युद्ध अथवा शांतिकाल में सैनिकों की शहादत कोई नई बात नहीं। ये शहादत आमजनों के लिए मात्र एक खबर होती है , पर उसके परिजनों के लिए असहनीय आघात। हम अकसर उस पीड़ा से अनभिज्ञ रहते हैं, जो उनका परिवार झेलता है। कुछ वर्ष पहले एक ऐसे परिवार का दर्द मैनें बहुत नजदीक से देखा जिसे मैं कभी भूल नहीं पाई।------------
बात शायद मई 2011 की है | मुझे मेरे भतीजे के मुंडन संस्कार में ज्वाला जी जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश जाने का मौक़ा मिला | मेरे मायके में ज्वाला जी के प्रांगण में ही मुंडन की परम्परा है | मेरे भाई ने मुझे भी अपने बेटे के मुंडन के लिए,सपरिवार अपने साथ जाने के लिए बुलाया था | मेरे गाँव से ज्वालाजी मदिर की दूरी लगभग छः घंटे की है | चण्डीगढ़ से राष्ट्रीय सड़क मार्ग से होते हुए हमें ज्वालाजी जाना था | लम्बी दूरी को देखते हुए , इस रास्ते पर स्थित गुरुद्वारों में थोड़ा विश्राम करने की बात तय हुई| जाते हुए गुरुद्वारा आनन्दपुर साहिब पर विश्राम किया गया, तो लौटते समय, गुरुद्वारा पतालपुरी कीरतपुर साहिब पर कुछ देर रुकने का निर्णय हुआ | इस गुरुद्वारे का सिख धर्म में ऐतहासिक महत्त्व है | इसकी स्थापना गुरु हरगोविंद जी ने की थी | कहा जाता है सिख धर्म के पांच गुरुओं के पवित्र चरण इस धरा पर पड़े थे और दिल्ली में गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद उनका सर इसी स्थान पर माता गुजरी ने अपने आँचल में डलवाया था | गुरु साहिबान ने इसी जगह को धर्म में मोक्ष का स्थान पुकारते हुए समस्त सिक्ख धर्म अनुयायियों को अपने दिवंगत प्रियजनों की अस्थियों का विसर्जन यहीं करने का आदेश दिया था | उस दिन . क्योंकि हमारे साथ कई छोटे बच्चे भी थे सो लम्बे सफर के बीच ये विश्राम जरूरी था | गुरुद्वारा साहेब पहुँचकर सभी ने थोड़ा आराम किया और जिन्हें भोजन की इच्छा थी उन्होंने लंगर भी ग्रहण किया |मेरे दोनों बच्चे भी मेरे साथ थे ,जोउस समय बहुत छोटे थे | बिटिया तो 9 साल की ही थी | उसने गुरुद्वारा पहुँचते ही मुझे आसपास घुमाने की जिद की | मैं उसकी ऊँगली पकड़कर उसे- गुरूद्वारे के एक ओर बने पवित्र सरोवर के पास ले गयी जहाँ ढेरों श्रद्धालु स्नान कर रहे थे | हम दोनों दूर खड़े होकर सरोवर को निहारने लगे | इसी बीच मुझे कुछ लोगों के जोर से रोने की आवाज सुनाई पडी | जिस ओर से आवाजें आ रही थी, उस तरफ सतलुज नहर गुरुद्वारे को छूती हुई बह रही थी ।
और उसी ओर वह स्थान भी था जहाँ अस्थि विसर्जन स्थल था | मैंने उत्सुकतावश थोड़ा आगे जाकर देखा वहां बड़ा करुण- क्रंदन गूंज रहा था | कई लोग अपने प्रियजनों की अस्थियाँ बहाते हुए बहुत भावुक हो रो रहे थे | कुछ धीरे -धीरे सिसक रहे तो एक दो बहुत ज्यादा रो रहे थे | इन्हीं में एक वृद्ध दम्पति भी थे जो अपने कुछ ही दिन पूर्व राजस्थान में आतंकवादी मुठभेड़ में शहीद हुए बेटे , जो कि सीमा सुरक्षा बल में कमाडेंट थे , की अस्थियाँ प्रवाहित करने आये थे | शहीद की पत्नी उन दिनों गम्भीर रूप से बीमार थी | वो अपने पति की मौत की खबर सह ना पाई और सदमे से उनकी भी मौत हो गई | इस दम्पति के साथ शहीद सैनिक