युद्ध अथवा शांतिकाल में सैनिकों की शहादत कोई नई बात नहीं। ये शहादत आमजनों के लिए मात्र एक खबर होती है , पर उसके परिजनों के लिए असहनीय आघात। हम अकसर उस पीड़ा से अनभिज्ञ रहते हैं, जो उनका परिवार झेलता है। कुछ वर्ष पहले एक ऐसे परिवार का दर्द मैनें बहुत नजदीक से देखा जिसे मैं कभी भूल नहीं पाई।------------
बात शायद मई 2011 की है | मुझे मेरे भतीजे के मुंडन संस्कार में ज्वाला जी जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश जाने का मौक़ा मिला | मेरे मायके में ज्वाला जी के प्रांगण में ही मुंडन की परम्परा है | मेरे भाई ने मुझे भी अपने बेटे के मुंडन के लिए,सपरिवार अपने साथ जाने के लिए बुलाया था | मेरे गाँव से ज्वालाजी मदिर की दूरी लगभग छः घंटे की है | चण्डीगढ़ से राष्ट्रीय सड़क मार्ग से होते हुए हमें ज्वालाजी जाना था | लम्बी दूरी को देखते हुए , इस रास्ते पर स्थित गुरुद्वारों में थोड़ा विश्राम करने की बात तय हुई| जाते हुए गुरुद्वारा आनन्दपुर साहिब पर विश्राम किया गया, तो लौटते समय, गुरुद्वारा पतालपुरी कीरतपुर साहिब पर कुछ देर रुकने का निर्णय हुआ | इस गुरुद्वारे का सिख धर्म में ऐतहासिक महत्त्व है | इसकी स्थापना गुरु हरगोविंद जी ने की थी | कहा जाता है सिख धर्म के पांच गुरुओं के पवित्र चरण इस धरा पर पड़े थे और दिल्ली में गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद उनका सर इसी स्थान पर माता गुजरी ने अपने आँचल में डलवाया था | गुरु साहिबान ने इसी जगह को धर्म में मोक्ष का स्थान पुकारते हुए समस्त सिक्ख धर्म अनुयायियों को अपने दिवंगत प्रियजनों की अस्थियों का विसर्जन यहीं करने का आदेश दिया था | उस दिन . क्योंकि हमारे साथ कई छोटे बच्चे भी थे सो लम्बे सफर के बीच ये विश्राम जरूरी था | गुरुद्वारा साहेब पहुँचकर सभी ने थोड़ा आराम किया और जिन्हें भोजन की इच्छा थी उन्होंने लंगर भी ग्रहण किया |मेरे दोनों बच्चे भी मेरे साथ थे ,जोउस समय बहुत छोटे थे | बिटिया तो 9 साल की ही थी | उसने गुरुद्वारा पहुँचते ही मुझे आसपास घुमाने की जिद की | मैं उसकी ऊँगली पकड़कर उसे- गुरूद्वारे के एक ओर बने पवित्र सरोवर के पास ले गयी जहाँ ढेरों श्रद्धालु स्नान कर रहे थे | हम दोनों दूर खड़े होकर सरोवर को निहारने लगे | इसी बीच मुझे कुछ लोगों के जोर से रोने की आवाज सुनाई पडी | जिस ओर से आवाजें आ रही थी, उस तरफ सतलुज नहर गुरुद्वारे को छूती हुई बह रही थी ।
और उसी ओर वह स्थान भी था जहाँ अस्थि विसर्जन स्थल था | मैंने उत्सुकतावश थोड़ा आगे जाकर देखा वहां बड़ा करुण- क्रंदन गूंज रहा था | कई लोग अपने प्रियजनों की अस्थियाँ बहाते हुए बहुत भावुक हो रो रहे थे | कुछ धीरे -धीरे सिसक रहे तो एक दो बहुत ज्यादा रो रहे थे | इन्हीं में एक वृद्ध दम्पति भी थे जो अपने कुछ ही दिन पूर्व राजस्थान में आतंकवादी मुठभेड़ में शहीद हुए बेटे , जो कि सीमा सुरक्षा बल में कमाडेंट थे , की अस्थियाँ प्रवाहित करने आये थे | शहीद की पत्नी उन दिनों गम्भीर रूप से बीमार थी | वो अपने पति की मौत की खबर सह ना पाई और सदमे से उनकी भी मौत हो गई | इस दम्पति के साथ शहीद सैनिक के दो बहुत छोटे अत्यंत दर्शनीय बच्चे भी थे. जिनमें लड़के की उम्र लगभग सात साल थी तो लड़की मात्र पांच साल की मुश्किल से थी | दोनों बच्चे इस चीत्कार से बहुत सहमे हुए थे और निःशब्द रह सबकुछ बड़े कौतूहल से देख रहे थे | उनका मुख मलिन पड़ा हुआ था | वृद्ध दम्पति ये कह सिसकने लगे कि वे इन अभागे बच्चों को इस उम्र में कैसे पालेंगे -जबकि बच्चों के पास सिर्फ माता- पिता ही थे वे भी ईश्वर ने छीन लिए | परिवार में शहीद एकलौते भाई थे | कोई दूसरी संतान उनके यहाँ ना होने से वे चिंतित थे कि इन बच्चों का पालन- पोषण अब कौन करेगा |
उन्होंनेअपने शहीद बेटे के बारे में ये भी बताया कि तकनीक में स्नातक होने के बाद उनका चयन कई लाख के पैकेज पर पुणे की एक कंपनी में हो चुका था , पर उन्होंने सीमा सुरक्षा बल के जरिये देशसेवा को अपनाया। इसे बाद वे इन बच्चों को अनाथ कह सिसकने लगे | एक बार तो उनके रोने से चारों ओर निस्तब्धता व्याप्त हो गई पर एक -दो समझदार लोगों ने उन्हें आगे बढ़कर धीरज दिया और कहा कि वे बच्चों को बदनसीब और अनाथ ना कहें | वे भाग्यशाली हैं जिनके पास अत्यंत स्नेही दादा -दादी जैसा मजबूत सहारा है | एक अन्य व्यक्ति ने उन्हें बताया कि वह भी अपने इकलौते बेटे की अस्थियाँ लेकर आया है जो कुछ दिन पहले सड़क दुर्घटना में मारा गया | पर उनके बेटे की तुलना में शहीद की मौत एक गौरवशाली मौत थी | कुछ लोग शहीद अमर रहे के नारे भी लगाने लगे और वृद्ध दम्पति को बहुत प्रकार से सांत्वना देने लगे | सभी ने शहीद के पराक्रम की प्रशंसा की और उन्हें श्रद्धा से नमन कर , ऐसे बहादुर सैनिक के माता पिता होने पर गर्व जताया | इसी बीच गुरुद्वारे के पाठी भाई भी आकर उन्हें समझाने लगे | कुछ ही पलों में शोकाकुल दम्पति काफी हद तक सहज हो गया | कुछ लोगों ने शहीद के बच्चों को कंधे पर बिठाकर उन्हें विशेष स्नेह जताया | इसी बीच उनके अन्य रिश्तेदार भी पहुँच गये और शहीद के जय -जयकारों के बीच सबने मिलकर शहीद सैनिक और उनकी पत्नी का अस्थि -विसर्जन किया |गुरुद्वारा प्रांगण में देश भक्ति का अद्भुत दृश्य उपस्थित हो गया | हर कोई भावुक था और शहीद सैनिक की फोटो पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा था |
कुछ देर बाद वे सभी से घर की ओर लौट चले और मुझे भी मेरे भाई ने बुला लिया | इधर हम सब लोग घर की ओर लौट चले तो शहीद के परिवार ने भी गाडी , जिसपर शहीद की अपनी पत्नी के साथ सुंदर, सौम्य फोटो लगी हुई थी . में बैठ अपने घर की ओर प्रस्थान किया | बहुत दिनों तक शहीद के उस अस्थिविसर्जन की यादें मन को उद्वेलित और दोनों बच्चों की वो मासूम निगाहें मन को विचलित करती रही तो उनके माता - पिता के करुण चीत्कार मेरी स्मृतियों में गूंजते रहे |
अंत में हुतात्माओं को नमन करते हुये मेरी कुछ पंक्तियाँ ------
तेरी हस्ती रहे सलामत
कर खुद को कुर्बान चले ,
तुझे दिया वचन निभा
तेरे वीर जवान चले !
