भारतीय साहित्य जगत में पूजनीय रविन्द्रनाथ टैगोर ऐसी शख्सियत रहे जिन्होंने अपनी असीम प्रतिभा से बहुत बड़े काल खंड को अपनी मौलिक विचारधारा और साहित्य कर्म से ,सांस्कृतिक चेतना के मध्यम पड़ रहे स्वर को प्रखर किया | उनका जन्म साहित्य और संस्कृति के उत्थान के शुभ संकेत लेकर आया | जैसा कि कहा जाता है साहित्य समाज का दर्पण होता है रविन्द्रनाथ टैगोर के बारे में ये बात अक्षरशः सत्य है | उनके साहित्य में क्या नहीं है ? हृदयस्पर्शी कवितायेँ , सुरों में बंधे गीत , मानवता को समर्पित आख्यान , प्रेम के अद्भुत रूप रचती गाथाएं और समाज और राष्ट्र की अनमोल थाती अक्षुण मानवीय भावनाओं से ओत प्रोत दिव्य और अलौकिक गान ! उनके बारे में कुछ भी कहने में कोई लेखनी सक्षम नहीं | उन्होंने अपनी लेखनी से मानवता और धरती को अपनी दिव्य आभा से भाव -विभोर कर दिया | उनकी प्रत्येक रचना में कोई ना कोई सन्देश छिपा है | उन्होंने ना जाने कितने मनों की अनकही कहानियों को शब्दों में पिरो रचनाओं में ढाला | शायद अत्यंत बचपन में अपनी माँ और युवावस्था में अपनी अन्तरंग मित्र और हम उम्र भाभी को खोना उनके लिए अत्यंत मर्मान्तक रहा जिसने उन्हें पर -पीड़ा से जोड़ दिया | कालान्तर में अपने दो बच्चो और पत्नी की मौत को भी असमय सहना उनकी नियति रही |
वे ऐसे विरल व्यक्तित्व थे जिन के अवतरण की मानवता राह तकती है | प्राय समीक्षक कहते हैं कि लेखन से समाज या राष्ट्रों में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं आता इनके बदलने के पीछे बहुत तरह के तर्क हो सकते हैं अकेला साहित्य नहीं !! पर टैगोर का लेखन के बारे में ये बात अपवाद है | उनका लेखन मात्र लेखन नहीं था सामाजिक और सांकृतिक चेतना का शंखनाद था | उनके विचारों ने आमजनों के साथ प्रबुद्धजनों के ऊपर भी बहुत प्रभाव डाला | उनका जन्म कोलकाता में 7 मई 1861 में एक अत्यंत प्रसिद्ध और सम्पन परिवार में हुआ उनके पिताजी आदरणीय देवेन्द्रनाथ टैगोर ब्रहम समाज के नेता थे |कई भाई बहनों में रवीन्द्रनाथ सबसे छोटे और बहुमुखीप्रतिभा संपन थे | उनकी प्रतिभा को देख उनके पिताजी उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे पर वे इस उद्देश्य से इंग्लॅण्ड जाकर भी बिना बैरिस्टर बने लौटआये क्योकि उन्हें केवल साहित्य में रूचि थी जिसके लक्षण उनमे बचपन से लेखन के माध्यम से दिखाई देने लग गये थे | बहुत छोटी उम्र से ही वे कविताये और कहानी लिखने लगे थे| वे अनन्य प्रकृति प्रेमी और अन्तर्मुखी थे |शिक्षा के विषय में उनके विचार बहुत ही स्पष्ट थे | वे औपचरिक शिक्षा के खिलाफ थे | उनका मानना था कि शिक्षा जिज्ञासा का विषय है साधन का नहीं अतः प्रत्येक विद्यार्थी को प्राकृतिक माहौल में अपनी रूचि के अनुसार पढाई करनी चाहिए | उनकी ये बात आज अत्यंत प्रासंगिक है और आगे भी प्रसंगिक रहेगी | | रविन्द्र नाथ को उनकी बहुमुखी प्रतिभा और शिक्षा , साहित्य संस्कृति इत्यादि