बात जनवरी 1992 की है जब मैं अपनी बुआ जी के यहाँ अम्बाला कैंट गई हुई थी | उन दिनों मेरे फूफाजी , जो मर्चेंट नेवी में काम करते थे , भी घर आये हुए थे | इसी बीच उनके साथ उनके एक रिश्तेदार के यहाँ शादी में अम्बाला शहर जाने का अवसर मिला | शादी रात में थी | शादी में ही फूफा जी के दूसरे रिश्तेदार चौहान साहब और उनकी पत्नी मिल गये | यूँ तो वे पास के गाँव के रहने वाले थे लेकिन क्यूँकि दोनों कामकाजी थे इसलिए वे अम्बाला में ही रहते थे उनका घर यहाँ शादी वाले घर से ज्यादा दूर नहीं था | वे फूफा जी को अपने घर आने का आग्रह करने लगे जिसे फूफा जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया | हम तीनों उनके साथ उनके घर पहुंचे तब तक रात के बारह बज चुके थे | चौहान साहब ने जैसे ही घर के दरवाजे की घंटी बजाई उनकी माँ ने दरवाजा खोला ,जो इन दिनों गाँव से उनके घर रहने आई हुई थी | उनकी माँ को देखकर सब हैरान और परेशान हो गये | लग रहा था वे अभी -अभी नहाकर आई हैं | जनवरी की कंपकंपाती ठण्ड में भी उन्होंने बहुत ही घिसा -पिटा सा सूती सूट पहन रखा था जोकि उनके सिर के बालों से टपकते पानी से बिलकुल तर हो उनके बदन से चिपका हुआ था | वे मानो नींद में चल रही थी |चौहान साहब की पत्नी ने तत्परता से उन्हें संभाला और पूछा कि वे इस समय क्यों नहाई ? वे समय जानकर बहुत ही लापरवाही से बोली कि उन्हें लगा सुबह के पांच बजे हैं इसीलिये वो नहा आई | चौहान साहब की की पत्नी ने अंदर के कमरे में ले जाकर उन्हें ऊनी कपडे पहनाये और बाल सूखे तौलिये में लपेटकर उन्हें सुखाया | साथ में हम सभी को बाहर वाले कमरे में बिठाकर सबके लिए चाय बनाने चली गई| इस कमरे की सामने की दीवार पर एक अत्यंत युवा लडके की बड़ी सी हार चढी फोटो टंगी थी | यूँ तो फूफा जी पहले से ही जानते थे पर चौहान साहब बताने लगे कि वह चित्र उनके दिवंगत छोटे भाई ऋषिपाल का था जिसकी मौत आकस्मिक सडक दुर्घटना में आठ वर्ष पूर्व हो गयी थी | माँ तब से विचलित थी और कोई भी सांत्वना उन्हें उस दुखद याद से मुक्त नहीं कर पायी थी | माँ उस मर्मान्तक घटना को कभी भी भूल नहीं पाई | हालाँकि वे उसी दिन से शहर के अत्यंत जाने माने मनो चिकित्सक से उनका इलाज भी करवा रहे हैं पर वे ऋषिपाल को कभी भूल नहीं पाती क्योकि वह तीन भाइयों में सबसे छोटा और संबका लाडला था | खुद चौहान साहब के अपनी कोई संतान नहीं थी अतः वे अपने इसी भाई को अपनी संतान की तरह मानते थे और पढने- लिखने के लिए प्रोत्साहित करते थे | | इसी बीच उसका चयन वायुसेना में हो गया . जिसके लिए उसे दो दिन बाद ही ट्रेनिंग पर जाना था पर जाने से पहले ही सड़क दुर्घटना में उसकी जान चली गयी |सब बातें बताते हुए उनकी आँखें नम होती रही |
इसी बीच माँ नाजाने क्यों मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर अपने कमरे में ले गई | उनका कमरा सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा था | साफ सुथरे बिस्तर के अलावा दवाई और पानी के साथ माँ की जरूरत की हर चीज वहां मौजूद थी | इस कमरे में भी उनके दिवंगत बेटे की एक और मुस्कुराती हुई तस्वीर मेज पर उनके बिस्तर के बिलकुल सामने रखी थी | वह अचानक ना जाने किस रौ में तस्वीर में अ अपने दिवंगत बेटे के चेहरे को सहलाती हुई
मुझे बताने लगी कि उनका बेटा ऋषिपाल उस दिन उन्हें कहकर गया था कि बाद कुछ देर बाद आ रहा हूँ पर वो निष्प्राण होकर लौटा !! वह मुझे बहुत ही व्यथित हो बताती गई कि जिस घड़ी वो शहर जाने के लिए तैयार हुआ घर की मजबूत दीवार अपने आप दरक गई और घर के सामने खड़े आम के पेड़ की सबसे मोटी डाली ना जाने कैसे अनायास टूट कर धरती पर गिर पड़ी | माँ की आँखें कौतूहल और अनजाने डर से फैलकर आज भी उस दृश्य को मानो सजीवता से अपने आगे ही देख रही थी और आत्म मुग्धता की स्थिति में वे कहती जा रही थी कि उस दिन कोई आंधी तूफ़ान नहीं आया तो कैसे दीवार और आम की टहनी टूट गई थी !!