हम ना रहेंगे और आयेंगे
लाल तेरे बहुतेरे माँ
पड़ने ना देंगे तम की छाया
नित लायेंगे नये सवेरे माँ ;
तेरी खुशियाँ कभी ना हो कम
कर घर आँगन वीरान चले
लिपट तिरंगे में घर आये
बढ़ा जीवन की शान चले !!!
🙏🙏🙏🙏🙏
समस्त साहित्य प्रेमियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई🙏🙏
बात शायद मई 2011 की है | मुझे मेरे भतीजे के मुंडन संस्कार में ज्वाला जी जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश जाने का मौक़ा मिला | मेरे मायके में ज्वाला जी के प्रांगण में ही मुंडन की परम्परा है | मेरे भाई ने मुझे भी अपने बेटे के मुंडन के लिए,सपरिवार अपने साथ जाने के लिए बुलाया था | मेरे गाँव से ज्वालाजी मदिर की दूरी लगभग छः घंटे की है | चण्डीगढ़ से राष्ट्रीय सड़क मार्ग से होते हुए हमें ज्वालाजी जाना था | लम्बी दूरी को देखते हुए , इस रास्ते पर स्थित गुरुद्वारों में थोड़ा विश्राम करने की बात तय हुई| जाते हुए गुरुद्वारा आनन्दपुर साहिब पर विश्राम किया गया, तो लौटते समय, गुरुद्वारा पतालपुरी कीरतपुर साहिब पर कुछ देर रुकने का निर्णय हुआ | इस गुरुद्वारे का सिख धर्म में ऐतहासिक महत्त्व है | इसकी स्थापना गुरु हरगोविंद जी ने की थी | कहा जाता है सिख धर्म के पांच गुरुओं के पवित्र चरण इस धरा पर पड़े थे और दिल्ली में गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद उनका सर इसी स्थान पर माता गुजरी ने अपने आँचल में डलवाया था | गुरु साहिबान ने इसी जगह को धर्म में मोक्ष का स्थान पुकारते हुए समस्त सिक्ख धर्म अनुयायियों को अपने दिवंगत प्रियजनों की अस्थियों का विसर्जन यहीं करने का आदेश दिया था | उस दिन . क्योंकि हमारे साथ कई छोटे बच्चे भी थे सो लम्बे सफर के बीच ये विश्राम जरूरी था | गुरुद्वारा साहेब पहुँचकर सभी ने थोड़ा आराम किया और जिन्हें भोजन की इच्छा थी उन्होंने लंगर भी ग्रहण किया |मेरे दोनों बच्चे भी मेरे साथ थे ,जोउस समय बहुत छोटे थे | बिटिया तो 9 साल की ही थी | उसने गुरुद्वारा पहुँचते ही मुझे आसपास घुमाने की जिद की | मैं उसकी ऊँगली पकड़कर उसे- गुरूद्वारे के एक ओर बने पवित्र सरोवर के पास ले गयी जहाँ ढेरों श्रद्धालु स्नान कर रहे थे | हम दोनों दूर खड़े होकर सरोवर को निहारने लगे | इसी बीच मुझे कुछ लोगों के जोर से रोने की आवाज सुनाई पडी | जिस ओर से आवाजें आ रही थी, उस तरफ सतलुज नहर गुरुद्वारे को छूती हुई बह रही थी ।
और उसी ओर वह स्थान भी था जहाँ अस्थि विसर्जन स्थल था | मैंने उत्सुकतावश थोड़ा आगे जाकर देखा वहां बड़ा करुण- क्रंदन गूंज रहा था | कई लोग अपने प्रियजनों की अस्थियाँ बहाते हुए बहुत भावुक हो रो रहे थे | कुछ धीरे -धीरे सिसक रहे तो एक दो बहुत ज्यादा रो रहे थे | इन्हीं में एक वृद्ध दम्पति भी थे जो अपने कुछ ही दिन पूर्व राजस्थान में आतंकवादी मुठभेड़ में शहीद हुए बेटे , जो कि सीमा सुरक्षा बल में कमाडेंट थे , की अस्थियाँ प्रवाहित करने आये थे | शहीद की पत्नी उन दिनों गम्भीर रूप से बीमार थी | वो अपने पति