के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए सम्मान- स्वरूप ' गुरुदेव ' कहकर पुकारा गया | इसके अलावा उन्हें रवीन्द्रनाथ ठाकुर भी कहा जाता था |उन्होंने अपने अप्रितम लेखन के माध्यम से भारतीय संस्कृति के उत्कृष्टतम रूप से विश्व का परिचय करवाया |एक कहानीकार , गीतकार , नाटककार , निबंधकार , चित्रकार और संगीतकार आदि के रूप में अपने मौलिक सृजन से सभी को विस्मय से भर दिया | उनके सृजन में दिव्यता और सरलता दोनों है | वे अपने विचारों को स्पष्टता से कह पाने में समर्थ थे | महात्मा गाँधी के राष्टवादी विचारों के प्रतिउत्तर में उन्होंने मानवतावादी विचारों को अधिक महत्व दिया | फिर भी वे दोनों ही एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे | कहा जाता है कि गुरुदेव ने ही गाँधी जी को -- महात्मा -- शब्द से विभूषित किया था | वे प्रखर समाज हितैषी थे | अपना सबसे बड़ा योगदान उन्होंने शान्तिनिकेतन के रूप में राष्ट्र को दिया जहाँ पढ़ना आज भी गौरव का विषय समझा जाता है |जिसके लिए धन उगाहने के लिए उन्हें जगह - जगह नाटकों का मंचन करना पड़ा | | वे एक मात्र ऐसे कवि है जिनकी दो - दो रचनाओं को दो देशो का राष्ट्र गान बनने का गौरव मिला जिनमे से एक '' जन -गन - मन '' भारत के लिए तो दूसरा 'ओमार सोनार बांग्ला''' बँगला देश का राष्ट्र गान बनी | वे एशिया के साहित्य के पहले नोबल पुरूस्कार विजेता बने जो उन्हें उनकी कृति '' गीतांजलि '' पर मिला | भारत में तो ये अब तक का एक मात्र नोबल पुरस्कार है और अनंत गौरव का विषय है | अंग्रेजी सरकार ने उन्हें 1915 में प्रतिष्ठित 'नाईटहुड ''पुरस्कार भी प्रदान किया था जिसे उन्होंने जलियांवाला हत्याकांड के विरोध में वापिस कर दिया और बड़े ही चेतावनी भरे शब्दों में उन्होंने ब्रिटिश सरकार से भारत की आजादी की मांग की |उन्होंने आजादी की क्रांति को समर्पित कई रचनाओं से आजादी की लौ को और प्रखर करने में अपना अहम योगदान किया | उन्होंने यूरोप के उपनिवेशवाद की आलोचना की और भारत की आजादी की विचारधारा का प्रबल समर्थन किया | हलाकि वे सक्रिय राजनीति से दूर रहे पर फिर भी अपने सृजन के माध्यम से उन्होंने आजादी में अपना अतुलनीय योगदान दिया | अफ़सोस ये रहा कि वे अपने जीवन काल में स्वतंत्र भारत का सूर्य उदित होता ना देख पाए |
वे जीवन के अनंत यायावर और प्रयोगवादी व्यक्ति थे |जीवन के अंतिम दिनों में उनका भावुक मन चित्रकारी से जा जुडा जिसके माध्यम से उन्होंने जीवन के अनेक मर्मान्तक चित्र रचे | गीतों की कहें तो उनके लगभग 2230 राग - रागिनियों में बंधे गीत आज भी बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग हैं जिन्हें '' रविन्द्र संगीत '' के नाम से जाना जाता है | अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक साहित्यिक कृतियों का सृजन किया जिन्होंने अपार प्रतिष्ठा और लोकप्रियता पाई |इनमे गीतांजली . चोखेर बाली , गोरा , मानसी इत्यादि प्रमुख हैं
