्रमण आज भी ग्राह्य है, स्वास्थ्य के साथ आनन्ददायी भी है। अन्तःस्तल से बधाई रेणु जी!

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    1. आदरणीय सर . इस पोस्ट पर आपकी तीसरी उत्साहवर्धक करती अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए कोटि आभार |

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  16. बहुत ज्ञानवर्धक, रोचक और बहुत कुछ हम सबके बचपन की यादों को ताज़ा करता आलेख !
    साइकिल-युग की वापसी हमारे लिए स्वस्थ जीवन की वापसी भी हो सकती है !

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    1. आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आदरणीय गोपेश जी |

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  17. बहुत सुंदर आलेख पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए उपयुक्त

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    1. प्रिय भारती जी , लेख को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक आभार | ये स्नेह बना रहे |

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