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था उन्हें क्या कहूं !!! मैं निःशब्द बैठी उन्हे एकटक निहार रही थी और उनकी करुणा से भरी बातों से मेरे भीतर एक वेदना पसरती जा रही थी | वे उस पल के पास आज भी उसी तरह से जुडी बैठी थी मानो ये अभी इसी पल की बात हो | लाडले बेटे शादी के सपने , हंसी खुश मिजाजी के दृश्य और माँ को लाड मनुहार के कितने ही दृश्य कुछ ही पल में उनकी बातों में साकार हो गये | उनकी सब बातें मेरी आँखें नम किये दे रही थी पर इस दौरान अपने मुंह से सांत्वना का एक भी शब्द उनके लिए कह पाने में खुद को असमर्थ पा रही थी | इसी बीच मेरी बुआजी ने मुझे बाहर आने के लिए कहा क्योकि रात के दो बजने वाले थे और हमें वापिस घर जाना था | हमने चौहान साहब और उनकी पत्नी के साथ माँ से भी विदा मांगी | पर माँ निर्विकार शून्य में तकती रही और हम वहां से बोझिल मन लेकर निकल चल पड़े | कितने साल बीत गये पर मुझे बेटे की यादों में खोयी वह स्नेही माँ कभी नही भूलती जिन्हें कोई सांत्वना उनके बेटे की यादों से दूर नहीं ले जा पाई | |
उसी समय इन्ही माँ पर एक कविता लिखी थी -- जिसे यहाँ लिख रही हूँ |
माँ अब तक रोती है
माँ अब तक रोती है
उस युवा अनब्याहे बेटे की याद में -
चला गया था आठ साल पहले
जीवन के उस पार अचानक
जो कहकर गया था
आ रहा हूँ पल दो पल में .
पर आई थी उसकी निर्जीव देह '
माँ स्तब्ध है उसी पल से
और रातों को नहीं सोती है !!
बिन तूफ़ान के ही
आम की मोटी टहनी का टूटना
या फिर दरक जाना अचानक
आंगन की मजबूत दीवार का ;
सब उसकी मौत की आहट तो नहीं थी ?
उसके हंसते विदा होने पर अंतिम बार
भीतर लरज़ी थी कोई डरावनी लहर सी ;
क्यों वह अनुमान ना लगा पाई थी
अनहोनी के घटने का !
पछतावे में माँ पल -पल गलती है !
और अब तक रोती है !!
पिता भूल चुके हैं -
भाई मगन हैं अपनी गृहस्थी में
बहनें अक्सर राखी पर
कर लेती हैं आँखें नम ;
पर माँ को याद है
बिछड़े बेटे का हंसना ,मुस्कुराना
और लाड में भर माँ के पीछे -पीछे आना ,
उसका सेहरा देखने का अधूरी चाहत
अब भी कसकती है मन में;
उस जैसा कोई मिल जाए -
हर चेहरे में झांकती माँ
ढूंढती अपना खोया मोती है |
माँ अब तक रोती है !!!!!!!