प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही बन्धनों में बंधा जीवनयापन करता है अपने लेखन के माध्यम से उन्होंने व्यक्ति को निर्भय रहने का आह्वान किया | उन्होंने अपनी रचनाओं और गीतों में ऐसे संसार की कल्पना की जहाँ कोई डर, संदेह ना व्यापता हो | मन भय की परिधियों से परे निर्भय होकर जिए |'एकला चलो रे' का मन्त्र देते हुए अपनी विश्व विख्यात रचना ----where the mind is without fear--में वे कहते हैं
जहाँ मन निर्भय हो, हो शीश उच्च अटल,
स्वतंत्र ज्ञान जहाँ हो,
जहाँ सकरी घरेलू दीवारों से छोटे-छोटे टुकड़ों में ,
बटती दुनिया न हो,
जहाँ शब्द सत्य की गहराई से बोले जाते हों,
जहाँ अथक प्रयासों से पूर्ण निपुणता हासिल हो,
जहाँ मृत आदत के मृत मरुस्थल में,
तर्कों की स्पष्ट धारा ने अपना मार्ग न खोया हो,
बटती दुनिया न हो,
जहाँ शब्द सत्य की गहराई से बोले जाते हों,
जहाँ अथक प्रयासों से पूर्ण निपुणता हासिल हो,
जहाँ मृत आदत के मृत मरुस्थल में,
तर्कों की स्पष्ट धारा ने अपना मार्ग न खोया हो,
जहाँ निरंतर विकसित होते कर्म एवं भाव,
हमारे ही आधीन हों,
हे ईश्वर! ऐसी आज़ादी के स्वर्ग में मेरे राष्ट्र का उदय हो।
हमारे ही आधीन हों,
हे ईश्वर! ऐसी आज़ादी के स्वर्ग में मेरे राष्ट्र का उदय हो।
[अनुवाद -- गूगल से साभार ]
अपने जीवन के अंतिम चार वर्षों में अत्यंत शारीरिक कष्टों से जूझते हुए अंत में 7अगस्त 1941 को कोलकाता में ही इस महान युगपुरुष का देहावसान हो गया जिसके साथ ही साहित्य के एक स्वर्णिम युग का भी अवसान हुआ || पर उनका अमर साहित्य उनके अटल व्यक्तित्व का परिचायक है और सदा रहेगा |
चित्र ०० गूगल से साभार --------------------------------------------------------
प्रिय रेणु दी,
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका इतना सुंदर लेख साझा किया आपने,रवींद्र नाथ जी मेरे प्रिय साहित्यकारोंं में एक है।
इनकी अद्भुत प्रतिभा और रचनात्मकता सदैव मुझे आकर्षित करती है।
बहुत पसंद आया यह लेख दी...आपकी कलम की खासियत है व्यक्ति परिचय में अपनत्व का भाव भरती है जिससे पढ़ते समय एक रुचि जागृत होती है।
प्रिय श्वेता -- रचना पर आपके स्नेहासिक्त और अत्यंत सारगर्भित चिंतन से मन को अपार प्रसन्नता हुई | सचमुच गुरुदेव हम सब के बहुत ही प्रिय साहित्यकार हैं उन्हें श्रधान्जली देने के लिए ये छोटा सा प्रयास किया है | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंसुन्दर और सुगठित लेख!
जवाब देंहटाएंआदरणीय विश्वमोहन जी -- सादर आभार आपके अनमोल शब्दों के लिए |
हटाएंक्या कहूं निःशब्द कर दिया आप ने बहुत अच्छा लिखा.... लाजवाब।
जवाब देंहटाएंप्रिय नीतू -- ये बस छोटा सा प्रयास था | आपको पसंद आया बहुत क्खुशी हुई |सस्नेह --
हटाएंवाह!!रेनु जी ,गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के बारे में विस्तृत जानकारी देता ,बहुत ही उम्दा लेख है । धन्यवाद ..