की मौत की खबर सह ना पाई और सदमे से उनकी भी मौत हो गई | इस दम्पति के साथ शहीद सैनिक के दो बहुत छोटे अत्यंत दर्शनीय बच्चे भी थे. जिनमें लड़के की उम्र लगभग सात साल थी तो लड़की मात्र पांच साल की मुश्किल से थी | दोनों बच्चे इस चीत्कार से बहुत सहमे हुए थे और निःशब्द रह सबकुछ बड़े कौतूहल से देख रहे थे | उनका मुख मलिन पड़ा हुआ था | वृद्ध दम्पति ये कह सिसकने लगे कि वे इन अभागे बच्चों को इस उम्र में कैसे पालेंगे -जबकि बच्चों के पास सिर्फ माता- पिता ही थे वे भी ईश्वर ने छीन लिए | परिवार में शहीद एकलौते भाई थे | कोई दूसरी संतान उनके यहाँ ना होने से वे चिंतित थे कि इन बच्चों का पालन- पोषण अब कौन करेगा |
उन्होंनेअपने शहीद बेटे के बारे में ये भी बताया कि तकनीक में स्नातक होने के बाद उनका चयन कई लाख के पैकेज पर पुणे की एक कंपनी में हो चुका था , पर उन्होंने सीमा सुरक्षा बल के जरिये देशसेवा को अपनाया। इसे बाद वे इन बच्चों को अनाथ कह सिसकने लगे | एक बार तो उनके रोने से चारों ओर निस्तब्धता व्याप्त हो गई पर एक -दो समझदार लोगों ने उन्हें आगे बढ़कर धीरज दिया और कहा कि वे बच्चों को बदनसीब और अनाथ ना कहें | वे भाग्यशाली हैं जिनके पास अत्यंत स्नेही दादा -दादी जैसा मजबूत सहारा है | एक अन्य व्यक्ति ने उन्हें बताया कि वह भी अपने इकलौते बेटे की अस्थियाँ लेकर आया है जो कुछ दिन पहले सड़क दुर्घटना में मारा गया | पर उनके बेटे की तुलना में शहीद की मौत एक गौरवशाली मौत थी | कुछ लोग शहीद अमर रहे के नारे भी लगाने लगे और वृद्ध दम्पति को बहुत प्रकार से सांत्वना देने लगे | सभी ने शहीद के पराक्रम की प्रशंसा की और उन्हें श्रद्धा से नमन कर , ऐसे बहादुर सैनिक के माता पिता होने पर गर्व जताया | इसी बीच गुरुद्वारे के पाठी भाई भी आकर उन्हें समझाने लगे | कुछ ही पलों में शोकाकुल दम्पति काफी हद तक सहज हो गया | कुछ लोगों ने शहीद के बच्चों को कंधे पर बिठाकर उन्हें विशेष स्नेह जताया | इसी बीच उनके अन्य रिश्तेदार भी पहुँच गये और शहीद के जय -जयकारों के बीच सबने मिलकर शहीद सैनिक और उनकी पत्नी का अस्थि -विसर्जन किया |गुरुद्वारा प्रांगण में देश भक्ति का अद्भुत दृश्य उपस्थित हो गया | हर कोई भावुक था और शहीद सैनिक की फोटो पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा था |
कुछ देर बाद वे सभी से घर की ओर लौट चले और मुझे भी मेरे भाई ने बुला लिया | इधर हम सब लोग घर की ओर लौट चले तो शहीद के परिवार ने भी गाडी , जिसपर शहीद की अपनी पत्नी के साथ सुंदर, सौम्य फोटो लगी हुई थी . में बैठ अपने घर की ओर प्रस्थान किया | बहुत दिनों तक शहीद के उस अस्थिविसर्जन की यादें मन को उद्वेलित और दोनों बच्चों की वो मासूम निगाहें मन को विचलित करती रही तो उनके माता - पिता के करुण चीत्कार मेरी स्मृतियों में गूंजते रहे |
अंत में हुतात्माओं को नमन करते हुये मेरी कुछ पंक्तियाँ ------
तेरी हस्ती रहे सलामत
कर खुद को कुर्बान चले ,
तुझे दिया वचन निभा
तेरे वीर जवान चले !