के दो बहुत छोटे अत्यंत दर्शनीय बच्चे भी थे. जिनमें लड़के की उम्र लगभग सात साल थी तो लड़की मात्र पांच साल की मुश्किल से थी | दोनों बच्चे इस चीत्कार से बहुत सहमे हुए थे और निःशब्द रह सबकुछ बड़े कौतूहल से देख रहे थे | उनका मुख मलिन पड़ा हुआ था | वृद्ध दम्पति ये कह सिसकने लगे कि वे इन अभागे बच्चों को इस उम्र में कैसे पालेंगे -जबकि बच्चों के पास सिर्फ माता- पिता ही थे वे भी ईश्वर ने छीन लिए | परिवार में शहीद एकलौते भाई थे | कोई दूसरी संतान उनके यहाँ ना होने से वे चिंतित थे कि इन बच्चों का पालन- पोषण अब कौन करेगा |
उन्होंनेअपने शहीद बेटे के बारे में ये भी बताया कि तकनीक में स्नातक होने के बाद उनका चयन कई लाख के पैकेज पर पुणे की एक कंपनी में हो चुका था , पर उन्होंने सीमा सुरक्षा बल के जरिये देशसेवा को अपनाया। इसे बाद वे इन बच्चों को अनाथ कह सिसकने लगे | एक बार तो उनके रोने से चारों ओर निस्तब्धता व्याप्त हो गई पर एक -दो समझदार लोगों ने उन्हें आगे बढ़कर धीरज दिया और कहा कि वे बच्चों को बदनसीब और अनाथ ना कहें | वे भाग्यशाली हैं जिनके पास अत्यंत स्नेही दादा -दादी जैसा मजबूत सहारा है | एक अन्य व्यक्ति ने उन्हें बताया कि वह भी अपने इकलौते बेटे की अस्थियाँ लेकर आया है जो कुछ दिन पहले सड़क दुर्घटना में मारा गया | पर उनके बेटे की तुलना में शहीद की मौत एक गौरवशाली मौत थी | कुछ लोग शहीद अमर रहे के नारे भी लगाने लगे और वृद्ध दम्पति को बहुत प्रकार से सांत्वना देने लगे | सभी ने शहीद के पराक्रम की प्रशंसा की और उन्हें श्रद्धा से नमन कर , ऐसे बहादुर सैनिक के माता पिता होने पर गर्व जताया | इसी बीच गुरुद्वारे के पाठी भाई भी आकर उन्हें समझाने लगे | कुछ ही पलों में शोकाकुल दम्पति काफी हद तक सहज हो गया | कुछ लोगों ने शहीद के बच्चों को कंधे पर बिठाकर उन्हें विशेष स्नेह जताया | इसी बीच उनके अन्य रिश्तेदार भी पहुँच गये और शहीद के जय -जयकारों के बीच सबने मिलकर शहीद सैनिक और उनकी पत्नी का अस्थि -विसर्जन किया |गुरुद्वारा प्रांगण में देश भक्ति का अद्भुत दृश्य उपस्थित हो गया | हर कोई भावुक था और शहीद सैनिक की फोटो पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा था |
कुछ देर बाद वे सभी से घर की ओर लौट चले और मुझे भी मेरे भाई ने बुला लिया | इधर हम सब लोग घर की ओर लौट चले तो शहीद के परिवार ने भी गाडी , जिसपर शहीद की अपनी पत्नी के साथ सुंदर, सौम्य फोटो लगी हुई थी . में बैठ अपने घर की ओर प्रस्थान किया | बहुत दिनों तक शहीद के उस अस्थिविसर्जन की यादें मन को उद्वेलित और दोनों बच्चों की वो मासूम निगाहें मन को विचलित करती रही तो उनके माता - पिता के करुण चीत्कार मेरी स्मृतियों में गूंजते रहे |
अंत में हुतात्माओं को नमन करते हुये मेरी कुछ पंक्तियाँ ------
तेरी हस्ती रहे सलामत
कर खुद को कुर्बान चले ,
तुझे दिया वचन निभा
तेरे वीर जवान चले !
हम ना रहेंगे और आयेंगे
लाल तेरे बहुतेरे माँ
पड़ने ना देंगे तम की छाया
नित लायेंगे नये सवेरे माँ ;
तेरी खुशियाँ कभी ना हो कम
कर घर आँगन वीरान चले
लिपट तिरंगे में घर आये
बढ़ा जीवन की शान चले !!!
