फोन में व्हाट्स अप्प पर धडा - धड आते तुम्हारे अनगिन फोटो देख मैं स्तब्ध हूँ ! इन में तुम्हारी रक्तरंजित निर्जीव देह गोलियों से बिंधी हुई एक हरे मैदान के बीचो बीच लावारिस सी पडी है | छः फुट का सुंदर सुडौल शरीर मिटटी बन गया है अब |तुम्हारी पीली कमीज और जींस खून से भरी है | |जख्मों की शिनाख्त के लिए पुलिस ने कमीज के बटन खोल सीने को खुला रख छोड़ा है जिसमे से सीने पर गोलियों से बने गहरे निशान साफ - साफ नजर आ रहे हैं इनमे से बहता खून तस्वीर में दिख रहा है | दूसरे वीडियो में , जो शायद तुम्हारी मौत के तुरंत बाद का है , औरतों के क्रन्दन की दहलाती आवाज गूंज रही है जिनमे एक स्वर सबसे ज्यादा मर्मान्तक है जो पक्का तुम्हारी माँ का ही होगा | क्योकि माँ ही तुम्हारी मौत से सबसे ज्यादा सदमे में होगी | एक अन्य वीडियो में तुम्हारा निर्जीव शरीर सफ़ेद कपड़े में लिपटा और खूब मजबूती से बंधा सडक के बीचोबीच रखा गया है |भारी संख्या में गाँव-भर के लोग तुम्हारी इस अप्रत्याशित मौत के लिए जिम्मेवार तुम्हारे हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए गाँव के बाहर राजधानी की ओर जा रहे सडक मार्ग को बाधित कर नारे बाजी कर रहे हैं |सभी तुम्हारे साथ हुई इस नाइंसाफी से व्यथित हैं | मेरी मन की विकल आँखे देख रही हैं, गाँव की गलियों में जवान मौत से पसरे सन्नाटे को और मुझे वो दिन याद आ रहे हैं जब बरसों पहले मैं गाँव में ही थी , तो किसी युवा की मौत का गाँव भर में कैसा मातम छा जाता था और पूरा गाँव शोक संतप्त हो जाता था ! हर कोई इसे अपना ही दुःख मान कर चलता था | गलियों में चिड़िया की चूं सरीखी आवाज भी सुनाई नही पड़ती थी |आज भी गाँव में यही कुछ हो रहा होगा | मेंरी जुबान को मानो लकवा मार गया है | कंठ अवरुद्ध और आँखें सजल हो गयी हैं |
यूँ तो मेरा तुम्हारा गाँव के नाते से रिश्ता है | आखिर मेरे गाँव के एक परिवार का भविष्य थे तुम | तुम तो शायद मुझसे परिचित भी नहीं होंगे -पर मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानती हूँ ,जिसे तुम्हारी माँ यानि गाँव के रिश्ते की भाभी ने रो -रो कर मुझे एक बार बताया था | भाभी को मैंने उनकी शादी के समय देखा था जिसके सौन्दर्य और मिलनसारिता के चलते मैं हमेशा के लिए उनके साथ स्नेह के बंधन में बंध गयी थी |किशोर अवस्था से जुडा ये रिश्ता समय ना होने पर भी दो चार घड़ी के लिए मिलने का अवसर ढूंढ ही लेता था | पर मेरी शादी के बाद बीच के सालों में सचमुच व्यस्तता इतनी हावी हो गयी ,कि भाभी से मिलना अक्सर नहीं हो पाता था |
गाँव में जाने पर तुम्हारे बारे में अजीब - अजीब सी बातें सुन मैं हैरान सी रह जाती ! | पहले से कितना बदल गये थे तुम !! तुम्हारे बचपन के अनेक लम्हे मेरे आँखों में गुजर रहे हैं | तुम्हारी माँ को कितनी ख़ुशी मिली थी तुम्हारे जन्म से -शायद तुम जानते भी नहीं थे |मायके में वे दो बहने थी -भाई नहीं था | तुम्हे नहीं पता , कि उन दिनों एक लडकी का सगा भाई ना होना उसके लिए किसी अभिशाप से कम ना था | अब तो समय के साथ ये बात महत्वहीन होने लगी है ,पर तब समाज में ऐसी लड़कियों को अभागी और मनहूस कहकर प्रताड़ित किया जाता था | मायके में भाई नहीं और ननिहाल में मामा नहीं ! कितनी डरी हुई थी वो तुम्हारे होने से पहले, कि कहीं उसे भी नानी और माँ की तरह सिर्फ लडकी की माँ होने के ताने ना मिलें | तुम्हारा होना उसके और तुम्हारी नानी के लिए बहुत बड़ा सुकून और ख़ुशी लेकर आया | तुम्हारा चेहरा बिलकुल माँ की तरह दिखता था एकदम गोरा और सुंदर || जब तुम बहुत छोटे थे तो तुम्हारी छोटी बुआ अक्सर तुम्हे सीने से चिपकाए आह्लाद में भरी तुम्हारे