जनवरी 1996 की बात है |कडकडाती ठंड में उस दिन बहुत जल्दी धुंध बरसने लगी थी और चारों तरफ वातावरण धुंधला जाने से थोड़ी सी दूर के बाद कुछ भी साफ दिखाई नहीं देता था | इसी बीच हमारे दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी तो देखा एकअत्यंत बूढ़े बाबा खड़े थे जिनकी पीठ पर एक गट्ठर लदा था | बाबा ठंड से ठिठुरते हुए मानों पीले पड़ चुके थे और उनके मुंह से कोई बात नहीं निकल पा रही थी | यद्यपि उनके शरीर पर ठण्ड के मौसम के लिए पर्याप्त कपड़े थे | वे पैरों में बहुत ही घिसी सी चप्पल पहने थे | उन्होंने चाय पीने की इच्छा जाहिर की , जिसे वे बड़ी मुश्किल से कह पाए | मेरे पिताजी उस समय घर पर ही थे | उन्होंने बाबा को घर के अंदर बुलाकर , बरामदे में पडी खाट पर बिठायाऔर उनके लिए सेकने के लिए आग मंगवाई | आग सेकने और गर्म चाय पीने के बाद उनकी ठण्ड थोड़ी उतरी और वे आसानी से बोल कर बता पाए कि उनका नाम हाज़ी अली है और वे एक कश्मीरी शाल विक्रेता हैं |अपने अन्य शाल विक्रेता साथियों से अनजाने में बिछुड़ कर रास्ता भूल गये हैं | उन्होंने पिताजी से निवेदन किया कि वे उन्हें ऐसी किसी धर्मशाला इत्यादि का रास्ता बता दें जहाँ वे रात गुजार सकें ,क्योंकि इस समय तक उनके साथी तो स्थान पंचकूला लौट चुके होते थे , जहाँ से वे रोज शाल बेचने के लिए बस द्वारा आते थे | मेरे पिताजी ने उन्हें हमारी बैठक जो कि हमारे घर से थोड़ी ही दूर है - में रात गुजारने की बात कही , जिसे बाबा ने सहर्ष मान लिया | उसके बाद पिताजी बाबा को लेकर लेकर बैठक में चले गये और उनके लिए बिस्तर की व्यवस्था की |हमें उनका रात का भोजन बैठक में ही पंहुचने के लिए कहा |भोजन करवाने के बाद पिताजी ने बाबा को आराम से सो जाने के लिए कहा | उन्होंने बाबा की शालों का गट्ठर कमरे में बनी अलमारी में रख दिया | पिताजी ने देखा बाबा रात को आराम से सो नही पा रहे हैं और लिहाज़वश कुछ कह भी नही पा रहे | पिताजी उनकी आशंका समझ गये और उन्होंने बाबा का गट्ठर उनके पास उनकी खाट पर रख दिया जिसके बाद ही वे चैन की नींद सो पाए | सुबह उठकर पिताजी ने उनके लिए चाय- नाश्ता आदि पहुँचाने के लिए मुझे कहा तो मैं बैठक में बाबा के लिए नाश्ता लेकर गई | मैंने देखा बाबा इत्मिनान से बैठे थे और मेरे पिताजी को बहुत कृतज्ञतापूर्वक धन्यवाद दे रहे थे | उन्होंने हमें बताया कि कई साल पहले उन्हें एक राज्य विशेष में इसी तरह रास्ता भूल कर किसी के घर ठहरना पड़ गया |घर के मालिकों ने इसी तरह उनके गट्ठर को अलमारी में रख दिया और सुबह जब गट्ठर उन्होंने देखा तो इसमें से चार -पांच शाल गायब थी | उस दिन के बाद वे किसी के घर नहीं ठहरे और ना ही उस राज्य के लोगों का विश्वास किया | मेरे पिताजी को उन्होंने बहुत दुआएं दी | मुझे भी बहुत स्नेह भाव से आशीर्वाद दिया और बोले कि जब तुम्हारी शादी हो जाए तो कश्मीर आना तुम्हे बोरी भर अखरोट दूंगा | उन्होंने पिताजी को एक कागज़ के पुर्जे पर अपना पता लिख कर दिया और कहा कि वे कश्मीर आयें और उन्हें भी मेज़बानी का मौक़ा दें | थोड़ा दिन चढ़ जाने के बाद पिताजी ने मेरे छोटे भाई को साईकिल पर बाबा को बस स्टैंड पर छोड़ने भेजा जहाँ पंचकूला से उनके साथियों का दल बस से नौ बजे पंहुचने वाला था | बाबा हमारे राज्य और पिताजीको को सराहते हुए बड़ी सी मुस्कान के साथ रुखसत हो गये | मेरे पिताजी जब तक रहे वे कहते थे वो बाबा कोई दरवेश थे जो उन्हें दुआ देकर चले गये क्योकि फरवरी में ही पिताजी को हार्ट अटैक आया और वे बाल -बाल बच गये |
चित्र -- गूगल से साभार --
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