हम ना रहेंगे और आयेंगे
लाल तेरे बहुतेरे माँ
पड़ने ना देंगे तम की छाया
नित लायेंगे नये सवेरे माँ ;
तेरी खुशियाँ कभी ना हो कम
कर घर आँगन वीरान चले
लिपट तिरंगे में घर आये
बढ़ा जीवन की शान चले !!!
🙏🙏🙏🙏🙏
समस्त साहित्य प्रेमियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई🙏🙏
प्रिय रेणु,आपका यह मार्मिक लेख मैंने पहले भी पढ़ा है। आज पुनः पढ़ा। मन को भावुक कर देने वाले इस लेख को जब भी पढ़ा,अपने वीर जवानों के प्रति, उनके माता पिता के प्रति हृदय श्रद्धा और सम्मान से भर उठा। लोग राष्ट्र के कार्य के लिए थोड़ा सा दान करके उसका कितना विज्ञापन करते हैं। असली दान तो ये माता पिता देते हैं जो देश के लिए अपने कलेजे के टुकड़ों को काल के मुख में भेज देते हैं।
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना, आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार। आज होनहार युवाओं के लिए आजीविका के लिए अपार संभावनाएं मौजूद हैं। पर लाखों करोड़ों का पैकेज ठुकराकर जो युवा
हटाएंदेशसेवा को अपनाते हैं, वे मातृभूमि के मसीहा हैं ,जो युद्धभूमि में शूरवीर हैं तो आपदाकाल में अत्यंत धीर हैं। माता -पिता और समस्त परिवार के लिए युवा बेटे का विछोह का दर्द कौन लिख पाया है?? उस दृश्य और उस पीड़ा से सामना करना बहुत ही ज्यादा मर्मांतक अनुभव रहा। उन माता -पिता के सम्मान में झुकी नज़र उठती नही है। उनके प्रतिसम्मान उनके बेटे तो वापिस नहीं ला सकता पर उनके विकल मनों को थोड़ी सी सांत्वना तो दे ही सकता है।हमें अपने वीरों पर गर्व है।सस्नेह 🌹🌹🙏🌹🌹
बहुत ही हृदयस्पर्शी संस्मरण लिखा है आपने...सच क्या गुजरती होगी ऐसे परिवार पर। उन बच्चों का क्या जो ऐसे अनाथ हो गये...पढ़कर ऐसा लगा जैसे उस विकट घड़ी को देख रहे हों उन मासूमों के दुख को महसूस कर हृदय बैठ जाता है...आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर वीर शहीद की स्मृति में लिखा ये संस्मरण उन शहीदों को श्रद्धांजलि है जिनके
जवाब देंहटाएंकारण हम स्वतंत्र है स्वतंत्रता दिवस देश वीर शहीदों का स्मृति दिवस है...सुन्दर संस्मरण हेतु बहुत बहुत बधाई सखी!