🙏🙏🙏🙏🙏
समस्त साहित्य प्रेमियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई🙏🙏
बात शायद मई 2011 की है | मुझे मेरे भतीजे के मुंडन संस्कार में ज्वाला जी जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश जाने का मौक़ा मिला | मेरे मायके में ज्वाला जी के प्रांगण में ही मुंडन की परम्परा है | मेरे भाई ने मुझे भी अपने बेटे के मुंडन के लिए,सपरिवार अपने साथ जाने के लिए बुलाया था | मेरे गाँव से ज्वालाजी मदिर की दूरी लगभग छः घंटे की है | चण्डीगढ़ से राष्ट्रीय सड़क मार्ग से होते हुए हमें ज्वालाजी जाना था | लम्बी दूरी को देखते हुए , इस रास्ते पर स्थित गुरुद्वारों में थोड़ा विश्राम करने की बात तय हुई| जाते हुए गुरुद्वारा आनन्दपुर साहिब पर विश्राम किया गया, तो लौटते समय, गुरुद्वारा पतालपुरी कीरतपुर साहिब पर कुछ देर रुकने का निर्णय हुआ | इस गुरुद्वारे का सिख धर्म में ऐतहासिक महत्त्व है | इसकी स्थापना गुरु हरगोविंद जी ने की थी | कहा जाता है सिख धर्म के पांच गुरुओं के पवित्र चरण इस धरा पर पड़े थे और दिल्ली में गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद उनका सर इसी स्थान पर माता गुजरी ने अपने आँचल में डलवाया था | गुरु साहिबान ने इसी जगह को धर्म में मोक्ष का स्थान पुकारते हुए समस्त सिक्ख धर्म अनुयायियों को अपने दिवंगत प्रियजनों की अस्थियों का विसर्जन यहीं करने का आदेश दिया था | उस दिन . क्योंकि हमारे साथ कई छोटे बच्चे भी थे सो लम्बे सफर के बीच ये विश्राम जरूरी था | गुरुद्वारा साहेब पहुँचकर सभी ने थोड़ा आराम किया और जिन्हें भोजन की इच्छा थी उन्होंने लंगर भी ग्रहण किया |मेरे दोनों बच्चे भी मेरे साथ थे ,जोउस समय बहुत छोटे थे | बिटिया तो 9 साल की ही थी | उसने गुरुद्वारा पहुँचते ही मुझे आसपास घुमाने की जिद की | मैं उसकी ऊँगली पकड़कर उसे- गुरूद्वारे के एक ओर बने पवित्र सरोवर के पास ले गयी जहाँ ढेरों श्रद्धालु स्नान कर रहे थे | हम दोनों दूर खड़े होकर सरोवर को निहारने लगे | इसी बीच मुझे कुछ लोगों के जोर से रोने की आवाज सुनाई पडी | जिस ओर से आवाजें आ रही थी, उस तरफ सतलुज नहर गुरुद्वारे को छूती हुई बह रही थी ।
और उसी ओर वह स्थान भी था जहाँ अस्थि विसर्जन स्थल था | मैंने उत्सुकतावश थोड़ा आगे जाकर देखा वहां बड़ा करुण- क्रंदन गूंज रहा था | कई लोग अपने प्रियजनों की अस्थियाँ बहाते हुए बहुत भावुक हो रो रहे थे | कुछ धीरे -धीरे सिसक रहे तो एक दो बहुत ज्यादा रो रहे थे | इन्हीं में एक वृद्ध दम्पति भी थे जो अपने कुछ ही दिन पूर्व राजस्थान में आतंकवादी मुठभेड़ में शहीद हुए बेटे , जो कि सीमा सुरक्षा बल में कमाडेंट थे , की अस्थियाँ प्रवाहित करने आये थे | शहीद की पत्नी उन दिनों गम्भीर रूप से बीमार थी | वो अपने पति की मौत की खबर सह ना पाई और सदमे से उनकी भी मौत हो गई | इस दम्पति के साथ शहीद सैनिक के दो बहुत छोटे अत्यंत दर्शनीय बच्चे भी थे. जिनमें लड़के की उम्र लगभग सात साल थी तो लड़की मात्र पांच साल की मुश्किल से थी | दोनों बच्चे इस चीत्कार से बहुत सहमे हुए थे और निःशब्द रह सबकुछ बड़े कौतूहल से देख रहे थे | उनका मुख मलिन पड़ा हुआ था | वृद्ध दम्पति ये कह सिसकने लगे कि वे इन अभागे बच्चों को इस उम्र में कैसे पालेंगे -जबकि बच्चों के पास सिर्फ माता- पिता ही थे वे भी ईश्वर ने छीन लिए | परिवार में शहीद एकलौते भाई थे | कोई दूसरी संतान उनके यहाँ ना होने से वे चिंतित थे कि इन बच्चों का पालन- पोषण अब कौन करेगा |
