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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

एक सैनिक का जन्मभूमि प्रेम

 जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ...
ये बात 1965 के भारत - पाक  युद्ध  के समय की है.   जिसे मैंने अपने घर के बड़े    बुजुर्गों के   मुँह से कई बार  सुना  है |  हमारे  गाँव  में वायुसेना  स्टेशन है . सो युद्ध  की   आहट होते ही वहां   सुरक्षा  व्यवस्था  बढ़ा दी जाती   है   |  उस  समय  क्योंकि   संचार के साधन इतने नहीं थे ,सो  लोग बाग़ रेडियो  या अखबार के जरिये ही  युद्ध की सारी खबरें पाते थे |  सीमा पर   लड़ाई  चल रही थी |  अफवाहें भी उडती रहती थी  |  लोग   डर के साए में जीते थे कि कहीं   दुश्मन  एयरफोर्स स्टेशन  और गाँव  पर   बम  ना गिरा दे |     लड़ाई के बीच एक सुबह पता चला कि अम्बाला के  सेंट पॉल चर्च पर पाक सेना के एक हवाई जहाज से हमला हुआ है , जिसका पायलट   पकड़ा भी गया है |   सेना द्वारा की गई पूछताछ  में   पता चला  कि वह पायलट  हमारे गाँव के   एक मुस्लिम परिवार का बेटा है .  जो      बँटवारे  के समय 1947 में   अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चला गया था | उस समय उसकी उम्र  मात्र  6-7 साल की थी |बाद में वह पढ़-लिख कर पाक वायुसेना में पायलट  बन गया और  उसने अपने मिशन के तहत भारत -पाक   युद्ध में भाग लिया ,  जहाँ वह  इस  बमबारी के बाद पकड़ा गया | 
 ये भी पता चला कि वह अम्बाला  जेल में बंद है | गाँव के कुछ  लोग जो उनके परिवार के परिचित थे , उससे मिलने    अम्बाला गये और बड़ी मुश्किल से उससे मिलने में सफल हुए 
ऐसा  इसलिए  हुआ  होगा  शायद  ,  बँटवारे  को  ज्यादा  दिन  नहीं  हुये  थे और लोगों  में  बिछड़े  लोगों  के  प्रति  आत्मीयता  की  उष्मा  शेष  थी। | गाँव के लोगों को देखकर वह  पाक वायु सैनिक बहुत  खुश हुआ और उसने जो बताया उसे सुनकर सभी  हैरान रह गये ! उसने बताया  कि पहले  हमारे गाँव का  एयरफोर्स स्टेशन उसके निशाने पर था.  पर उसे अपनी जन्मभूमि याद थी , सो उसने  उसकी बजाय  ऐसी जगह को निशाना बनाया जो यहाँ से  बहुत दूर थी |  क्योंकि  अम्बाला हमारे गाँव से   लगभग 25 किलोमीटर दूर  है .  सो हमारे गाँव  को  ज़रा भी नुकसान  नहीं हुआ | मिलने गये लोगों से मिलकर  बड़ी भावुकता से अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए उसने .  उनके जरिये  अपने  बचपन के साथियों  और  परिचितों के साथ ,  अपनी जन्मभूमि  को भी  सलाम भेजा | |  उसके बाद   उसका कुछ पता नहीं चला | कुछ लोग कहते हैं कि उसे कुछ समय बाद छोड़ दिया गया था तो कुछ लोग कहते हैं वह  काफी  दिन जेल में बंद रहा |उस लड़ाई के बरसों बाद भी  हमारे गाँव में  .अपनी   जन्मभूमि  के उस  अनन्य प्रेमी .   गाँव के बेटे को बड़ी श्रद्धा से याद किया जाता है जिसने युद्ध  की विभीषिका के बीच  भी   अपनी जन्मभूमि की गरिमा को खंडित होने नहीं दिया और उसके प्रति अपना स्नेह कम होने नहीं दिया | बल्कि अपनी  साँसों की कीमत पर उसका मान बढ़ाया | 

अंत में इस प्रार्थना के साथ कि मानवता को युद्ध   की विभीषिका से कभी गुजरना ना पड़े -- 
 दिवंगत शायर  साहिर की एक अमर नज़्म-- 


टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें,
कोख धरती की बांझ होती है.
फ़तह का जश्न हो या हार का सोग,
जिंदगी  मय्यतों पर रोती है.
इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानों,
जंग टलती रहे तो बेहतर है.
आप और हम सभी के आंगन में,
शमा जलती रहे तो बेहतर है.
स्वरचित 

ब्लॉगिंग का एक साल ---------आभार लेख

 निरंतर  प्रवाहमान होते अपने अनेक पड़ावों से गुजरता - जीवन में अनेक खट्टी -   समय निरंतर प्रवहमान होते हुए अपने अनेक पड़ावों से गुजरता हुआ - ...