साथ हंसती ठिठोली करती घर के आसपास की गली में घूमती नजर आती तो थोड़ा बड़ा होने पर तुम्हारे पिता को मैंने अनगिन बार तुम्हे कंधे पर बिठा खेतों में लेजाते देखा | तुम्हारे दादा जी की तो आँख का तारा थे तुम | पूरे गाँव में तुम्हारे परिवार को बेहद सादगी भरे शांत परिवार के रूप में जाना जाता था | किसी लड़ाई झगड़े में कभी उनका नाम ना आया था | तंगहाली में भी खुश और मस्त रहने वाला श्रमजीवी परिवार जिसकी आजीविका गाँव के बाहरी भाग में थोड़ी बहुत पुश्तैनी जमीन थी जिस पर खेती -बाडी करके अपना गुजारा करते थे | तुम्हारे भोले भाले दादा जी के दोनों बेटे और बेटियों ने अपने पिता सरीखा शांत और सरल स्वभाव पाया था | फिर तुम क्यों उनके जैसे ना हुए ? सच कहूँ तो मुझे विश्वास ही नही होता कि ये बातें तुम्हारे बारे में कही जा रही हैं |बचपन में कितने शांत थे तुम !गोरा रंग और आँखों में कोरा खरोंचा काजल कितना जंचता था तुम्हारी मोटी - मोटी आँखों में |पर धीरे धीरे ना जाने किस और मुड गये थे तुम्हारे कदम !!
तुम्हारे पिता ने तो तंगहाली में भी तुम्हारे उज्जवल भविष्य के लिए तुम्हे अच्छे महंगे स्कूल में दाखिल करवाया था | वहां शरारती बच्चो से तुम्हारी दोस्ती ने तुम्हे ना जाने कैसे जुर्म की दुनिया से जोड़ दिया था |किशोर अवस्था आते आते तुम्हारा नाम कई उपद्रवों से जुड़ गया | कभी किसी लावारिस मकान का कब्जा दिलवाने में तो कभी किसी अन्य गुटबाजी में तुम्हारा नाम आता ही रहता था | अनेक बार तुम्हारा पिता पुलिस को तुम्हारी बेगुनाही का सूबूत देता बिलखता फिरता-- ऐसा सुना था मैंने | गाँव भर में तुम्हारे चाल-चलन के बिगड़ने की अफवाहे फैलती रहती थी पर तुम्हारी माँ हमेशा कहती की तुम निर्दोष हो | उसे हमेशा लगता रहा ,कि तुम सरल हो इस लिए अपना भला बूरा समझ नहीं पाते | वह कहती -तुम्हे तुम्हारे शरारती दोस्तों के साथ खड़े होने की सजा मिलती है | वह तुम्हे खूब समझाती पर तुमने कभी ध्यान नहीं दिया जब शहर के बाजार में हुई गोलाबारी के सिलसिले में तुम्हे पुलिस ने धर दबोचा था तो वह गाँव भरके सामने सुबकती सफाई देती रही ,कि तुम तो बंदूक चलना भी नहीं जानते उसे छूने से भी डरते हो -- गोली कैसे चला सकते हो ? वह बस तुम्हे समझाती ही रही | कितना समझाया था उसने तुम्हे -चार साल पहले भी , जब उस दिन तुम अपने पिता का दोपहर का खाना खेतों में पहुँचाने के लिए तैयार खड़े थे कि किसी ने फोन पर तुम्हे फ़ौरन अपने पास पंहुचने के लिए कहा और तुम खाने का सारा सामान छोड़कर अपनी साईकिल उठा गाँव के दूसरे सिरे पर पंहुच गये थे जहाँ दो गुटों में लड़ाई की स्थिति इतनी बिगड़ गयी कि उनमे से एक लड़का बूरी तरह चोटिल हो गया था और उसे पास के शहर के बड़े अस्पताल ले जाना पड़ा था जहाँ पहुंचने से पहले उसने दम तोड़ दिया था | यूँ तो प्रत्यक्षदर्शी कह रहे थे कि तुम तो लड़ाई खत्म होने के बाद वहां पहुंचे थे पर विरोधी गुट ने सबको सबक सिखाने ने मकसद से तुम्हारा भी नाम आरोपियों में लिखवा दिया था | तुमने उस दिन भी अपनी माँ की बात को अनदेखा किया और चले गये | तुम्हारा पिता उस दिन बदहवास भूखा - प्यासा तुम्हारे पीछे पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाता रहा और तुम्हे निर्दोष साबित करने का असफल प्रयास करता रहा ,पर तुम्हे सजा मिलने से ना रोक पाया | चार महीने पहले ही तुम चार साल की सजा काटकर जेल से बाहर आये थे |आकर तुमने माता - पिता से वादा किया था कि तुम अब सचमुच सुधर जाओगे |तुम्हारे पिता ने तुम्हे अपने साथ खेती -बाडी करने के लिए राजी भी कर लिया था | सुना है दोनों ने गुप चुप तुम्हारे लिए एक लडकी भी पसंद कर ली थी ताकि जल्दी