उन्होंनेअपने शहीद बेटे के बारे में ये भी बताया कि तकनीक में स्नातक होने के बाद उनका चयन कई लाख के पैकेज पर पुणे की एक कंपनी में हो चुका था , पर उन्होंने सीमा सुरक्षा बल के जरिये देशसेवा को अपनाया। इसे बाद वे इन बच्चों को अनाथ कह सिसकने लगे | एक बार तो उनके रोने से चारों ओर निस्तब्धता व्याप्त हो गई पर एक -दो समझदार लोगों ने उन्हें आगे बढ़कर धीरज दिया और कहा कि वे बच्चों को बदनसीब और अनाथ ना कहें | वे भाग्यशाली हैं जिनके पास अत्यंत स्नेही दादा -दादी जैसा मजबूत सहारा है | एक अन्य व्यक्ति ने उन्हें बताया कि वह भी अपने इकलौते बेटे की अस्थियाँ लेकर आया है जो कुछ दिन पहले सड़क दुर्घटना में मारा गया | पर उनके बेटे की तुलना में शहीद की मौत एक गौरवशाली मौत थी | कुछ लोग शहीद अमर रहे के नारे भी लगाने लगे और वृद्ध दम्पति को बहुत प्रकार से सांत्वना देने लगे | सभी ने शहीद के पराक्रम की प्रशंसा की और उन्हें श्रद्धा से नमन कर , ऐसे बहादुर सैनिक के माता पिता होने पर गर्व जताया | इसी बीच गुरुद्वारे के पाठी भाई भी आकर उन्हें समझाने लगे | कुछ ही पलों में शोकाकुल दम्पति काफी हद तक सहज हो गया | कुछ लोगों ने शहीद के बच्चों को कंधे पर बिठाकर उन्हें विशेष स्नेह जताया | इसी बीच उनके अन्य रिश्तेदार भी पहुँच गये और शहीद के जय -जयकारों के बीच सबने मिलकर शहीद सैनिक और उनकी पत्नी का अस्थि -विसर्जन किया |गुरुद्वारा प्रांगण में देश भक्ति का अद्भुत दृश्य उपस्थित हो गया | हर कोई भावुक था और शहीद सैनिक की फोटो पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा था |
कुछ देर बाद वे सभी से घर की ओर लौट चले और मुझे भी मेरे भाई ने बुला लिया | इधर हम सब लोग घर की ओर लौट चले तो शहीद के परिवार ने भी गाडी , जिसपर शहीद की अपनी पत्नी के साथ सुंदर, सौम्य फोटो लगी हुई थी . में बैठ अपने घर की ओर प्रस्थान किया | बहुत दिनों तक शहीद के उस अस्थिविसर्जन की यादें मन को उद्वेलित और दोनों बच्चों की वो मासूम निगाहें मन को विचलित करती रही तो उनके माता - पिता के करुण चीत्कार मेरी स्मृतियों में गूंजते रहे |
अंत में हुतात्माओं को नमन करते हुये मेरी कुछ पंक्तियाँ ------
तेरी हस्ती रहे सलामत
कर खुद को कुर्बान चले ,
तुझे दिया वचन निभा
तेरे वीर जवान चले !
हम ना रहेंगे और आयेंगे
लाल तेरे बहुतेरे माँ
पड़ने ना देंगे तम की छाया
नित लायेंगे नये सवेरे माँ ;
तेरी खुशियाँ कभी ना हो कम
कर घर आँगन वीरान चले
लिपट तिरंगे में घर आये
बढ़ा जीवन की शान चले !!!
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समस्त साहित्य प्रेमियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई🙏🙏