स्व लिखित -- रेणु
चित्र गूगल से साभार
मन को अंदर तक छू जाने वाली माँ की मर्मान्तक पीड़ा का सजीव संस्मरण!
जवाब देंहटाएंआदरणीय विश्वमोहन जी -- लेख पढ़कर उसका मर्म जानने के लिए आपका अत्यंत आभार |
हटाएंमाँ अब तक रोती है
जवाब देंहटाएंउस युवा अनब्याहे बेटे की याद में -
चला गया था आठ साल पहले
जीवन के उस पार अचानक
जो कहकर गया था
आ रहा हूँ पल दो पल में .
पर आई थी उसकी निर्जीव देह '
माँ स्तब्ध है उसी पल से
और रातों को नहीं सोती है !!
बेहद मर्मस्पर्शी संस्मरण...👌👌
प्रिय अनुराधा जी - हार्दिक आभार आपका |
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता -- आपके साथ पांच लिंकों का हार्दिक आभार |
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी..,वेदना से हृदय विगलित कर देने वाला संस्मरण!
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना जी -- आपके भावपूर्ण शब्दों के लिए हार्दिक आभार |
हटाएंहृदय दहल गया रेणु बहन कोई पत्थर दिल भी ये पढ अपनी आंख भिगोने से ना रह पाया होगा और आपने तो लिखते लिखते सौ बार लिखना बंद किया होगा ।
जवाब देंहटाएंवेदना की पराकाष्ठा।
प्रिय कुसुम बहन ---- सच है अक्सर इसे लिखने से बचती रही पर मेरी आत्मा में अटकी इस भावभीनी याद को अंततः लिख ही दिया | आपने इसके मर्म को समझ इसे सफल कर दिया | माँ को सँभालने के लिए उनके बेटे बहू किस तरह प्रतिबद्ध थे ये माँ के जीवन का सुखद पहलु था | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंबहुत ही मार्मिक संस्मरण
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अभिलाषा बहन |
हटाएं" माँ " सिर्फ एक शब्द जिसमे करुणा ,प्यार ,समर्पण और सारी सृस्टि की ममता समायी होती हैं इसे जीवंत करता तुम्हारा ये संस्मरण मन को भिगो गया ,सादर स्नेह सखी
जवाब देंहटाएंतुमने सच लिखा प्रिय कामिनी | तुम्हारे स्नेहिल शब्दों के लिए हार्दिक आभार |
हटाएंमर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय मीना बहन |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19 -05-2019) को "हिंसा का परिवेश" (चर्चा अंक- 3340) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
सस्नेह आभार प्रिय अनिता |
हटाएंक्यों वह अनुमान ना लगा पाई थी
जवाब देंहटाएंअनहोनी के घटने का !
पछतावे में माँ पल -पल गलती है !
और अब तक रोती है !!
आजीवन रोयेगी आखिर माँ जो है....बच्चे के मामूली जुकाम-बुखार में माँँ यही सोचती है कि कहाँँ गलती हुई मुझसे कैसे न समझ पायी मैं...पछताती है फिर यहाँ तो बच्चे का जीवन ही खो गया वो माँ तो मर मर कर जी रही होगी बहुत ही हृदयविदारक मर्मस्पर्शी संस्मरण...माँ की भावनाओं और बेदना का अनूठा एवं हूबहू बिम्ब.... अद्भुत लेखन सीधे दिल को छू गया ....।
प्रिय सुधा बहन -- आप रचना के मर्म को बहुत आसानी से समझ लेती हैं | आपकी आपके भावपूर्ण शब्दों के लिए सदैव आभारी हूँ | आभार के साथ मेरा प्यार और शुभकामनायें |
हटाएंमार्मिक
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुशील जी - सादर आभार आपका |
हटाएंमाँ की ममता का बहुत ही हृदयस्पर्शी विवेचन रेणु दी। सच में माँ की ममता को समझना बहुत मुश्किल हैं।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और प्यार सखी |
हटाएंअंतस तक छू गया... कविता भी लाजवाब
जवाब देंहटाएंआदरणीय पंकज जी - सादर आभार और नमन आपके भावपूर्ण शब्दों के लिए |🙏🙏🙏🙏
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