तुम्हारी शादी हो जाए | उन्हें पूरा विश्वास था अपनी गृहस्थी में तुम जरुर सुधर जाओगे | तुम फिर से किसी महत्वकांक्षा के चलते कोई जुर्म ना कर बैठो इस डर से किसी तरह पैसे जुटाकर एक पुरानी कार भी तुम्हारे लिए खरीद कर दी थी | आसपास के लोग भी विश्वास नहीं कर पाते थे कि तुम्हारा जुर्म की दुनिया से कोई वास्ता है |तभी तो आज पूरा गाँव तुम्हारे पिता के साथ हो लिया है |उन्हें लग रहा है कि तुम देर - सवेर सुधर ही जाते ,आखिर तुम्हे यूँ मारने की जरूरत क्या थी ? तुमने जुर्म की दुनिया को छोड़ दिया पर जुर्म की दुनिया ने तुम्हे नहीं छोड़ा| आज भी तुम घर पर अपनी माँ से कहकर गये थे ,कि तुम दोपहर के समय आ जाओगे तुम्हारे लिए पूरी और आलू की सब्जी बनाकर रखे | तुम्हे आज शहर के न्यायालय में पिछले दिनों हुए एक कत्ल के केस में गवाही के लिए जाना था | तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए बहुत डरी हुई थी | वह तुम्हे अकेले जाने देने के लिए राजी नहीं थी | उसने तुम्हे बहुत समझाया कि एक -दो बड़े समझदार लोगों के साथ जाए पर तुम जिद्दी जो ठहरे !गाडी लेकर अकेले ही गवाही देने चल पड़े थे | घर से कुछ कदम की दूरी पर ही --घात लगाकर बैठे तुम्हारे विरोधी गुट के लोग--गाडी रोक तडातड गोलियों से तुम्हे छलनी कर भाग निकले थे |तुमने वहीँ दम तोड़ दिया था || थोड़ी देर में ही जंगल की आग की तरह तुम्हारी मौत की खबर पूरे गाँव में फ़ैल गयी थी | बदहवास पिता और बिलखती माँ तुम्हारी ओर भागे |
किसी समय तुम्हारे पिता तुम्हे समझाकर फ़ौज में भर्ती करवाना चाहते थे | सोचो !यदि आज तुम एक फौजी बनकर देश के लिए प्राण देते तो शहीद कहलाते | तुमसे पूछती हूँ -- वो कौन सी व्यवस्था थी जिसे सुधारने के लिए तुमने जुर्म की दुनिया चुनी और अपनी अनमोल जान गंवाई ? क्या मिला तुम्हे ? तुम्हे पता भी नहीं -- तुम्हारे घर - परिवार की कितनी लड़कियां गाँव में कॉलेज होते हुए भी तुम्हारे कारण कॉलेज में ना पढ़ पाई और अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर उन्हें घर पर ही बैठना पड़ा था| माता - पिता को डर था कहीं तुम्हारे विरोधी तुम्हारा बदला तुम्हारी मासूम बहनों से ना ले ले | तुम्हारे भाई और माता -पिता को अक्सर तुम्हारे कारण समाज में कितना शर्मिंदा होना पड़ा था |जरा सी बात में उन्हें तुम्हारे गैंगस्टर होने का ताना मिल जाता था, फिर भी उन्होंने तुम्हे अपने परिवार और सम्पति से बेदखल नहीं लिया, हालाँकि बहुत से लोगों ने अनगिन बार उन्हें ऐसा सुझाव दिया था |दूसरी तरफ ज्यादातर लोग उनसे हमदर्दी ही रखते थे और उन्हें समझाते थे कि समय के अनुसार तुम खुद ही अपना भला -बूरा समझ जाओगे | हर बार तुमने अपनी माँ की बात को अनदेखा किया | तुम नहीं जानते अब वो कभी भी पूरी आलू की सब्जी के साथ ना खा सकेगी | हमेशा तुम्हारी याद में तडपती जीवन गुजार देगी | भले ही दो बच्चे और थे उसके पर तुम ही उसके मन के ज्यादा करीब थे |कितना चाहती थी तुम्हे और हर बार समझाती थी |पर तुमने कभी उसकी बात सुनी ना मानी | क्यों थे इतने जिद्दी तुम ? सुनो ! काश ! तुम ये जिद छोड़ देते और कम से कम आज तो उसकी बात मान ही लेते !!!सोचते , पछताते मेरी आँखें निर्झर बन बरस उठी हैं |
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धन्यवाद शब्दनगरी----------
रेणु जी बधाई हो!,
आपका लेख - (जिद -- लघुकथा -- ) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-05-2018) को "सहते लू की मार" (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हटाएंआपके अतुलनीय सहयोग के लिए आभारी रहूंगी आदरणीय सर |
हटाएंअच्छा कथानक. अच्छी फ़्लैश बेक स्टाइल.