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।
प्रिय सुधा जी , आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के बिना मेरा लेख कैसे सार्थक होता ?आपने शब्दों में उस दृश्य को अनुभव किया ये आपकी कविसुलभ संवेदनशीलता है | हार्दिक आभार इस भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए | आपको भी मेरी हार्दिक शुभकामनाएं|
हटाएंआपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं, सुन्दर संस्मरण के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी , आपको भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं|
हटाएंअति भावपूर्ण संस्मरण, बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदयताल से आभार दीदी |
हटाएंबेहद मर्मस्पर्शी संस्मरण, स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सखी
जवाब देंहटाएंप्रिय अनुराधा जी , हार्दिक बधाई और आभार आपकी अनमोल प्रतिक्रिया का |
हटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी लेख प्रिय सखी रेनू । शहीदों और उनके परिवार वालोंं को सादर नमन🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई और आभार आपकी अनमोल प्रतिक्रिया का प्रिय शुभा जी |
हटाएंबहुत ही मर्मस्परसी सृजन आंखे भर आईं।
जवाब देंहटाएंउर्मि दीदी , आपके इस अनुग्रह की आभारी हूँ कि आपने लेख पढ़कर अपनी अनमोल प्रतिक्रिया दी |
हटाएंअपने पवित्र रक्त से भक्तिपूर्वक माँ भारती के पादपद्य पखारने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता है और न ही हर कोई इस प्रकार से मृत्यु को छाती से लगा सकता है।
जवाब देंहटाएंमृत्यु जो जीवन का सत्य है, उसे किसी न किसी रूप में आना ही है, किन्तु तिरंग संग अंतिम विदाई भी हर किसी को नहीं मिलती है।
यह ठीक है कि परिवार बिखर जाता है, इस असहनीय वेदना को सहन करना प्रियजन के लिए अत्यंत कठिन होता है, परंतु इससे भी बड़ा दुःख यह है कि शहीदों का यह बलिदान कितना सार्थक हो रहा है। क्योंकि वे राष्ट्र की रक्षा के लिए रक्त की होली खेल रहे हैं और हम भ्रष्ट आचरण के माध्यम से धन बटोर रहे हैं। देश का यह दुर्भाग्य है कि अब फहराया जाता है तिरंगा, लेकिन आचरण होता है तीन-तिकड़़म वाला। बड़ा सवाल यही है कि ऐसे में शहीदों की आत्मा को कैसे शांति मिलेगी ?
बहुत ही मार्मिक संस्मरण लेख है रेणु दीदी।🙏🕯️
शशि भैया , आपने सही कहा ममृत्यु का दिन अटल है ,पर तिरंगा कफन के रूप में भाग्यशाली लोगों को ही मिलता है | पर सहीद के परिजनों की उस पीड़ा को कौन समझ सकता है जो इस असहनीय वेदना से उपजती है | दुसरा पक्ष है सैनिक अपनी जान गंवा रहे हैं तो भ्रष्टाचारी मौज उड़ा रहे हैं | आपने बिल्कुल सही लिखा क्या ये सब देखकर शहीदों की आत्मा चैन से रह पाती होगी ? इस कडवे सच सच को आप जैसा संवेदनशील इंसान और सजग जनप्रतिनिधि ही नजदीक से देखकर महसूस कर सकता है || हार्दिक आभार आपकी इस भावपूर्ण अनमोल प्रतिक्रिया का |
हटाएंमन को छूकर नयनों को नम करने वाला हृदय-स्पर्शी संस्मरण!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपकी अनमोल भावपूर्ण प्रतिक्रिया का , आदरणीय विश्वमोहन जी |
जवाब देंहटाएंनमन वीरों को नमन उनके मां और पिता को । मन को छूते शब्द।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय सुशील जी | आपने पढ़कर लेख को सार्थक कर दिया |
हटाएंसंस्मरण , रचना दोनों ही ह्रदय स्पर्शी हैं |बहुत बहुत साधुवाद |