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा जी -- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंटैगोर जी ने हमेशा बंधन से मुक्त समाज की कल्पना की।
जवाब देंहटाएंवह सदैव सीमा से पार जाकर विश्व बन्धुत्व की ओर अग्रसर रहे। वह हवा , जल, पक्षी की भाँति मानव को बंधनों से मुक्त करना चाहते थे।
रेणु जी आपने बहुत अच्छा लिखा।
ऐसे ही लिखती रहिये।
प्रीत सलमान -- आपके सारगर्भित अनमोल शब्दों के लिए आभारी हूँ आपकी | सचमुच विश्व बंधुत्व का सन्देश देते हुए रविन्द्र्बाथ टैगोर ने राष्ट्र की एकता पर बल दिया |आपने विषय को विस्तार देते बड़े सुंदर शब्द उन्हें समर्पित किये हैं | सस्नेह आभार आपका
हटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी आपने टैगोर जी के बारे में !
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका
सादर आभार आदरणीय आशुतोष जी --|
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।.........
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लाॅग पर आपका स्वागत है ।
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हटाएंप्रिय संजू जी सस्नेह आभार | मैं जरुर आपके ब्लॉग पर आऊँगी |
हटाएंविराट प्राकृति के रंग और अनूठा शब्द-संयोजन कर के रविंद्र नाथ जी
जवाब देंहटाएंने जितना सुंदर काव्य रचा है उसकी मिसाल आज भी मिलनी मुश्किल है ...
आपने सहज उनके जीवन और रचनाओं का सुंदर आनन किया है .।.
नमन है मेरा राष्ट्र कवी को ,,,
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के बारे में बहुत सुंदर लेख लिखा आपने
जवाब देंहटाएंरेणु जी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को मेरा शत् शत् नमन 🙏
प्रिय अनुराधा जी -- सस्नेह आभार आपके स्नेह भरे शब्दों का |
हटाएंरेणू बहन आज गुरुदेव के स्मृति दिवस पर आपने बहुत सुंदर ढंग से उनकी गौरव गाथा को प्रसारित किया धारा प्रवाहता लिये जीवन वृतांत जानकारी बढ़ाता आपके इस लेख के लिये हृदय से साधुवाद।
जवाब देंहटाएंगुरुदेव की रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं. भारत का 'जन गण मन' और बांग्लादेश का 'आमार सोनार बांग्ला' ये दोनो उन्हीं की रचनाएं हैं. वहीं श्रीलंका का राष्ट्रगीत 'श्रीलंका मथा' भी टैगोर की कविताओं की प्रेरणा से बना है. इसे लिखने वाले आनंद समरकून शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर के पास रहे थे और उन्होंने कहा था कि वे टैगोर स्कूल ऑफ पोएट्री से बेहद प्रभावित थे।
प्रिय कुसुम बहन -- - आपका ह्रदय तल स आभार कि आपने इस लेख को रूचि से पढ़ा और बहुत अहम् जानकारी श्रीलंका के राष्ट्र गन के विषय में जोड़ कर लेख की विषय वस्तु को विस्तार दिया | मैंने उनके दो देशों के राष्ट्र गान रचियता होने का तो जिक्र तो लेख में किया है पर मुझे श्री लंका के रष्ट्र गान वाला सन्दर्भ ज्ञात नहीं था ||और ये लेख उनके जन्म दिवस पर लिखा था - पर आज भी इसे उन्हें नमन करते हुए शेयर किया | और उनके बारे में लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है | आपकी टिप्पणी ने मेरा बहुत ज्ञान बढ़ाया |सस्नेह --
हटाएं'एकला चलो रे' का मन्त्र की शक्ति सिर्फ उन्ही के पास थी। किसी विशेष परिचय के मोहताज न रहते हुए मानवता को बेहतरीन भावों से ओतप्रोत करना उनकी खूबी थी। भारत देश को उनकी बहुमुखी प्रतिभा पर गर्व है।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही सही बात लिखी आदरणीय पुरुषोत्तम जी | सादर आभार |
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