जवाब देंहटाएंआदरणीय हर्ष जी -- सादर आभार आपका |
हटाएंप्रिय रेणु बहन, आपकी ये कहानी पढ़कर अपने शहर का एक वाकया याद आ गया जो करीब तीस वर्ष पुराना होगा पर चलचित्र सा खिंच गया आँखों के आगे....
जवाब देंहटाएंआपने पूरी कहानी में तारतम्य बनाए रखा कथानक में और सार्थक संदेश भी दिया है। सस्नेह।
प्रिय मीना बहन -- ऐसे वाकये रोज अख़बारों में छपते हैं | भटके युवा माँ -बाप का दर्द अनदेखा कर ना जाने किस दुनिया का हिस्सा बन जाते हैं |उनके जुर्म की दुनिया से जुड़ने के बाद घरवाले किस दर्द से गुजरते हैं ये मैंने देखा और सुना | गाँव में तो लोग ऐसे सरल लोगों का बचाव कर लेते हैं पर शहरों में जहाँ कोई किसी को ज्यादा जानता नहीं परिवार भी पुलिस और थानों के चक्कर में बर्बाद हो जाते है |आपने रचना के मर्म को समझ कर रचना को सार्थक कर दिया | सस्नेह --
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण और सजीव चित्रण है,आपकी कहानी मुझे बनारस के उस दंगे की याद दिला गयी। जब एक युवक को हर मंगलवार की तरह ही संकटमोचन दर्शन को जाना था। मार्ग मेंं संवेदनशील इलाका था, परिजनों ने लाख समझाया, पर नहीं माना। दुर्भाग्य से उसी क्षेत्र में उसकी साइकिल में कुछ खराबी आ गई, वह उसे देखने नीचे उतरा और सिर कलम हो गया। यह जिद सचमुच अपनों को दुख दे जाती है। मैं तो स्वयं इसका एक मिसाल हूं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शशि भाई --- आपने सही कहा जिद कुछ ना कुछ अनहोनी की दस्तक होती है | कथा के बहाने आपने अपने अनमोल विचार सांझे किये | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंमार्मिक कथानक ...
जवाब देंहटाएंवर्तमान और यादों के फ़्लेश बेक से लिखी कहानी बहुत ही चुस्त और विषय पे केंद्रित रही ..।
कई बार ऐसी जिद पूरिनम्र का दुःख से जाती है ...
आदरणीय दिगम्बर जी --आपने रचना के मर्म को पहचाना सादर आभार |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता --- आपके सहयोग के लिए आभार |
हटाएंलाजवाब रेनू बहन धारा प्रवाहता और संवेदनाओं का गजब तालमेल
जवाब देंहटाएंअप्रतिम क्या कहूं शब्द नही सचमुच बहुत गजब का लेखन है आपका ।
सादर।
प्रिय कुसुम बहन आपके शब्दों ने मेरी रचना को सार्थक कर दिया | सस्ने आभार |
हटाएंलघु कथा है लेकिन पढ़ते वक्त लगा कि ये किसी आपबीती कहानी को लिखा है.
जवाब देंहटाएंदिमाग में एक फिल्म की तरह चलती रही. शानदार लेखन.
आपके किसी कमेंट का प्रतिउत्तर है मेरी ये रचना आप जरुर पढियेगा और प्रतिक्रिया भी दीजियेगा कविता और मैं
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हटाएंआदरणीय रोहितास जी - आपको रचना पसंद आई मेरा सौभाग्य और मेरे लेखन की सफलता | कथा मेरे गाँव की एक घटना पर आधारित है | और आपका लेख उसी दिन पढ़ लिया था पर कुछ व्यस्ताएं रही और बिजली की समस्या के कारण लिख नही पायी | आराम से लिखूंगी | मनोबल ऊँचा करते शब्दों के लिए आभारी रहूंगी ||
हटाएंमार्मिक लघुकथा , आपने बहुत यथार्थ दृश्य खींचा , शुरू से अंत तक एक प्रवाह में बहती गयी ... बधाई रेनू जी
जवाब देंहटाएंआदरणीय वंदना जी --सादर आभार |
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसादर आभार लोकेश जी |
हटाएंवाह!!प्रिय सखी ,नमन करती हूँ आपकी लेखनी को ...।
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा जी -- ह्रदय तल से आभार और शुक्रिया |
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