जवाब देंहटाएंआदरणीय आलोक जी, हार्दिक अभिनन्दन है आपका मेरे ब्लॉग पर | आप लेख ,कविता पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हुआ |सादर प्रणाम और आभार |
हटाएंआपकी रचना अच्छी है रेणु जी और उसकी प्रेरक घटना का चित्रण मार्मिक । हमारे साथ इस संस्मरण को बांटने के लिए आभार । मैं पथिक जी के विचारों से सहमत हूँ कि किसी भी सच्चे देशप्रेमी और संवेदनशील व्यक्ति का मन इस तथ्य से व्याकुल हो उठता है कि मातृभूमि पर प्राणोत्सर्ग करने वालों का यह अनमोल बलिदान सार्थक नहीं हो रहा है और उनके अवसान के उपरांत उनसे भी बड़ा बलिदान (उनके बिना जीने का) करने वाले उनके परिजनों की सुध वे लोग नहीं लेते हैं जो उनके बलिदान की जय-जयकार करके उसे अपने स्वार्थ के लिए भुनाते हैं ।
जवाब देंहटाएंजी अ , जितेन्द्र जी , बहुत बहुत आभार आपकी अनमोल प्रतिक्रिया का | आपने सही कहा , शहीदों की शहादत से उनके परिजन जिस पीड़ा से गुजरते हैं शहादत के बाद उसकी सुध -बुध लेने वाला कोई नहीं होता | मुझे भी अक्सर यही महसूस होता है कि उस दिन शहीद की जय -जयकारों के बीच , उन वृद्ध दम्पति की पीड़ा थोड़ी कम तो हो गयी होगी पर क्या सचमुच उस जय जयकार से किसी शहीद के परिवार का दर्द हमेशा के लिए मिट सकता है ? सत्ताधारी लोग इसलिए ये दर्द नहीं समझ पाते क्योकि आज तक किसी नेता के बेटे या बेटी ने सर्वोच्च बलिदान नहीं दिया है देश के लिए |
हटाएंहृदय को विचलित कर देने वाली इस रचना के लिए ह्दय से सराहना आपकी... 🙏
जवाब देंहटाएंकृपया यदि समय निकाल कर मेरी इस पोस्ट पर पधारें तो कृपा होगी।
http://sahityavarsha.blogspot.com/2020/09/8.html?m=1
बहुत बहुत आभार वर्षा जी | आपकी सुंदर समीक्षा पढ़ आई हूँ | बहुत बढिया लिखी आपने |
हटाएंआपने उस शहीद के परिवार को - उस के माता-पिता एवं बच््चों का दुःख इतनी आत््मीयता से देखा और ब््यां किया..सच में कुछ वाक््या हमारे ज़ेहन में हमेशा के लिए अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं...
जवाब देंहटाएंआज इतने दिनों बाद ब््लॉग पर दिखे आप के कमैंट के ज़रिए आप की इस भावुक पोस््ट पर पहुंचा.....शुक्रिया।
डॉ प्रवीण जी , आपका मेरे ब्लॉग पर आना मेरे लिए आह्लाद और गर्व का विषय है | कोटि आभार आपके इस अनुग्रह का |
हटाएं14 अगस्त को लिखी यह पोस्ट 26 जनवरी पर भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। हुतात्माओं को नमन करती आपकी पंक्तियां लाजवाब हैं। मर्मस्पर्शी संस्मरण के लिए आपको ढेरों शुभकामनाएं। सादर।
जवाब देंहटाएंप्रिय वीरेंद्र जी , मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है | आपके अनमोल उद्गारों के लिए सस्नेह आभार
हटाएं|
बहुत गहरी रचना, गहरा लेखन। बधाई आपको
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। उत्साह बढाती प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक
हटाएंआभार❤❤🙏🌹🌹
आदरणीया मैम ,
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण लेख हमारे शहीद जवानों पर। लाखों का पैकेज छोड़ कर , माँ भारती की सेवा में समर्पित करने वाले जवान वंदनीय हैं। आपके इस लेख ने न केवल जवानों के परिवार की पीड़ा को उकेरा है पर उनके वीरगति को प्राप्त होने के दोनों पक्षों को दर्शाया है। एक और तो उनका शहीद हो जाना उनके प्रियजनों के लिए आघात है, दूसरी और यह भी सत्य है की जवानों जैसी मृत्यु पाना सौभाग्य और गर्व की बात है। हमारा कर्तव्य है की हम हमारे शहीद के परिवारों का पालन-पोषण करें , उनका ध्यान रखें पर हम अपने इस कर्तव्य की उपेक्षा करते सारा दोष सरकार को दे देते हैं। सच तो यह है की इन शहीदों के परिवार को हमें अपना मान कर इनकी ओर सजग रहना चाहिए। आपका यह लेख मन को बहुत भावुक कर देता है , विशेष कर जब हमें यह पता चलता है कि यह एक आँखों देखि सत्य घटना है। हृदय से आभार इस लेख के लिए और आपको प्रणाम।
क्षितिज की सभी रचनाएँ पढ़ लीं। एक- एक कर के सब। अब मीमांसा की बारी है। क्षितिज पर आपकी नई रचनाएँ पढ़ती रहूँगी।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनंता , मीमांसा पर तुम्हारा स्वागत है | वैसे तुम यहाँ कई बार आई हो और प्रतिकिया भी दी है | तुम्हारी समीक्षा पढ़कर तुम्हारे अन्दर के जिज्ञासु पाठक से परिचय होता है| रचना पर तुम्हारे सारगर्भित विचारों का स्वागत है | जब जी चाहे आओ यहाँ और पढो भी | हार्दिक स्नेह |
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी संस्मरण को साझा करने के लिए हृदय से आभार रेणु जी
जवाब देंहटाएंगहन भावाभिव्यक्ति ।
रचना पर आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आभार प्रिय मीना जी |
हटाएंरेणु दी, शहीद के परिवार पर क्या बितती है,इसका हम और आप सिर्फ अंदाज भर लगा सकते है। बहुत ही करुण दृश्य होता है वो। उस दृश्य का बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए आभार प्रिय ज्योति जी |
हटाएंबहुत सुंदर हृदयस्पर्शी संस्मरण
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय मनोज |
हटाएंबहुत हृदय विदारक मंजर आप ने देखा ….और उसे शब्दों में पिरो कर शहीद के बलिदान और परिवार की व्यथा पाठकों तक पहुँचायी ! शुक्रिया! शहीद को सादर नमन …और परिवार को सदमा सहने की शक्ति के लिए अरदास ! 🙏🏻💐
हटाएंशुक्रिया, आभार डाक्टर प्रवीन। आपका स्वागत है 🙏🙏
जवाब देंहटाएंशहीदों के परिवार जो दुख और संकट पड़ता है उसे समझना और समय-समय परउनका साथ निभाना ,यह समाज का दायित्व बनता है,जिसे निभाना हम सबके लिये वाञ्छित है.
जवाब देंहटाएंआभार और अभिनन्दन आदरणीया इस विशेष प्रतिक्रिया के लिए |
हटाएंनमन वीरों को
जवाब देंहटाएंनमन उनके माता-पिता को
कठिन दौर से गुजरते हैं अनाथ हुए बच्चे
साझा करने हेतु धन्यवाद
आपने सही कहा प्रिय दीदी | आपने लेख पढ़ा लिखना सार्थक हुआ |सादर |
हटाएंमृत्यु किसी की भी हो, दुःखद होती है । सैनिक की अंतिम यात्रा को ग्लोरीफ़ाई किया जाता रहा है, किंतु उसकी घरेलू स्थितियों में कई तरह की उथल-पुथल हो जाती है। कई बार तो सम्पत्ति को लेकर परिवार में विवाद प्रारम्भ हो जाते हैं । यह सब दुःखद है । आपके इस वृत्तांत पर पृथक से एक टिप्पणी आपको मेल से भेजी है । कृपया अवलोकन कीजियेगा ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ कौश्लेंद्र्म जी , आपके विचारों से सहमत हूँ | आपकी प्रतिक्रिया के इतने विलम्बित उत्तर के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | सैनिक के बलिदान से एक पीड़ित परिवार किन दर्दनाक परिस्थितियों में से गुजरता है उसे अपनी आँखों से देखकर यही आभास हुआ कि सैनिकों की मौत के ये तमाशे एक मिथ्या भ्रम मात्र हैं | यूँ एक सैनिक के कर्तव्य के साथ उसकी मौत भी उसकी नियति में लिखी होती है | पर उसकी कथित गौरवशाली मौत उसके स्नेही परिवार को पीड़ा की किस गहन गुफा में धकेल कर जाती है उसका किसी को अंदाजा नहीं होता | हम जैसे लोग भी विरुदावलियाँ गा-गा कर बस कलम घिसाई ही कर रहे हैं | बहुत अच्छा लगा आपने इस विषय विशेष पर मेरी आँखें खोली | सादर
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